Friday, March 25, 2022

शहीद वीर नारायण सिंह

स्वतंत्रता  संग्राम के अग्रदूत:    शहीद वीर नारायण सिंह 


समकालीन छत्तीसगढ़ को अंग्रेजी सत्ता के संरक्षण मे देशी -महाजनों सेठ साहूकारों  की  चुंगुल और लूट - शोषण से  बचाने सुदूर वनांचल में स्थित  "सोनाखान " नामक ग्राम  से एक क्रांति ज्वाला प्रज्ज्वलित हुई । जिसे दुनियां शहीद वीर नारायण सिंह के नाम जानती हैं।
      यशस्वी पिता राजा रामराय का यह तेजस्वी पुत्र महान आध्यात्मिक संत  गुरुघासीदास से अभिमंत्रित थे। समव्यस्क  गुरु पुत्र राजा बालकदास  से उनकी  गहरी मित्रता रही ।फलस्वरुप ट्रांस महानदी क्षेत्र में यह दोनो रण बांकुरे जन जागरण चलाकर अभूतपूर्व कार्य किए । जो कि युगो- युगो तक स्मृत रहेन्गे।
   अंग्रेजो के ईसाईकरण और सेठ, साहूकार और  मालगुजारों की आतंक से बचाने सफल हुए।

      वीर नारायण सिंह का जन्म गिरौदपुरी पहाड़ी के नीचे तलहटी पर सोनाखान नामक ग्राम में  बिंझवार जमींदार रामराय के घर  1795  में हुआ। 1830 में रामराय की मृत्यु के उपरान्त 35 वर्ष की आयु मे वे सोनाखान जमींदारी का प्रशासन संभाला ।  वे  अत्यंत साहसी और पराक्रमी थे तथा भोली- भली,  दु: खी पीड़ित जनता के सहायतार्थ सदैव तत्पर रहते थे।यह गुण उन्हें समीप ही गुरुघासीदास की आध्यात्मिक सत्संग- प्रवचन से ग्रहित किया। ज‌न कल्याण ही सच्चा नारायण सेवा और पूजा है यह पाठ वे बाल्यकाल से ही गुरुवर की संगत
से  सीखे।
        1856 मे भीषण आकाल पड़ा जनता भूख से त्राहि -त्राहि करने लगीं  कही से भी कोई आपूर्ति नही था। ऐसे मे कसडोल के माखन नाम का एक अन्न व्यापारी भारी मात्रा मे धान जमा कर मुनाफा कमाने के फिराक मे थें। उनसे उन्होंने प्रजा हितार्थ अनाज मंगे पर नही दिया गया। तब वे उनके जीवन बचाने अपने कुछ विश्वस्त  सहयोगियों के साथ धावा बोलकर धान की बोरियां उठवा लिए।
   व्यापारी ने रायपुर स्थित कमीश्नर स्मिथ से शिकायत किए।
उन पर डैकती का मुकदमा लगा कर जेल भेज दिए। रायपुर सेंट्रल जेल मे उन्हे देश मे चल रहे अंग्रेजों की  शोषण दमन और कुछेक मौका परस्थ  देशी सामंतों मालगुजारों  की मिली  भगत व क्रुरताओं से संदर्भित जानकारियां मिलने लगी तथा कुछेक क्रांतिकारी लोगों की संगति से देश के अन्य भागों में जारी क्रांतिकारी घटनाओं की जानकारियाँ मिली जो आगे चलकर  स्वतंत्रता संग्राम के पृष्ठ भूमि बनी । जिसे अंग्रेज़ी सत्ता  उपद्रवी व आतंकी कहे और उन्हें कुचलने की रणनीति बनाने लगे। वीर नारायण सिंह बेहद उद्वेलित हो  क्रांति की मार्ग पर चलने और देश तथा व्यक्ति स्वतंत्रता को अर्जित करने जेल मे बंद होकर मरने से अच्छा  ब्रिटिश सरकार की जंजीर तोड़ उन्हे देश से खदेड़ने की प्रण लेकर  जेल से फरार हो गये।  और अपने बाल मित्र राजा गुरु बालकदास के गढी भंडारपुरी -  मे जाकर मिले। वहां उन्हे गुरुघासीदास का आशीष मिला और मित्र का अपनापन उसे समीपस्थ ग्राम जुनवानी मे सत‌नाम सेना के प्रमुख ऊंजियार दास के संरक्षण मे भेज दिए। और  संदेश वाहक को सोनाखान खबर कर दिए गये।नारायण सिंह एक रात्रि विश्राम कर अपने गांव सोनाखान जाने तैयार हुए तो उसे 
महानदी पार करवाकर उनके लोगो से मिलवाए । वे  सोनाखान चले गये। वहां जाकर उन्होने  सतनाम सेना के अनुकरण करते प्रत्येक घरों से एक एक युवाओं को एकत्र कर 500 लोगो की फौज बनाए, उन्हे आखाड़ा सिखाने जुनवानी अमसेना बोदा मोहान के  15-20 प्रशिक्षित खड़ैत और लड़ाके  तलवार- भाला  बर्छी आदि चलाने की प्रशिक्षण देने लगे ।
      इस तरह वनांचल मे अंग्रजी सत्ता और देशी महाजनों - मालगुजारों के आतंक से निपटने की जोर -शोर से तैयारी होने लगे।
       इस तरह के  अभियान  से सीधा -सीधा ब्रिटिश सत्ता से खिलाफ़त करते विद्रोह की बिगुल फूंक  दिया गया । यह सोनाखान विद्रोह के नाम से इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हो गया- 
जिसके आधार पर साहित्य रचे जाने लगे -
स्मिथ सेना लेके घेरिन सोना खान जमींदारी ल 
सिहगढ़ भ इगे सिंहखान 
फेर सोनाखान तपे आगी मं ।

