Sunday, July 30, 2023

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. मिलऊदास कोसरिया

#anilbhatpahari 

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. मिलऊ दास  कोसरिया 

   गुरुघासीदास के उपदेश, बोध कथाओं और उनकी अमृतवाणियों के जानकार पं. मिलऊ दास कोसरिया  जी कौंदकेरा राजिम के निवासी  थें। वे सत्संग प्रवचन के लिए पुरे राजिम परिक्षेत्र में प्रसिद्ध थे।  चमसुर निवासी पं सुन्दरलाल शर्मा  जी आपसे प्रभावित होकर गुरुघासीदास व  सतनाम संस्कृति को जाने -समझे। तथा सतनामियों के साथ सत -संगत करने लगें। दोनों मे धार्मिक सद्भाव व समझ के चलते ही गहरी मित्रता रही।
     इस बीच देश मे चल रहे स्वतंत्रता आन्दोलन मे दोनो सम्मलित होने रायपुर अन्य जगहों पर आने - जाने लगे। जंगल सत्याग्रह का नेतृत्व पं कोसरिया जी ने किया और अपने साथ अनेक सहयोगियों  को राष्ट्र सेवा मे संलग्न किए। 
    बलौदाबाजार - भाटापारा परिक्षेत्र मे सतनामियों का महंत नयन दास महिलांग द्वारा आरंभ  किये गये गोरक्षा आन्दोलन पुरे देश भर मे चर्चित रहा । पं. मिलऊ दास जी को उनकी जानकारी और उन आन्दोलन कारियों से संपर्क रहा है। कलान्तर में गुरु अगमदास गोसाई  व महंत नयन दास महिलांग सहित  अनेक संत -महंत से उन्होने पं. सुन्दरलाल शर्मा जी का परिचय करवाया । उन सबसे मिलकर पं.  शर्मा जी  सतनाम संस्कृति से बहुत गहराई से  प्रभावित हुआ और वे "सतनामी पुराण"  की रचना 1907 में की।  आगे चलकर 1921 मे सतनामी आश्रम और कटोरी प्रथा ( धान मंडी मे  प्रति बोरा एक कटोरी धान की चंदा  )  चलाकर सतनामी स्कूल / छात्रावास भी  अमीन पारा बुढापारा पुरानी बस्ती रायपुर  से आरंभ किए गये।

    इस तरह वर्तमान अवस्था से सुधार व निजात पाने की चाह लिए सतनामी समाज भारतीय  कांग्रेस  पार्टी / डा अम्बेडकर की शेड्युल कास्ट फेडरेशन आदि संगठनो से जुड़कर उनके राष्ट्रीय कार्यक्रम में सहभागिता निभाने लगे।  इस बीच वे राजिम मंदिर में सतनामियों सहित वंचित वर्गों के सुत ,सारथी, गाड़ा घसिया, कहार , महार आदि समुदाय को एकत्रित कर  मंदिर प्रवेश का ऐतिहासिक कार्यक्रम चलाया। कहते है कट्टर पंथियों के विरोध और रैली बहिष्कार से शासन- प्रशासन चाक- चौबंद हो गये। मंदिर प्रवेश के बहाने अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध अभियान समझ  सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने का आरोप लगा कर  प्रशासनिक  प्रतिरोध पैदा किए गये। फलस्वरुप   राजिम लोचन परिसर मे स्थित  राम- जानकी मंदिर में  प्रवेश कर कार्यक्रम सम्पन्न किए गये।
     इनसे इन दोनो  की ख्याति सर्वत्र फैल गई। फलस्वरुप रायपुर की एक सभा मे महात्मा गांधी ने सुन्दरलाल शर्मा जी को अपना गुरु माना -

    गांधी ले पहिली सुन्दर लाल करिस शुरु 
    भरे  सभा म उन ल अपन  मानिस  गुरु 

     एक तरफ पं सुन्दरलाल शर्मा को उनके समाज वाले बहिष्कृत कर दिए।तो दूसरे तरफ कट्टर पंथ जहरिया सतनामी  मंदिर मूर्ति पूजा पर पं मिलऊ दास  कोसरिया जी को भी समाज दंडित किए गये। फिर भी दोनो मित्र आजीवन  देश व समाज सेवा में जुड़कर सामाजिक सद्भाव और स्वतंत्रता आन्दोलन व सभा सोसायटी में सक्रिय रहें।
      
