Monday, January 24, 2022

गुरु अम्मरदास

गुरु अम्मरदास 

 गुरुघासीदास के ज्येष्ठ पुत्र है।वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे तथा ध्यान योग समाधि में निष्णान्त थे।
    गुरुघासीदास के अमृतवाणी उपदेश और सतनाम- दर्शन को जनमानस में पंथी गीत व मंगल भजन के रुप मे लयात्मक रुप देकर जनमानस के कंठाहार बनाए। 
   जनश्रुति है कि वे सतनाम पंथ के प्रचार हेतु शिवनाथ नदी के उसपार अपने ससुराल प्रतापपुर  परिछेत्र  सफेद रंग के  हंसालीली घोड़ा से जा रहे थे।सिमगा से आगे चटुआ धाट के समीप इमली पेड़ के झुरमुट के समीप  वे साधनारत हो गये।उनके दर्शनार्थ आसपास से जनसमूह उमड़ने लगे।
      वे अनुआई को साढ़े तीन दिन की शव समाधि लेने की इच्छा व्यक्त किए और समाधिस्थ हो गये।  चारों ओर से  बेकाबू भीड़ दर्शनार्थ उमड पड़े । सतनामियों की एकजुटता और संगठन से घबराकर कुछ सडयंत्री व द्वेषी जन लोगों में भ्रम फैलाने लगे कि लाश में प्राण नही है और इसमें जीव आ नही सकते ।इसके क्रियाकर्म कर दो । जनमानस भजन कीर्तन करते रहे एक दिन बीत दो दिन बीत शव मे चेतना आई नही ।सतनाम द्वेषी लोग 
लोग भ्रम फैलाते रहे अंतत: तीसरे दिन शव को दफना दिए गये। पर कुछ भक्त वही बैठे शोकमग्न थे।
 साढ़े तीन दिन बाद शाम को  प्राण ज्योति स्वरुप आई शव की चारो ओर परिक्रमा की और शव में सुरंग सा हो गये जलधारा फूट पड़ी । प्रत्यछ दर्शी रोते बिलखते वापस आ गये ।
  यह धटना १८४० को पौष पुर्णिमा को हुआ। गुरुघासीदास भी अपने तेजस्वी पुत्र के वियोग से विह्वल  व अनमना होते रहे ।अंतत: एकान्तवास के लिए प्रयाण कर गये। 
    कलान्तर मे हरिनभठ्ठा के मालगुजार आधारदास सोनवानी जी ने उक्त समाधि स्थल मे १९०२ के आसपास भव्य मंदिर बनवाए ।और शिल्पकार समकालीन समय मे अन्यत्र हिन्दू मंदिरों के अनुशरण करते शिव ब्रम्हा के साथ कुछ विवादस्पद शिल्प बनाए .... जो वर्तमान मे  अप्रसांगिक है।‌ उन्हे हटाने की निरन्तर मांग हो रही है।परन्तु प्रबंधक लोग विरासत और प्राचीन कलाकृति के नाम पर अनिर्णय की स्थिति में है।
         निराकार उपसना में साकार स्वरुप का कोई प्रयोजन नही ।अतएव उचित  निराकरण के लिए सार्थक पहल होनी चाहिए।
     वहां से कुछ दूर ग्राम  किरित पुर मे  जैतखाम के शिखर पर सत्यपुरुष व सत्यावती का शिल्पांकन किए गये है।जो और भी सतनाम संस्कृति में अग्राह्य है। 

             ।‌सतनाम ।।

विडोस एरिया (परिष्कृत )

""विडोस एरिया "

      विडोस एरिया  ये क्या बला  हवे? असना कोनो  नाम होथय ?  कति अंग या ठ उर ल कहे जाथे ? हमन तो पहिली घांव  सुनत हन रे बबा  ? सुकरीत   कोतवाल ह घेरी- बेरी नोटिस के कागज ल अपन सलुखा के खींसा म धरत त निकालत फरियात कहे लगिस ...  नवा पटवारी  कालेज पढे़- लिखे फटफटी म आय -जाय। बोधन मंडल कहत लागय  के बेटा धजादास जोन डी.डी . पटवारी के नाव ले अपन हल्का म जाने जाथे ।सियान कोटवार ल समझावत कहिस .... कोटवार बबा  कलेक्टर साहब हर नवा राजधानी के गांव के पारा मन म जिहां ४-५  बछर म मनखे अकाल मौत मरत गिन हे। कोनो  किडनी, कोनो  लिवर त कोनो हर  कैसर बिमारी  मं । कोनो एक्सीडेन्ट तो कोनो जहरीला शराब पी के,  कोनो चरस अफीस और डरग -अरक म सिरायवत गे हे उकरेच  परिवार ल चिन्हाकित करे बर हांका परवात हे ।
 " का उन मन ल मुयावजा मिलही का पटवारी साहेब?  तीर म कोटवार संग खडे समेदास तिखारत पुछे लगिस ।
डी डी पटवारी कहिथे - अइसे हमला न इ लागत हे । फेर सुने म आत हे विधान सभा म प्रश्न पुछे गिस हबे कि राजधानी एरिया के गांव म धड़ाधड़  मौत -फौत  होने लगा है। आपसी बटवारे और पारिवारिक कलह फैलते जा रहे हैं। उसका कारण क्या? उसे रोकने सरकार प्रभावी कदम उठा रहे हैं या नहीं ?  नवतोम्हा विधायक के पुछे ल विधानसभा सन्न हो गे रहिस .... तेही पाय के कलेक्टर साहेब लमसम जानकारी बर मुनादी करात हे .... कि काकर काकर घर फौत होय हवे। ओकर  जानकारी पंचायत भवन म आके लिखवाहु और कोटवार रजिस्टर म फौत के आगु कारण लिखवाहु। ऐसे हाका परवा देना । कल साढे १० बजे से नाम  एंट्री होना शुरु करेन्गे ।बने हर चौक में खडा होके हांका पार देना । कहिके  डी डी पटवारी हर  आगु गांव डहन मुनादी कराय चल दिन ......
    ‌   
    गियानिक दास हर भुपेन किराना दुकान  तीर  लीम चौरा म  अपन नाती नतनिन ल नड्डा बिस्कुट खवावत 
 बइठे रहिस कि डी डी पटवारी संग अभरेट हो ग इस .... साहेब सतनाम बंदगी होइस त पुछिस- " का हालचाल हे मंडल " .... त अपन मितनहा मंडल बोधन के बेटा डी डी ल देख बेटा के सुरता आगे ..रोनहुत कहे लगिस " बड़ दुःख के गोठ हे पटवारी साहेब  का ला गुठियाबे अउ काकर कना दु: ख ल परियाबे ।बुढ़त काल तीरथ- बरत करत समे बिताबोन कहत कुलकत तसीली जाके खेत के रजिस्ट्री म दसकत दे रहेन । जम्मा रुपया ल सरकार हमर बैंक के खाता म डार दे रहिस अउ एक कारड दे रहीस जरुरत पडे म एकर से मशीन म खुसेर ४० हजार तक के एक दिन म रकम निकाल लेबे ।मय खाता अउ अटीएम कारड ल संदुक म बिज्जक मार धरे रहेंव फेर  का करबे तारा टोर के परबुधिया जीराखन टुरा ल कलेचुप निकाल के रोजेज मंद कुकरी जुआ- चित्ती अउ अपन बाई बर  आनी -बानी के लुगरा सोन- चांदी के जेवर अउ हप्ता हप्ता कती माल टाकिज हवे सनीमा देखे जा -जा के साल दू साल म फूंक डारिस !" पटवारी टकटकी लगा के सुनते रहिगय। 
    ओहर सांस लेवत कहिन - " बरजे न इ मानय ददा !  भलुक अउ सवा सेर अउ एक रात मंद पीए फटफटी म चढे आत रहिस ये नवा राजधानी के सड़क म चलत  रेती -मुरम भराय   हाइवा म चपका के सतलोक सिधार गय ! थप थप आंसु चुहे धर लिस ... हमर त दुनिया उजड गय !  तीर म तोरन कठिवाय  बइठे  सुनत रहिस मुंह उलावत कहिन - "भले गांव उजाड के सरकार महल सिरजात हवे!  आज नाती -नतुरा के पोसई म उमर खपत हे । डोकरी ल असोच लोकवा मार दिन अउ बहुरिया के त उही एक्सीडेन्ट म  एक गोड एक हाथ कटाय खटिया के पुरतीन हे ।" परछी म ढ़रके उन ल एक नजर देखत पटवारी सिहरे असन होगिस ... ओला ओकर म इके न इ भेज देतेव ग ? 
     " समधी बिचारा जतनहु कहिके लेगे रहिस फेर उकर बेटा  बहुरिहा कब तक राखतिस .... एक फटिक के चल दिस ।बपुरी खोली म फफकत परे रथे। मोर त बड़ मरना हवे ... का करव, कइसे करव  कहे नी जाय ? 
        
