।।स्नान।।
महानदी और उनकी सहायक पतालू नाला के तट पर सिरपुर कालीन प्राचीन ग्राम जुनवानी गिधपुरी बसा हुआ हैं। वहा एक जातिय नहीं बल्कि एक गोत्रीय भट्टप्रहरी परिवार निवास करते हैं । बड़े बुजुर्गों का कथन हैं कि राजदरबार सिरपुर के शस्त्रधारी संरक्षक हमारे पुरखे हैं । आज भी विशिष्ट अवसर मे खास तरह की अनुष्ठान होते हैं जिसमें अन्य गोत्र और महिला बेटी ही क्यों ना हों सम्मलित होना वर्जित हैं।अब तो बेटियाउज बस जाने से अनेक गोत्रिय और एक हजार से अधिक आबादी के गांव के रुप में परिणीत हों गए हैं। अठ्ठारहवी सदी मे पूर्वज गुरु घासीदास और सतनाम पंथ से प्रभावित हों सतनामी हो गए। पुरखों का पांच गांव जुनवानी, बरछा, गोटीडीह, उजीतपुर, महानदी जोकनदी के मध्य कोई गांव आबाद हैं। बड़े बुजुर्ग पांव छूते ही असीस देते हैं पांच गांव के गौटिया हो।
इसी ऐतिहासिक गांव के शिक्षक पिता सतलोकी सुकालदास भतपहरी माता केराबाई के घर मेरा जन्म 17 जुलाई 1969 को जगदीशपुर अस्पताल महासमुंद में रथयात्रा के दिन हुआ। महानदी मे बाढ़ के कारण प्रथम पुत्र को नाव नही चढ़ाने की मान्यता के चलते रायपुर व्याहा खरोरा भंडारपुरी होते ग्राम जुनवानी आना हुआ। पर नाव चढ़कर या नदिया तैरकर ही आवागमन होते रहें,जीवन चलता रहा।
इस तरह नदी नाले तालाब स्नान का लहर या चस्का ऐसा लगा कि भारत के तीनो ओर का समुद्र नाप लिए । गंगरेल, माडम सिल्ली, कोडार, गजगिधनी,खरखरा, क्षीरसागर,खुटाघाट, बंगो यहां तक बोधघाट नर्मदा, भाखड़ा नांगल का नहर, बरगी, इलाहाबाद संगम, बनारस, हरिद्वार, मे गंगा स्नान कर आए। नदियों तालाबों की निर्मल जलराशि को देख स्नान और तैरने की साध बचपन से हैं। गांव के पतालू नाला सोझ्झी घाट, बांधनी घाट,पुलघाट चूहरी और ऊपर घाट, पत्थर खदान में तैरकर की बड़े हुए। बुंदेली और कोसरंगी तो तालाबों का गांव था जहां प्राथमिक और हाई स्कूल की पढ़ाई हुईं। वहां प्रायः हर रविवार तारिया पार करने की बाज़ी लगता और उसमें कई बार जीतते आया।
बहरहाल जब उच्च शिक्षा लेने रायपुर आया और 1987- 88 शा आयुर्वेदिक कालेज कालोनी के I type 7 में रहते दुर्गा महाविद्यालय में अध्ययनरत था। तब हमारे वहा के रिश्तेदार कर्मचारी को मकान खाली करने कहा तो एकाएक निर्माणाधीन गुरुघासीदास छात्रावास आमापरा मे बीना बिजली पानी वाश रूम सुविधा के कक्ष क्र 7 मे शिफ्ट हो गए। चौकीदार का लड़का पानी भर देते और टीपी कनेक्शन से एक लाइट और टेबल फैन सिन्नी का चलाने का पल्ग / वायर खरीदकर देर रात्रि तक लगा लिए। और रस्नान आदि के किए विवेकानंद आश्रम के पीछे गली के सुलभ मे मंथली बंधा लिए। पूनम होटल बाद मे आश्रम के वृन्दावन रेस्त्रां से मासिक भोजन 250 मे बंधवा लिए।
पर हमलोगो को जो महानदी तटवर्ती गांव के थे नदी तालाब में जी भर तैरकर नहाने वाले तो सुलभ मे नहाना नहाना नहीं था बस पानी को तेल की तरह चुपरना मात्र था। इसलिए आसपास आमापारा तालाब , बुढातालाब, खो खो तालाब और रिंग रोड के पास का तालाब जो प्राय साफ रहते वहा तक सायकल से नहाने का कार्यक्रम बनता। इसी अनुक्रम मे सुशील यदु, रामप्रसाद कोसरिया,बद्री प्रसाद यदु परमानंद, डा सीताराम साहू , सुखदास बंजारे, जैसे तालाब स्नान प्रेमी कवियों गीतकारों के जमात से जा मिला,जो कि मेरे लिए सोने पे सोहगा हुआ।