           ऐसे साहसी शूरवीर और समाज व देश सेवा के सर्वस्व समर्पित रहने  वाले इस  मनीषी को सादर नमन ।

 चित्र - पं. मिलऊ दास घृतलहरे जी का प्रतिमा कौंदकेरा राजिम 
  
            - डा. अनिल कुमार भतपहरी / 9617777514

Friday, July 28, 2023

छत्तीसगढ़ी शब्द

**यहू ला जानव**

भूखण्ड/खेती भुइयाँ ले जुड़े शब्द

*मेड़*- खेत के चारो मुड़ा के पार।

*डोली/खेत*- मेड़युक्त भूखण्ड जिहाँ धान, गहूँ, चना या पानी ले पकइया फसल  बोय जाथे।

*भर्री*- बिना मेड़ के भूखण्ड जेमा पानी नइ माड़े, ज्यादातर येमा कम पानी मा पकइया नगदी फसल बोय जाथे।

*चक*- प्लाट, एक ले अधिक एकड़ के एके जघा स्थित खेत।

*खार*- बड़ अकन खेत या भर्री। खार के नामकरण भूखण्ड के स्थिति, दिशा, दशा,बनावट, गांव ,बाँध, पेड़ पात के अधिकता ला आधार बनावत होथे। जइसे- खाल्हे खार, रकसहूँ खार, दर्रा खार, बम्हरी खार, बन्धिया खार, खैरझिटी खार, चुहरी खार आदि कतको हे।

*गाँसा*- अइसन जघा जेमा बरसा के पानी गिरत साँठ माड़ जाथे। खेत के खँचका भाग।

*पखार*- अइसन डोली जिहाँ बरसा के पानी नइ माड़े, बल्कि सबे बोहा जथे। खेत के डिपरा भाग।

*मुही*- डोली के मेड़ मा बने छोटे भुलका, जेती ले पानी आथे जाथे। येला स्वेच्छा ले बनाये जाथे।

*भोक*- खेत के मेड मा बने अइसन भुलका जिंहा के खेत के पानी बोहा जथे। ये खुदे बन जाथे,एखर ले किसान मन ला नुकसान हो जथे।

*भरका*- बरसात के पानी पाके खेत या भर्री मा बने छोटे छोटे भुलका। 

*दर्रा*- भुइयाँ मा बने लामी लामा दरार। दर्रा गर्मी मा दिखथे, बरसा घरी मुँदा जथे।

*बिला*- केकरा अउ कतको जीव जानवर के द्वारा बनाये भुलका(छेद)। मेड पार मा कतको बिला दिख जथे।

*हदिक-हादक*- उबड़ खाबड़।

*उतारू*- उतार जघा/ ढलान।

*चघउ*- चढ़ाव।

*बिच्छल*- पानी गिरे ले माटी मा चिकनाई आ जथे, अउ अइसन जघा मनखे के पांव साबुत नइ माड़े।

*गाड़ा रावन*- गाड़ा के दूनो चक्का ले बने रस्ता।

*पैडगरी*- मनखे मनके अवई जवई ले बने डहर।

*धरसा*- खेत खार जाए बर बने रस्ता/डहर/बाट

*हरिया*- जोतत बेरा किसान, खेत के एक निश्चित भाग ला नांगर बइला ले जोतत जथे।

*पाँत*- खेत के बन काँदी ला निंदे बर धरे एक निश्चित भाग।

*टोकान*- खेत के कोन्हा।

*खँड़*- किनारा/भाग।

*खोधरा*- गढ्ढा

*ढिलवा*- डिपरा

*टेड़गी डोली*- चार ले जादा टोकान वाले डोली। अइसने डोली मा किसान मन बोवई या खेती काम के मुहतुर घलो करथे।

*लमती डोली*- लामा लामी डोली। 

*टेपरी डोली*- छोटे आकार के डोली।

*बाहरा डोली*- अइसन डोली जे कम संसाधन मा घलो जादा पैदावर देथे। पानी सहज आके भर जाथे। आकार प्रकार हिसाब ले, बड़े बाहरा, छोटे बाहरा, टेड़गी बाहरा बाहरा के कई प्रकार हे। बाहरा बहार शब्द ले बने हे, जिहाँ पैदावार घलो जादा होथे।

