[5/24, 09:25] Anilbhatpahari: तन के तिजौरी म रतन भरे हे सब मनखे गुन के खान
बनना निगड़ना अपन हाथ म सब संगत के पहिचान
खेलत खात रात दिन जिनगी ह पहावय ।
छप्पन भोग करथे तभो ल ये मन नइ अघावय ।/
मन भंवरा मतवार किंदरय ,कर रुप मदिरा पान ...
मया पीरित बर बिहाव लगिन कराये गौना
ये जग ब इरी जहर महुरा लागे मीत मतौना
अब तो अधियागे खिरत हे, सबो आन -बान
जग अंधियार सुझै न कछु ,अब तो का करन गा
तन डोलत हे मन हे भारी अब तो गुरु शरन जा
एक साहारा हवय संतो ,सुमर ले सतनाम ....
[5/24, 10:16] Anilbhatpahari: तन के तिजौरी म रतन भरे हे, दया मया सद्भाव
बनना बिगड़ना अपन हाथ म सब संगत के प्रभाव
जेन बोबे तेन लुबे संगी,खेत हो या हिरदय
अलकर दु: ख का कहिबे संगी,
सहर पहर बन किंदरय
मन म तोर सइता नइये त कछुचों आव जाव ....
बीच गली म डांग गड़ा के खेलत हे डंगचघहा
बीच भंवर म डोंगा फंसगे तउरत हे डोंगहा
सद्गुरु हवे एक सहारा उही करहि नर न्याव ...
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