  बांस और घांस से घिरे जंगल को  अंग्रेज फागुन -जेठ के बीच हुए संग्राम मे आग लगाकर घेर लिए ।
कुर्रुपाठ छोड़ सरदारन संग 
सोनाखान के जंगल म
डेरा डारिन नारायेन सिंग 
साजा कौउहा  के बंजर म। 

अंग्रेज उनकी जगह बदलते और छापामार शैली से परेशान हो गये 
    अंतत: सडयंत्र और छल कपट कर कैप्टन स्मिथ ने सैनिकों की टुकड़ी लेकर सोनाखान को घेर लिया कुर्रुपाट पहाड़ी जहा नारायणसिंह देवी पूजा के गये थे वहां से गिरफ्तार कर लिए गये -

देवरी के जमींदार दोगला 
बहनोई बीर नारायेन के 
लगा दिहिस बाढ़े बिपत म 
काम करिस कुकटायन के 

        फिर रायपुर स्थित जेल मे वीरनारायण सिंह को बञद कर दिए बिना कोई अदालती मुकदमा चलाए कही उनके सैनिक जेल पर हमला कर न छुड़ा ले 10 दिसबंर 1857 को तोप से उड़ा दिए । उनकी देह भी उनके परिजनो को नही सौपे । 
    इस तरह गरीबो मजलुमों के मसीहा वीर नारायण सिंह स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए बलि वेदी पर न्योछावर हो गये।
   उनकी शहादत से परिक्षेत्र मे शोक व्याप्त हो गये । वीर नारायण सिह समाज राज और देश के लिए  शहादत देकर अमर हो गये। वे सच्चे अर्थों में छत्तीसगढ़ में स्वतंत्रता आन्दोलन और संग्राम के सूत्रधार और महानायक रुप में प्रतिष्ठित हो गये हैं।  

     डा. अनिल कुमार  भतपहरी 
       ( 9617777514) 
              सचिव 
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग 
 शहीद स्मारक भवन , रायपुर छ ग

Thursday, March 24, 2022

अनीश्वरवादी स्वर - 2

चिंतन २

             ।।अनीश्वरवादी स्वर ।।

      कल तुम्हे ईश्वर बनना है , प्रकृति तुम कितनी बेरहम हो‌  ,स्वाभिमान का सुगंध , कहे- माने  जैसी  हमारी कविताएँ हो या चाणक्य अप्रासंगिक ,आह्वान (अ)धर्मानुरुप राजनीति ,  अम्बेडकर  और  हिन्दू बनाम इस्लाम  जैसे अनेक  आलेख यह हमारी वर्षो पुरानी रचनाएँ  हैं। जो देश के विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित व चर्चित हैं। 
   इन सबमें अनीश्वरवाद का  स्वर अनुगूंजित है। तब न कोई  कोरोना थे न कोई अन्य महामारी का  डर -भय था।बल्कि देश भर में बाबरी मस्जिद ढहने के बाद धार्मिक उन्माद में  ईश्वरीय  भक्ति  खुदाई  इबादत  का लहर था। महाआरती महाअजान शोभायात्रा जुलूस का अभूतपूर्व मंजर था। देश में भजन कीर्तन सत्संग का बहार था और शीध्र सतयुग आने की उम्मीद में लोग घर घर शाम दीप प्रज्ज्वलित कर प्रतीक्षारत  व्यग्र हो रहे थे। इस  बीच जरुर लातुर के भीषण  भूंकप हो  था और एक बार फिर लोग अपने अराध्यों के अराधना करते ‌ उनके साथ जमींदोज  हो गये थे। ऐसे में   बुद्ध ,गुरुघासीदास नीत्से,और  मार्क्स के विचार जेहन में ‌जरुर रचे -बसे थे‌। तीस वर्ष पूर्व जब हम २० वर्ष के थे तो मेरी कविता नवभास्कर रायपुर १९८९  ( अब दैनिक भास्कर ) में  "कल तुम्हें ईश्वर बनना हैं"  प्रकाशित हुआ तब भी  ईश्वर वादियों की कटु आलोचनाएँ सहना पड़ा ।
   और अब भी सहने पड़ते हैं।
   तो इन सब आलोचनाओं के  आदत  विगत ३० वर्षों से हैं। नवभारत में हमारी विचारोत्तेजक आलेख चाणक्य अप्रसांगिक १९९२  साहित्यिक व बौद्धिक जगत उद्वेलित हो गये थे तब टीवी में चाणक्य सिरियल चल रहा था और शिक्षक समुदाय चाणक्य रथ चला रहे थे।
       इसी तरह एक लेख के चलते एक महिने गांव में संपादक के निर्देश पर  गुमनाम अंडर ग्राऊण्ड रहे। अनिल आशांत तब से शांत हो वह उपनाम हिन्द महासागर में डुबो दिए। फिर पीड़ित मानवता के लिए राहत के प्रार्थनाएँ करने वाले स्वर निःसृत कर सुकून पाने लगे।इस बीच अतिवाद और अराजकताएं व वर्जनाओं के विरुद्ध स्वर मुखर व प्रखर ही रहे। 
     क्योंकि  जो सच हैं उनके उद्धाटन में लगे रहते हैं। और यही हमारा ध्येय व प्रयोज‌न हैं- 
अर्थ नहीं धर्म नहीं मोक्ष नहीं
आत्म प्रशंसा,यशादि व्यर्थ सही 
जो है उसे साफ कहने आया हूँ 
सोये रहोगे कब तक जगाने आया हूँ ...
   यह तो १९८९ में ही तय हो चूका था।पर जब  २००७ में  कब होही बिहान  काव्य संग्रह सद्य: प्रकाशित हुई तो उसमें  संगृहीत हुए।
 हालांकि हमारी इन प्रयास में तथाकथित सच प्रेमी भी उद्वेलित  होकर यदा कदा  जिन्हे समझ नहीं आते या प्रायोजित ढंग से आलोचक हो जाते हैं। या फिर यु ही कीर्तिमान होते देख समव्यस्क सहज ईर्ष्या भाव के चलते प्रतिकार कर बैठते हैं ।  फिर लंबी क्षमा याचना या  नजर न मिलाने के कारण दूरियाँ बना लेते हैं। 
   बहरहाल इन सबसे बेफ्रिक हम बिना यश --कीर्ति के चाह लिए अपनी विवेक और स्वाध्याय लेखन पर रत रहते हैं। इस दरम्यान कही -कही प्रशंसित व सम्मानित भी हो जाते हैं। जो और  हमें‌ भी बेहतर करने प्रेरित करते हैं।

