#anilbhattcg
क्यों कलम अमंगल उगल रही
नैसर्गिक रुप में
सदियों से
उगे वनस्पतियां
मां वसुंधरा की
श्रृंगार अप्रतिम
झील झरने नदिया
इनकी धानी आंचल रही
जिसकी छाया
फल फूल और
महकती पुरवाई 1
लोक जीवन
सहित जीव जंतु
के लिए सुखदाई
इनसे आबाद अंचल रही
पनपे कई
कथा ,कहिनी
गीत ,भजन
नृत्य मनमोहनी
हर की नसों में बहती
दिल की धड़कन
संस्कृति मचल रहीं
चाह की पूर्ति
हेतु स्व बेबस
अरे! मानव
साधन से संकट
लाकर क्यों होते
परस्पर दुराव/अलगाव
उपलब्धियां तेरी विफल रहीं
बौखला कर
साधनों के गुलाम
पाने हल
कर रहे हो
दोहन अंधाधुन
दोहन प्रतिपल
उजड़ती रम्य जंगल रही
बिलखते नर्मदा घाटी
बोधघाट, टेहड़ी गढ़वाल
पोलावरम नित्य रोती हुई
समा गए गंगरेल
हीराकुंड भाखड़ा नंगल
रेत हो अरावली
बताती दास्तां कलपती हुई
कभी यहां नित्य मंगल रही
कटती फेफड़े
अब बारी है
हसदेव की
कुछ लोगों के लिए
दिन आएंगे
बहुतों के दुर्देव की
क्यों कलम अमंगल उगल रही
उधर देखो
करतब कुछ
भरी हुई नादानियां
उजाड़ मां की आंचल
उनके नाम पौध रोपने की
देख कलाबाजियां
बहुत कुछ कहने मन मचल रहीं
डॉ. अनिल भतपहरी /9617777514
चित्र : सुरम्य हाथी पथरा घाट,जोगनदी गिरौदपुरी
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