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सद्गुरु कबीर जयंती पर
"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।"
भारतीय समाज वर्ण जाति व्यवस्था से युक्त हैं ।भले यहां साधु यानि सज्जन, ज्ञानी,सिद्ध लोगों की जाति नहीं पूछने की कबीर साहब की नसीहत हैं। परंतु बिना जाति पूछे दो अनजान लोगो के बीच न जान पहचान होते न ही लोकाचार! शादी ब्याह और जीवन निर्वाह तक भी नहीं होते। लेकिन इसी जातिप्रथा और वर्ण व्यवस्था के कारण सदियों से दमन शोषण भी जारी हैं।
आजादी के 75 वर्ष बीत जाने और प्रभावी संविधान के बाद भी जाति से उत्पीड़ित वर्ग के हितार्थ उन्हें लाभान्वित करने जाति जनगणना हो रहे हैं इससे अपेक्षित बदलाव की संभावना हैं। नि:संदेह साधु से ज्ञान ही पूछिए पर मतदाता और हितग्राहियों से जाति पूछना ही पड़ेगा तभी तो उनके ऊपर न्याय कर पाएंगे क्योंकि अब तक जाति न पूछने के कारण कोई दूसरा उसका लाभ लेते आ रहे हैं।
तो भैये कबीर साहब से बिना क्षमा याचना किए कि उनकी बातें शत प्रतिशत सत्य हैं ,हम ज्ञानियों से जाति नहीं पूछेंगे बल्कि जाति विहीन समुदाय की ओर अग्रसर हैं। लेकिन जो जाति के नाम पर छल प्रपंच करके किसी के हक अधिकार को छीन रहे हैं। कोई जाति के दर्प में तो कोई शर्म से जीते आ रहे हैं। जन्मना जाति गत उच्च नीच की खाई बनी हुई है। भेदभाव परिव्यप्त हैं ऐसे में समानता लाने कुछ दशकों तक प्रयोग करके नवाचार करे और जाति जनगणना कर ले कोई हर्ज नहीं। देर आए दूरस्थ आए टाइप इस कार्य का स्वागत होना चाहिए।
सद्गुरु कबीर जयंती की हार्दिक बधाई।
सत कबीर,सतनाम
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