Friday, November 5, 2021

आस्तिक नास्तिक वास्तविक और बुतपरस्ती

#anilbhatpahari

चिंतन 
            
    ।।आस्तिक ,नास्तिक, वास्तविक और बुतपरस्ती ।।

            "संतो गुरुओ और प्रबुद्धों ने सदैव ज्ञान और सद्कर्म की शिक्षा दी। सतत ज्ञान का अन्वेषण और सद्कर्म का अनुपालन करने से ही व्यक्ति को सिद्धी और प्रसिद्धी मिलते है। न कि किसी की पूजा ,पाठ, इबादत प्रार्थना आदि से ।
   परन्तु मनुष्य आदतन श्रद्धालू और किसी विशिष्ट कृपा भाव वरदान आदि पाने की उत्कट आकांक्षा रखने वाले प्राणी है। फलस्वरुप अनेक तरह की अलौकिक शक्ति सम्पन्न देवी -देवता ,खुदा, गाड ,ईश्वर भगवान ईजाद कर  उनकी छवि / मूर्ति आदि गढ़ लिए है। जो है या नही, यही अज्ञात है। आज तक न किसी ने देखा न अनुभव किए। बावजूद कथा -कहानियों के आधार पर मूर्तियां गढ लिए गये है और अनेक तरह के कर्मकाञड / विधि विधान से पूजने ,जपने ,मानने  के तरीके अपनाकर आकंठ डूबे हुए है।  राज करने के निमित्त सामंतों ने जनमानस को जानबुझर  डूबा दिए है। अनेक शास्त्र और धर्म स्थल रचे व बना लिए गये है। ऐसा लगता है इन धर्मों और उनके अराध्यों की श्रेष्टता और  वर्चस्वता के चलते  अनुयाइयों में प्रतिद्वंदिता हुई और भीषण  रक्तपात भी फलस्वरुप मानवता कलंकित हुई। 
        देखा जाय तो अब तक किसी परम भक्त को उनके ईश्वर अपने कथित धाम ले जाने न आया न किसी दूत को भेज सशरीर ले गया हो ,ऐसा एक भी उदाहरण नही हैं। बावजूद स्वर्ग जन्नत हैवन की परिकल्पना और वहां जाने की जुगत मे लगे हुए अनेक तपी जपी और धनी मनी‌ जन लगे नजर आते है। कही कही कुछेक की उत्कट साधना आदि के प्रति जरुर आकर्षण का कौतुहल जन मानस में देखने मिल जाते है जो कि शैन: शैन: श्रद्धा भक्ति मे परिवर्तित होने लगते है।
   ऐसे मे उन्हे जो सद् ज्ञान देने वाले महापुरुष है उन्हे भी उस अलौकिक देव -देवियों ईश्वर आदि  के अंश / बताकर सामाहित कर लिए जाते है। यहां तक कि उनकी भी चित्र / मूर्ति प्रतिमा बना लिए जाते है मठ मंदिर गुरुद्वारा बना लेते है ।क्योकि मत पञथ धर्म आदि को गतिमान करने /उन्हे व्यवस्थित करने  यह सब आवश्यक है अन्यथा उनके द्वारा स्थापित मत  पंथ प्रणाली जमींदोज हो जाएन्गे। उनके विचार और दर्शन विस्मृत कर दिए जाएन्गे।
     अब तटस्थ रुप से विचार कर देखे कि जो मिथक है उनकी प्रतिमाए सही है या जो वास्तविक  है , इतिहास पुरुष है उनकी प्रतिमा सही है ?
   बुद्ध ने कल्पित ईश्वर की प्रतिमा नही पूजने कहा यह सच भी है परन्तु अनुयाई बुद्ध की ही प्रतिमा बना लिए  । संसार में सर्वाधिक  प्रतिमा उसी का देखने मिलता है। उनके देखा- देखी ही अनेक धर्म मत पंथ में बुतपरस्ती होने लगे, पूजना आरंभ किए गये। बुद्ध वास्तविक इतिहास पुरुष है,उनके स्वरुप देखे -समझे गये थे ।उसे उसी रुप मे अजंता एलोरा मे चित्रित किए और अनेक स्थलो पर प्रतिमाएं बनाए गये।
     बुद्ध की मानिंद अनेक ऐतिहासिक संत गुरुओ जैसे कबीर नानक रैदास गुरुघासीदास इत्यादि  का भी चित्र / प्रतिमाए बने और अनुआई  उन्हे पूजने लगे साथ ही उनके वाणी व सिद्धान्त को मानने लगे।
      यहां चित्र/ प्रतिमाए उनकी वास्तविक होने के साक्ष्य है। अनुयाई उसे साक्षात अपने समक्ष पाते है और उनके सिद्धान्तो / उपदेशों मे चलने प्रेरित होते है। इस दृष्टि से बुतपरस्ती जायज भी लगते है।
     इसलिए चैत्य विहार मंदिर गुरुद्वारा सतनाम भवन निर्माण गद्दी  आसन ग्रंथ  प्रतिमा चित्र आदि का प्रचलन होना आवश्यक है अन्यथा मिथकीय संसार मे खोए रहने होन्गे ।
   बहरहाल हमे किसका विरोध करना और किसे आत्मसात करना चाहिए इस अंतर को समझने होन्गे 
सच तो यह है कि आस्तिक- नास्तिक के चक्कर छोड़कर   वास्तविक को अपनाना चाहिए और उनकी शिक्षा और उन्हे सम्मान देना चाहिए।"
     सतनाम
डा अनिल भतपहरी /9617777514

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