Thursday, January 20, 2022

संस्कार

छत्तीसगढ़ी लघु कथा 
।।संस्कार ।।

          सोपा परत साटीदार गांव भर म हांका पारिस -" गौटिया बीत गंय काली बिहनियां आगी- पानी बंद काम‌ -बुता बंद ।" 
      तरिया पार म ओकर किरिया करम के बाद ही पानी- कांजी भराही चुल्हा म आगी बरही  हो SSS ...

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   नेवतहार मन  रतिहच निकलगे रहिन  रहिन ...चारो -खुंट बगरे सगा मन कना संदेश देय बर । 
       ओकर छोटे बेटा लंका दुरिहा सहर म रहिथे ओकर आत ले मंझन हो जही ।  तब तक ये नान नान छौना मन लाघन भुखन मरही ...का गत  होही ... परमात्मा जानय ! 

     परछी म बइठे सियनहीन हर गुनत  ही नही भलुक दबे सुर म अपन बहुरिया मन ल कहत तको हवय  ...ए काय निपोर  नीत -रीत  हवय । बीत गे तउन बीत गय रोवै -गावै मुरख गंवार  ... नान्हे लरिका मन करलइ देखे नी जा सकय ।
     ताना मारत बहुरिया हर कहिस - "तुहिच ल हाही आय हवय ... लरिका  मन ल  नही तहीच कलबलाबे ते पाय के  बिचारा गौटिया ल सरापत हस !
    अरे का के बिचारा ? बड़ सचारा रहिस टुरा मुड़गिरा  हर .. अबड़ लाहो लेय रहिस । जवानी म बड़ अतलंग करय लंगरा हर! 
  रोगहा ल कब के नरक पहुंच जाना रहिस । अपन बरवट म बड़ डोला उतरवाय अउ दुल्हिन मन के मुंह दिखौनी के ओड़हर ले के का -का जुलुम नइ करय मुंहझउसा हर ? आज तो बमकेच ल धर लिन ... लोगन मरनी म करनी  ल सोरियाथे  जेकर ज इसन रहि ओसनेच तो गिनाही ।
     काय आंय- बाय कहिथस दाई!  " ओहर तो बड़ धर्मी चोला रहिन रमैन भागवत अउ साधु संत के सञगत म दिन बितावय धर्मनिष्ठ महात्मा रहिन। " सग ओकर बेटा जोन डग - डग ले  देखे रहिन ओला फरियाइन ।
 
   बड़ आए .. महात्मा रहिन  ...संउहात राक्षस रहिस ! अपजस ल जस करत  बदजात  ए लोक ल बिगार के परलोक सुधारे के उदिम म लगे रहिन। साहेब छाहित हे सब ल देखत हे।

   जम्मा करतुत जानत हन तभेच कहत हन ! इहां  खटिया म पच के नरक भोग के गइस ,ओकर जस -गुन गाय के जरुरत निये।  बार बहुरिया चुल्हा अउ चहा -पानी  डबका ।
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        गौटिया के जम्मा सगा- सोदर आइन ... गांव भर के मन काठी- माटी देइन । ओकर जबर जग -मांदी होइस । जात - बिजात जम्मो ल कच्चा - पक्का खवाय गिस ... चलानी चौका हंसा गवन अउ गरुड़ पुरान होइस मंगन भाट मन जस -पचरा गाइन  अउ तरिया पार म मठ -मंदिर बनाइन ...!
    कलमुंही अउ दोखही डोकरी काही कहय फेर रमेसर कका हर  सोरा आना सही कहिस - "पखरा म बंदन बुके अउ मनखे  मर के देवता लहुट जथे ,भलुक लहुटा दे जथे।" इही हर इंहा के संस्कार ये । तेकरे सेती  बिश्व गुरु बने के सपना मनखे मन मंच माइक के आघु म ठाढ़े- ठाढ़े देखत अउ देखात रहिथे।... फेर बिन सुते कब नींद परही अउ नींद म ही सही  सपना  कब आही मितान ?

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