Saturday, November 23, 2024

हिमालय

#anilbhatpahari 

हिमालय 

संसार का वैभव  त्याग कर लोग हिमालय की ओर प्रस्थान करते रहे हैं। कहते है कि वहां देव निवास करते है इसलिए तो हिमालय परिक्षेत्र को देवभूमि की संज्ञा दी गई हैं। 
  कुछ संकट आया , वय ढला  और सर के बाल सफेद हुये नहीं कि लोग कैलाश ٫त्रिशुल٫ नंदादेवी के शिखर दर्शन के लिए उद्दत हो जाते हैं।तो कुछेक अमरनाथ , बद्रीनाथ गंगोत्री, हरिद्वार की ओर प्रस्थान करते है कि गोया वहां जाने मात्र से मुक्ति मिलेगी या  दर्शन मात्र से मोक्ष या निर्वाण मिल जाएगा ! मानसरोवर को बुद्ध की मानिंद हस्तगत या हड़पकर  चाइना  "बुद्धम शरंणम गच्छामि" का उद्धोष कर रहा है या  उनके आंऊ माऊ चाऊ हम जैसों के भेजे मे समाते नहीं क्या?भले धर्मशाला खोलकर हम मैनपाट तक शरणागतों को आश्रय देकर धर्मप्रिय महादेश के "धर्मात्मा "बने हुये हैं।
 तो भैये कह रहे थे कि वहां तो अनेक साधु ,तपस्वी , संत मठ ,मंदिर ,आश्रम  दिखते भी हैं। जहां मोक्ष निर्वाण का कारोबर चलता हैं । वहा पर परमानंद -आत्मानंद की अकथ कथा का प्रवाह भी शिलाखंडों व हिमखंडों को‌ चकनाचूर कर आगे प्रयाण करते कल कल निनाद करते  रहे हैं।
   पर सच तो यह है कि  हिमालय की ओर आजकल  युवाओं का ज्यादा आकर्षण बढ रहा  हैं। वहां बड़ी तेजी से होटल, रिसार्ट, होम स्टे ,रेस्त्रां ,पब और विविध मौज मस्ती के लिए पर्यटन  के नाम पर मनोरंजन उद्योग  के केन्द्र स्थापित होने लगे हैं। पैराग्लाडिंग, ट्रेकिंग  ,रीवर राफ्टिंग, जीप लेने जैसे साहसिक कारनामें यदि जीवन संघर्ष में काम आये तो किसी  हठयोगी की तप साधना के प्रतिफल से कमतर नही समझना चाहिये। हमें योगी नही सस्टनेबल भोगी चाहिये तो वसुंधरा के वैभव को चक्रवर्ती सम्राट की तरह भोग सके।
     हिमालय व देवभूमि  दर्शन  वैराग्य भाव को जागृत करते थे अब राग ,रति ,रंग हिमालय ही जगा रहे हैं। राग -वैराग्य का अनुठा समन्वय वहां द्रष्टव्य हैं। हमलोग हिमालयन व्यु पांइट को अब इंडिया का स्वीट्जरलैंड कह महाआनंद में निमग्न हो जाते हैं। सच कहे तो आसपास बार व बार बलाएं हो, तो इंद्रलोक को पछाड़ दे और गर फिरदौंस ... जमी अस्त कहके उस जहांगिर को चुनौति दे कि केवल कश्मीर ही नही रोहतांग से लेकर नाथुला तक जगह -जगह पर ज़न्नत ईज़ाद कर लिए गये हैं। अब बहत्तर ही क्यों पचहत्तर सैसत्तर हुरें सुबह ए शाम मौज़ूद हैं।
  जहां  संन्यास  की दीक्षा ली जाती थी अब उसी भूमि व पावन स्थल में सुहागरात मनाकर गृहस्थ की शुभारंभ करने  लगे हैं।  यही बदलाव है भाया-" अब नइ सहिबो बदल के रहिबो ।"  पांडव लोग महाभारत युद्ध जीत कर विजय के प्रमाद मदमस्त स्वर्गरोहण करने या कहे   मरने हिमालय  गये अब भी कथित विजेताओं द्वारा यह किये  जाते है पर अब जीवन की शुरुआत करने जा रहे हैं।उनका तो स्वागत सत्कार होना चाहिये न कि ... 