      -डा. अनिल भतपहरी 9617777514

Monday, March 21, 2022

सतनाम संस्कृति में रहस पंडवानी भागवत

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सतनाम संस्कृति में रहस  भागवत व पंडवानी 

        संदर्भ - प्रथम पंडवानी गायिका सतलोकी लक्ष्मी ‌ बाई बंजारे एंव साथी ।

  पंडवानी सत्य की जय गाथा हैं । पांच पांडव पंच कर्म इंद्रियाँ हैं। पंच ज्ञान इंद्रिय पांञ्चाजन्य हैं। जिसे मन को मोहित करने वाले सर्वगुण सम्पन्न साधक और नायक  मोहन अनुगूंजित कर जय घोष करते हैं।सौ कौरव सहित नव अक्षौणियों का कल्मष से धर्मयुद्ध करते विजय श्री होकर "जैतखाम"  गड़ाकर सत्य ध्वज "पालो "फहराते हैं। 
        सतनाम संस्कृति में रहस भागवत पंडवानी गायन आरंभ ‌से रहा हैं और इसे ये लोग नारनौल दिल्ली मथुरा से अपने साथ लाए हैं। छग के सतनामियों  में रहस भागवत और पंडवानी एक धार्मिक अनुष्ठान हैं। इसे मांगलिक कार्य एंव मनोवांछित फल प्राप्त करने  बदना के रुप में आयोजन करते आ रहे हैं। प्राचीन समय में पं सुखीदास , तुलम तुलाई ,  पं साखाराम बघेल , भिक्षु रामेश्वरम ( जो डा अम्बेडकर /मंत्री नकूल ढी ढी के प्रभाव से बौद्धिष्ट हो गये )  पं रामचरण भतपहरी , लक्ष्मी बाई ‌, तोरन बाई जुगा बाई , राम्हीनबाई इत्यादि ।
     वर्तमान में सतनाम  पंडवानी की साधकों में कन्हैया लाल , समेशास्त्री देवी, ऊषा बारले, शांति बाई चेलक सक्रिय व लोकप्रिय हैं।
    रहस पंडित में पं जगमोहन टंडन ,पं सिताबी , शास्त्री जी कोनारी वाले , पं लक्ष्मी प्रसाद , पं कदम जी    मा‌नदास टंडन , पं विश्राम प्रसाद , सहित अनेक कलावंत साधक हैं। सुश्री भारती जी अभी बेहद चर्चित भागवत कथा वाचिका  हैं। 
    रहस , भागवत ,पंडवानी में कृष्ण एंव कौरव पांडव -गाथा के साथ -साथ सतनाम मंगल भजन व गुरुघासीदास चरित गायन का विशिष्ट परंपरा हैं। इसमें कलावंत सादगी पूर्ण श्वेत वस्त्राभूषण एंव कंठी चंदन  तिलक से युक्त संत मंडली होते हैं जो बेहद प्रभावशाली प्रस्तुतियां देते ह हैं। इनके वाद्य भी विशिष्ट प्रकार के होते हैं। तंबुरा चिकारा हुड़का खंजेरी करताल  घंट घुम्मर   मृदंग शंख तुरही ।वर्तमान में हारमोनियम तबला बैंजो पेड सेंथेसाईजर जैसे आधुनिक वाद्य से प्रस्तुतियां होने लगी हैं।
    ऐसा लगता हैं कि अट्ठारहवीं सदी में गुरुघासीदास के अभ्युदय और उनके युगान्तरकारी पंथ प्रवर्तन के प्रभाव के चलते सतनामियों की रहस व पंडवानी परंपरा में गुरुगाथा व सतलोकी भजनों का समाहार हुआ। इस तरह  हम देखते है कि छत्तीसगढ़ी संस्कृति में एक नई समन्वयकारी लोक कला का विकास हुआ जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण है। 
     अध्येताओं को इस विशिष्ट लोक कला मंच और उनसे  साधकों की प्रवृत्तियों और जनमानस में पड़ते प्रभाव का अनुशीलन करना चाहिए ।

