आपके वास्ते छकड़ी हमरी
।।अपासी ।।
भरे भादों ह असो कइसे कुंवार कस लागत हे
यहाँ तरा लहर-तहर घाद कुहकुही जनावत हे
रोपा-बियासी अटके परे हे खेत मन रनावत हे
नइये उछाह जिनगी मं तिहार-बार सिरावत हे
पल्लो चक छोड़ अकाल अगास म मंडरावत हे
अपासी के होय बने बेवस्था अनिल हर काहत हे
बिंदास कहें - डॉ॰ अनिल भतपहरी
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