     बहरहाल  आइये हिमालय  दर्शन कीजिए और प्रकृति की प्रेम में निमग्न हो परमानंद में खो जाए ...और स्वामी अनिलानंद की भजन में डूब जाय -

कोई काहु में मगन कोई काहु में मगन 
मिटे सारे भ्रम हो प्रसन्न अन्तर्मन 
कोई गाये भजन कोई करे रमन ...

बाकी अंतरा कभी बाद में ...

"अगर बर्दास्त करो तो"  हमारे नये आकार ले रहे कथेतर संग्रह से

Tuesday, November 19, 2024

बरजोरी


#anilbhattcg

संसो सचरत हे

मुनगा  सेमी के गोठ बात
सुनिस अनिल आधा रात
चढ़े हस तय हर मोर ऊपर
सबके नज़र हर तोर ऊपर

अई तय कइसे गुठियाथस
सहारा देंव कह अटियाथस
जानत हव तोर डारा हे रटहा
रहिथस ठोस हँव के भोरहा

कहाँ के लमेरा पतरेंगी मुड़ चढ़े
बने हरियाये छछले अउ गहिदें
चारों मुड़ा ले लपेट मुस्की बांधे
फूल फर धरिस तहा मुंह ल ऐठे

कइसे येमन होवत हे झगरा
उलचत एक दूसर बर अंगरा
घर गृहस्थी ल बड़ जरोवत हे
माया पिरीत ल नंगत सरोवत हे

सुग्घर  संघरा लपटाय राहय
चार दिन के जिनगी ल पहाय 
जात धर्म अलग त काके पियार
एक रुख त  एक हर नार बियार

ऊपर ले ये राजनीति के करंजन
लीगरी लगा के रचे हे बड़ अल्हन
इकर रीत नीत  अउ प्रवृति अलग
रंग रुप चाल ढाल संस्कृति अलग

ये जोजवा भोकवा ओ चलवंतीन 

कलर कइया माते इकर रातदिन 

हरके बरजे माने नहीं करें सीना जोरी ज

इसे बसुन्दरा मन के चले बर जोरी 

भले साग मे एमन संघरा मीठाय
फेर दुनों के संग चिटको नई सुहाय
मनखे कस जात धर्म बर जबर बैर बांधे
इंकर झगरा सुन देख मन मोर कौव्वाथे

फेर संसो हर चारों कोती ले सचरत हे
मनखे के पय हर रुख राई मे बगरत हे
कइसे खेत खार बारी बखरी ल उजारत हे
ढीलाय गोल्लर मन खुरखूंद इन ला चरत हे

. _ डॉ अनिल भतपहरी, 9617777514

रचना 19- 20 नव 24 रात्रि 12 बजे से 1 बजे के मध्य अमली डीह रायपुर

Sunday, November 17, 2024

अनु जाति जनजाति की स्थति

छत्तीसगढ़ के अनुसूचितजाति एवं अनुसूचित जनजाति की स्थिति 

    छत्तीसगढ़  वनाच्छादित रत्नगर्भा और धान कटोरा से विभूषित शस्य श्यामला भूमि हैं. इनका पृथक अस्तित्व प्राचीन काल मे रहा हैं. मराठा और ब्रिटिश कलखंड में यह सी पी एंड बरार के रुप मे जाने गए और ज़ब आजादी मिली तो  मध्यप्रदेश हिंदी राज्य के अधीन हो गए.इस तरह पूर्व मे मराठा और बाद मे मप्र,उत्तर भारतीयों के सांस्कृतिक और भाषाई उपनिवेश मे जाने अनजाने जकड़ते गए. विराट भूखंड और जनजीवन के भाषा धर्म कला सांस्कृति  आदि तत्वों की उपेक्षा होती गई.  फलस्वरूप शिक्षा समझ बढ़ने से धीरे धीरे पृथक छत्तीसगढ़ के लिए महौल बना और 1 नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य अतित्व में आई. 
    यहाँ 32+15 = 47% जनता अनु जाति /जनजाति का हैं. और इतनी बड़ी आबादी की  विकास एवं उनकी धर्म कला भाषा एवं संस्कृति  के  उत्थान लिए कोई सार्थक पहल विगत 24 वर्षों मे दिखाई नहीं पड़ता.