    ×                          ×                         ×

        सुने म आत हे अब गांव धर ल उजारे जाही .... कोतवाल के काही हाका पारे ल सुन करेजा मुह आ जथे ... सथरा म बइठे कौरा नई उठे  । का होही सतपुरुस साहेब तही जान । कहत बोधन मंडल के तर- तर आंसु बोहा जात हे! 

गियानिक अउ बोधन के दोस्तदारी के बड़ किस्सा रहीस ... दुनो अपन अपन गांव के बडंहर रहीस ।अउ उखर  एकलौता संतान रहीस । दुनो म बेटी -बेटा होतिस त गुरावट जुड़ जतिस ।फेर बेटा मन के बिहाब एके गांव अउ एके लगन म संगे बरात ले के बहुरिया बिहाव के   संउख रहीस । फेर बड़ भगमानी होथय जेखर संउख अउ साध पुर जाथे । छत्तीसगढ़ी मनसे मन त अभागा होथे ।जेकर बेटी ल बोधन अपन धजादास बर जोगें रहिस ओहर मंद के निशा म तरीया म बुड़ के मरगे .... तहां धजादास के बिहाव टलगे अउ पढे बर रायपुर के कालेज म चल दिस । एती मन मार के उही गांव के संत सरुप तोरन के घाद जात- जतुवन बेटी मुंगेसिया के बिहाव उच्छाहित गियानिक मंडल अपन अकलौता बेटा अंजोरदास बर करे रहिस ।फेर अंजोरदास हर काकर भभकौनी म आके अंधियार दास लहुट गय गम न ई मिलिस। अउ एक दिन  मंद -मउहा म चुर   हाइवा म चपका के असमय परलोक सिधार गय‌!  ओकरेच दुनो संतान अउ  अपाहिज पत्नी के नाव सर्वे सूची म लिखवा दिस । चलव कछु आसरा सहारा मिल जाय त जिनगी के गाड़ी अटके हे,  आरा- पुठा छरियाय हे!  तउन सवर जाय अउ फेर ढिचीर- सीचीर  चल परय ! 

