Thursday, September 19, 2019

विरह

"विरह "

मदहोशी की खुमार में
बिताते है दिन
आशिक  काटते है 
रातें तारे गिन- गिन
बिन  प्रेयसी  के 
चैन नही पल-छिन
सुझे गर उपाय 
कोई तो  कुछ कहिन
लैहो सब बलाइयां
उनकी लागि लगिन
अब सच तन में
प्राण न रहन चाहे उनके बिन
-डा.अनिल भतपहरी

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