स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत: शहीद वीर नारायण सिंह
समकालीन छत्तीसगढ़ को अंग्रेजी सत्ता के संरक्षण मे देशी -महाजनों सेठ साहूकारों की चुंगुल और लूट - शोषण से बचाने सुदूर वनांचल में स्थित "सोनाखान " नामक ग्राम से एक क्रांति ज्वाला प्रज्ज्वलित हुई । जिसे दुनियां शहीद वीर नारायण सिंह के नाम जानती हैं।
यशस्वी पिता राजा रामराय का यह तेजस्वी पुत्र महान आध्यात्मिक संत गुरुघासीदास से अभिमंत्रित थे। समव्यस्क गुरु पुत्र राजा बालकदास से उनकी गहरी मित्रता रही ।फलस्वरुप ट्रांस महानदी क्षेत्र में यह दोनो रण बांकुरे जन जागरण चलाकर अभूतपूर्व कार्य किए । जो कि युगो- युगो तक स्मृत रहेन्गे।
अंग्रेजो के ईसाईकरण और सेठ, साहूकार और मालगुजारों की आतंक से बचाने सफल हुए।
वीर नारायण सिंह का जन्म गिरौदपुरी पहाड़ी के नीचे तलहटी पर सोनाखान नामक ग्राम में बिंझवार जमींदार रामराय के घर 1795 में हुआ। 1830 में रामराय की मृत्यु के उपरान्त 35 वर्ष की आयु मे वे सोनाखान जमींदारी का प्रशासन संभाला । वे अत्यंत साहसी और पराक्रमी थे तथा भोली- भली, दु: खी पीड़ित जनता के सहायतार्थ सदैव तत्पर रहते थे।यह गुण उन्हें समीप ही गुरुघासीदास की आध्यात्मिक सत्संग- प्रवचन से ग्रहित किया। जन कल्याण ही सच्चा नारायण सेवा और पूजा है यह पाठ वे बाल्यकाल से ही गुरुवर की संगत
से सीखे।
1856 मे भीषण आकाल पड़ा जनता भूख से त्राहि -त्राहि करने लगीं कही से भी कोई आपूर्ति नही था। ऐसे मे कसडोल के माखन नाम का एक अन्न व्यापारी भारी मात्रा मे धान जमा कर मुनाफा कमाने के फिराक मे थें। उनसे उन्होंने प्रजा हितार्थ अनाज मंगे पर नही दिया गया। तब वे उनके जीवन बचाने अपने कुछ विश्वस्त सहयोगियों के साथ धावा बोलकर धान की बोरियां उठवा लिए।
व्यापारी ने रायपुर स्थित कमीश्नर स्मिथ से शिकायत किए।
उन पर डैकती का मुकदमा लगा कर जेल भेज दिए। रायपुर सेंट्रल जेल मे उन्हे देश मे चल रहे अंग्रेजों की शोषण दमन और कुछेक मौका परस्थ देशी सामंतों मालगुजारों की मिली भगत व क्रुरताओं से संदर्भित जानकारियां मिलने लगी तथा कुछेक क्रांतिकारी लोगों की संगति से देश के अन्य भागों में जारी क्रांतिकारी घटनाओं की जानकारियाँ मिली जो आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम के पृष्ठ भूमि बनी । जिसे अंग्रेज़ी सत्ता उपद्रवी व आतंकी कहे और उन्हें कुचलने की रणनीति बनाने लगे। वीर नारायण सिंह बेहद उद्वेलित हो क्रांति की मार्ग पर चलने और देश तथा व्यक्ति स्वतंत्रता को अर्जित करने जेल मे बंद होकर मरने से अच्छा ब्रिटिश सरकार की जंजीर तोड़ उन्हे देश से खदेड़ने की प्रण लेकर जेल से फरार हो गये। और अपने बाल मित्र राजा गुरु बालकदास के गढी भंडारपुरी - मे जाकर मिले। वहां उन्हे गुरुघासीदास का आशीष मिला और मित्र का अपनापन उसे समीपस्थ ग्राम जुनवानी मे सतनाम सेना के प्रमुख ऊंजियार दास के संरक्षण मे भेज दिए। और संदेश वाहक को सोनाखान खबर कर दिए गये।नारायण सिंह एक रात्रि विश्राम कर अपने गांव सोनाखान जाने तैयार हुए तो उसे
महानदी पार करवाकर उनके लोगो से मिलवाए । वे सोनाखान चले गये। वहां जाकर उन्होने सतनाम सेना के अनुकरण करते प्रत्येक घरों से एक एक युवाओं को एकत्र कर 500 लोगो की फौज बनाए, उन्हे आखाड़ा सिखाने जुनवानी अमसेना बोदा मोहान के 15-20 प्रशिक्षित खड़ैत और लड़ाके तलवार- भाला बर्छी आदि चलाने की प्रशिक्षण देने लगे ।
इस तरह वनांचल मे अंग्रजी सत्ता और देशी महाजनों - मालगुजारों के आतंक से निपटने की जोर -शोर से तैयारी होने लगे।
इस तरह के अभियान से सीधा -सीधा ब्रिटिश सत्ता से खिलाफ़त करते विद्रोह की बिगुल फूंक दिया गया । यह सोनाखान विद्रोह के नाम से इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया-
जिसके आधार पर साहित्य रचे जाने लगे -
स्मिथ सेना लेके घेरिन सोना खान जमींदारी ल
सिहगढ़ भ इगे सिंहखान
फेर सोनाखान तपे आगी मं ।
बांस और घांस से घिरे जंगल को अंग्रेज फागुन -जेठ के बीच हुए संग्राम मे आग लगाकर घेर लिए ।
कुर्रुपाठ छोड़ सरदारन संग
सोनाखान के जंगल म
डेरा डारिन नारायेन सिंग
साजा कौउहा के बंजर म।
अंग्रेज उनकी जगह बदलते और छापामार शैली से परेशान हो गये
अंतत: सडयंत्र और छल कपट कर कैप्टन स्मिथ ने सैनिकों की टुकड़ी लेकर सोनाखान को घेर लिया कुर्रुपाट पहाड़ी जहा नारायणसिंह देवी पूजा के गये थे वहां से गिरफ्तार कर लिए गये -
देवरी के जमींदार दोगला
बहनोई बीर नारायेन के
लगा दिहिस बाढ़े बिपत म
काम करिस कुकटायन के
फिर रायपुर स्थित जेल मे वीरनारायण सिंह को बञद कर दिए बिना कोई अदालती मुकदमा चलाए कही उनके सैनिक जेल पर हमला कर न छुड़ा ले 10 दिसबंर 1857 को तोप से उड़ा दिए । उनकी देह भी उनके परिजनो को नही सौपे ।
इस तरह गरीबो मजलुमों के मसीहा वीर नारायण सिंह स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए बलि वेदी पर न्योछावर हो गये।
उनकी शहादत से परिक्षेत्र मे शोक व्याप्त हो गये । वीर नारायण सिह समाज राज और देश के लिए शहादत देकर अमर हो गये। वे सच्चे अर्थों में छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता आन्दोलन और संग्राम के सूत्रधार और महानायक रुप में प्रतिष्ठित हो गये हैं।
डा. अनिल कुमार भतपहरी
( 9617777514)
सचिव
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग
शहीद स्मारक भवन , रायपुर छ ग