#anilbhatpahari
क्या और कब तक ?
तुम्हारा यह बोल
विरोध नही विद्रोह है
विरोध बर्दास्त है
पर विद्रोह नही
क्योकि विरोध
को समझा लेंगे
या उसे ही सौप देंगे
सब भार
ढोने के लिए
अब रहो तैयार
जो चला आ रहा है
निर्वाह करो श्रद्धा से
वह हो जाएगा अपना
गर होने दो पुरा
उनके है कुछ सपना
वैसे विरोधी तो
अपने ही होते है
जरा मनौव्वल से
मान ही जाते हैं
पर विद्रोही को समझाना
और विद्रोह को थामना
या उन्हें कुचल देना
आसान नही
न ही थम जाने
या कुचल जाने से
मिले इत्मीनान
अंदर ही अंदर परेशान
सांसें कोई चैन की नही
चाह मीठे बैन की नही
हरदम लगा रहता है ध्यान
कि कही कोई हवा चले
और भड़क न जाये चिंगारी
जल न जाए
यह स्वर्ण नगरी
करना पड़ता है यत्न
विकट प्रयत्न
हवाएं कही से न चल पड़े
काटने पड़ते हैं दरख्त
ढहाने होते हैं पहाड़
सुखाने होते है दरियां
उजाड़ने पड़ते हैं वह गांव
जिसे लोग बे़वजह
सरग की उपमान देते है
बजबजाते रहते हैं जात-पात
अशिक्षा अंधविश्वास की काली रात
बसकर शहर में
चलकर राजपथ में
सचाई से अनजान रहते है
वही कोई बैठकर
लीमचौरा में
किस्से गढ़ते है
फिरके तोड़ते है
सबको साथ लेकर
पगडंडी पर चलते हैं
करो उसे बहिष्कृत
अपने लोक से तिरस्कृत
लायक नही राजपथ के
नालायक है
हमारी रिवायत के
हमारी शरीयत के
असल खलनायक है
सच में !
कि वह विद्रोह के
असल नायक हैं!
तिरस्कार के तीर से
करो वध
आबाद रहे अवध
मुबारक मगध
मगर कब तक
- डा. अनिल भतपहरी/9617777514
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