Saturday, September 28, 2024

धर्म

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धर्म 

धृ धातु से व्युत्पन्न धर्म का अर्थ मर्म यानि चित्त या मन में धारण करना । क्या धारण करना,गुण या अवगुण?
गुण धारण करना और उसे व्यवहार में लाना ही धर्म हैं।
इसे बताने समझने वाले ही प्रवर्तक या धर्मगुरु हैं।
   धर्म गुरु या प्रवर्तक अपने समकालीनों को बताते हैं इसलिए उन बातों और तथ्यों को अपना ईजाद न कह किसी अज्ञेय सत्ता/शक्ति से प्रायोजित कह सर्व स्वीकार्य के योग्य बनाते हैं। कलांतर में अनुयाई उसे सर्वोत्कृष्ट और सर्वोत्तम घोषित कर पूजा पाठ इबादत सुमरन प्रार्थना में संलिप्त हो अनेक रम्य स्थलों पर भव्यतम प्रतिष्ठान बना लेते हैं, अकूत संपदा एकत्र हो जाते हैं। फिर अलग अलग मतों पंथों मे होड़ संघर्ष होना शुरु हो जाते हैं। देश दुनियां में जो सत्ता संघर्ष हैं उनपर इन्ही मतों का सर्वाधिक प्रभाव हैं।
   
बहरहाल मानव एक प्रजाति हैं और उनमें भी अन्य प्रजातियों की तरह नर मादा होते हैं,यदा कदा उभय लिंगी किन्नर भी मिलते हैं। ऐसा पशु _पक्षी,जीव _जंतु के प्रजाति में भी हो सकते हैं।
       धर्म स्वभाव या गुण हैं जिसे मानव सहित सभी प्रजाति अपने मर्म मे धारण कर व्यवहार करते हैं। कोई हिंसक कोई अहिंसक कोई विषैले पर मानव प्रजाति सभी प्रजातियों में विरले और अनेक गुणों,इल्मों को सतत साधते /अनुसंधान करते विशिष्ट उपलब्धियां को हासिल करते आ रहें हैं।
    इसी तरह अधर्म अवगुण हैं इसे भी वे मर्म मे धारण किए होते हैं और इसी के अनुरुप जीवन निर्वाह करते कुख्यात भी हो जाते हैं।
पर जिसे आजकल धर्म की संज्ञा दी गईं हैं असल में वह धर्म नहीं बल्कि प्रणालियां या पद्धतियां हैं।जैसे हिंदू मुस्लिम ,सिख ,ईसाई ,जैन, बौद्ध ,सतनाम पंथ कबीरपंथ राधास्वामी , आदि मत मजहब पंथ धम्म संप्रदाय सेक्ट रिलीजन हैं।जिन्हे व्यक्ति विरासत या अपने विवेक से अपनाता हैं और उनके नियम से जीवन निर्वाह करते हैं।
   इसके मतलब वह धार्मिक हो ऐसा नहीं। वे मतावलंबी, अनुयाई,मजहबी सिखी जैनी बौधिष्ट बस होते हैं। वे तीर्थयात्री कर्मकांडी अनेक प्रतिक रंग वस्त्र माला तिलक कंठी जनेऊ मुद्रा धारी हो सकते हैं जिससे उनका पहचान हो। इन सब से वह धार्मिक हो यह ज़रूरी नहीं। अधिकतर अपराधी भी इन सबको धारण कर कानून से बचते हैं या अपनी स्वार्थ सिद्ध करते हैं।

  दरअसल धार्मिक होना मतलब सत्यनिष्ट, दयालु,
परोपकारी, मानवतावादी होना हैं ,वर्ग जाति से ऊपर उठकर नैतिक होना हैं।
     सवाल यह है कि ऐसा कितने हैं जिसे हम धार्मिक कह सकें?

