मेरे बेटे मिलिन्द २० मार्च १९९८ को जैसे ही महालक्ष्मी नर्सिंग होम रायपयर में जन्म लिए उसी दिन हमारे गांव जुनवानी के आंगन के मोंगरे की झाड़ी में केवल "एक फूल " खिल उठे !
अस्पताल से छुट्टी कराकर घर लाए तो प्रफुल्लित पिताश्री उसे गोद मे उठाकर जब मोंगरे झाड़ के पास ले जाते तो भीनीं महक से खुश हो नाक भींजते और किलकारी मारने लगते ।नवजात बच्चें की कौतुहल देख पिता श्री मिलिन्द को फूल सुंधड़ू दाऊ कहते। यह घरेलू नाम चल ही पड़ा ।यदा -कदा दादी उसे अब भी फूल सूंधड़ू कहती हैं ।
सूदूर पेन्ड्रारोड जब वे पत्र लिखते तो हमेशा लिफाफा डालते और उसमें घर के आंगन में खिले मोंगरे का फूल डालना नहीं भूलते।
पिता श्री सुकालदास भतपहरी २००० से नहीं है। इन उन्नीस वर्षो से उनकी हर विशिष्ट बातें जेंहन में हैं। मोंगरे की फूल देख हमें हमारे पिता श्री स्मृत हुए।
Thursday, April 25, 2019
फूलसूंघडू
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