                   धन्यवाद 
    -डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Sunday, March 20, 2022

।।कौरुनंगर ।।

#anilbhatpahari 

मातर की सुबह मतवारी मनरंजन 
 
             "कौरुनगर" 

   आज मातर है बचपन से मन को मताने वाले एक मिथक जो रहस्य रोमांच तिलस्म से भरा हुआ है जिसे "कौरुनगर" कहते है उन पर मनोरंजनार्थ  पोष्ट करते है। बचपन में हमलोग दादी मां के कहानी सुनते इसकी जिक्र सुनकर वहां क्या क्या होते है कि बातें सुनकर बड़े हुए है। व्यक्ति में  उम्र का एक पड़ाव आते है जब घर गृहस्थी बाल बच्चे आदि पर प्रभावी नियंत्रण घर की स्वामिनी हो जाते है और स्वामी जी बाहर  उनके निर्देशित कर्म में रत । इस तरह देखा जाय तो हर किसी का अपना कौरु नगर हैं।  वर्तमान मे  सुखमय गृहस्थी जीवन के तह इनका  भी प्रभावी असर है।व्यंग्य सा ही सही पर यह सच तो हैं!

         बहरहाल जनमानस में कौरुनगर जहां स्त्रियों की राज जो पुरुषों को  पशु- पछी ( बैल भेड बकरी तोता कबुतर आदि) बनाकर रखने की बाते सदियों से फैली हुई हैं।कामरुप कामाख्या देवी स्थल असम छेत्र जो बीहड हैं को कहे जाते हैं ।
  हमे लगता हैं यह अलंकारिक व्यजंना शब्द शक्ति हैं। जो एक तरह पुरुष प्रधान समाज जो स्त्रियों के ऊपर जूल्म आदि करते हैं के प्रकरान्तर में रचे गये मिथक हैं। 
   देश में हर जगह अपना अपना कौरु नगर हैं। चाहे रेवा -परेवा वाली राजस्थान का ढोला मारु रा दुहा लोककाव्य हो या सुदूर बंगाल- केरल  में वशीकरण करती  मोहिनी या ६४ जोगिनि हो।
        स्त्री पुरुष के अन्तरसंबंध दोनो के मध्य प्रेम धृणा के नवरस भाव की मुग्धकारी साहित्य व रोचक  वृतान्त तोता मैना से लेकर आधुनिक सिनेमा तक अनेकानेक रहस्य रोमांच से भरा है। गीत कविताए गजल सजल भी आज तक मानव मन की गहराई को सही ढंग से  नाप जोख नही सका है यह प्रक्रिया जारी है। यह कितना दूर्भाग्य और विडंबना  हैं कि मनुष्य   आजतक अपनो  को छोड  दूसरो को रत्ती भर समझ नही सका है। और स्त्री पुरुष आज तक एक दूसरे के लिए पहेली हैं। वैसे ही जातियाँ और समुदाय हैं।
  बाहरहाल  जन विश्वास हैं कि  मंत्रो में शक्ति हैं। नाम साचा पिंड काचा कहे जाते हैं। यह मनोविज्ञान की विषय है। लोककथाओं में जो तिलस्म रहस्य रोंमाच की दुनिया हैं। हर भारतीय बच्चो के दिल दिमाग में दादी नानी दूध की धुट्टी के साथ भर दिए हैं। गांव शहर  का कोई पेड कोई जगह या खंडहर भारतीय  प्रो  डा इंजी वैग्यानिक आदि को उनकी बचपन की उन्ही सीख ( लोक कथाओं और उससे विकसित फिल्म कथा कहानी ) से एकान्त व रात्रि काल में  उन्हें डरावना व भयभीत करते हैं।
    लोकमंत्र साहित्य या भाषा विग्यान के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह यदि लिपिबद्ध हो तो अनेक तरह की न ई जानकारियाँ सामने आएन्गी और जो सम्मोहन कथित  अभिजात्यों ने  संस्कृत में रचे है। उससे कमतर नही होन्गे। 