इनकी संगति का लाभ मिला ,छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति से जुड़ा और रायपुर की साहित्यिक प्रतिभावों जिसमें प्रमुखतः आचार्य सरयूकांत झा, हरि ठाकुर केयूर ,भूषण मन्नूलाल यदु, अमरनाथ त्यागी, हमारे प्रो बालचंद कच्छवाहा, डा विभुकुमार खरे, डा हरिशंकर शुक्ल, डा रामदास शर्मा, मेरा शोध निर्देशक डा देवकुमार जैन, बेधड़क रायपुरी, बलिराम पांडे, निकुम जी चेतन भारती, डा सुखदेव साहू जागेश्वर प्रसाद, रामेश्वर शर्मा जी जैसे वरिष्ठ जनों का सानिध्य मिला एवम् सुशील वर्मा, चंद्रशेखर, मयंक, नृपेंद्र शशांक खरे,गिरीश पंकज, राजेश गनोदवाले, आनन्द निषाद , उमाशंकर , आलोक सातपुते जैसे समवयो का प्रेमल साख्य व्यवहार इन सबसे कही न कहीं आयोजनों में मिलते ही रहते हैं।
तब इन 35 वर्ष पूर्व तब रायपुर के तालाब नहाने योग्य था। शहर छोटा होने और अयोजन मे अपनत्व भाव होने से बिन नेवताए भी जाते तब कोई आयोजको और सहभागियो मे कोई दुराव या अनचिन्हार भाव ही नही था बल्कि सदैव अपनत्व भाव रहता
दुर्गा महाविद्यालय के साहित्यिक प्राध्यापको का स्नेह तो मिलता ही ठेठ छत्तीसगढ़ी चेतना के रचनाकारों के साथ भी उठक बैठक होने लगे। तालाबों में घुम घुम कर नहाना अब भी नहीं छूटा हैं।
कालेज में शिक्षक बन जाने के बाद प्रथम नियुक्ति शास महाविद्यालय पेंड्रारोड के आसपास नर्मदा सोन मलनिया अरपा झरना भैरोसांग लक्ष्मण धारा हों या अमरकंटक जो रिश्तेदार परिचीत जाते तो इनके दर्शन और स्नान जरुर करते। फिर पलारी महाविद्यालय में 16 वर्ष कार्यक्रम अधिकारी के रुप में महाविद्यालयीन रासेयो के कुछेक छात्रों के साथ बड़े ग्रामों के बड़े तालाबों बाल समुंद आल्हाबंद पेंड्रावन छुइहा टैंक आदि में तैरना और उन्हें पछाड़ने का क्रम चल ही रहा था। इसी बीच संचालनालय और प्रतिनियुक्ति सेवा के चलते 2019 से कॉलेज छूट गया पर तालाबों में तैरकर नहाने का शौक़ नहीं। अब भी तीज त्योहार खासकर दीपावली मे गांव जाते हैं तो बाल बच्चे सहित महानदी मे ही स्नान होते हैं। बच्चे अपना नदी अपना घाट समझ प्रफुल्लित होते हैं। बैट बाल लेकर मज़े भी करते हैं 5 भाई बहन के भरे पुरे परिवार में 11 बच्चे हैं। मां प्राय: कहती रहती हैं मोर केरा के एक दर्जन पर... 1 का आना शेष हैं।
बहरहाल रायपुर में क्रेडा गार्डन तालाब, सेंध तालाब और किसी किसी रविवार अपने सहपाठी इंजी मित्र शिव जी के साथ May fair lake तो कही सिरपुर महानदी मे बहते पानी से स्नान की चाह अब तक छूटा नहीं हैं।
अभी अभी हमलोग सुदूर बस्तरांचल रम्य वन प्रांतर मे निर्झरणी स्नान हेतु जाने को सहमत हुए हैं। फिर सावन माह मे जानबूझकर वर्षास्नान होते हैं और प्राकृतिक जलाभिषेक से शिवोहम की अवस्था से होकर गुजरते हैं।
हमें पता हैं कि एक न एक दिन पूर्वजों के जगह महानदी के जुनवानी सिरपुर घाट में जाना ही हैं तो जब तक सांस हैं नलजल मे नहाना होते ही हैं! समय निकाल स्नान और ध्यान जरुर कर लेते हैं ताकि पुरखा कहें और असीस दे- "बने असनान्द धी धियान अउ तउर तार के आय हवस।"
डा. अनिल भतपहरी/9617777514
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