अनु जाति वर्ग मे सतनामी को छोड़कर शेष जातियां हिन्दू धर्म के अभिन्न अंग हैं और अनेक कुलदेवी देवता उपासक हैं. हिन्दुओं के सार्वजनिक धार्मिक आयोजनों मे उनकी भागीदारी अनिवार्य हैं. 
    सतनामी समाज मे किसी तरह की कट्टरताये नहीं हैं.एक तरह से यह समुदाय सबको सम्मान देता हैं.क्योंकि इस पंथ में अधिकतर जातियाँ हिन्दू धर्म से निकल कर जाति विहीन समुदाय के रुप विकसित हुआ हैं. इसलिए इनकी अपनी कोई पृथक धार्मिक पहचान नहीं हैं. हालांकि ब्रिटिश दस्तावेजों मे स्वतंत्र रिलीजन के रुप मे चिन्हकित की गई थी. पर आजादी के आंदोलन के समय हिन्दू सतनामी महासभा गठित साझा संघर्ष किये. आजादी तो मिली परन्तु अस्तित्व विलीन सा हो गए.विगत 40 वर्षो से इनमें कुछेक संस्थान और प्रबुद्ध जन पृथक  धर्म के लिए संघर्षरत हैं.
    जनजातियों मे ईसाई धर्म अपना लिए समुदाय को छोड़कर प्रायः सभी देव देवी उपासक हैं और इस तरह हिन्दू धर्म के ही अधीन हैं. शिक्षा से आई जागृति के कारण कुछ दशकों से पढ़े लिखें वर्ग सरना और गोंडी धर्म के लिए संघर्षरत हैं.

  अनु जाति /जनजाति को एक विभाग बनाकर यहाँ 16% अनु जाति को प्रायः आजादी के बाद से अनदेखा करते आ रहें .जबकि दोनों संवर्ग अलग अलग संस्कृति प्रवृत्ति के है. सुदूर वानंचलो के रहवासी होने से जनजातीय समुदाय के प्रति सहानुभूति और अनुजाति समुदाय जो मैदानी गाँवो / शहरों के सहवासी होने से प्रायःप्रतिद्वन्दविता झलकते हैं.

हमलोग अध्ययन काल से ही दोनों विभाग को अलग करने की मांग करते आ रहें हैं. ताकि अनु जाति वर्ग का भी अपेक्षित विकास हो पर सुने कौन?खैर अब जाकर अनु जाति प्राधिकारण का गठन हुआ है देखे आगे इनकी धर्म कला संस्कृति के साथ साथ अपेक्षित विकास क्या होगा?

Wednesday, November 13, 2024

बांध के सुनता

#anilbhatpahari 

।।बांध के सुंता ।।

इंहा  मनखे मन के 
कब  मान रहिस 
जुन्ना समे म तको 
असनेच हाल रहिस 
सिधवा मन बोकराच  
कस हलाल रहिस 
अउ चतुरा मन के 
जम्मा  माल रहिस 
जब तक तुमन  
एकमई हो जुरियाहूं नही 
अउ अपन चीज- बस  ल
बनेच पोटारहूं नही 
तब तक तुंहर गांजे खरही
 रोजेच उजरतेच  रही 
तिड़ी-बीड़ी होय मनखे मन 
 दाना अना बर लुलवातेच  रही 
 जात-पात म बाट के 
उन मन  राजेच करही 
कतको जुग बीत जय  
तभो ले अंधियारेच रही
पढव लिखव बनेच अउ 
मिल के सजोर होवव 
हक -अधिकार बर  
सब बंहजोर होवव 
अपन बोली भाखा अउ  
अस्मिता ल जतनव 
पुरखा के असीस मिलही 
थोकिन तो बात  परखव 
तुंहर जमीन तुंहर जंगल 
तुंहरेच हे  नंदी -पहाड़ 
बसुंदरा मन चगल लिन  
तुंहरेच खेती अउ खार 
कहां के सतजुग कहां के त्रेता 
द्वापर के दंश सुन लागे फदित्ता 
कलजुग के गोठ सुन सुन सिठ्ठा 
सिरतोन ये कि ,ये सब हांसी ठठ्ठा ?
तभो ले तुम हव कइसन 
एसन म बिकट मगन 
परलोक सुधारे बर करथव 
जबर भजन कीर्तन 
इहलोक बिगाडे के ये 
कइसन अलकरहा जतन 
भुखन ल देथव दुत्कार 
 अउ पथरा बर भोजन छप्पन 
फंसे हव अभीच ले 
पाप-पुन के  चक्कर म 
उन मन आके रपोट लिन 
सब के बारी बख्खर ल
सब जागव  सब डहन 
अउ खरतर खरबान धरव 
सडयंत्र के पर्दाफास बर
अब तो  सावधान रहव 
नवा साल म करव नवा परन 
परे झन रहव अरन -बरन 
चूर मंद-मांस म मेला-मड़ई 
यहा तरा देव-धामी के रीत मनई 
बांध के सुंता थोरकिन तो 
करमकांड ल कमतिया लव  
अवघट परे विकास के रद्दा ल 
अब तो बनेच  चतवार लव ...