छत्तीसगढ के कौरु नगर उडियान परिक्षेत्र है यह छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के सीमावर्ती भाग आते है।इस क्षेत्र में प्राचीन बौद्ध संस्कृति के जनजीवन में  सहजयान और साधको सिद्धो मे   ब्रजयान तंत्रयान का  प्रचलन रहा है। सिरपुर में इनसे संदर्भित बुद्ध विहार है।जिनके द्वार पर भट्टप्रहरी  (राज्य के श्रेष्ठ रक्षक )खड़े मुद्रा में शस्त्र धारण किए हुए हैं। 
   उसी के समीपस्थ अनुचर लेखक अनिल भतपहरी हैं जो कि ६ वी सदीं और वर्तमान के साञस्कृतिक  कडियों को जोड़ने कुछ पाने अनुसंधानिक प्रवृत्तियों  के चलते  आते - जाते है।क्योकि ये हमारे पुरखे की गांव  और जन्मभूमि है। जुनवानी और सिरपुर के मध्य महानदी का विशाल पाट है। जब गांव जाते है समय निकाल इन प्राचीन नगरी से अपनी जड़ तलाशने और परिजनों के अन्तरध्वनि सुनने आ जाते है।इनसे सुकून मिलता है। तुरतुरियां मे भिक्षुणियो और योगनियां रहती और मंत्र सिद्धी करती व योग करती प्रकृतिस्थ जीवन जीती।नाजार्जुन गुफा मे अनेक साधक मंत्र जागृत करते । विगत वर्ष यहां आकर दलाई लामा जी आकर ध्यान किए ।
                    अब भी सिरपुर और उनके आसपास का जनजीवन  आवरण बद्ध है  कोई अन्वेषक चाहिए जो यहां की  लोक मे प्रचलित सञस्कृति से प्राचीन संस्कृति का अनावरण कर सकें। 
         जनजीवन में अब अनगिनत मंत्र सूक्त प्रचलन में है और  अलेखन होने के फलस्वरु अब यह धीरे धीरे विलुप्ति के कगार पर है।
      आज से  ४० वर्ष पूर्व जब हमलोग ३-४ में पढ़ते थे तो अमावश और नाग पंचमी मे हमारे बुजुर्ग गांव में‌  धान मींजने जब ब्यारा छोलते( खलिहान तैय्यार करते ) तो उसी जगह हम  बच्चो को अमोल असवा  महंत नंदू नारायण ,भरोस छोटु तनगू बबा  शस्त्र चलाने प्रशिक्षित करते  आखाड़ा  सिखाते और रात्रि  होते तो शोभित और  दयालू सलेनदरा भगेला बबा सहज मंत्र सिखाते है। बड़ो को मारन -उच्चाटन आदि घोर गंभीर मंत्र सिखाकर नाम पान देते ।
      उन मंत्रों मे एक शरीर बांधने मंत्र स्मृत हो रहा है - 
आसन बांधेव सिहासन बांधेव 
आई बांधेव डाई बांधेव 
डायनी के चक्र बांधेव 
सेत गुरु के चलत फिरत 
मरी -मसान बांधेव 
घाट अवधट समसान बांधेव 
बारा ब इला के फेर बांधेव 
मोर गुरु अउ महादेव पारबत्ती के कहे से  
आसन अउ सिंहासन बंधा जा ...
   साहेब गुरु सत्तनाम 
     
       
       मंत्र कितना प्रभावशाली हैं और उनकी क्या उपयोगिता हैं। यह बाद की बात है। असल बात हैं कि जब कोई  साधन नही  पहुच मार्ग नही साप बिच्छू से भरे बीहड जगहों पर इन्हीं साधको चाहे वह बैगा बैद  सिद्ध नाथ योगी जपी तपी हो बेबस व दुखी जनमानस को धैर्य धारण कराया सिखाया उनके आत्मबल को जगाया जीना सिखाया और इतने दूर तक जीवन  यात्रा  के पथ प्रदर्शक रहे ।इन्हें यु खारिज कर दे या विस्मृत कर दे यह कैसे संभव है?

चित्र-१ सिरपुर बौद्ध विहार प्रवेश द्वार में अनिल भट्टप्रहरी
      २-३ तुरतुरिया बुद्ध व  बौद्ध भिक्षुणियां 
       ४ जुनवानी का प्रसिद्ध लीम चौरा जहां  रात्रि में  लोग बैठकर अन्य चर्चा सहित  मंत्र पाठ  भी करते ।
            डा. अनिल भतपहरी/ 9617777514

Friday, March 18, 2022

रामनामियों की विवशताएं ...

#anilbhatpahari 

"रामनामी समाज  की समस्याएं व विवशताएं" 

       सतनामी समाज से  विगत एक सवा सौ साल पूर्व षडयंत्रकारियों के बहकावे से अस्तित्व मान हुए  रामनामी समाज है जो कि सतनाम के जगह रामराम जपते हैं।ये रामराम को निर्गुण सतनाम जैसा ही समझते तो है परन्तु काशी से आए  राम चरित  मानस गुटका के एक प्रचारक जो बांसुरी भी बजाते थे और शिवरीनारायण मठ में रामानंदी सम्प्रदाय के सरंक्षण मे रहकर इस क्षेत्र मे राम नाम का प्रचार किए। उन्होने परसुराम भारद्वाज जी को अपने पक्ष मे किया और राम राम का  प्रचार -प्रसार करने लगे। 

