Sunday, July 7, 2024

विरह

"विरह "

मदहोशी की खुमार में 
बिताते है दिन 
आशिक  काटते है  
रातें तारे गिन- गिन 
बिन  प्रेयसी  के  
चैन नही पल-छिन
सुझे गर उपाय  
कोई तो  कुछ कहिन 
लैहो सब बलाइयां 
उनकी लागि लगिन 
अब सच तन में 
प्राण न रहन चाहे उनके बिन
 -डा.अनिल भतपहरी

No comments:

Post a Comment