Sunday, May 29, 2022

सखा को पता

हो कितनें  कष्ट  

या हो जाए ख़ता 

तो सखा को ही

होते हैं बिन कहे पता 
      -डॉ॰ अनिल भतपहरी

Friday, May 27, 2022

हसदेव के रो देव

#anilbhatpahari 

हसदेव के रोदेव 

बरसा म नंगत 
चिखला  सनाय 
जर-जुड़ म 
सनफनाय/सकपकाय 
जाड़ म बड़ कांपत 
ओढे कथरी बिचारा
जेठ जरय भोंभरा 
तभो ले आ जय उघरा
रहय भले लरा- जरा  
देख कठल हस देव 
अब आथे सग 
सगा कभु- कभु 
साजे -संवागा 
आनी- बानी धरे 
खई -खजाना 
मोटर बजावत पो-पो 
देखनी उड़थे गांव म गो 
कत्कोन मोका जथे 
कत्कोन  ओसने लहुटे जथे 
 दया -मया छोड़ होगे नेंग चारी 
सुन्ना खेत खार बारी 
देखते देखत का गत होगे 
मनखे के साध ले सब उजरगे 
नदिया सुखावत 
मरत जीव जन्तु  पियास
कल - कारखाना ले 
धुंआ भरत अगास 
उजरत जंगल खिरत पहाड़ 
सुसकत कलेचुप धरती
बल खियात मनखे  के 
बानी  बिसरात मनखे के
उजरत  सबके रवती  
रकम-रकम के बिमारी 
अउ का-का नइ सचरही 
सिरतो कहें संगी त
 पटन्तर हसदेव 
 देखवउटी मनखे के सान  
 लगथे रो देव 

          -डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

Monday, May 23, 2022

ये क्या हो रहा है?