नवा कलेक्टर साहेब बड़ दयालु हवे । सुने म आथे उन मन  हमरे सरीख गरीबहा घर ले निकले हवे ..खोरबाहरा ह लीम चौरा म संझा बइठे  लोगन मन ल बताय लगिस कि  उकर बाप हर तको  तड़िहा अउ जंग मंदहा रहिस ।कोड़ोबोड़ो राज के रहोइय्या ये ।ताड़ नरियर के पाना छवाय कुंदरा म रहय अउ ओखर महतारी बपुरी नरियर बगैचा म बनी भूति करय ..एक दिन नडियल पेड़ म चघे ओकर गोस इय्या नशा के चक्कर म  मुड़ भरसा गिर गय . तीन लरिका के महतारी बपुरी के बिपत झन पुछ
कइसे अपन नान नान लरिका ल पोसिस होही सजोर करिस .होही ! .. अउ ओखर बड़े बेटा ल नवोदय स्कूल म भर्ती कराइस ....आज उही ह गरीब -गुरबां  बर देवता बरोबर इंहा  आके सेवा बजात हवे। अउ अलकर म  होय विधवा महिला मन  ल  रोजी- रोजगार देय के उदिम चलावत हे उकर बाल बच्चा मन पढाय बर अवासीय स्कूल खोले जाही ‌।  सरकार सो नवा- नवा प्रस्ताव बनवात हे उकर पुनरवास बर जी जान लगे हवे ... सुने म आत हे कि उनमन बिहाव नइ करे हे ... अउ कोन्हो विधवाच संग  बिहा रचाही ! वेंकटरमन नाव के कलेक्टर ल बिसाहू कहिथे ओकर ददा पुरखा मन बिकट रामायन पढे ग ते पाय के बेंकटरमायन नाव धराए हवय। ओकर अंताज ल कत्कोन झन सच मान लिन । तभे तो अड़ताफ म रमैन पारटी के मिनज्जर  सालिक राम के नवा बहु  मैना के हाथ  मेहदी नइ छुटे रहिस अउ  ओकर सेंदूर पोंछा गय...विधि के बिधान कहिके बिचारी सास ससुर के सेवा बजावत ब इठे हवय।
     गांव के चौरा म सकलाय संझा कन  मनबोधी हर कहिस - " उनमन अतेक करत हे त सबो नास  के जर  मंद मंउहा के नसा हे त सरकार नसा  बंदी  काबर नइ करय?"  समारु कथे- सरकार कोन ये?  अरे तय अउ  हम ! वोट डर इय्या ह त सरकार आय पहली चलो हमी बंद करी ।गांव म मंद बेचाय बर बंद हो जाही । हमर बस चले त म उहा पेड ल कटवा के सगोन सराई ओमेर जगो दे। न रहे बांस न बजे बंसरी ।  पुनु  कथे - "ठउका कथस जी । रमेसर फांकत कहिस का ठउका कहिस.?. अरे आजकल गोली के दारु बनथे एक बोतल पानी म २-३ ठिन डार दे जहां धुरिस ते बनगे मंद । फेर अंगुर,
चउर,जवार, बाजारा सबो ल सरो के बनात हे।सरकार धान लेवत हे मंडी मन म सोझ्झे बरसात म सरोवत  राखे रहिथे  जानबुझ के  ताकि सरहा हे कहिके सराब कारखाना वाले ल बेचे जा सके। 
बने कहत हस जी हमु सुने हन मनबोधी फाकत कहिस -" उही सरहा मन के मंद बनत हे उन्ना के दुन्ना कमात हे । पुरा सरकारी कारज अउ  करमचारी के तनखा मंद के प इसा से पुरोहवत हे ।सरकार कम चतुरा निये ए हाथ म ले ओ हाथ म दे ।" 
  मंद कभु बंद नी होय ... तीज -तिहार देव -धामी सबो जगा म ओ बियाप गे हवे ।जंगलिहा मन ल २-३ बोतल म उहा मंद  राखे के सरकारी परमिसन हे ।
     आजकल तो सरकारे बेचत हे दवा नइये राशन माटी तेल नइ हे फेर डराम के डराम मंद ह गांव- गांव म गंगा बोहात हे बोरिंग कस पानी ।
       हव जी आजकल बोरिंग अउ खरंजा का बनिन गांव मन नरक लहुटगिन अब घर- घर शौचालय बनवा के ये नरक ल रौरव नरक बनवाय के उदिम करे जात हे।पंडित बबा हर सरकारी योजना अउ ओकर आधा- अधुरा पन ल देख अगिया बैताल होत कहत रहिथे । ओखर बात सिरतोन आय ।या तो जैसे हे चलन दे अउ जब नवा -नवा करना हे त पुरा करो ये नहीं कि अन्ते तन्ते आधा -अधुरा करके बनाय के चक्कर जोन हवे तहु ल बिगाड़ देय जाय।
   कच्चा बने शौचालय मन  के दुर्गंध ले गांव के गली- चौरा म बइठे नई जा सकय ।मार नाक नइ ठहरे । बिना नाली निकास नलजल के येहर बास अउ बैमारी के घर बनत जात हे । गांव म मच्छर नोहर रहिस अब ओकर कारखाना खुलगे हवय।

×                        ×                       × 

  सालिक मनिज्जर के बरवट म पाटा राहय तेमा ब इठ उनमन रमैन भजन कीर्तन के तालिम करय । ओही पाटा म कलेक्टर साहब तहसीलदार  पटवारी कोटवार अउ साहेब मन संग बैठ के सर्वे करावय योजना बनावय । सालिक के कहना म  मैना हर   उन ल चहा पानी देवय।  
एकाध बार मुंह उचा के वेंकटरमन हर उन देखिस ... न इये उन अपन काम म बिधुन रहय ... चहा पानी देत मैना तको उन ल कनेखी देख लय ... । 

        कुछेक महिना बीत गय  कलेक्टर साहब के रिपोर्ट के सौपते सरकार  प्रस्ताव पास करवा के कानून बनवाइस ! नशा अउ  दुर्घटना के शिकार लोगों  के विधवाओ और उनके बच्चों के संरक्षण हेतु   सरकार "विधवापुनर्वास योजना "नवा रायपुर म लागू करेगें ।
     इस योजना में  ईच्छानुसार  पुनर्विवाह करके घर बसाय के प्रावधान तको हवे।
         दुसर बिहाव वाले बात म बड़ हो हल्ला होय लगिस ....फेर सासाबेगी अइसन थोरेच होही ? छाती वाला चाही एकर उबार करे बर ।फेर कोनो- कोनो भागमानी अउ धर्मी चोला होइ जथे ।
          एसो सरकारी सामुहिक बिहाव म पाच जोडा विधवा विवाह होइस । कलेक्टर साहेब खुदे दुल्हा बनिन  .अउ मैना दुल्हिन ..त कत्कोन झन के आस के पंछी सरग म उड़े धरलिस .....स्व सहायता महिला समूह सहित नारी सशक्तिकरण के योजना बने लगिस.....सरकारी सहायता से अ इलाय नार उल्होय लगिस
    अइ से लगत हे कि विडोस एरिया के दिन अब बहुरही ....
        डा अनिल भतपहरी/ 9617777514 
       सत श्री उंजियार सदन  सेन्ट जोसेफ टाऊन अमलीडीह रायपुर

Thursday, January 20, 2022

संस्कार

छत्तीसगढ़ी लघु कथा 
।।संस्कार ।।

          सोपा परत साटीदार गांव भर म हांका पारिस -" गौटिया बीत गंय काली बिहनियां आगी- पानी बंद काम‌ -बुता बंद ।" 
      तरिया पार म ओकर किरिया करम के बाद ही पानी- कांजी भराही चुल्हा म आगी बरही  हो SSS ...

*                  *          ‌‌‌‌‌        *
   नेवतहार मन  रतिहच निकलगे रहिन  रहिन ...चारो -खुंट बगरे सगा मन कना संदेश देय बर । 
       ओकर छोटे बेटा लंका दुरिहा सहर म रहिथे ओकर आत ले मंझन हो जही ।  तब तक ये नान नान छौना मन लाघन भुखन मरही ...का गत  होही ... परमात्मा जानय ! 