      - डॉ. अनिल भतपहरी/ 9617777514

Friday, September 13, 2024

स्नान

।।स्नान।।

    महानदी और उनकी सहायक पतालू नाला के तट पर सिरपुर कालीन प्राचीन ग्राम जुनवानी गिधपुरी बसा हुआ हैं। वहा एक जातिय नहीं बल्कि एक गोत्रीय भट्टप्रहरी परिवार निवास करते हैं । बड़े बुजुर्गों का कथन हैं कि राजदरबार सिरपुर के शस्त्रधारी संरक्षक हमारे पुरखे हैं । आज भी विशिष्ट अवसर मे खास तरह की अनुष्ठान होते हैं जिसमें अन्य गोत्र और महिला बेटी ही क्यों ना हों सम्मलित होना वर्जित हैं।अब तो बेटियाउज बस जाने से अनेक गोत्रिय और एक हजार से अधिक आबादी के गांव  के रुप में परिणीत हों गए हैं। अठ्ठारहवी सदी मे पूर्वज गुरु घासीदास और सतनाम पंथ से प्रभावित हों सतनामी हो गए।  पुरखों का पांच गांव जुनवानी, बरछा, गोटीडीह, उजीतपुर, महानदी जोकनदी के मध्य कोई गांव आबाद हैं। बड़े बुजुर्ग पांव छूते ही असीस देते हैं पांच गांव के गौटिया हो। 
       इसी ऐतिहासिक गांव  के शिक्षक पिता सतलोकी सुकालदास भतपहरी  माता केराबाई के घर  मेरा जन्म 17 जुलाई 1969 को जगदीशपुर अस्पताल महासमुंद में रथयात्रा के दिन हुआ। महानदी मे बाढ़ के कारण प्रथम पुत्र को नाव नही चढ़ाने की मान्यता के चलते रायपुर व्याहा खरोरा भंडारपुरी होते ग्राम जुनवानी आना हुआ। पर नाव चढ़कर या नदिया तैरकर ही आवागमन होते रहें,जीवन चलता रहा।

   इस तरह नदी नाले तालाब स्नान का लहर या चस्का ऐसा लगा कि भारत के तीनो ओर का समुद्र नाप लिए । गंगरेल, माडम सिल्ली, कोडार, गजगिधनी,खरखरा, क्षीरसागर,खुटाघाट, बंगो यहां तक बोधघाट नर्मदा, भाखड़ा नांगल का नहर, बरगी, इलाहाबाद संगम, बनारस, हरिद्वार, मे गंगा स्नान कर आए। नदियों तालाबों की निर्मल जलराशि को देख स्नान और तैरने  की साध बचपन से हैं। गांव के पतालू नाला सोझ्झी घाट, बांधनी घाट,पुलघाट चूहरी और  ऊपर घाट, पत्थर खदान में तैरकर की बड़े हुए। बुंदेली और कोसरंगी तो तालाबों का गांव था जहां प्राथमिक और हाई स्कूल की पढ़ाई हुईं। वहां प्रायः हर रविवार तारिया पार करने की बाज़ी लगता और उसमें कई बार जीतते आया। 

