प्राचीन ज्ञान और अर्वाचीन विज्ञान
वर्तमान समय में आधे -अधुरे ढंग से विज्ञान के नाम पर प्राचीन कला पूर्ण ज्ञान का तिरस्कार या अवहेलना तक किए जाते हैं यह उचित नहीं । हालांकि इन पर कुछ लोग अंध विश्वास आदि फैलाकर जीविकोपार्जन व लूटपाट तक करते रहें हैं। केवल इनके चलते इन तत्वों को खारिज नहीं किए जा सकते। अमुमन हर देश, काल, परिस्थितियों में अनुभव और विरासत की ज्ञान लोगों को प्रेरित करते आ रहे हैं। मनुष्य उनसे न केवल विकास किए अपितु मानवीय गुणों के साथ सुख- शांति और परस्पर सौहार्द्र तक संस्थापित किए गये। भले चंद शातिर लोगों की महत्वाकांक्षी आदि के चलते अमानवीय और बर्बर रुप में देखने मिलते हैं,पर वह हमेशा हो ऐसा भी नहीं रहा।
बहरहाल कुछ ऐसी चीजें है जो अनदेखे अमूर्त रुप में भी घटते हैं। हर चीज पदार्थ हो यह जरुरी नहीं भावनाएँ भी होते हैं वह किसी यंत्र आदि के माप से परे होते हैं हालांकि उनपर भी कहीं न कहीं ज्ञान +विज्ञान समाहित रहते हैं पर लोग अनजाने में उन सुक्ष्मतम चीजों का अवलोकन नहीं कर पाते या समझना नहीं चाहते ।
फलस्वरुप अनेक अच्छी मान्यताओं का भी प्रबल विरोध करने लग जाते हैं।
ज्ञान के अनेक सोपान और विधाएँ है साथ ही व्यक्ति का दृढ़ निर्णय असीम संभावनाएँ के द्वार और दृष्टि खोलते हैं, और उन्हे सफल करते हैं। साधारण लोगों के लिए आश्चर्य तक हो जाते हैं। फलस्वरुप उन्हे महिमामंडन कर देते हैं,फिर उनके पर्दाफाश के लिए अधकचरे विज्ञानवादी आ जाते हैं। जो तर्क कम कुतर्क द्वारा उनकी अवहेलना करते हैं।
यही द्वंद चलते रहता हैं।
बहुत कुछ तो स्व अनुभव पर होते हैं। एक ऊंचाई के बाद जीवन में ठहराव आते हैं। फिर वहाँ से पुनश्च अपने जड़ की ओर लौटने होते हैं जैसे बरगद की लाह ऊपर से नीचे आकर जड़ बन जाते हैं और फिर वह अधिक पुष्ट व मजबूत हो जाते हैं।
सदियों की अनुभव भी कोई चीज होती हैं सब कुछ विज्ञान ही तय करे ऐसा भी नहीं है। हमें प्राचीन ज्ञान और. अर्वाचीन विज्ञान के साथ -साथ आगे चलना होगा ताकि मानव प्रजाति का सर्वांगीण विकास यात्रा निर्बाध चलता रहें।
।।सतनाम।।
-डाॅ अनिल भतपहरी/ 9617777514
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