     इस तरह  सतनाम पंथ का तेजी से प्रसार को कुछ हद तक इस परिक्षेत्र में  थाम सा  लिए । अधिकतर रामनामी लोग नवधा और राम चरित गायन मे उन्मत्त हो गये फलस्वरुप सत‌नामियों से वैचारिक मतभेद के चलते रामनामी सम्प्रदाय खड़ा हो गया। इनका केन्द्र शिवरीनारायण ही रहा और  कुछेक ब्लाक तक सीमित रह गये। परन्तु हिन्दूओं से सामाजिक दूरी ज्यो की त्यों नी रही, बल्कि रामनामधारी होने से दूर से पहचाने जाते और प्रताड़ित होने लगे। इस तरह इनके जीवन मे राम राम गुदवाने के बाद भी कोई बदलाव नही आया और न ही आत्मिक शांति मिली न सामाजिक लाभ मिल सका। 
   वर्तमान मे महज 200 के आसपास रामनामी गोदाए लोग है।और यह सम्प्रदाय विलुप्ति के कगार पर हैं। परन्तु राम नाम चादर ओढ़कर प्रायोजित ढ़ग से इन्हे अयोध्यापति रामचंद्र की भक्ति से जोड़कर उनके समय यानि त्रेतायुग से देखे जाने  लगे है और इस तरह इन्हे प्रचारित कर इन्हे संरक्षित करने का भी उपाय जारी हैं। इस समुदाय के कुछेक शातिर लोग केवल रामनामी चादर ओढ़कर धन और पद प्रतिष्ठा के लोभ हेतु इसके आयोजन भजन मेला को संचालित कर रहे है ।बल्कि इनमें वर्चस्व की लड़ाई हेतु अब वर्ष मे दो दो बार भजन मेला लगाने लगे हैं। 
     इन तमाम आयोजनों के बावजूद यह समाज न सतनामियों मे अंगीकृत हो पा रहे है और न ही हिन्दूओं में। शादी ब्याह में और जाति प्रमाण पत्र के लिए भी विकट समस्याओं से जुझ रहे हैं।
           सामाजिक रुप से इस सम्प्रदाय को सतनामी समाज मे समाहार  करने संबंधी अनेक दौर की  बैठकें भी इनके प्रमुख पदाधिकारियों के साथ हो चुका हैं। पर गुरुओं और उनके पदाधिकारियों की सहमति आज पर्यन्त हो नही सका हैं। एक तरह से मामला लंबित सा है पर अब चूंकि धार्मिक बंधन शिथील हो चुके है फलस्वरुप काबिल सतनामी रामनामी अब रिश्तेदारी में बंधते जा रहेहै।
       इनके आचार्य  सूरदास जी ने सार्वजनिक  घोषणा भी किए कि हमलोग जब तक जीवित है, यह मिटेगा नही, तब तक चलेगा। पर आगे यह चलेगा या नही , कुछ कह नही सकते । क्योकि लोग अब राम राम नही गुदवा रहे है लेकिन कुछ शातीर और स्वार्थी लोग रामनामी  कपड़ा पहन खेला कर रहे है उसे कैसे रोक सकते है ? क्योकि उन लोगो देश -विदेश से सहायता मिल रहे हैं।
      उनकी बातों  में सच्चाई और विवशता भी नजर आए। इस तरह की असमंजस की स्थिति विद्यमान हैं।

Wednesday, March 16, 2022

मानव तेरा जय हो विजय हो

"मानव तेरा जय हो "

जय हो सदा मानव का  विजय हो 
ज्ञान विज्ञान की हर तरफ उदय हो 
करोना का यह कैसा  कहर 
वीरान  होते गांव कस्बा शहर 
चहुंओर हो रहे हैं हाहाकार 
स्तब्ध संस्थाएँ  और सरकार 
कोई आयोजन नही न हैं समारोह 
दुबके  अपने घरों में भयभीत लोग 
खाली चलती  बस ,रेल और विमान 
स्कूल कालेज वीरान  थिएटर और उद्यान
लगता हैं छिड़ चुका हैं विश्वयुद्ध 
संकट विकट चल गया  भयावह  आयुध
करोड़ों अरबों संपदा  की हो रही क्षति
बचने- बचाने  की कोई नहीं  हैं युक्ति 
ऊपर से प्रकृति का यह कैसा हैं तांडव 
बिन मौसम बरसात  होते विचित्र विप्लव 
फैलते वायरस इससे गुणात्मक‌ रुप‌
अब वर्ड फ्लू  का भी प्रकोप हो रहा संयुक्त 
हो रहे प्रकोप  हर तरफ भयंकर 
मचाए है प्रलय महामारी का रुप धरकर 
भीषण भय फैलाते अफवाहे  चहुं ओर हैं
देव धामी नबी संत गुरु हो रहे कमजोर हैं 
कोई न रहा अब देने मानव को आत्म संबल 
करे प्रार्थना किससे सभी हो रहे हैं निर्बल
मिट रही थी सदियों की अमानवीय प्रथाएँ
भेदभाव अस्पृश्यता जैसी  कुप्रथाएँ 
पुनश्च सजीव कर गई डायन करोना वायरस 
गले-हाथ मिलाकर होंगे कैसे अब हम  समरस  
जीत भी जाय पर भय रहेगी  कायम 
अभिशापित निगोड़ी करोना बेरहम 
क्षय हो तुम्हारा मानवता हो विजयी 
सुन लो अज्ञेय शक्ति अनिल की विनती 
जय हो सदा मानव का विजय हो 
ज्ञान-विज्ञान की हर तरफ उदय हो 
मिले कोई उपाय औषधियाँ विकसित हो टिकाएं
धैर्य  रखे सभी रहन सहन में स्वच्छता अपनाएं 
परस्पर मानव समुदाय रहे आपस में मिलकर 
महामारी से निपटे तृतीय विश्व युद्ध से जीतकर 