*गर्दी रेंगाना*- खेत के बीचों बीच, पानी निकाले बर  रापा कुदारी मा बनाये छोट नाली।

*खँधाला*- सीढ़ी, पेड़ के डाला।

*बनखरहा*- वो डोली या भर्री जिहाँ जादाच बन काँदी उपजथे।

*मउहारी*- मउहा के बन।

*कउहा रवार*- कउहा पेड़ के जंगल।

*अमरइया*- आमा बगीचा।

*जमराई*- राय जाम या चिरई जाम के बगीचा।

*डिही*-  पहली जमाना मा बसे बस्ती जे वर्तमान में उजाड़ होके बन बगीचा मा घिर गे हवै।

*चुहरी*- ये शब्द चाहली(पानी मा माते भुइँया) ले बने हे। अइसन जघा जेमा ज्यादातर पानी भरे रहिथे। 

*बतर/पाग*- बाँवत(धान बोय) बर उपयुक्त समय

*जरखेदी*-  चुकता, जमें।

*रेगहा*- एक विशेष दिन तिथि बाँधत खेत ला फसल बोय बर लेना।

*अधिया*- खातू,कचरा,धान,पान अउ जम्मो लागत ला आधा आधा लगाके खेती करना।

*कट्टू*-  लागत वागत काट पिट के एक निश्चित राशि या धान पान मा खेत बोना।

*भाँठा*- मटासी माटीयुक्त ठाहिल भुइयाँ, जिहाँ पानी नइ माढ़ें। ये रेतीला भी हो सकत हे।

*परिया*- अइसन जघा  जेमा खेती बाड़ी के काम नइ होय।

*चरागन*- गाय गरुवा मन के चारा चरे के जघा।

*दइहान/ गौठान/खइरखा*- अइसन जघा जिहाँ बरदी(गाय गरवा के समूह) बिहना ठहरथे।

*भोड़ू/भिम्भोरा*- जमीन मा बने दीमक के घर,जिहाँ साँप, बिच्छी, गोइहा, खुसरे दिखथे।

*तरिया*- गाँव घर के उपयोग बर भरे पानी। तरिया के बनाबट,स्थिति, दशा दिशा अउ रुखराई के हिसाब ले नाम देखे सुने बर मिलथे।

*ढोंड़गी*- नरवा/नाला के छोटे रूप।

*पैठू*- पैठू तरिया ले जुड़े रहिथे, बरसा के पानी एखरो माध्यम ले तरिया मा आथें अउ जब भर जाथे ता निकलथे घलो।

*बन्धिया/बाँध*- खेत खार के सिचाई बर भरे पानी। बाँध मा *नहर नाली(सिंचाई बर बने नाला)* जुड़े रथे।

*उलट*- बाँध भरे के बाद जादा पानी निकले के जघा, 

*डबरा*- भुइयाँ मा बने गड्ढा, जिहाँ बरसा घरी पानी भराये रहिथे।

*घुरवा*- खातू कचरा फेके बर बने जघा।

*कुँवा*- जमीन के गहराई मा जलस्रोत।

*बावली*- जमीन के गहराई मा भरे पानी जिहाँ सीढ़ी रिथे।

*मसानघाट*- अइसन जघा जिहाँ मनखे मन ला ,मरे के बाद दफनाये, जलाए जाथे।

*खदान*- धातु,पथरा, छुहीमाटी निकाले बर भुइयाँ मा बने गड्ढा।

*कछार*- नदिया तीर के भुइयाँ।

*डुबान/ बुड़ान*- बांध या नरवा भरे के बाद, बांध ले लगे वो जघा जिहाँ पानी भर जाथे।

*माड़ा*- जंगली जानवर मन के रहे के जघा।

*साँधा*- खोल

*अपासी*- सिंचित भुइयाँ

*लगानी*- अइसन जमीन जेखर लगान पटाये(भरना)बर लगथे

*खरखरहा*- ना गिल्ला ना सुक्खा, भर्री अइसने पाग मा बने जोताथे।

*किरचहा*- कठोर,कड़ा, टांठ।

*चिक्कन*- चिकना

*चिखला*- कीचड़

*लेटा*- लसलसा कीचड़ के गाड़ा चक्का या पाँव मा चपक जथे।

*निँदा*- निदाई करे के बाद निकले बन/खरपतवार

*मेड़ो/सिवान/सियार*- कोनो गाँव, शहर,या देश राज के आखरी छोर।

*सियार*- मेड़ो मा गड़े पथना, या कोनो चिन्हा।

*खंती*- खेत खार के एक निश्चित भाग ल कोड़ना, ज्यादातर खंती कोड़ के खेत ला बरोबर करे जाथे।