     परछी म बइठे सियनहीन हर गुनत  ही नही भलुक दबे सुर म अपन बहुरिया मन ल कहत तको हवय  ...ए काय निपोर  नीत -रीत  हवय । बीत गे तउन बीत गय रोवै -गावै मुरख गंवार  ... नान्हे लरिका मन करलइ देखे नी जा सकय ।
     ताना मारत बहुरिया हर कहिस - "तुहिच ल हाही आय हवय ... लरिका  मन ल  नही तहीच कलबलाबे ते पाय के  बिचारा गौटिया ल सरापत हस !
    अरे का के बिचारा ? बड़ सचारा रहिस टुरा मुड़गिरा  हर .. अबड़ लाहो लेय रहिस । जवानी म बड़ अतलंग करय लंगरा हर! 
  रोगहा ल कब के नरक पहुंच जाना रहिस । अपन बरवट म बड़ डोला उतरवाय अउ दुल्हिन मन के मुंह दिखौनी के ओड़हर ले के का -का जुलुम नइ करय मुंहझउसा हर ? आज तो बमकेच ल धर लिन ... लोगन मरनी म करनी  ल सोरियाथे  जेकर ज इसन रहि ओसनेच तो गिनाही ।
     काय आंय- बाय कहिथस दाई!  " ओहर तो बड़ धर्मी चोला रहिन रमैन भागवत अउ साधु संत के सञगत म दिन बितावय धर्मनिष्ठ महात्मा रहिन। " सग ओकर बेटा जोन डग - डग ले  देखे रहिन ओला फरियाइन ।
 
   बड़ आए .. महात्मा रहिन  ...संउहात राक्षस रहिस ! अपजस ल जस करत  बदजात  ए लोक ल बिगार के परलोक सुधारे के उदिम म लगे रहिन। साहेब छाहित हे सब ल देखत हे।

   जम्मा करतुत जानत हन तभेच कहत हन ! इहां  खटिया म पच के नरक भोग के गइस ,ओकर जस -गुन गाय के जरुरत निये।  बार बहुरिया चुल्हा अउ चहा -पानी  डबका ।
   *                  *                *
        गौटिया के जम्मा सगा- सोदर आइन ... गांव भर के मन काठी- माटी देइन । ओकर जबर जग -मांदी होइस । जात - बिजात जम्मो ल कच्चा - पक्का खवाय गिस ... चलानी चौका हंसा गवन अउ गरुड़ पुरान होइस मंगन भाट मन जस -पचरा गाइन  अउ तरिया पार म मठ -मंदिर बनाइन ...!
    कलमुंही अउ दोखही डोकरी काही कहय फेर रमेसर कका हर  सोरा आना सही कहिस - "पखरा म बंदन बुके अउ मनखे  मर के देवता लहुट जथे ,भलुक लहुटा दे जथे।" इही हर इंहा के संस्कार ये । तेकरे सेती  बिश्व गुरु बने के सपना मनखे मन मंच माइक के आघु म ठाढ़े- ठाढ़े देखत अउ देखात रहिथे।... फेर बिन सुते कब नींद परही अउ नींद म ही सही  सपना  कब आही मितान ?

Sunday, January 16, 2022

श्रेय: श्रेया यानि छेरछेरा पर्व


#anilbhatpahari 

श्रेय:श्रेया: पर्व अर्थात छेरछरा तिहार 
      
बौद्ध धम्म  के महायान का महापर्व श्रेय:श्रेया: पर्व जिसे छत्तीसगढ़ में  "छेरछेरा" कहते हैं।  राजकुमार  सिद्धार्थ बुद्धत्व प्राप्ति के बाद  पौष पूर्णिमा  को  भिक्षाटन करते दान लिए और दाता को श्रेय: श्रेय: कह उनकी मंगलकामनाएं की।उन्हे स्मृत करने यह महापर्व का आयोजन विगत ढाई हजार वर्षों से अनवरत चला आ रहा हैं। इस पर्व में सभी दान लेने और देने वाले हो परस्पर एक दूसरे का मंगल कामनाएं करते है। यह समानता स्थापित करने  तथा जाने -अनजाने में अभिमान / दर्प  हरण का महापर्व है।
   दक्षिण कौशल की राजधानी सिरपुर  महायान शाखा के प्रमुख केन्द्र थे यहाँ उनके  प्रवर्तक नागार्जुन व आनंद प्रभु द्वारा संचालित विश्वविद्यालय से प्रतिवर्ष प्रबुद्ध वर्ग निकल कर समाज को संचालित किया करते थे।
आज भी सिरपुर के इर्द गिर्द बसे जनमानस छेरछेरा के दिन सिरपुर जाकर उन आश्रय चैत्य विहार मठ मंदिरों के  प्रस्तर प्रतिमाओं  में कच्चा चावल समर्पित कर अपनी दानवृत्ति को प्रदर्शित करते श्रेयवान हो कृतार्थ होते है।
मानव जीवन के लिए  अत्यावश्यक अन्नदान का यह पर्व सतनाम संस्कृति में गुरु अम्मरदास का समाधिस्थ होकर जनमानस के कल्याण हेतु आत्मसमर्पण का भी महोत्सव  हैं।जिनके स्मृति में समाधि स्थल शिवनाथ नदी के तट सिमगा के समीप चटुआधाट  एंव रायपुर के समीप बराडेरा धाम में प्रतिवर्ष भव्य मेला लगते हैं। जहाँ  लाखों श्रद्धालू गण  आकर श्रेयवान होते हैं। 
    भारत में आजादी के बाद मिथकीय ईश्वरोन्मुख  भाग्य भगवान संस्कृति के समानान्तर यथार्थ में श्रम व परस्पर सहयोग वाली प्रवृत्ति वाले अनेक पंथ मत वाली समुदाय जो गुरुमुखी संस्कृति वाले रहे है के प्रति सदियों से  उपेक्षा   और द्वेष भाव व तिरस्कार रहा  डा अम्बेडकर के पुरुषार्थ व  सद्प्रयास से पुनश्च बौद्ध ( सत्व ) धम्म का प्रवर्तन हुआ। और इसी  सत्व ( बौद्ध ) धम्म से ही  विकसित  अनेक ज्ञान व निर्गुण  संत मत पंथ के अनुयाई अपनी खोई हुई वैभव मान प्रतिष्ठा अर्जित करने प्रयासरत हैं। इसी कडी में बौद्ध नगरी में अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध ( सत्व)  महोत्सव का आयोजन स्तुत्य प्रयास है। 

    ।।सच्चनाम सत्थनाम  सतनाम सत्यनाम सतिनाम सत्तनाम शतनाम सत श्री सतनाम ।।

Saturday, January 15, 2022

फूल म तितली बादर म बिजली




2.युगल गीत 

b.
तोर बिन कुलुप हे   जिनगी ,बगरा दे मया के अंजोर 
आजा रे मोहिनी देखे बिन, नयना तरसे मोर ...
g.
तोर बिन कुलुप हे जिनगी,बगरा दे मया के अंजोर 
आजा ग मोहना देखे बिन नयना तरसे मोर ...

मया हे त जिनगी हे अउ जिनगी  म मया 
बिन मया के जिनगी होथे अबिरथा 
कइसे -कइसे लागय जियरा उठे मन म हिलोर ...

का जोड़ी जोगी बनगे का साधु सन्यासी 
लगथे कोनो सउत परगे मोर होगे फांसी 
कोनो बइरी लिगरी लगा के संग छोड़ादिस मोर ...