   डा. अनिल भतपहरी / 9617777514 
सतश्री ऊंजियार सदन अमलीडीह, रायपुर

Sunday, November 10, 2024

एक थे ही कब

#anilbhattcg 

एक थे ही कब कि  बटेंगे 
डर क्यूँ फैला रहें कि कटेंगे

दम नहीं किसी में जो काट सकें 
बटे हुए को कोई और बाट सकें 

करना हैं गर एक तो वर्ण जात पात मिटाओं 
इसके जनक ऋचा श्लोक वेद ग्रन्थ से हटाओं

Saturday, November 9, 2024

सतनाम जपइया

सतनाम सुमरईया हवय ग़ मोर गुरु 
मोर बाबा संगी मोर गुरु 
मोर गुरु संतों मोर बाबा 
सतनाम जपोइया हावे ग मोर बाबा ....

औरा धौरा  के उड़त शोर 
तेंदू के तीर में छागे अंजोर 
गिरौदपुरी के रहैया गा मोर 

गुरु बाबा के बानी महान 
मनखे मनखे एक सामान 
सत मारग के बताइया गा मोर बाबा

सादा खानी बानी सादा विचार 
सत ईमान सबके जीवनाधार
डग डग के रद्दा देखइया ग मोर गुरु 

सब जीनस ले सतनाम सार 
गुरु के महिमा सब ले आपार 
भव सागर पार करैया गा मोर गुरु...

Thursday, November 7, 2024

सतनाम संस्कृति में योग

"सतनाम संस्कृति मे योग"
  गुरु घासीदास प्रवर्तित सतनाम संस्कृति मे योग एक अभिन्न अंग है।या युं कहे कि अनुयायी और  साधक सहज कर्म योग मे प्रवृत्त रहते हैं।
सतनाम सुमरन, ध्यान और समाधि यहाँ विशिष्ट संस्कृति है। बाह्याचार कर्मकांड आदि यहां निषिद्ध हैं। 
   गुरु घासीदास के पूर्वज मेदनीराय गोसाई संत प्रवृत्ति के थे,वे गिरौदपुरी परिक्षेत्र मे ख्याति नाम नाड़ी वैद्य रहे।मानव के साथ- साथ  अवाक पशुओं के चिकित्सा कर उनकी दु:ख और  पीड़ा का शमन करते थे।वे अपना  नित्य कर्म सतनाम सुमरन और सहज ध्यान योग से आरंभ करके  कर्मयोग मे निरत  हो जाया करते थे। 
   मेदनीदास /महगूदास के यहाँ अनेक सिद्ध साधु महात्माओ का  निरन्तर आगमन होते रहते और मानव कल्याण के साथ+ साथ जीवन के मुक्ति के संदर्भ मे साधु संगत समय- समय पर होते रहते थे।
  बाल्यावस्था में ही शिशु घासी को  विरासत से मानव और पशुओ की पीडा दु:ख का शमन करने की कला कौशल मिल गये थे। साधु महात्‍माओ के दर्शन व सत्संग से भी उन्हे अनेक तरह के  सद्ज्ञान मिला। अनेक सहजयानी ब्रजयानी  के साथ साथ गोरख पंथी साधुओं  का सानिध्य मिलते रहे हैं।
   जन्म के तत्छण बाद एक साधु का नवजात शिशु का दर्शन करने आना और बालक को गोद में लेकर आंगन मे नाचना तथा उनके चरणों मे शिश नवाना और एक विलक्षण बालक के शुभागमन का अप्रतिम संदेश देना द्रष्ट्व्य  है-
 आये जोगी द्वार मे एक साधु आये द्वार मे।
बालक रुप देख मोहाए आये साधु द्वार मे 
चरण म माथा टेकाए आये  साधु द्वार मे।