-डा.अनिल भतपहरी /9617777514

Tuesday, March 15, 2022

दृष्टिकोण

दृष्टिकोण -

भूख -स्वाद एंव  मत -पंथ यह दोनो अलग -अलग चीजें हैं  परन्तु अनावश्यक ढ़ग से  इसे एक -दूसरे से जोड़कर देखने की अजीब परिपाटी विकसित हैं। व्रत, उपवास  आदि कर भूखे  रहकर ही धार्मिक होने का भ्रम फैला हुआ है। यदि यह सच है या हो सकता है,तो  देश में करोड़ो रोज फाके में जी रहे हैं फिर उन मजलूमों से बड़ा धार्मिक कौन होगा? 
            बहरहाल  अन्न त्याग या उपवास है तब ही धार्मिक व आस्था वान हैं। यदि भूख  बर्दाश्त नहीं सकते तो समझो आप धार्मिक नही, आस्थावान नही । बल्कि अधार्मिक और अनास्था के हिमायती हो ।इसी प्रकार यदि  मांसाहारी हो तो कुछ पंथ / धर्म के हिसाब से  पक्का पापी हो और नरकगामी हो। इस तरह से देखें तो जब तक आप भूखे हैं, उपवास व्रत रखे है तब तक धार्मिक है और जब छक कर खा -पी रहे हैं तो आप भक्त नही हो सकते   ।
   इसी तरह मांसाहारी या व्यसनी व्यक्ति अपना गर्दन काट कर रख दे तब भी वह कुछ मत पंथ के हिसाब  सच्चा  धार्मिक नही ।   और  जो मांसाहारी व व्यसनी है, बलि और कुर्बानी हर वर्ष बिना नागा किए  देते हैं।  तभी वह परम भक्त व प्यारे दुलारे  है ऐसी भी मान्यताएं है।
   इस तरह देखे तो बड़ा अजीबोगरीब रीति मत प्रणाली का प्रचलन धर्म पंथ मत में चल रहा है। दूसरी ओर स्वाद  ऐच्छिक आनंद  और रुचि का विषय है।यह कतई  सार्वजनिक मत पंथ के अनुरुप हो नहीं सकते । ऐसा कहने व तर्क करने वाले इन धार्मिक पदाधिकारियों और उनके नियम अधिनियम की धज्जियां उड़ाने वाले काफिर व  नास्तिक मूर्ख और दुष्ट हैं। पृथ्वी पर भार हैं।  
        व्यवस्था के लिए प्रणेता या  प्रबंधक नियम आदि बनाते हैं। पर नियम आदि स्वच्छंद मनोवृत्ति वाले मनुष्य को बहुत अधिक प्रभावित नहीं कर सकते ।इसलिए हर पंथ मत सम्प्रदाय मजहब रिलिजन में सिद्धान्त और लोक व्यवहार में जमीन आसमान का फर्क देखने मिलता हैं। इसके मतलब अनुयाई आस्था वान है या नहीं हैं यह व्यर्थ का प्रलाप हैं। हृदय  मन बुद्धि  की शुचिता और निष्ठा  ही लोककल्याणार्थ पंथों मतों मजहबों के अनुकूल होना चाहिए। जैसा खाए अन्न वैसा बने होवे मन की तुकबंदी भी मुहवारा नुमा लोकप्रिय हैं। इसे परम सत्य मानने या समझने की परिपाटी भी चल पड़ा हैं। 
        दुनिया में लोगों की  भूख मिटाने की कयावद के चलते  हरित क्रांति श्वेत क्रंति  आदि चल पड़ा फलस्वरुप अनाज  सब्जियां पशु पक्षी मछलियाँ झिंगा आदि का बम्फर पैदावर और सहज -सुलभ उपलब्धता हेतु विपणन व्यवस्था किए जा रहे हैं। इन सबके लिए अलग मंत्रालय और पुरी अमला हैं। इन जगहों पर काम करने वाले भी हमारे उपदेशकों व धार्मिक ग्रंथों के अनुसार दो नावों में सवार शाकाहार का पालन करते शराब उत्पाद / खपत बढाने व  मत्स्याखेट कराने,  पोल्ट्री  बकरे सुअर पालन व्यवसाय को सफल करने  पूजा पाठ करते अपने अराध्य के समक्ष मिन्नत मांगते नजर आते हैं। 