शनिचरी चिंतन 

ये क्या हो रहा है ? 
मिथक का इतिहास या इतिहास का मिथकीय करण !!!
और हा अब तक की सभ्यताओं मे मानव तो मानव बने ही नही ।जाति प्रजाति धर्म वाले जरुर बनते रहे ...
सचमूच आज गुरुघासीदास बाबा स्मृत होने लगे जब वे जगन्नाथपुरी के सागर तट पर  सहजता पूर्वक उद्धोष करते दो टूक कहे थे - " मनखे करिया होय कि गोरिया, ये पार के( सागर पार ) होय या ओ पार के मनखे  मनखे  एकेच आय।" 
  पर कोई उनकी यह बात समझे तब ? 
विभेद ही सारे संधर्ष द्वंद और युद्ध  का मूल है और अब तक यही होते आ रहे है।येन केन प्रकरेण  विजेता श्रेष्ठ ,आर्य व देव  और हारे हुए लोग अश्रेष्ठ ,अनार्य व दानव धोषित होकर  हेय ,दास ,दस्यु, राक्षस  कहलाएं।
और हजारों वर्ष हुए संधर्ष जो मिथकीय भी हो सकते हो को धार्मिक आधार देकर आज तक इन वर्गों के ऊपर संधातिक हमले और अनेक तरह‌ के जुल्मों सितम होते आ रहे हैं। ऐसा लगता है कि किसी से लड़ने और जीत कर अपने अहं भाव को तुष्ट करना ही मानवीय प्रवृत्तियाँ बन चूके हैं। उन्हें अनेक तरह के जाति -उपजाति गोत्र आदि में विभाजित कर भेदभाव छूत -अछूत धोषित कर धार्मिक मुलम्मा चढा दिए गये जो आज भी कथित धार्मिकों के सर चढ़कर बोलते हैं। दुर्भाग्यवश ऐसा करने वाले  ही धर्मनिष्ठ व संस्कारी समझे जाते हैं। फलस्वरुप आम जन जीवन में  होड़ लगी हुई हैं कि कैसे कितने लोगों से अमानवीय जुल्म करे भेदभाव करे तो हमारी भी सनातन या हिन्दू संस्कृति में अच्छी रेटिंग होगी ।हमें धर्मनिष्ठ माने जाएन्गे इस मुगालते में शुद्रों में भी यहाँ तक एक ही जाति संवर्गों में  भी  खान पान रहन सहन में भेदभाव  परिव्याप्त है। प्रभावी कानुन के बावजूद देश भर में यह कुप्रथा विद्यमान हैं। आए दिन लोमहर्षक और दिल दहलाने वाली घटनाएँ घटती हैं।
      यदि वर्गीकरण आवश्यक है तो  गुण व स्वभाव के अनुरुप श्रेणी बद्ध होते  तो देश  व समाज की स्थित आज अलग होता। परन्तु  वह परिक्षेत्र प्रजाति रंग व बनावट के आधार पर भेदभाव जन्य हुआ। यही मानवता के लिए अभिशाप हुआ। फलस्वरुप भारत की छवि शेष विश्व में अच्छी नहीं हैं। और न यहाँ की समाजिक व्यवस्था प्रशंसनीय हैं। भले हम मुगालते में रहे कि हमारी सभ्यता आजतक कायम हैं। पर पशुवत बने हुए होना कीर्तिमान नहीं हैं।
        इकबाल का शेर का सही भावार्थ -"कुछ बात की हस्ती मिटती नहीं हमारी " यह साफ समझ आते हैं कि यह परस्पर सौहार्द नहीं बल्कि जातिवाद ही हैं। जो कभी जाती नहीं ।शायद इसलिए वजूद कायम हैं, इसलिए भी शायद चंद सुविधा भोगी तत्व इन्हे कायम रखने  संस्कृति संरक्षण करते आ रहे हैं। 
      जबकि आरंभ  से जन्मना ऊच नीच भाग्य भगवान के अपेक्षा सद्व्यहार कर्म आदि की बातें भी छिटपुट हुआ भी  परन्तु वह अनसुनी व अग्राह्य रहा। यह प्रवृत्तियाँ यथावत चला आ रहा हैं। इसका कारक केवल असमानताए ही नहीं अपितु आय का असमान वितरण और राजतंत्र व  धार्मिक प्रतिष्ठानों में कैद संपदा के कारण ऊपजी मनोवृत्तियां हैं। 
     यदि इन संपदाओं को  राजसात  कर देश की आधारभूत समस्याओं के निदान हेतु कार्यारंभ करे तो भारतीय संविधान की मूल अवधारणाएं सहज ही साकार होगा। देशवासी सुखी व समृद्ध होंगे साथ ही वैश्विक  कीर्तिमान स्थापित हो सकेगा।  हमारे साधु संतो और राजनेताओं  की आकांक्षा भी  कि विश्वगुरु होन्गे वह भी चरितार्थ होगा। बशर्ते वे लोग कथनी -करनी समान रखे । क्योंकि जनमानस के ऊपर इनका  गहरा  प्रभाव हैं।
     पर यह क्या देश की संपदा का  आम जनता की गाढ़ी कमाई का दुरुपयोग  करने के नये ढंग ( ढोंग ) आरंभ हो गया सभी राज्यों में ऊची प्रतिमा निर्माण की प्रतिस्पर्धा निकल पड़े हैं चाहे वह पटेल शिवाजी डा अम्बेडकर बुद्ध  श्रीराम हनुमान जटायु  आदि जैसे ऐतिहासिक या पौराणिक पात्र हो।  पर्यटन उद्योग के बहाने से बातों ‌को डायवर्ट तक किए जा रहे हैं।
     बहरहाल यह सब  जनमानस के दिलों में है उसे धूल- धक्कड़ खवाने कौव्वे चील गिद्धों के विष्टा गिराने  की जरुरतें ही क्या है। पुल सड़क अस्पताल स्कूल कालेज प्रतिष्ठान बनावे और राष्ट्र को समृद्ध करे।
                डा. अनिल भतपहरी 

प्रात: परिभ्रमण करते नीलगिरी के तले से ...