*गोदी*-  जमीन के एक निश्चित भाग ल कोड़े बर चिन्हित जघा। एक फुट गहरा अउ दस फुट समान लंबाई चौड़ाई के नापी भुइयाँ- एक गोदी।

*डंगनी*- गोदी नापे के पैमाना।

*ठिहा/आँट*- गोदी कोड़त बेरा गहराई के नाप बर छोड़े टापू। एखरे ले अंदाजा लगथे कि वो जघा कतका ऊँच रिहिस।

*ढेला*- भुइयाँ ला कोड़े/खने मा निकले छोट छोट साबुत खण्ड।

*गूँड़ा*- माटी के बुरादा।

*कन्हार डोली*- काला माटी वाले खेत।

*मटासी*- पिंवरा माटी वाले खेत।

*मुरमुहा*- मुरूम युक्त भुइयाँ।

*कनाछी*- रेती।

*कुधरिल*- रेत युक्त धूल।

*फुतकी/धुर्रा*- माटीयुक्त धूल।

*कुंड़/सेला*- नांगर जोतत बेरा बने चिन्हा।

*गोंटा*- जमीन मा पड़े पिवरा रंग के गोल गोल पथरा।

*कँसियारा*- काँसी युक्त खेत।

*राता खार*- दुरिहा के भाँटा जमीन।

*फुटहन/कटही बन*- काँटेदार पेड़ पौधा ले युक्त भुइयाँ।

*नर्सरी*- फलदार,फूलदार,छायादार  अउ औषधीय वृक्ष के पौधा तैयार करे के जघा।

*कुलापा/पुलावा*- छोटे नहर नाली, छोटा नाला,

*रपटा*- कामचलाऊ नाली।

*कूना*- चना, गहूँ के कूढ़ी।

*मांदा*- क्यारी/ओरी

*बुकनी*- चिकना।

*दुवार*- घर के आघू के खाली जघा, अंगना।

*बारी/बखरी*- घर के नजदीक साग भाजी लगाय के जघा।

*कोठार/बियारा*- धानपान या अन्य फसल ला जिहाँ रखे, मिन्जे जाथे।

*रकबा/एकड़/हैक्टेयर/जरी*- जमीन नाप के पैमाना

*डोंगरी*

*पहाड़*

*मैदान*

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

Wednesday, July 26, 2023

सुध लाम्हे रथे

सुध लाम्हे रथे तोर डहन 
मोला कछु नही भाये  
सिरतोन तोर बिन रे   
मोला कछु नइ सुहाये ...

नंजरे -नंजर म तय ह  झुलत रहिथस 
कर ले मया मोर संग तय ह कहिथस 
जाथव तोर तीर म रे, छन म कहां पराये 

का तय सरग परी रुप धरे मोहनी 
खवाये मोला अउ बइहा करे मोहनी 
देखे हव जब ले तोला रे, मोर सुध- बुध हजाये ...

जस तोर हाल रे संगी ,तस मोरो हाल 
तोर मया पाये बर ,रहिथव मय बेहाल  
होतिस पांखी संगी मोर त उड़ि चलि  आते...

Monday, July 24, 2023

रोपा अउ खोपा

रोपा अउ खोपा 

लगाबे  तेकर  खोपा  छोरे  ल परथे 
लगाथे  ओला  खोपा  पारे ल  परथे 
तभे लगथे रोपा हमुला कहे ल परथे 
बिना नेंग -जोंग के हांसी ठठ्ठा लगथे
किसानी के कारज बड़ मस्कुल होथे 
माटी म माटी मिलबे लौहा बुता झरथे

    - डा. अनिल भतपहरी /9617777515

Sunday, July 23, 2023

हरेली गीत

#anilbhatpahari 

।।हरेली ।।

देंख-ताक कहिले झन कहिबे बरपेली 
हर लेही  दु:ख  हमर  असो के  हरेली 
‌कइसे  बुढादेव  बबा , कस  बुढ़ी दाई ...