      लेखक को उड़ीसा के चंद्रभागा तट पर मछुवारों की बस्ती में स्थित शिव मंदिर में नित्य भाग गांजा शराब पीकर उन्मत्त मछुवारों की खंजेरी भजन और पहिली खेप की मछलियाँ सर पर औरतों को ताजी मछलियाँ धान की बालियां सदृश्य अपने अराध्य में श्रद्धापूर्वक ‌  चढ़ाती दर्शन हुआ हैं।
                  ऐसे में  कट्टरपंथी धार्मिक संगठन पदाधिकारियों  व भक्त जनों  की महफिल व उनकी सत्संग- प्रवचन  ,भाव -भजन , जुलूस- शोभायात्रा आदि से अधिक धार्मिक व आध्यात्मिक वातावरण मुझे कर्मरत  आम जन जीवन में जो परस्पर प्रेम भाव से जीवन यापन कर रहे हैं में झलकता हैं। 
        -डा. अनिल भतपहरी , 9617777514

Saturday, March 12, 2022

युद्ध के ख़िलाफ बुद्ध

#anilbhatpahari 

युद्ध के खिलाफ़ बुद्ध 

 
राज्य व राष्ट्र के लिए 
लड़ते राजाओं/राष्ट्राध्यक्षों  
सुनो तुम्हारा वार 
महज वहशीयाना हैं
विकट नरसंहार 
केवल कायराना हैं
लड़ो इन्हें बसाने 
न कि उजाड़ने 
मनुष्य न रहे तो 
निर्जन राज्य / राष्ट्र 
केवल टुकडे हैं भूमि के 
बनता हैं राष्ट्र 
सुखी समृद्ध जनों से
क्योंकि जमीन से 
मूल्यवान हैं जीवन  
दारुण दु:खों से 
लड़ते हुए बुद्ध 
होते ख़िलाफ युद्ध 

  -डा. अनिल भतपहरी

Saturday, March 5, 2022

जय जोगी

।।जय जोगी ।।

माटी के बेटा जोगी तय हर 
खा के गोटी माटी 
बगराये जन जन म 
मया के हीरा मोती  
गंगा अमली के बीजा अरझगे
घेंच मं होगे ओखी खोखी 
कलपय लाखो‌ं नर‌ नारी 
रोवय धर धर छत्तीसगढ़ महतारी...
 
गांव गवई जंगल ले निकले 
 बनके तय ह हीरा 
चिन्हे तय जम्मों मनखे मनके 
 दु: ख अउ पीरा 
पोछे आंसू गरीबन के गुनवंता हस भारी ...

बने तय कप्तान कलेक्टर 
सांसद अउ मुखमंत्री 
गरब न गुमान चिटिक तोर 
तय गरीबन के संगी 
जोर जुलुम बर टकराये बनके खाटी लोहाटी ...

तपोये तन मन ल करे 
पढ लिख के तप ल भारी  
अव्वल रहे सदा तय हर 
देखे किंदर दुनिया सारी  
मनवाए लोहा अचरुज देखे सब नर नारी ...

जय जोगी जय जोगी जय जोगी 
तोर परताप अचरुज हे  तोर  महिमा हे भारी ....

इस श्रद्धांजलि गीत को श्रवण करने निम्न लिंक को‌ टच कीजिए...
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1585424468279394&id=100004355672502

   डा. अनिल भतपहरी/ 9617777514

Tuesday, March 1, 2022

युद्ध

#anilbhatpahari 

 ।।युद्ध ।‌।

हम सभी लड़ तो रहें हैं
परस्पर एक-दूसरे से
विचारों और मान्यताओं 
के लिए तो कभी रोजी-रोटी 
और मान- सम्मान के लिए 
देश -राज के साथ- साथ  
मन बुद्धि के लिए 
तब दो देशों का लड़ना 
कितना  बुरा हैं? 
इनकी  सरहदों के मध्य 
कितना धुंध कोहरा हैं?
महामारी से लड़ते हुए 
बेबस जन को बचाना है 
न कि निरीह मानवता को 
सरहदों के वास्ते कुचलना है 
अगर मनुष्य न रहे तो
काहे और कैसा देश 
असल मे राष्ट्र  बहाना है 
ये तथाकथित लड़ाके 
गर लड़े भ्रष्टाचार गरीबी से 
गैरों से नही करीबी से 
धर्म जाति की कुचक्र से 
नशे की दुष्चक्र से 
तभी बहादुरी है 
अन्यथा गोले बारुद से 
नीरिह जनता को 
यांत्रिक शक्ति से मारना 
सिवाय कायरता के कुछ नही हैं
यह केवल नरसंहार है 
क्रूर सामूहिक हत्या है 
वर्चस्व के लिए केवल सडयंत्र है 
छद्म सफलता के कुत्सित तंत्र हैं 
सत्ता के लिए ही आयुध हैं
वह जो सत्ता को समझे तुच्छ
युद्ध के खिलाफ़ होते बुद्ध 
बल है यदि और कुछ करना है  
मन करता है  युद्ध लड़ना ही है 
तो लड़ो व्याप्त  अनेक संताप से 
शोषण जुल्म और घृणित पाप से 
जीतों उन्हे और बनो विजेता 
धन्य तुम और पुरी मानवता 
लिखी जाएगी युगों तक कविता...

       -डा. अनिल भतपहरी