छत्तीसगढ़ी लघु कथा
।।संस्कार ।।
सोपा परत साटीदार गांव भर म हांका पारिस -" गौटिया बीत गंय काली बिहनियां आगी- पानी बंद काम -बुता बंद ।"
तरिया पार म ओकर किरिया करम के बाद ही पानी- कांजी भराही चुल्हा म आगी बरही हो SSS ...
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नेवतहार मन रतिहच निकलगे रहिन रहिन ...चारो -खुंट बगरे सगा मन कना संदेश देय बर ।
ओकर छोटे बेटा लंका दुरिहा सहर म रहिथे ओकर आत ले मंझन हो जही । तब तक ये नान नान छौना मन लाघन भुखन मरही ...का गत होही ... परमात्मा जानय !
परछी म बइठे सियनहीन हर गुनत ही नही भलुक दबे सुर म अपन बहुरिया मन ल कहत तको हवय ...ए काय निपोर नीत -रीत हवय । बीत गे तउन बीत गय रोवै -गावै मुरख गंवार ... नान्हे लरिका मन करलइ देखे नी जा सकय ।
ताना मारत बहुरिया हर कहिस - "तुहिच ल हाही आय हवय ... लरिका मन ल नही तहीच कलबलाबे ते पाय के बिचारा गौटिया ल सरापत हस !
अरे का के बिचारा ? बड़ सचारा रहिस टुरा मुड़गिरा हर .. अबड़ लाहो लेय रहिस । जवानी म बड़ अतलंग करय लंगरा हर!
रोगहा ल कब के नरक पहुंच जाना रहिस । अपन बरवट म बड़ डोला उतरवाय अउ दुल्हिन मन के मुंह दिखौनी के ओड़हर ले के का -का जुलुम नइ करय मुंहझउसा हर ? आज तो बमकेच ल धर लिन ... लोगन मरनी म करनी ल सोरियाथे जेकर ज इसन रहि ओसनेच तो गिनाही ।
काय आंय- बाय कहिथस दाई! " ओहर तो बड़ धर्मी चोला रहिन रमैन भागवत अउ साधु संत के सञगत म दिन बितावय धर्मनिष्ठ महात्मा रहिन। " सग ओकर बेटा जोन डग - डग ले देखे रहिन ओला फरियाइन ।
बड़ आए .. महात्मा रहिन ...संउहात राक्षस रहिस ! अपजस ल जस करत बदजात ए लोक ल बिगार के परलोक सुधारे के उदिम म लगे रहिन। साहेब छाहित हे सब ल देखत हे।
जम्मा करतुत जानत हन तभेच कहत हन ! इहां खटिया म पच के नरक भोग के गइस ,ओकर जस -गुन गाय के जरुरत निये। बार बहुरिया चुल्हा अउ चहा -पानी डबका ।
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गौटिया के जम्मा सगा- सोदर आइन ... गांव भर के मन काठी- माटी देइन । ओकर जबर जग -मांदी होइस । जात - बिजात जम्मो ल कच्चा - पक्का खवाय गिस ... चलानी चौका हंसा गवन अउ गरुड़ पुरान होइस मंगन भाट मन जस -पचरा गाइन अउ तरिया पार म मठ -मंदिर बनाइन ...!
कलमुंही अउ दोखही डोकरी काही कहय फेर रमेसर कका हर सोरा आना सही कहिस - "पखरा म बंदन बुके अउ मनखे मर के देवता लहुट जथे ,भलुक लहुटा दे जथे।" इही हर इंहा के संस्कार ये । तेकरे सेती बिश्व गुरु बने के सपना मनखे मन मंच माइक के आघु म ठाढ़े- ठाढ़े देखत अउ देखात रहिथे।... फेर बिन सुते कब नींद परही अउ नींद म ही सही सपना कब आही मितान ?
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