खरिखा डाड़ म सबो गरवा सकलाये 
दसमुड़ ,गोंदली संग सब लोंदी खवाये 
देख मेछरावय बछवा मतावय  चाहली 
हांसे शंकर भोला संग म पारबती ...

बोवनिया जमनिया  बादर ह  बरसिस  
सम्मत  देख के  किसान  मन हरसिस 
झुलबोन  झुलना अउ झुलबोन रहचुली 
कैसे भैया किसना कस भौजी रुखमनी ...

जांगर  टोर  करेन ,जबर  मतासी 
तभे लौहा झरिस हे  रोपा-बियासी 
नांगर  धोवागे  अउ  खपागे  गेड़ी 
कइसे कका बिसनु कस काकी लछमी ...

सरधा राखव अउ सइता मन म धरव 
देव धामी  ल बने सुमरव  अउ  बदव 
चीला  चढ़ाके चल , मना बोन  हरेली
कइसे बुध,कबीर साहेब गुरु बबा  घासी ...

   - डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

Friday, July 14, 2023

क्या और कब तक

#anilbhatpahari 

 क्या और कब तक ?

तुम्हारा यह बोल 
विरोध नही विद्रोह है 
विरोध बर्दास्त है 
पर विद्रोह नही 
क्योकि विरोध
को समझा लेंगे
या उसे ही सौप देंगे 
सब भार 
ढोने के लिए 
अब रहो तैयार 
जो चला आ रहा है 
निर्वाह करो श्रद्धा से 
वह हो जाएगा अपना 
गर होने दो पुरा 
उनके है कुछ सपना 
वैसे विरोधी तो 
अपने ही होते है 
जरा मनौव्वल से 
मान ही जाते हैं 
पर विद्रोही को समझाना 
और विद्रोह को थामना 
या उन्हें कुचल देना 
आसान नही 
न ही थम जाने 
या कुचल जाने से 
मिले इत्मीनान 
अंदर ही अंदर परेशान 
सांसें कोई चैन की नही 
चाह मीठे बैन की नही 
हरदम लगा रहता है ध्यान 
कि कही कोई हवा चले 
और भड़क न जाये चिंगारी 
जल न जाए 
यह स्वर्ण नगरी 
करना पड़ता  है यत्न 
विकट  प्रयत्न 
हवाएं कही से न चल पड़े 
काटने पड़ते हैं दरख्त 
ढहाने होते हैं पहाड़ 
सुखाने होते है दरियां
उजाड़ने पड़ते हैं वह गांव 
जिसे लोग बे़वजह 
सरग की उपमान देते है 
बजबजाते रहते हैं जात-पात 
अशिक्षा अंधविश्वास की काली रात 
बसकर शहर में
चलकर राजपथ में
सचाई से अनजान रहते है 
वही कोई बैठकर 
लीमचौरा में  
किस्से गढ़ते है  
फिरके तोड़ते है  
सबको साथ लेकर 
पगडंडी पर चलते हैं 
करो उसे बहिष्कृत 
अपने लोक से तिरस्कृत 
लायक नही राजपथ के  
नालायक है 
हमारी रिवायत के 
हमारी शरीयत के 
असल खलनायक है 
सच में !
कि वह विद्रोह के
असल नायक हैं!
तिरस्कार के तीर से 
करो वध 
आबाद रहे अवध 
मुबारक  मगध 
मगर कब तक 

 - डा. अनिल भतपहरी/9617777514

Wednesday, July 12, 2023

क्या और कब तक

#anilbhatpahari 

 क्या और कब तक ?