2      बीज बौनी गीत 

g बादर गरजे चमके बिजली 
 bआगे असाढ़  बरसे  पानी 

 त ये गा किसान बोये चल धान 
  नांगर ल साज जांगर ल साज 
नांगर ल ...

g बतरकिरी उड़य बादर म धरय  लइका -पिचका 
bबादर के ताल म रे संगी गावय ददरिया मेचका 
त जिनगी संवार भाग सेहरा  चल नांगर ल साज जांगर ल साज....

b अइसन पानी बरसय जेमा छलकय डोली धनहा 
g रिमझिम बरसा के फूहार म भिंजय तन मन हा 
 b त खुमरी ल धर कमरा ल धर 
dono नांगर ल घर जांगर ल धर ...

b मूठ ले झटकून तय ह संगी ठाकुर देव म फोर नरियर 
g धरती के अंचरा हरियर होगे तोरो मन कर हरियर 
 त जिनगी संवार अपन भाग सेहरा  
dono चल नागर बइला साज अपन जांगर ल साज ...

3.युगल गीत 

b.मन मोहिनी दिल जोगनी ,आबे आबे रानी तरिया के पार 
आबे आबे रानी  नंदिया कछार 
देखत रइहूं मय नयना निहार- २

g.मनमिलौना दिल मोहना,क इसे आहू राजा तरिया के पार ..
ब इठे रहिथे भैय्या बनके रखवार मुहाटी म ब इठे रहिथे बनके रखवार ...

देखे बिन तोला ये मन तरसत रहिथे 
b बइंहा बरोबर सरीख मुं मह बफलत रहिथे 
चिटिक सुन ले तय मया के गोहार ...आबे आबे रानी नंदिया के पार ...

g घर ल थोरिक निकले त दाई- ददा खिसयाथे 
भउजी ताना मारत कहिथे नाक तय कटाबे 
चारों खुट लगे रहिथे मोर बर पहरेदार ...

b किरिया हवय तोला अपन रानी बनाहूं
बइरी जमाना संग  मय ह  टकराहूं
रोके रुकन नही ,चाहे  रोके संसार 
आबे आबे रानी नंदिया कछार ...

g आस जगाए आहू दउड़त तोर अंगना 
परछो पागेंव तोर मोर सांवर सजना 
अब तो ए जिनगी ह तोर बर निछार ...
आहू आहू राजा नंदिया कछार ...

Thursday, January 13, 2022

गीत : तोर मोहनी सुरतिया

तोर मोहनी सुरतियां 


तोर मोहनी सुरतियां नंजर म खुलत हवय 
मोर हिरदे म मया के फूल फूलत हवय ...

कपसा कस उज्जर तोर सुग्धर रुप 
बोली मंदरस घोरे मतवना सरुप 
माते माते मन भंवरा खोर किंजरत हवत ...

पहाती सुकुवा तय मोर पोसे मयना 
देखे बिन तरसत रहिथे मोर नयना 
बिलमे कहां तय आंखी फरकत हवय ...

भरे जवानी म नवतपा लागे हवय 
क इसे पहावंव अब चिटको नई सहावय 
मोर मया ह तोर बर पानी कस छलकत हवय ...

रचना काल - 5-6-2010

Sunday, January 9, 2022

शांत छत्तीसगढ़ को अशांति का बीजारोपण

#anilbhatphari 

।शांत छत्तीसगढ़ में अशांति का बीजारोपण ।।

छत्तीसगढ़ शांति व सौख्य की भूमि हैं। अनादिकाल से  जनजीवन श्रमण व सत संस्कृति का संवाहक हैं। लोग कर्मवादी है और" अपन भरोसा तीन परोसा खाकर " कृषि व  वनोत्पाद से संतुष्ट संतों- गुरुओं की सीख से सुखमय जीवन -निर्वाह करते आ रहे हैं। गाँवों में अनेक जातियाँ निवास करती हैं पर उनमें एक आत्मीय भाव भरे हुए होते हैं। परस्पर मीत- मितानी  आदि से भाई ,दीदी  कका- ममा आदि स्नेहिल रिश्तों से बंधे हुए होते हैं। क्योंकि उन्हें पता हैं संबंधों   की‌ शक्ति  ही सहयोग करते हैं। कोई ऊपरी या बाहरी शक्ति नहीं जो प्रत्यक्ष लाभ दे सकें। इस बात को बहुत ही सहज -सरल ढंग  हमारे गुरुओं संतों ने समझा दिए हैं।
     आजादी के आसपास पर प्रांतिकों के पलायन कर आगमन  और उनकी अपनी अपनी मान्यताए तथा अपने प्रभाव आदि के लिए अनेक सडयंत्रों से यहां जातिय दुराव और सांस्कृतिक विभेद की नींव पड़ी। इन सबके  बावजूद  ग्राम्य अंचल में तीज -त्यौहार में सभी उत्साह पूर्वक भाग लेते आ रहे हैं। और किसी पेड़ की टहनियों में अनेक घोसलें बनाकर जैसे पंछी बसेरा करते हैं। ठीक गांव ऐसे ही आबाद रहा है।  यहाँ बहुसंख्यक ७५-८०%  जनता सगुण परंपरा के  बहुदेव वाद ,प्रतीक -मूर्ति पूजा के साथ- साथ करीब २०-२५%  जनता निर्गुण पंरपरा के संवाहक है महात्मा कबीर व गुरुघासीदास का बेहद प्रभाव जनजीवन में विद्यमान हैं। इस तरह देखे तो छत्तीसगढ़ की आम जन जीवन सगुण- निर्गुण धारा में आबद्ध  साकार व निराकारोपसक हैं।  सगुण- निगुण नही कछु भेदा कह कर बेहतरीन समवन्य भी हमारे संतो ने किया हैं। 
    और एक- दूसरे की मान्यताओं आस्थाओं पर कोई हस्तक्षेप नहीं बल्कि सम्मान प्रकट करते आ रहे हैं।परन्तु  विगत कुछ वर्षों से प्रायोजित ढंग से निर्गुणोंपासक सतनाम पंथ  के धार्मिक स्थलों पर अतिक्रमण आदि आरोपित कर किताबों ,पत्र -पत्रिकाओं, व्याख्यानों में तथ्य हीन बातें लिख- बोलकर शांत छत्तीसगढ़ को उद्वेलित करने की नापाक  कोशिशें जारी हैं।यह घटना सामाजिक कम राजनैतिक अधिक  नजर आते हैं। 
      समय रहते इनका निदान आवश्यक हैं। अन्यथा इस तरह की  चिंगारी दावानल में कब  तब्दील हो  जाय ?कह नहीं सकते क्योंकि यह आस्था का मामला हैं।  लोग बड़ा- छोटा दिखाने प्रतिभा और विकास की ओर न जाकर शार्टकट धर्म- जाति पंथ की मान्यता रीति- नीति  पर आ जाते हैं।  और गाहे -बगाहे इन्हे छेड़कर महौल को अशांत व उद्वेलित करते हैं ,ताकि आगे चलकर मौके का फायदा उठाया जा सके । यही निकृष्ट मानसिकता के चलते ऐसे धटनाएं जानबूझकर किए जाते हैं। इनकी सुक्ष्म व निष्पक्ष  जांच कर इनके तह में कौन सी छद्म शक्ति काम करती हैं। उनका पर्दाफा़श व उन्मूलन  शासन- प्रशासन को करना चाहिए । घटना छोटी हैं ऐसा समझकर नजर अंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि घटनाएँ तो घटनाएं ही होते हैं। प्रचार तंत्र और मीडिया उन्हें जरुर छोटे बडे रुप देते हैं यह अलग बात है।
        वैसे  इस तरह की घटना के दोषी लोग  सहज ही चिन्हाकित भी होते हैं ,चंद मोहरे व गुर्गों की गिरफ्तारियां भी होती हैं।पर  जो  इनके असल मास्टर माइंड है उस तह तक  अनन्यान कारणों नहीं पहुँच पाते। इसके  चलते दोषियों को  कठोर सजा नहीं  होते फलस्वरुप  क्षतिपूर्ति  या कई छद्म सलाह व मौकापरस्त समझौते आदि  के कारण माफीनामा  आदि से मामले जरुर कुछेक माह या वर्ष के लिए दब सा जाते हैं। पर वह कहीं न कहीं पर  पुनश्च प्रकट हो जाते हैं। ऐसा करके विराट जन समुदाय मनोबल गिराने का  अप्रत्याशित कार्य और वोट या मत ध्रुवीकरण की राजनैतिक सडयंत्र भी प्रायः किए जाते हैं। प्रयोगवादी संस्थान इस तरह के नये नये हथकंडे अपना समाज का रुख जानने का प्रयोग करते हैं। देश या सामाज सेवा के नाम पर गठित दलें व संस्थान  इस तरह लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर इन  "आस्था की  स्थल को प्रयोगशाला बना रहे हैं"  जो कि बेहद  निन्दनीय है और चिन्तनीय है। इनसे न समाज का भला होगा न देश का । बल्कि कुछ दलों के लोगों को आक्रोशित और उन्मादित  लोगों का समर्थन जरुर मिल सकता हैं। पर ऐसे समर्थन से सत्ता हासिल  नही होगी अगर खुदा न खास्ता हो भी ग ई तो   ऐसी सत्ता से जनकल्याण  हो ही नहीं सकता। शांत छत्तीसगढ़ में अशांति का बीजारोपण कर नफरत -द्वेष का  फसल उगाने की नापाक कोशिशे हो रही हैं।  इन पर त्वरित प्रभावी नियंत्रण होना चाहिए। 
    बस्तर की नीरिह व साधनहीन  आदिवासी समुदाय जल जमीन जंगल के नाम पर आंदोलित ‌भटकने लगे हैं। कही वही परिस्थितियाँ यहां न पनप जाय इन पर बहुत ही गंभीरतापूर्वक विचार करते निर्णय लेना होगा। 
     बहरहाल चिंगारियां  आपस में सटे एक ही प्रजाति के वृक्षों की टहनियों के परस्पर रगड़ से भी निकलती हैं उन चिंगारी से जंगल जल कर खाक हो जाते  हैं। इसलिए चाहिए कि उनका  तत्क्षण उचित ढंग से शमन कर दिया जाय ... अन्यथा सिवाय पश्चाताप के कुछ नहीं बचा रहेगा ?