 ( संदर्भ सतनाम संकीर्तन पृष्ठ ७)
      धीर गंभीर संत प्रवृत्ति  उनके बाल चरित में अनायश  झलकता है।इसका रोचक व मुग्धकारी वर्णन द्रष्ट्वय है- 
   
  दिन दिन बढे अंगना गली खोर खेलय 
एक समय के बाते ये न 
खेलय गुल्ली डंडा
परगे गांव म डंका 
मरे चिरई ल करदिन चंगा ...(सं वही पृ १०)
 इस तरह देखे तो पशु पक्षी  के प्रति प्रेम और उनके धायल अवस्था मे उपचार कर नव जीवन देना महत्वपूर्ण है।
इसी तरह गन्ने की बाड़ी  में सर्पदंश से पीड़ित बालसखा   बुधारु का उपचार से विशिष्ट ख्याति फैलने लगते है- 
बाल पन म महिमा देखाए
 चिरई अउ बुधरु ल जियाये
(सं सतनाम सरित प्रवाह )
 
   किशोरावस्था के बाद नवयुवक घासी द्वारा एकान्त में ध्यान चिन्तन करना और कुछ असमान्य सा कार्य  जैसे बलि हेतु ले जा रहे " बकरा " अनुनय विनय कर के लोगों से मुक्त करना और स्वत: हल चलाकर अंधविश्वास का दमन करना ,गरियार बैल को प्रेम से सहलाकर  अधर नागर चलाना जैसे  अप्रतिम कार्य रहा है।यह सब कार्य एक विशिष्ट सुक्ष्म  शक्ति से संचालित हुआ। जिसे हम कह सकते है कि गुरु बाबा को विरासत से मिले ज्ञान की संवेदना से  यह शक्ति  उन्हे  मिला जिसे वे अपनी  ध्यान व यौगिक क्रियाओ से  विशिष्ट रुप दिया  । उनके द्वारा किया गया अनेक कार्यों को जनमानस चमत्कार समझने लगा ।
    कुछ कह सकते है कि एकाएक उसने यह सब कैसे अर्जित किया? इनका सहज सा उत्तर कि वह एक अज्ञात  साधु जो उन्हे बाल अवस्था मे पाकर आंगन मे नाचे और उनके चरण छुए ।तो यही उन्हे  स्पर्श या रैकी योग से आध्यात्मिक शक्ति जो साधारण जनमानस को समझ न आए इसलिए   रहस्य है ।नही दिखने के कारण अलौकिक है ।चमत्कार सा लगने लगे।
     गांव के ग्रामीण जन्य  घासी को जदुहा होने और तंत्र साधना करने वाले हठयोगी होने की बाते कहने लगे।  धुन के पक्का  किशोर घासीदास कही वैराग्य आदि लेकर साधु जोगी न बन जाय इसलिए उनका विवाह एक सुन्दर कन्या सफूरा से कर दी गई।

   पर सफूरा संयोग से  विलक्षण सहज योग साधिका रही ‌।वे इस  क्रिया को  अपने पिता महंत अंजोरदास या सिरपुर जो बौद्ध नगरी रही के किसी साधक वाशिंदे  से अर्जित की हुई थी। दोनो का  संयोग भी विलक्षण थे- 

सिरपुर नगर के मंहत रहय 
 नाम्ही अंजोरदास ग 
ओकर सुघ्घरर कइना रहय 
नाव सफुरा ताय ग 
उज्जर उज्जर रुप ओकर 
जइसे फूल कांस ग 
ये दे शोभा बरन नही जाय ग ...