तुम्हारा यह बोल 
विरोध नही विद्रोह है 
विरोध बर्दास्त है 
पर विद्रोह नही 
क्योकि विरोध
को समझा लेंगे
या उसे ही सौप देंगे 
सब भार 
ढोने के लिए 
अब रहो तैयार 
जो चला आ रहा है 
निर्वाह करो श्रद्धा से 
वह हो जाएगा अपना 
गर होने दो पुरा 
उनके है कुछ सपना 
वैसे विरोधी तो 
अपने ही होते है 
जरा मनौव्वल से 
मान ही जाते हैं 
पर विद्रोही को समझाना 
और विद्रोह को थामना 
या उन्हें कुचल देना 
आसान नही 
न ही थम जाने 
या कुचल जाने से 
मिले इत्मीनान 
अंदर ही अंदर परेशान 
सांसें कोई चैन की नही 
चाह मीठे बैन की नही 
हरदम लगा रहता है ध्यान 
कि कही कोई हवा चले 
और भड़क न जाये चिंगारी 
जल न जाए 
यह स्वर्ण नगरी 
करना पड़ता  है यत्न 
विकट  प्रयत्न 
हवाएं कही से न चल पड़े 
काटने पड़ते हैं दरख्त 
ढहाने होते हैं पहाड़ 
सुखाने होते है दरियां
उजाड़ने पड़ते हैं वह गांव 
जिसे लोग बे़वजह 
सरग की उपमान देते है 
बजबजाते रहते हैं जात-पात 
अशिक्षा अंधविश्वास की काली रात 
बसकर शहर में
चलकर राजपथ में
सचाई से अनजान रहते है 
वही कोई बैठकर 
लीमचौरा में  
किस्से गढ़ते है  
फिरके तोड़ते है  
सबको साथ लेकर 
पगडंडी पर चलते हैं 
करो उसे बहिष्कृत 
अपने लोक से तिरस्कृत 
लायक नही राजपथ के  
नालायक है 
हमारी रिवायत के 
हमारी शरीयत के 
असल खलनायक है 
सच में !
कि वह विद्रोह के
असल नायक हैं!
तिरस्कार के तीर से 
करो वध 
आबाद रहे अवध 
मुबारक  मगध 
मगर कब तक 

 - डा. अनिल भतपहरी/9617777514

Sunday, July 9, 2023

फ़िक्र

#anilbhatpahari 

फ़िक्र 

सशंकित 
मालिक ने कहा 
देखों ऊपर
क्या हो रहा हैं
तमतमाएं ठेकेदार ने 
इंजीनियर से कहा 
कौन है यार  
जो चढ़ रहा है
परेशान इंजीनियर कहा 
हा सर कोई तो है    
फिर ओवर सियर से कहे 
ऊंचाई  देख कर
नाप-जोख कर
बताओ कैसे 
और कहां तक पहुंचा हैं ।
 वे मुंशी से  कहा  
तीसरी तल  पर 
जो चढ़ रहा है 
उतारों उसे 
मुंशी ने मेट को 
यही कहा 
मेट ने  देखते ही 
चीखा 
अरे तू  है 
जो सर पर ही 
बैठ रहा है   
उतरो तुरंत 
अरे गिराओ 
उसे कोई 
लेवर ने कहां 
साहब वह 
गिरेगा ही नही 
क्योकि वे 
गिरकर ही 
ऊपर चढ़ा हैं
हतप्रभ है चौकीदार 
कैसे ,क्या होगा यार 
चलेगी कैसे कारोबार 

- डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

Friday, July 7, 2023

डूब या भीग कर

#anilbhatpahari 

।।डूब या भीग कर ।।

करो तुम कुछ भी 
जो पल छिन बीतता है 
वह आखिर में 
इतिहास  बनता ही हैं 

जो बोवोगे लुओगे वही 
बड़े-बुजुर्गों की उक्ति 
सम या विषम  परिस्थिति 
मिले उपलब्धि या अधोगति 

इसलिए भैया अब 
जहां भी चलो सम्हल कर 
कुछ भी करो पर ज़रा 
ऊंच- नीच देख कर  

कुछ बड़ो की व्यवस्था 
छोटो को नागवर लगती है 
अच्छा हुआ उनके हिस्से 
बुरा हुआ तो इनके गलती है 

शास्त्र सम्मत है यह 
नीति कथन 
क्षमा बड़न को चाहिए 
और उत्पात चाहिए  छोटन  

इस तरह शास्त्र सम्मत 
विकट उत्पातों पर क्षमादान 
कर लो जी चाहे जो उत्पात 
क्या मस्त है यह  प्रावधान 

