सतनाम -संकीर्तन
रंग महल मे बैठा जोगी
मन बैरागी होय
रिमझिम माया के बरसा बरसे
धधकत आगी होय ...
उलट -पुलट ये दुनिया सारी
भ्रमित भटकत नवल शिकारी
सद्गुरु साखी जोय ...
सरगपरी छन-छन नाचे
मृग मरीचिका सोय
साधक साधे सिद्धबानी
सब मरजी का होय ...
मरना ऐसे देश में
जहां न परिजन कोय
पशु पंछी भोजन करे
यह तन मांदी होय ...
- डा. अनिल भतपहरी / 9617777514
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