(सतनाम संकीर्तन पृ १३ )

  विवाहोपरान्त सहज और कर्म  योग चलते रहा । पर इस बीच अनहोनी हुआ । उनके ७ वर्ष के ज्येष्ठ पुत्र अम्मरदास का खो जाना दु:ख का सबब बना ।कहते है उस विलक्षण बालक को किसी साधु ने योग सिद्धी की दीक्षा हेतु अपने  साथ वन ले गये।
    वे मन शान्ति प्रयोजनार्थ तीर्थ यात्रियों के जत्थे मे सम्मलित होकर जगन्नाथ पुरी  प्रयाण किए ।इस दरम्यान उन्हे साधु संगत मिला और अनेक पाखन्ड कुरीतियों से रुबरु हुए  - 
धरिन रद्दा जगन्नाथ के गजब सुनिस बड़ाई।
दीन दु:खिया दु:ख देखिस अउ पंडा के लुटाई ।।
कपड़ा रंगाये मिले गोरख मुनी, बइठिन उकर पास।
सुनिन परवचन  मुनि के फेर  पुरा नइ होइस आस
रंगहा कपड़ाफेर मन न इ रंगे 
    वे वापस अपने गृह ग्राम गिरौद आने का विचार कर लौट पड़े -
देखे लहुटत चंद्रसेनी म बलि छैदत्ता पाड़ा।
मन बिचलित हालाकान जीव हिंसा गाड़ा- गाड़ा  
देख बबा के मन भिरंगे तीरथ मे शांति न इ पाए ....
माघ पुन्नी के पुनवास म  सतनाम उच्चारे .....वही पृ १७
   अब वह आत्मज्ञान  और अनेक तरह के रहस्य को समझने सहज योग के स्थान पर हठ योग साधने का मन बना लिये  और कठोर अग्नि तपस्या मे लीन हो 6माह तक कठोर साधना सोनाखान जंगल मे करने चले गये। वहां स्थित रम्य स्थल  छाता पहाड मे  अग्नि धूनि  समाधि   द्वारा ध्यान- समाधि‌ मे लीन हो गये।

      इस दरम्यान पुत्र संताप और पति वियोग से सफुरा अवचेतन अवस्था मे घर पर ही  भाव समाधि ले ली।और उधर घासीदास कठोर  हठ योग अग्नि समाधि  मे प्रवृत्त हुये।
 कुण्डली जागरण और अनेक तरह के अपरा ज्ञान  से अभिभूत घासी को अहसास हुआ कि अब घर जाया जाए। क्योकि कुछ न कुछ अप्रिय घटना घट ग ई हैं।
   जब पता चला कि सफूरा के सामाधिस्थ देह को देहान्त हो गये समझ लोग  दफना दिए गये है।तो वह मानने तैय्यार नही हुये कि उनकी कैसी मृत्यु होगी? वह भावलीन समाधि मे सिद्धहस्त है ।उसने लोगो को कहा कि चलो दफन किये देह को निकाले ....

गांव वाले मन ल कहय घासीदास 
कोड़ के निकालव चलव सफूरा के लाश ...

  ( हंसा अकेला सतनाम संकीर्तन )

 कब्र से एक दिन पूर्व का  साबुत देह निकालते है उसे अमृत जल देकर जागरण करते है।बात बिजली की करेन्ट की भांति सर्वत्र फैल ग ई ।हजारो की उपस्थिति मे माता सफुरा को उनकी समाधि से मुक्त करवाकर चेतना सम्पन्न किए। नवजीवन दिये इस प्रसंग को देखे-

ब्रंम्हाड मे सांस चढा के  करे गुरु योगासन 
जोति समागे लाश म करे नर-नारी  दरसन 
सतनाम सुमर के बबा देवय अमृतपानी...
    
( हंसा अकेला सतनाम संकीर्तन )