इसलिए तो हो गया 
सहज उत्पात मूत्राभिषेक 
जहां शास्त्र वचन हो 
वहां कहना क्या शेष 

बड़े वही है और 
वे उनके है  छोटे 
तुम हो पशुवत 
भला क्यों तुम सोचें 

पूर्व जन्म का फल भुगत 
अगले जन्म हेतु पुण्य फल 
क्यो निराश उदास रे बंदे !
होगा तेरा जीवन सफल

डूब या भीग कर श्रद्धावनत 
आकंठ भाव -भक्ति में 
लोग बेफ़िक्र जीये जा रहे हैं 
प्रभु इच्छा मौज मस्ती में 

     - डां. अनिल भतपहरी / 9617777514
         8-7-23   friday 10 Am 

Tuesday, July 4, 2023

धनवंतरी और धनतेरस

#anilbhatpahari  

धनतेरस एंव लक्ष्मी पूजा
            बनाम 
धन्वतरी और लक्ष्मी 
         
    कृषि संस्कृति की महापर्व फसलों की घरों में  आगमन की खुशी में मनाई जाने वाली दीपावली पर्व में धन तेरस और लक्ष्मी का क्या आशय और महत्व है पर विचार करते हैं। क्योंकि आज के दिन हर शहर कस्बा व बडे ग्रामों में लोग जमकर खरीद - फरोख्त कर रहे हैं। त्योहार की खुशी में इस तरह कर्ज लेकर या उसमें डूब कर खुशी मनाने का यह नायाब तरीके का ईजाद वाकिय में अल्हादकारी व रोचक हैं। साथ ही कैसे अर्थ का अनर्थ कर लिए गये है इन पर भी सम्यक् दृष्टिपात समीचीन हैं।
      धन्वतरी स्वास्थ्य देता है और स्वास्थ्य ही धन या  लक्ष्मी  है जिनके द्वारा ऐश्वर्य  (सुख ) का उपभोग किया जा सकता हैं वही ऐश्वर्य वान ही ईश्वर हो जाते हैं। जिनके पास सदैव सकारात्मक चीजें रहते हैं।  परोपकार  और सदाचार से व्यक्ति ही निर्मल यश के प्रतिभागी होते हैं और वे  मृत्यु  के बाद भी अपनी  श्रेष्ठ विचार  से अमर रहते हैं। 
      इस तरह देखें तो व्यक्ति के जीवन में इन  दोनो  का अतिशय महत्व हैं। क्योकि यह आपस में एक दूसरे से जुडे हुए हैं। जो स्वस्थ रहेगा संपदा उनके अधीन रहेगी और जो रोगी होगा उनके पास  संपदा निकल जाएगी । 

   वर्षा काल बीतने और शीत ऋतु के संधिकाल में जब सर्वत्र स्वास्थ्य वर्धक  गुलाबी ठंड हो तब व्यक्ति इसे अर्जित करने उद्यम करते हैं। शरद पूर्णिमा में उसी अमृत की चाह में रतजगा करते कार्तिक माह की अल सुबह सैर और स्नान हमें निरोगी करता हैं। इसे कायम रखने का प्रयत्न सदैव करना चाहिए। 

भारतीय संस्कृति में समुद्र मंथन एक ऐसा रुपक है जिसे अनेक विद्वत जन अनेक तरह से व्याख्यायित करते हैं।
       आर्य और अनार्य  के संघर्ष को देव और दानव या कहे सुर और असुर के बीच हुए संग्राम का हिस्सा तक मानते हैं। देवासुर संग्राम का अंतिम परिणति समुद्र मंथन और वहाँ से प्राप्त अमृत हैं। जिनके पा‌न कर अमरत्व को अर्जित करना हैं।
      ऐसा लगता है कि अमृत एक औषधि हैं जिससे द्वारा कष्ट और जिल्लत की जिन्दगी को सुख एंव  कीर्ति से युक्त जीवन में बदला जा सकता हैं।  पर यह कैसा औषधि हैं ? क्या द्रव है जो घड़ा में भरा हुआ होता हैं ? इन पर विचार आवश्यक हैं। 
           समुद्र मंथन में 14 तरह के रत्न निकले जिसमें विष से लेकर अमृत तक हैं।  कोई कार्य के आरंभ में विष ही निकलते हैं । सतत परिश्रम और निष्ठा से ही  सफलता रुपी अमृत  मिलता हैं। 
       