-डाॅ. अनिल भतपहरी

Saturday, January 8, 2022

ममा भांचा

#anilbhatpahari 

"ममा -भांचा" 

छत्तीसगढ़ म ममा -भांचा बड़ पावन रिस्ता आय । बुढ़वा ममा अपन दुधमुहां भाजा के तको पांव छू के अपन ल धन्य मानथे। बहिनी के बेटा -बेटी ल भांचा -भांची कहे जाथे ।रिस्ता नता मं ये भगवान गुरु के बाद तीसर स्थान म रखे गय हे। जेन ल दान दक्षिणा  दे  के पुन सकेले जाथे। छत्तीसगढियां  मन ल कोनो ममा तो कहि दय - ओखर ऊपर  सब कुछ निछावर कर देथे ! अइसे अवघट  दानी छत्तीसगढिया ममा मन होथे।  मथुरा के कंस -कृष्ण वाले उत्तर भारतीय  संस्कृति के इहा कोन्हो प्रचलन नइये ।
    तेहि पाय के कत्कोन चालाक पर प्रांतिक मनसे मन छत्तीसगढ़ियां मन ल बड़ मगन मामू बना के ओखर सरी जिनिस ल नंगा के नंगरा कर दय हवे। ते पाय एखर  रवती उखड़ गय हे । 
   जेकर डेरौठी मं आसरा मांग के रहिन ..कोचियाई करिन एती ओती तीन पाच करके सेठ साहूकार लहुट गिन । 
    आजकल जेन डहन देख  नंगरा मन पागा बांधे हवे अउ धोतीवाला मन मुड़ उघरा किंजरत हे । ये कइसे अर्थव्यवस्था हवे ? का खेती के ये अवगुन हे कि कभु खेतीहर किसान के दिन न इ बहुरय? एखर बर बड़ जोखा मढ़ाय ल परही।
       खैर कहे जाथे कि ये छत्तीसगढ़ ह जुन्ना समे म दछिणापथ के नांव ले जाने जाय। आर्य अउ द्रविड़ संस्कृति के समागम भुंइय्या आय। कोसल के राजा कौशल्य के बेटी कौशल्या संग रघुवंशी राजा के बेटा दसरथ के संग बिहाव होईस ओकर बेटा परतापी रामचंद्र होईस । यही रामचंद्र ल ओकर मोसी दाई कैकेयी हर अपन बेटा भरत ल राजा बनवाय के सेती वनवास निकलवा देथे ।त रामचंद्र ल गंगा नहाक के अपन ममा गांव म आके रहे लगथे। ओकर संग वोकर महतारी कौशिल्या काबर नई आइस जरुर ये गुनान के गोठ हो सकते । फेर राम- लछिमन अउ सीता तीनो परानी इहा ग्यारह साल रहिथे ... सीता ल रावन हर के ले जथे राम अपन ममा मन ल सकेल ऐताचारी रावन ल मार सीता ल मुक्ताथे अउ जनमानस म रच बस के राजा से भगवान बन जाथे ।
ए तरा से  भगवान के  भांचा होवई  के वृतांत बड़ सुहावन हे।राम नता म भांचा होइस ते पाय के भांचा के नता ह छत्तीसगढ म  भगवान सरीख माने गउने जाथे।
      आज  बस (मोटर) म चढेव त दु झन  बुढ़वा संग भेट होइस । दुनो ममा -भांचा आय ।दुनो के ऊपर ७०-८० ले कमती न इ रहिस।
   ममा ह अपन भांचा के भरे बस म  दुनो पांव ल पखारत पैलगी करिस अपन पंछा म पाव पोछिस ।उकर ये करतब- भाव ल देख हमरो मन मगन अउ पावन होगे ।
     कतेक आत्मीय व मयारुक नता ये । बात चले लगिस ... ममा कहिस तोर हाथ पच अमरित पी लेते भांचा . त मोर साध के सधौरा पुर जतिस ... ये अस्पताल म भर्ती रहेव थोरिक बने लागिस त छुट्टी कराके घर जात हंव .... 
          भांजा थोरिक टन्नक रहिस कथे - ले अभी ल तय मरना सोरियात हवस ।नाती- नतुरा के बर- बिहाव तो कर ले छंती देख तोपाबे कहिके कठ्ठल के हांस लगिस ... ओहर मोला बड़ मजकहा लगिस .... दुनो खुल खुल हांसे लगिस अउ बस म चढ़े दैनिक यात्री जेमा सरकारी कर्मचारी सर मैडम जो अलग अलग स्कूल आफिस म बुता करथे दुनो के निश्छल बेवहार व बताचिता देख अपन अपन मोबाइल डहन ले थोरिक अनचेतहा होगिस .... मय तो मोकाय दुनो ल देखते रहिगेंव । बिमार ममा के चेहरा म ओ जीये के उजास बगरत देख अस्सी साल के  बैमारी से उठे सियान के मुख मंडल मं सुख भाव बगरगिस .... बड़ उछाहित उन मन गोठियात जात हवे ..अउ.. मोर छत्तीसगढी सबद के कोठी ल भरत जात हवय .... 
       -डा. अनिल भतपहरी/ 9617777514