Sunday, May 15, 2022

संसो करत रहिथंव




भल कछु करव नही फेर 
 संसो ल करत रहिथंव 

अभाव म सभाव ल रे संगी  
अंतस म भरत रहिथंव 

सुध म तोर बिसुध होके  
गांव-गली शहर-पहर बुलत रहिथंव 

आरो पाथव आये तीर -तखार 
त नजरे -नज़र म खोजत रहिथंव ..

घाद मयारु जोड़ी तोर मीठ बोली 
सुने बर तरसत रहिथंव ...

Wednesday, May 11, 2022

सद्विचार

#anilbhatpahari 

।।सतविचार ।।

      ।।महापुरुषों के  सात सोपान ।।

         सामूहिक जागरण के प्रथम सोपान  सत्य का बोध होना है। यह व्यक्तिगत जागरण है। जिसमें सर्व प्रथम चेतना आएगी वही जन चेतना लाने उद्यम, तप -साधना ,अध्ययन -मनन, चिंतन आदि  करेन्गे। यह अनुक्रम द्वितीय सोपान हैं।

     तप -साधना शिक्षा आदि से आत्मबल जागृत होते है  या आत्मशक्ति प्राप्ति के बाद  जन जागरण /आन्दोलन या क्रांति करेन्गे यह तृतीय सोपान हैं।

          उनके उपरान्त स्वयं मुख्तार या प्रबंधन या शासन करते  यह चतुर्थ सोपान  हैं।

           शास्ता के उचित प्रबंधन से लोक कल्याण मार्ग  प्रशस्त होते हैं,यह पंचम सोपान  है। ऐसा करते ही व्यक्ति जन मानस मे श्रद्धा के पात्र बनते है यह छटवां  सोपान हैं। 

         गुरुघासीदास अपने जीवन काल मे इन  सोपान से गुजरते हुए  अंत से सातवें सोपान महासमाधिस्थ या अन्तर्धान को प्राप्त हुए ।

    प्रज्ञा सम्पन्न महापुरुषों  के जीवन मे इस तरह  के  सोपान घटते है और सप्तम भाव मे प्रविष्ट होते ही वे  अक्षय कीर्ति के स्वामी होकर  दुनियां के पथ- प्रदर्शक  जाते हैं। इन सोपानों के केन्द्र में सत्य प्रेम करुणा और परोपकार हैं । 
         इन चारों तत्व के धारक और व्यवहारक साधारण व्यक्ति भी असाधारण हो सम्मानीय और पुजनीय हो जाते हैं।
                  सतनाम

      डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

Saturday, May 7, 2022

बिलासा दाई

मन बचन कर्म मे रत  झन हो उदासा 
कहिके भरिस  सबके हिरदे मा आसा 
सभिमान के सीख अउ  देवय दिलासा 
अरपा तीर म  सुघ्घर हवय तोर बासा 
जस पचरा  गावय  लोगन  बारोमासा 
घाद मयारुक हवय  हमर दाई बिलासा

Wednesday, May 4, 2022

अमलताश

#anilbhatpahari 

अमलताश 

विकट संकट में
फंसे झंझट में  
आई प्रिये पास 
चिलचिलाती धूप में 
ज्यों खिली अमलताश 
होकर प्रसन्न प्रकृति 
धारित करती स्वर्णाभूषण
हर्षित उपवन अरु तन मन 
प्रदर्शित करती वैभव विलास...
 
उधर  तन्वंगी हुई चित्रोत्पल्ला 
स्वच्छ जलराशि अमृत पिला 
विचरते विहंग करलव 
धावित गोधन बेला गोधुलि
अलसाई नयन 
टेह बंशी की  गूंजी रुनझुन 
सुनाई पड़ी अल्हड़ गीत भजन 
हो रहे हो मधुमय सहवास ...

 मधुर गान  मोहिनी मुस्कान मधुर
संग थिरक उठे यह मन मयुर  
डोर अनजान सी बंध चली  
मृदुल पुरवाही संग गंध बही 
मतवाली डाली मदमाती अमलतास 
आई तुम पतझड़ में बनकर मधुमास ...

      -डॉ. अनिल भतपहरी / 9617777514