Tuesday, December 4, 2018

सतनाम आरती

"सतनाम -आरती "

आरती हो सतनाम गुरुजी के आरती हो सतनसम ....
पहली आरती जगमग जोती,
हीरा पदारथ उपजे ल मोती ...

दूजे आरती  दुई मन सोहे  , सतनाम ह हिरदे म पोहे ,
आरती हो सतनाम ।

तीजे आरती त्रिभुवन मोहे , सेत सिंहासन गुरुजी ल सोहे , आरती हो सतनाम।

चौथे आरती चारो जुग पूजा , सतनाम छोड़ अउर नही दूजा , आरती हो सतनाम ।

पाँच आरती पद निरवाना , कहे सतनाम हंसा लोक सिधाना , आरती हो सतनाम।

छय आरती छय दर्शन पावै , लाख चौरासी जीव के बन्ध छोडावै, आरती हो सतनाम।

सात आरती सतनामी  घर आवे , चढ़ के विमान सतलोक पठावे , आरती हो सतनाम , हो गुरुजी के आरती हो सतनाम।।

हां यह उपर्युक्त आरती  भावप्रवण पारंपरिक आरती हैं।
इनका गायन  गुरुआसन कलश के एक ओर बैठे संत -महंत भंडारी आदि पुरुष वर्ग  द्वारा किए जाते हैं। और दूसरी ओ र सात महिलाएं आरती की कांसे की थाल लिए भू स्पर्श कराती उर्ध्व आकाश की ओर क्रमश: दायी ओर आरती की थाल घुमाती करती। यह दृश्य मन हृदय व बुद्धि को पावन करती हैं। यह विशिष्ट धार्मिक अनुष्ठान सुख दु:ख के छण में संपन्न होते हैं।
      एक और मंगल आरती हमारे परिछेत्र में लोकप्रिय हैं। जिन्हे ५० वर्ष पूर्व हमारे पिता श्री सतलोकी सुकालदास द्वारा  सृजित हैं....

गुरुबाबा घासीदास के
आरती की जै सब मिल के ...

सुरहिन गैय्या के गोबर मगाए
चारों खुट अंगना चौक पुराए...

सोन कलश जेमा गंगा जल
हिरदे सफ्फा मन रहे निश्चल...

रतन पदारथ हीरा मोती
सरधा के आरती जगमग जोती ...

तन लगे दियना मन लगे बाती
सुरता के तेल जरय सरी राती .... 

   इसे हमने २००२ में निर्मित सतनाम संकीर्तन ऑडियो कैसेट में सम्मलित भी किए और यह आरती अनेक जगहों पर गाई जाती हैं।

   पहले वाला सुख और दुख
खासकर दशगात्र में पंगत के समय गुरु संत महंत द्वारा एव रात्रि में  चलानी चौका आदि में कडिहार पंडित द्वारा  गाए जाते हैं।
   जबकि दूसरा वाली गुरुघासीदास के आरती हैं। जो सतनामायण  संकीर्तन व उच्छल मंगल के अवसर पर सामूहिक रुप से गाये जाते हैं।

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