Thursday, January 6, 2022

बांध के सुंता

#anilbhatpahari 

।।बांध के सुंता ।।

इंहा  मनखे मन के 
कब  मान रहिस 
जुन्ना समे म तको 
असनेच हाल रहिस 
सिधवा मन बोकराच  
कस हलाल रहिस 
अउ चतुरा मन के 
जम्मा  माल रहिस 
जब तक तुमन  
एकमई हो जुरियाहूं नही 
अउ अपन चीज- बस  ल
बनेच पोटारहूं नही 
तब तक तुंहर गांजे खरही
 रोजेच उजरतेच  रही 
तिड़ी-बीड़ी होय मनखे मन 
 दाना अना बर लुलवातेच  रही 
 जात-पात म बाट के 
उन मन  राजेच करही 
कतको जुग बीत जय  
तभो ले अंधियारेच रही
पढव लिखव बनेच अउ 
मिल के सजोर होवव 
हक -अधिकार बर  
सब बंहजोर होवव 
अपन बोली भाखा अउ  
अस्मिता ल जतनव 
पुरखा के असीस मिलही 
थोकिन तो बात  परखव 
तुंहर जमीन तुंहर जंगल 
तुंहरेच हे  नंदी -पहाड़ 
बसुंदरा मन चगल लिन  
तुंहरेच खेती अउ खार 
कहां के सतजुग कहां के त्रेता 
द्वापर के दंश सुन लागे फदित्ता 
कलजुग के गोठ सुन सुन सिठ्ठा 
सिरतोन ये कि ,ये सब हांसी ठठ्ठा ?
तभो ले तुम हव कइसन 
एसन म बिकट मगन 
परलोक सुधारे बर करथव 
जबर भजन कीर्तन 
इहलोक बिगाडे के ये 
कइसन अलकरहा जतन 
भुखन ल देथव दुत्कार 
 अउ पथरा बर भोजन छप्पन 
फंसे हव अभीच ले 
पाप-पुन के  चक्कर म 
उन मन आके रपोट लिन 
सब के बारी बख्खर ल
सब जागव  सब डहन 
अउ खरतर खरबान धरव 
सडयंत्र के पर्दाफास बर
अब तो  सावधान रहव 
नवा साल म करव नवा परन 
परे झन रहव अरन -बरन 
चूर मंद-मांस म मेला-मड़ई 
यहा तरा देव-धामी के रीत मनई 
बांध के सुंता थोरकिन तो 
करमकांड ल कमतिया लव  
अवघट परे विकास के रद्दा ल 
अब तो बनेच  चतवार लव ...

