Sunday, November 17, 2024

अनु जाति जनजाति की स्थति

छत्तीसगढ़ के अनुसूचितजाति एवं अनुसूचित जनजाति की स्थिति 

    छत्तीसगढ़  वनाच्छादित रत्नगर्भा और धान कटोरा से विभूषित शस्य श्यामला भूमि हैं. इनका पृथक अस्तित्व प्राचीन काल मे रहा हैं. मराठा और ब्रिटिश कलखंड में यह सी पी एंड बरार के रुप मे जाने गए और ज़ब आजादी मिली तो  मध्यप्रदेश हिंदी राज्य के अधीन हो गए.इस तरह पूर्व मे मराठा और बाद मे मप्र,उत्तर भारतीयों के सांस्कृतिक और भाषाई उपनिवेश मे जाने अनजाने जकड़ते गए. विराट भूखंड और जनजीवन के भाषा धर्म कला सांस्कृति  आदि तत्वों की उपेक्षा होती गई.  फलस्वरूप शिक्षा समझ बढ़ने से धीरे धीरे पृथक छत्तीसगढ़ के लिए महौल बना और 1 नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य अतित्व में आई. 
    यहाँ 32+15 = 47% जनता अनु जाति /जनजाति का हैं. और इतनी बड़ी आबादी की  विकास एवं उनकी धर्म कला भाषा एवं संस्कृति  के  उत्थान लिए कोई सार्थक पहल विगत 24 वर्षों मे दिखाई नहीं पड़ता.

अनु जाति वर्ग मे सतनामी को छोड़कर शेष जातियां हिन्दू धर्म के अभिन्न अंग हैं और अनेक कुलदेवी देवता उपासक हैं. हिन्दुओं के सार्वजनिक धार्मिक आयोजनों मे उनकी भागीदारी अनिवार्य हैं. 
    सतनामी समाज मे किसी तरह की कट्टरताये नहीं हैं.एक तरह से यह समुदाय सबको सम्मान देता हैं.क्योंकि इस पंथ में अधिकतर जातियाँ हिन्दू धर्म से निकल कर जाति विहीन समुदाय के रुप विकसित हुआ हैं. इसलिए इनकी अपनी कोई पृथक धार्मिक पहचान नहीं हैं. हालांकि ब्रिटिश दस्तावेजों मे स्वतंत्र रिलीजन के रुप मे चिन्हकित की गई थी. पर आजादी के आंदोलन के समय हिन्दू सतनामी महासभा गठित साझा संघर्ष किये. आजादी तो मिली परन्तु अस्तित्व विलीन सा हो गए.विगत 40 वर्षो से इनमें कुछेक संस्थान और प्रबुद्ध जन पृथक  धर्म के लिए संघर्षरत हैं.
    जनजातियों मे ईसाई धर्म अपना लिए समुदाय को छोड़कर प्रायः सभी देव देवी उपासक हैं और इस तरह हिन्दू धर्म के ही अधीन हैं. शिक्षा से आई जागृति के कारण कुछ दशकों से पढ़े लिखें वर्ग सरना और गोंडी धर्म के लिए संघर्षरत हैं.

  अनु जाति /जनजाति को एक विभाग बनाकर यहाँ 16% अनु जाति को प्रायः आजादी के बाद से अनदेखा करते आ रहें .जबकि दोनों संवर्ग अलग अलग संस्कृति प्रवृत्ति के है. सुदूर वानंचलो के रहवासी होने से जनजातीय समुदाय के प्रति सहानुभूति और अनुजाति समुदाय जो मैदानी गाँवो / शहरों के सहवासी होने से प्रायःप्रतिद्वन्दविता झलकते हैं.

हमलोग अध्ययन काल से ही दोनों विभाग को अलग करने की मांग करते आ रहें हैं. ताकि अनु जाति वर्ग का भी अपेक्षित विकास हो पर सुने कौन?खैर अब जाकर अनु जाति प्राधिकारण का गठन हुआ है देखे आगे इनकी धर्म कला संस्कृति के साथ साथ अपेक्षित विकास क्या होगा?

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