    दरअसल विष एक तरह  शंका - कुशंका ,मत- मातान्तर ,संघर्ष, नफरत, द्वेष ,भाई -भतीजावाद  जात पात ,खेमेबाजी ,और परस्पर संघर्ष हैं। इन सबसे निजात पाकर व्यक्ति सतत संघर्ष करते ज्ञान और चेतना से ऐसी सफलताएँ अर्जित करता है कि वे  साधन- सक्षम हो जाते है। फिर वे परोपकार और सबके लिए मंगलभाव रखते हैं। तब वह विमल यश को प्राप्त करते हैं।
 कलांतर में  लोग  उनके सद्कार्यो को सदैव स्मृत करते हैं। यही उनका अमृत पान कर अमर हो जाना हैं। 
  नश्वर देह की  जगह उनकी विचार अमर हो जाते हैं।
     
          आजकल धन्वतरी विचित्र ढंग से  धन का देवता हो गये और कर्ज करके इस दिन सोने चांदी के जेवर बर्तन और भौतिक सुख - सुविधाओं की वस्तुएँ  यथा कार ,बाईक,  टी वी  ,एसी, कुलर आदि  उत्पाद कर्ज या चञद बचत  से  लेकर तनावग्रस्त होकर  बीमार  व कलह में पड़े  रहते है । वणिक गणों और उत्पादक वर्ग ऐसे लोक लुभावन विज्ञापन व  स्कीम लाते हैं कि अमीर -गरीब सभी अपने हैसियत से बढकर खरीददारी करते हैं।  धनतेरस को लक्ष्मी खरीदने का बाजार बना लिए हैं। इससे सबसे अधिक  मध्यमवर्गीय कृषक समुदाय सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।

    कृषकों के फसल खेतों में है उनके पास कुछ नहीं हैं। फिर भी वे दुनी या डेढ़ी ब्याज से महज महिना दिन के लिए आकंठ कर्ज में डूब जाते हैं। उसे उतारने पूरे वर्ष भर अनुक्रम चलता हैं।  सच कहे तो दीवाली में दीवाला निकल जाते हैं।  एक किसान कर्ज में जन्मता है और कर्ज मे डूब कर जाता हैं। कृषि संस्कृति का यह महापर्व दीवाली कृषकों का ही बलि लेने का पर्व के रुप में ‌बदल सा गये हैं। 
   इस तरह  पुष्प नक्षत्र एंव धनतेरस  आम जनता को महाजनों के  ऋणी (गुलाम ) बनाने  का महापर्व हैं। 
 
        बहरहाल खुशियाँ  खरीद फरोख्त में नहीं बल्कि तनाव रहित अपने आय के दायरे में संतुष्ट भाव से जीने में हैं। और जब नगद हो तब आवश्यक वस्तुएँ की  खरीददारी हो इनके लिए कोई तिथि पर्व का निर्धारण बिल्कुल अनुचित व षडयंत्र जनित हैं। इन सबका ध्यान रखते हुए स्वास्थ्य व संपदा पाने की मंगलकामनाएं व  दीपावली पर्व की हार्दिक बधाई ।

https://youtu.be/m-6VTP2TABo
                -डाॅ. अनिल भतपहरी/9617777514

Saturday, July 1, 2023

मंहगाई गीत

#anilbhatpahari 

मंहगई गीत 

दू सौ किलो राहेर दार ,डेड़ सौ म  पताल 
का बतावव संगी तोला ,हमरों  हाल-चाल 
ये मंहगाई के मारे होगे, जीव के जंजाल ...

बिहने  ले बिस्कुट  बर रोवत  हे टूरा 
नवा लुगरा बर लुगाई  फोरत हे चूरा 
कत्कोन कमाथन ,फेर होथे बाराहाल ...

खेती हर अपन  सेती ,नौकरी  न चाकरी 
मांगे न मिलय उधारी ,बता अब का करी 
ओरमा के गर मं फासी, ये झंझट ल टाल ...

गोंदली सरकार बदलथे अइसन तो देस 
तभो ले कोनो  चेतय  नही  भारी कलेस 
पाच साल म टेकाथे बंगला,जे होथे सरकार ...

     - डा. अनिल भतपहरी / ९६१७७७७५१४