   डा. अनिल भतपहरी / 9617777514 
सतश्री ऊंजियार सदन अमलीडीह, रायपुर

Tuesday, January 4, 2022

पंथी गीत

छत्तीसगढ़ के लोक साहित्य :पंथी गीत  मे युवाओं की भूमिका  


छत्तीसगढ में लोक साहित्य अत्यंत समृद्ध है। वाचिक परंपरा मे यहां अनेक लोक गाथाओं के साथ साथ स्वतंत्र रुप से अनेक तरह के गीत मधुरतम  लोक घुन  यहां तक कि शास्त्रीय रागों पर आधारित धुनों पर मिलते  है। या कहे इन लोक धुनों मे शास्त्रीय रागों के लक्षण मिल जाया करते है। कभी कभी ऐसा लगता है कि लोक गीतों मे जो स्वर या धुन है उन्हे परिष्कृत कर शोधित कर अनेक राग रागिनियों का आविष्कार उन्हे शास्त्रीय रुप दिए गये हैं।
    बहरहाल लोक रुची अत्यंत कलामय और परिष्कृत है उन्हे धर्म मत पंथ व्रत त्योहार आदि से जोड़कर उन्हे विशिष्ट स्वरुप प्रदान  कर दिए गये हैं।
   यहां हम सतनाम पंथ में प्रचलित विश्व विख्यात पंथी नृत्य और गीत पर संक्षिप्त रुप से विचार करते हैं। पंथी गीतों की विराट संसार है विगत ढाई सौ वर्षो से यह  अनवरत  परिष्कृत परिशोधित होते हुए वर्तमान मे बेहद प्रभावशाली स्वरुप मे प्रचलित हैं। 
    पंथी गीत अपने नामानुरुप सतनाम पंथ से संबंधित धार्मिक और आध्यात्मिक गीत है जिनके भाव अत्यंत मुग्धकारी और दार्शनिक तत्वों से परिपूर्ण कालजयी स्वरुप मे मिलते है यह चिंतन मनन की उच्चतम भाव भूमि पर सृजित जान पड़ता है साथ ही सरल सहज मनोद्गार भी व्यक्त हैं। सतनाम पञथ के प्रवर्तक गुरुघासीदास चरित भी इनमें द्रष्ट्व्य हैं-
   कर्मा बने हे किसान धर्मा बोवत हवे धान 
सतनाम के नंगरिहा चले खेत जोते ल ...
  गुरुघासीदास ने अपने लाखों अनुयाइयों को जो दिव्य वार्ता gaspal सुनाई ,उसी की प्रतिध्वनि काव्योक्ति के माध्यम से या उधृत करने के निमित्त गीतों के रुप मे अनायस लोककंठों से प्रस्फूटित हुई।
   गुरुघासीदास के अभ्युदय के पूर्व भी इस समुदाय मे कबीर रैदास  नानक  धर्मदास  जगजीवन साहेब आदि के  माध्यम से सत्संग भजन कीर्तन व निर्गुण भजन प्रचलन मे रहे हैं। बौद्ध धर्म के सहजयान और सिद्धो  नाथों की वाणी भी लोक कंठ मे विद्यमान थे। वे सब पंथी गीत मंगल भजन और साधु अखाड़ा के रुप मे गुरुघासीदास के रामत रावटी मे प्रस्तुत होने लगी। अनेक काव्यात्मक प्रतिभा से युक्त अनुयाई जन जो स्मृति मे थे उन्हे और स्वत: नये पद रचनाए कर प्रस्तुत करने लगे । गुरु पुत्र अम्मरदास जी योगदान स्तुत्य है। जिन्होने गुरुघासीदास के उपदेशना के पूर्व इन पंथी व मंगल भजनों द्वारा उपस्थित जनों को ज्ञान और मनोरंजन के साथ एकत्र किए रहते । तत्पश्चात गुरु जी उन्हे अपनी मघुर वचनों से कृतार्थ करते ।
   इस तरह  हजारों की संख्या मे पंथी गीत अनेक जगहों मे प्रचलित होने लगी।  निर्गुण भजन गायन की परंपरा यहां जन्म और मृत्यु के समय प्राचीन समय से रहा है। इनमे नाथ सिद्ध परंपरा के वाणियों और महायानी  सहजयानी बौद्ध भिक्षुओ की वाणियों का समावेश रहे हैं।पंथी गीतों  और मंगल भजनों मे हमे इन सबकी प्रतिध्वनि दृष्टिगोचर होते हैं। डा आइ आर सोनवानी ने पंथी गीत नृत्य का उद्गम विकास और लोक चेतना में उद्धृत किया है - " धार्मिक सामाजिक प्रपंच के खिलाफ बाबाजी का प्रवचन है। कु व्यवस्था के प्रति सुधार क्रांति उनके उपदेश हैं। सत्य की खोज साधना सतनाम का प्रचार गुरुबाबा का कर्मयोग हैं। इन्ही संदेशों को लोग तन्मयता से सुनते  / सुनाते भावों के श्रद्धापूर्ण  अभिव्यक्ति में लय एंव गान का स्फूटन अनायस ही हो जाता हैं।" 
    यही स्वभाविक प्रवृत्ति मनोद्गार पंथी गीतों के आरंभ का मूल हैं। जिसमें गुरुबाबा जी के वचनो कार्यो तथा उनके प्रति आस्था व श्रद्धा सतनाम  संकीर्तन का विषय हो गया । पंथी गीतों का गायन स्थापित हुआ। उनके संपूर्ण जीवन दर्शन उनकी महिमा का बखान उनके परिजनों का प्रदेय और परित्याग पंथी गीतों वर्णित होने लगा। 
   सतनाम एक बीज है संत हृदय सो खेत 
अधर नागर चलाइया सद्गुरु साहेब सेत ...
   सतनाम बीज मंत्र है और संतो का हृदय खेत है जहां अधर होठ रुपी नागर से सतनाम गुरु साहेब घासीदास सतनाम बीज मंत्रो संतो के हृदय रुपी खेत मे अधर रुपी हल चलाकर बो रहे है। यह रुपक उन्हे श्रेष्ठतम और अलौकिक व आध्यसत्मिक  कृषक के रुप मे प्रतिष्ठित करते हैं।
   पंथी मे विराट भाव का सम्यक दर्शन होते है।यहां केवल गुरु चरित और धार्मिक / आध्यसत्मिक  ही नही बल्कि अनेक चुनौतियों द्वञद्वों के मध्य सुगमता पूर्वक जीवन निर्वाह की उपाय का  भी वर्णन मिलता हैं। 
   अहो बबा कौन रहनि मय रहि हभ बतादे गुरु मोर ..
जग अंधियार सुझय नही कोई ठौर 
किंजरत बुलत लागि मति अति ठीक ठोर 
बिकट बियावन बस्ती न ठोर 
लाम्हे सुरतिया सतनाम डोर ...

प्रारंभ मे बैठकर ताली बजाकर समुह स्वर मे गाते /  संत व दर्शक  झोकते इस तरह एक कंठ से दूसरे कंठ तक इनके माध्यम से गुरु वाणी हस्तांरित होने लगे। इसमे नृत्य लाधव व मुद्रा नही था।
जब इसमे वाद्य यंत्र मृदंग झांझ मंजीरे हुड़का इकतारा चिकारा खंजेरी सम्मलित होने लगे तो मनभावन प्रस्तुतियां और नृत्यादि भी होने लगे। फिर इनमे साधकों की नृत्य पिरामीड और हैरत अंगेज प्रदर्शन और तीव्र गति ने ऐसी कीर्तिमान रचा कि पंथीगीत और नृत्य विश्व की सर्वाधिक तेज गति के रुप मे चिन्हाकित हुई। 
   पंथी के अनेक अध्येता विद्वानों और अन्य प्रांतिक लोककलाकारों  भी पंथी नर्तको की चपलता और अनुशासन तथा तीव्र गति से मुद्रा परिवर्तन को देख उनकी अन्तर्दृष्टि और अंतर्शक्ति से साक्षात्कार कर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। पंथी गीत आम जनमानस के गीत है इनके माध्यम से वह आनंदित और अक्षय उर्जा से परिपूर्ण हो सात्विक जीवन शैली मे प्रवृत्त होते हैं। पंथी के सर्जक साधक गायक सभी के अन्तर्मन उज्जवल होते है और दर्शको के मन मे भी सकरात्मक और सात्विक भाव का संचरण होते हैं। श्रद्धा भक्ति और शक्ति का अनोखा समन्वय भाव हमे पंथी गीत व नृत्य मे परिलक्षित होते हैं।
     पंथी चीर नवीन या सदैव प्रासंगिक भावो से युक्त है संसार की वैभव व नश्वर भाव का सुन्दर समन्वय है इनपर अनेक तरह के अन्वेषण की आपार संभावनाएं विद्यमान है। अनेक विश्वविद्यालयों  में  इन पर शोध कार्य भी जारी है जो कि इनकी महत्ता को प्रतिष्ठापित कराते हैं।