पद्म पुरस्कार सतनामी प्रतिभाओ को क्यो नही?
विश्वविख्यात पंथी नर्तक देवदास बंजारे 65 देशों में प्रदर्शन कर वैश्विक रिकार्ड बनाए और देश व प्रदेश की कीर्ति को फैलाए पर राष्ट्रीय सम्मान से वंचित रखे गये । इसी तरह विलक्षण भरथरी गायिका अपनी विशिष्ट गायन शैली व प्रतिभा के चलते १८ देशों मे प्रस्तुतियाँ देकर छत्तीसगढी संस्कृति की सुरभि को सर्वत्र विस्तारित की ।बावजूद वह गुमनामी और उपेक्षित जीवन जी।साथ ही उनके अंदर यह मलाल रही कि साधन हीन हो अपनी स्वप्न पूर्ण नही कर पाई। उन्हे कोई अपेक्षित सम्मान नही मिली और युं ही चल बसी । ऐसे ही समाज के अनेक विलक्षण प्रतिभाए जो प्रदेश व देश के रत्न थे। अपना सारा जीवन साहित्य कला और किसी अन्य विधा पर जिससे सहज उन्हे पद्म पुरस्कार मिल सकते थे जानबूझ कर वंचित रखे गये। ऐसे लोगो की सूची लम्बी है।पर चंद नाम जिसे सभी भली भांति जानते समझते है ।आज प्रसंगवश हमे न चाहते हुए लिखना पड रहा है कि यदि तथाकथित संस्कृति प्रेमी इन कला धर्मी लोगो के नाम न जाने पहचाने तो लानत है उन्हे कि विराट ४० लाख समुदाय के प्रति उनकी दृष्टिकोण क्या है? सोच और समझ क्या है?
छत्तीसगढी संस्कृति साहित्य के ध्वज वाहकों मे
महाकवि मनोहरदास नृसिंह , छत्तीसगढी रचनाकार गंगाराम शिवारे , कवि व कलाकार पं साखाराम बधेल , पंथी नर्तक देवादास बंजारे , सतनाम संकीर्तन कार व रंगकर्मी सुकालदास भतपहरी , रचनाकार सुखरुप्रसाद बंजारे , नाट्यमंच के अद्वितीय कलाकार महंत - दीवान, दानी- दरुवन ,चम्पा-बरसन, महाकवि पं सुकुल धृतलहरे ,नकेशरलाल टंडन ,नम्मूराम मनहर , प्रथम महिला पंथी नर्तकी व गायिका तोरनबाई लक्ष्मी बाई जुगाबाई अब सुरुजबाई खांडे जैसी कलावन्त साधक साधिकाए ..सतनामी समाज ही नही छत्तीसगढी संस्कृति के जगमगाते नक्षत्र रहे।पर उनकी आभा को काले चश्मे पहने लोग कभी देख ही नही पाए ।
प्रसिद्धी पर मुफलिसी और जानबूझकर अवहेलना के शिकार ये लोग बिना किसी चाह यहा तक यश व सम्मान को भी ताक रख केवल सतनाम का गुणगान करते स्वात: सुखाय सदृश्य आजीवन साधते रहे।और यु ही बिना किसी शिकायत आदि से अपना काम करके प्रयाण कर गये।
कही यही हश्र हमारे इन साधको कलावन्तों - मानदास टंडन ९५ वर्ष चिकारा व खडेसाज व सतलोकी भजन के सिद्धहस्त कलाकार ,लतमारदास चंदैनी , तुलाराम टंडन गोपीचंद गाथा गायक , पं कपिल घृतलहरे हुडका इकतारा चौका पंडित , पंथी पंडवानी गायिका ऊषा बारले ,पंथी पुरानिक चेलक , समेशास्त्री देवी, शांति चेलक सहित गोरेलाल बर्मन दिलीप लहरिया द्वारिका बर्मन रामविलास खुन्टे दिलीप बंजारे यशवन्त सतनामी सरीखे प्रतिभावान ५० से 90 वर्ष पूर्ण कर चुके विगत ३० वर्षो से जनमानस को अपनी कला से सम्मोहित मनोरंजित और गुरु उपदेश व भारतीय कला संस्कृति को प्रचारित प्रसारित करते आ रहे है ये साधक कलावन्त और वरिष्ठ महाकवि रचना कार साधु बुलनदास डा शंकरलाल टोडर इंजी टी आर खुन्टे डा आई आर सोनवानी सर्वोतम स्वरुप मंगत रविन्द्र हरप्रसाद निडर डा जे आर महिलांग डा दादूलाल जोशी , भाऊराम धृतलहरे डा जे सोनी जैसे लोग भी अन्चिनहार सा उपेक्षा और अवहेलना की सडयंत्र से कही गुमनाम न हो जाय .. ...... शासन -प्रशासन को सतनामियो के प्रति अनाग्रह दुराग्रह त्यागकर इस समाज के विभूतियों का भी यदा-कदा यथोचित सम्मान देकर पद्म सम्मान के लिए नामांकित करते संतुस्ति करना चाहिए, प्रदान कराने उचित प्रयास होनी चाहिए।
डाॅ अनिल भतपहरी ।
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