बहरहाल जब  उच्च शिक्षा लेने रायपुर आया और 1987- 88 शा आयुर्वेदिक कालेज कालोनी  के I type 7 में रहते दुर्गा महाविद्यालय में अध्ययनरत था। तब हमारे वहा के रिश्तेदार कर्मचारी को मकान खाली करने कहा तो एकाएक निर्माणाधीन गुरुघासीदास छात्रावास आमापरा मे बीना बिजली पानी वाश रूम सुविधा के कक्ष क्र 7 मे शिफ्ट हो गए। चौकीदार का लड़का पानी भर देते और टीपी कनेक्शन से एक लाइट और टेबल फैन सिन्नी का चलाने का पल्ग / वायर खरीदकर देर रात्रि तक लगा लिए। और रस्नान आदि के किए विवेकानंद आश्रम के पीछे गली के सुलभ मे मंथली बंधा लिए। पूनम होटल बाद मे आश्रम के वृन्दावन रेस्त्रां से  मासिक भोजन 250 मे बंधवा लिए।
पर हमलोगो को जो महानदी तटवर्ती गांव के थे नदी तालाब में जी भर तैरकर नहाने वाले तो सुलभ मे नहाना नहाना नहीं था बस पानी को तेल की तरह चुपरना मात्र था। इसलिए आसपास आमापारा तालाब , बुढातालाब, खो खो तालाब और रिंग रोड के पास का तालाब जो प्राय साफ रहते वहा तक सायकल से नहाने का कार्यक्रम बनता। इसी अनुक्रम मे सुशील यदु, रामप्रसाद कोसरिया,बद्री प्रसाद यदु परमानंद, डा सीताराम साहू  , सुखदास बंजारे, जैसे तालाब स्नान प्रेमी कवियों गीतकारों के जमात से जा मिला,जो कि मेरे लिए सोने पे सोहगा हुआ।इनकी संगति का लाभ मिला ,छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति से जुड़ा और रायपुर की साहित्यिक प्रतिभावों जिसमें प्रमुखतः आचार्य सरयूकांत झा, हरि ठाकुर केयूर ,भूषण मन्नूलाल यदु, अमरनाथ त्यागी, हमारे प्रो बालचंद कच्छवाहा, डा विभुकुमार खरे, डा हरिशंकर शुक्ल, डा रामदास शर्मा, मेरा शोध निर्देशक डा देवकुमार जैन, बेधड़क रायपुरी, बलिराम पांडे, निकुम जी चेतन भारती, डा सुखदेव साहू जागेश्वर प्रसाद, रामेश्वर शर्मा जी जैसे वरिष्ठ जनों का सानिध्य मिला एवम् सुशील वर्मा, चंद्रशेखर, मयंक, नृपेंद्र शशांक खरे,गिरीश पंकज, राजेश  गनोदवाले, आनन्द निषाद ,  उमाशंकर , आलोक सातपुते जैसे समवयो का प्रेमल साख्य व्यवहार इन सबसे कही न कहीं आयोजनों में मिलते ही रहते हैं।
 तब इन 35 वर्ष पूर्व तब रायपुर के तालाब नहाने योग्य था। शहर छोटा होने और अयोजन मे अपनत्व भाव होने से बिन नेवताए भी जाते तब कोई आयोजको और सहभागियो मे कोई दुराव या अनचिन्हार भाव ही नही था बल्कि सदैव अपनत्व भाव रहता 

    दुर्गा महाविद्यालय के साहित्यिक प्राध्यापको का स्नेह तो मिलता ही ठेठ छत्तीसगढ़ी चेतना के रचनाकारों के साथ भी उठक बैठक होने लगे। तालाबों में घुम घुम कर नहाना अब भी नहीं छूटा हैं।
   कालेज में शिक्षक बन जाने के बाद प्रथम नियुक्ति शास महाविद्यालय पेंड्रारोड के आसपास नर्मदा सोन मलनिया अरपा झरना भैरोसांग लक्ष्मण धारा हों या अमरकंटक जो रिश्तेदार परिचीत जाते तो इनके दर्शन और स्नान जरुर करते। फिर पलारी महाविद्यालय में 16 वर्ष कार्यक्रम अधिकारी के रुप में महाविद्यालयीन रासेयो के कुछेक छात्रों के साथ बड़े ग्रामों के बड़े तालाबों बाल समुंद आल्हाबंद पेंड्रावन छुइहा टैंक आदि में तैरना और उन्हें पछाड़ने का क्रम चल ही रहा था। इसी बीच संचालनालय और प्रतिनियुक्ति सेवा के चलते 2019 से कॉलेज छूट गया पर तालाबों में तैरकर नहाने का शौक़ नहीं। अब भी तीज त्योहार खासकर दीपावली मे गांव जाते हैं तो  बाल बच्चे सहित महानदी मे ही स्नान होते हैं। बच्चे अपना नदी अपना घाट समझ प्रफुल्लित होते हैं। बैट बाल लेकर मज़े भी करते हैं 5 भाई बहन के भरे पुरे परिवार में 11 बच्चे हैं। मां प्राय: कहती रहती हैं मोर केरा के एक दर्जन पर... 1 का आना शेष हैं।
  बहरहाल रायपुर में क्रेडा गार्डन तालाब, सेंध तालाब और किसी किसी रविवार अपने सहपाठी इंजी मित्र शिव जी के साथ May fair lake तो कही सिरपुर महानदी मे बहते पानी से स्नान की चाह अब तक छूटा नहीं हैं।
           अभी अभी हमलोग सुदूर बस्तरांचल रम्य वन प्रांतर मे निर्झरणी स्नान हेतु जाने को सहमत हुए हैं। फिर सावन माह मे जानबूझकर वर्षास्नान होते हैं और प्राकृतिक जलाभिषेक से शिवोहम की अवस्था से होकर गुजरते हैं।
    हमें पता हैं कि एक न एक दिन पूर्वजों के जगह महानदी के जुनवानी सिरपुर घाट में जाना ही हैं तो जब तक सांस हैं नलजल मे नहाना होते ही हैं! समय निकाल स्नान और ध्यान जरुर कर लेते हैं ताकि पुरखा कहें और असीस दे- "बने असनान्द  धी धियान अउ तउर तार के आय हवस।"

