Sunday, January 9, 2022

शांत छत्तीसगढ़ को अशांति का बीजारोपण

#anilbhatphari 

।शांत छत्तीसगढ़ में अशांति का बीजारोपण ।।

छत्तीसगढ़ शांति व सौख्य की भूमि हैं। अनादिकाल से  जनजीवन श्रमण व सत संस्कृति का संवाहक हैं। लोग कर्मवादी है और" अपन भरोसा तीन परोसा खाकर " कृषि व  वनोत्पाद से संतुष्ट संतों- गुरुओं की सीख से सुखमय जीवन -निर्वाह करते आ रहे हैं। गाँवों में अनेक जातियाँ निवास करती हैं पर उनमें एक आत्मीय भाव भरे हुए होते हैं। परस्पर मीत- मितानी  आदि से भाई ,दीदी  कका- ममा आदि स्नेहिल रिश्तों से बंधे हुए होते हैं। क्योंकि उन्हें पता हैं संबंधों   की‌ शक्ति  ही सहयोग करते हैं। कोई ऊपरी या बाहरी शक्ति नहीं जो प्रत्यक्ष लाभ दे सकें। इस बात को बहुत ही सहज -सरल ढंग  हमारे गुरुओं संतों ने समझा दिए हैं।
     आजादी के आसपास पर प्रांतिकों के पलायन कर आगमन  और उनकी अपनी अपनी मान्यताए तथा अपने प्रभाव आदि के लिए अनेक सडयंत्रों से यहां जातिय दुराव और सांस्कृतिक विभेद की नींव पड़ी। इन सबके  बावजूद  ग्राम्य अंचल में तीज -त्यौहार में सभी उत्साह पूर्वक भाग लेते आ रहे हैं। और किसी पेड़ की टहनियों में अनेक घोसलें बनाकर जैसे पंछी बसेरा करते हैं। ठीक गांव ऐसे ही आबाद रहा है।  यहाँ बहुसंख्यक ७५-८०%  जनता सगुण परंपरा के  बहुदेव वाद ,प्रतीक -मूर्ति पूजा के साथ- साथ करीब २०-२५%  जनता निर्गुण पंरपरा के संवाहक है महात्मा कबीर व गुरुघासीदास का बेहद प्रभाव जनजीवन में विद्यमान हैं। इस तरह देखे तो छत्तीसगढ़ की आम जन जीवन सगुण- निर्गुण धारा में आबद्ध  साकार व निराकारोपसक हैं।  सगुण- निगुण नही कछु भेदा कह कर बेहतरीन समवन्य भी हमारे संतो ने किया हैं। 
    और एक- दूसरे की मान्यताओं आस्थाओं पर कोई हस्तक्षेप नहीं बल्कि सम्मान प्रकट करते आ रहे हैं।परन्तु  विगत कुछ वर्षों से प्रायोजित ढंग से निर्गुणोंपासक सतनाम पंथ  के धार्मिक स्थलों पर अतिक्रमण आदि आरोपित कर किताबों ,पत्र -पत्रिकाओं, व्याख्यानों में तथ्य हीन बातें लिख- बोलकर शांत छत्तीसगढ़ को उद्वेलित करने की नापाक  कोशिशें जारी हैं।यह घटना सामाजिक कम राजनैतिक अधिक  नजर आते हैं। 
      समय रहते इनका निदान आवश्यक हैं। अन्यथा इस तरह की  चिंगारी दावानल में कब  तब्दील हो  जाय ?कह नहीं सकते क्योंकि यह आस्था का मामला हैं।  लोग बड़ा- छोटा दिखाने प्रतिभा और विकास की ओर न जाकर शार्टकट धर्म- जाति पंथ की मान्यता रीति- नीति  पर आ जाते हैं।  और गाहे -बगाहे इन्हे छेड़कर महौल को अशांत व उद्वेलित करते हैं ,ताकि आगे चलकर मौके का फायदा उठाया जा सके । यही निकृष्ट मानसिकता के चलते ऐसे धटनाएं जानबूझकर किए जाते हैं। इनकी सुक्ष्म व निष्पक्ष  जांच कर इनके तह में कौन सी छद्म शक्ति काम करती हैं। उनका पर्दाफा़श व उन्मूलन  शासन- प्रशासन को करना चाहिए । घटना छोटी हैं ऐसा समझकर नजर अंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि घटनाएँ तो घटनाएं ही होते हैं। प्रचार तंत्र और मीडिया उन्हें जरुर छोटे बडे रुप देते हैं यह अलग बात है।
        वैसे  इस तरह की घटना के दोषी लोग  सहज ही चिन्हाकित भी होते हैं ,चंद मोहरे व गुर्गों की गिरफ्तारियां भी होती हैं।पर  जो  इनके असल मास्टर माइंड है उस तह तक  अनन्यान कारणों नहीं पहुँच पाते। इसके  चलते दोषियों को  कठोर सजा नहीं  होते फलस्वरुप  क्षतिपूर्ति  या कई छद्म सलाह व मौकापरस्त समझौते आदि  के कारण माफीनामा  आदि से मामले जरुर कुछेक माह या वर्ष के लिए दब सा जाते हैं। पर वह कहीं न कहीं पर  पुनश्च प्रकट हो जाते हैं। ऐसा करके विराट जन समुदाय मनोबल गिराने का  अप्रत्याशित कार्य और वोट या मत ध्रुवीकरण की राजनैतिक सडयंत्र भी प्रायः किए जाते हैं। प्रयोगवादी संस्थान इस तरह के नये नये हथकंडे अपना समाज का रुख जानने का प्रयोग करते हैं। देश या सामाज सेवा के नाम पर गठित दलें व संस्थान  इस तरह लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर इन  "आस्था की  स्थल को प्रयोगशाला बना रहे हैं"  जो कि बेहद  निन्दनीय है और चिन्तनीय है। इनसे न समाज का भला होगा न देश का । बल्कि कुछ दलों के लोगों को आक्रोशित और उन्मादित  लोगों का समर्थन जरुर मिल सकता हैं। पर ऐसे समर्थन से सत्ता हासिल  नही होगी अगर खुदा न खास्ता हो भी ग ई तो   ऐसी सत्ता से जनकल्याण  हो ही नहीं सकता। शांत छत्तीसगढ़ में अशांति का बीजारोपण कर नफरत -द्वेष का  फसल उगाने की नापाक कोशिशे हो रही हैं।  इन पर त्वरित प्रभावी नियंत्रण होना चाहिए। 
    बस्तर की नीरिह व साधनहीन  आदिवासी समुदाय जल जमीन जंगल के नाम पर आंदोलित ‌भटकने लगे हैं। कही वही परिस्थितियाँ यहां न पनप जाय इन पर बहुत ही गंभीरतापूर्वक विचार करते निर्णय लेना होगा। 
     बहरहाल चिंगारियां  आपस में सटे एक ही प्रजाति के वृक्षों की टहनियों के परस्पर रगड़ से भी निकलती हैं उन चिंगारी से जंगल जल कर खाक हो जाते  हैं। इसलिए चाहिए कि उनका  तत्क्षण उचित ढंग से शमन कर दिया जाय ... अन्यथा सिवाय पश्चाताप के कुछ नहीं बचा रहेगा ?

-डाॅ. अनिल भतपहरी

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