Thursday, August 26, 2021

अपासी‌

आपके वास्ते छकड़ी हमरी 
             ।।अपासी ।।
भरे भादों ह असो कइसे कुंवार कस लागत हे 
यहाँ तरा लहर-तहर घाद कुहकुही जनावत हे 
रोपा-बियासी अटके परे हे खेत मन रनावत हे 
नइये उछाह जिनगी मं तिहार-बार सिरावत हे 
पल्लो चक छोड़ अकाल अगास म मंडरावत हे 
अपासी के होय बने बेवस्था अनिल हर काहत हे  

         बिंदास कहें - डॉ॰ अनिल भतपहरी

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