"विरह "
मदहोशी की खुमार में
बिताते है दिन
आशिक काटते है
रातें तारे गिन- गिन
बिन प्रेयसी के
चैन नही पल-छिन
सुझे गर उपाय
कोई तो कुछ कहिन
लैहो सब बलाइयां
उनकी लागि लगिन
अब सच तन में
प्राण न रहन चाहे उनके बिन
-डा.अनिल भतपहरी
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