इस तरह उनकी ख्याति सर्वत्र  फैल ग ई ।गुरु भी अपनी विशिष्ट ज्ञान कला कौशल को  सहज योग से सदैव साधते रहे  ‌। औंरा -धौंरा तेन्दु वृक्ष के नीचे उनका ध्यान योग समाधि चलते और धुनि जलाते भीषण वन प्रांतर  मे साधनारत रहते। दूर दूर से दर्शनार्थी व पीड़ित जन आते उनकी कृपा पाते और खुश होकर बांस की पोंगरियों में अमृत कुंड से अमृत जल ले जाते और धार्मिक कार्यों का निष्पादन करते रहे।
 एक दिन आपार भीड़ के  समक्ष  सतनाम पंथ का सिद्धान्त और उपदेश तथा लोकाचार व सहज योग को व्यवहृत करने सात्विक जीवन व सत्य को सदैव अपने अन्त:करण मे धारण और व्यवहार करने की उपदेशना देते सतनाम धर्म ( पंथ )  का प्रवर्तन किया।
    नित्य प्रात:और संध्या  सूर्योपासना करते सात्विक जीवन यापन करना और सतनाम धुनि मे निमग्न कर्मयोग ही सतनाम का आधार है।हर अच्छाईयों का  समन्वय सतनाम मे सन्निहित है।पंचाक्षर " सतनाम "का नित्य सुमरन स्नान सूर्योपासना और ध्यान कर कर्म में लीन अभाव के मध्य जीना है।  जितना संसाधन हैं ,सामर्थ्य हैं  उतने में ही संतुष्ट और  सुखमय जीवन ही सतनाम का मरम और धरम हैं । 
  गुरु घासीदास के साधना अवस्था मे पद्मासन मुद्रा और  उनके उपदेश देते अभय मुद्रा तथा सर्व मंगल की कामना करते अर्ध निमिलित नयन ध्यान मुद्रा की चित्र अत्यन्त लोकप्रिय है। यह सभी तथ्य उनके  "महायोगी " होने का साक्ष्य  है। जिसने संसार मे मानव के दु:ख के निदान बताये । उनके द्वारा 7 सिद्धांत असंख्य उपदेश 42 अमृतवाणी 27  मुक्तक हैं। 
     अनेक सुन्दर भावप्रवण पंथी गीत, मंगलभजन व सामूहिक प्रदर्शन हेतु पंथी नृत्य जिसे देख सुन कर तन- मन वचन पवित्र होते है।दु:ख का तिरोभाव हो जाते हैं और अन्त:करण मे आनंद समाते है।
  इनके लिए वे गुरु,  संत- महंत ,भंडारी ,साटीदार जैसे धार्मिक पद सृजित किए।जो समाजिक व  धार्मिक कार्यों का निष्पादन करते हैं। कुछ साधक संत   अध्यात्म की परिचालन करते  "सतनाम दर्शन"  को व्यवहारिक स्वरुप देते है। जमीन के नीचे ढाई, तीन ,पांच और सप्त दिन की विशिष्ट भू समाधि आज भी सतनामियों मे प्रचलित हैं ।इसके सैकड़ों साधक वर्तमान मे है।इसी तरह जल समाधि ,अग्नि समाधि और सहज  समाधि प्रचलित है।गुरु वंशज गुरु मुक्ति साहेब जल समाधि मे प्रवीण है जो गुरुद्वारा खपरी धाम  सरोवर मे प्रति सोमवार संध्या जल समाधि लेते है हजारों श्रद्धालु एकत्र हो दर्शन लाभ लेते है।
   गुरु घासीदास के सम्मान व उनके समकक्ष  न होने के लिए "अग्नि समाधि " अब तक कोई नही लिए है।सहज समाधि हर किसी के लिए है और इसे लाखों लोग क्रिन्यान्वित व लाभान्वित होते  आ रहे है।
    जहा दु:ख है वहाँ  सतनाम नही  बल्कि  दु:खो के बीच ही सुख भाव मे रहकर सद्कर्म करते दु:ख का निदान ही सतनाम का प्रयोजन है।इस तरह देखे तो जन्म और सुखमय  जीवन का उपाय सतनाम मे हैं। यह उपाय या युक्ति ही  सहज योग है।   
   सत श्री सतनाम 
   डा- अनिल भतपहरी/ 9617777514
ग्रा जुनवानी  (तेलासी भंडार के समीप ) पो गिधपुरी  था पलारी , जि बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

Monday, November 4, 2024

सतनाम जपैया हवे गा

सतनाम सुमरईया हवय ग़ मोर गुरु 
मोर बाबा संगी मोर गुरु 
मोर गुरु संतों मोर बाबा 
सतनाम जपोइया हावे ग मोर बाबा ....

औरा धौरा  के उड़त शोर 
तेंदू के तीर में छागे अंजोर 
गिरौदपुरी के रहैया गा मोर 

गुरु बाबा के बानी महान 
मनखे मनखे एक सामान 
सत मारग के बताइया गा मोर बाबा

सादा खानी बानी सादा विचार 
सत ईमान सबके जीवनाधार
डग डग के रद्दा देखइया ग मोर गुरु 

सब जीनस ले सतनाम सार 
गुरु के महिमा सब ले आपार 
भव सागर पार करैया गा मोर गुरु...

         _डॉ अनिल भतपहरी