    डा. अनिल भतपहरी/9617777514

Wednesday, September 11, 2024

शास्त्रीय संगीत में छत्तीसगढ़ी का समावेश हों

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शास्त्रीय संगीत में छत्तीसगढ़ी का समावेश हो 

चक्रधर महोत्सव की धूम मची हुई हैं और देश भर से ख्यातिनाम कलाकारों की प्रस्तुति हो रही हैं।
परंतु शास्त्रीय प्रस्तुतियों में छत्तीसगढ़ झलक नहीं रहें हैं ।    रायगढ़ घराने की कत्थक या एशिया की प्रथम संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ की नृत्यादि प्रस्तुतियों में छत्तीसगढ़ी वस्त्राभूषण और गायकी में बोल बंदिश ख्याल ठुमरी आदि का समावेश  होना चाहिए ।
    यहां के घराने और विश्वविद्यालय की प्रस्तुतियों में छत्तीसगढ़ी संस्कृति की झलक परिलक्षित हों ताकि कला जगत यहां की लालित्य और सौंदर्य से परिचित हो सके। जैसा कि अन्य राज्यों की भाषाएं और वस्त्राभूषण वहां की शास्त्रीय प्रस्तुतियों में समाहित होते हैं।
 लोक कलाएं समृद्ध होकर सुगम और शास्त्रीय स्वरुप ग्रहण करती हैं जबकि यहां की कलाएं उन्नत तो हैं, पर ऐसा कब होगा ? 

               _डॉ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Saturday, September 7, 2024

समृद्ध भारत

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 समृद्ध भारत 

दो अक्षर क्या पढ़े 
गांव उजाड़ने लगे 
35 साल नौकरी के लिए 
जन्मों की नाता तोड़ने लगे 
कुछ चलाकियां सीखें 
अपने को ज्ञानी समझ लिए 
जो भोले भाले रहें 
उन्हें मूर्ख अज्ञानी समझ लिए 
पाकर अवसर आपने 
चढ़े ऊंचाई पर 
जिन्हें मिला नहीं अवसर 
तंज उनकी सचाई पर 
इस तरह आपने ही 
दीवार खड़ी की 
ऊंच नीच जाति पाती की 
मीनार खड़ी की 
मिलकर हम सबको 
इसे ढहाने होंगे 
विषमता से भरी समाज में 
समता लाने होंगे 
जो पिछड़ा रहा 
पिछड़ते ही गए 
ऊंच नीच भेदभाव की 
खाईयां बढ़ते ही गए 
गांव ही शहर बना 
सुविधाओं से 
करने होंगे विकट उद्यम 
हटाने विकास के बाधाओ से 
तभी गांव रहेगा आबाद 
खुशहाल शहर 
संतुलित विकास का
दिखेंगे सर्वत्र असर
वर्ग जाति विहीन 
समाज का निर्माण 
 से ही होगा समृद्ध 
विकसित भारत का निर्माण

_ डॉ. अनिल भतपहरी/ 9617777514