Monday, August 30, 2021

सत्य धर्म का प्रतिष्ठान

आपके वास्ते छकड़ी हमरी 

 ।।सत्य धर्म का प्रतिष्ठान ।।

ऐसा वह अनोखा  सलोना  काला 
जो जनमानस  को किया  उजाला
पीकर  परिजनों ‌के द्वंद्व का प्याला 
छोड़कर मथुरा रणछोड़  कहलाया 
शांति दूत देकर दिव्य गीता का ज्ञान 
सत्य धर्म न्याय का हुआ नव प्रतिष्ठान 

    बिंदास कहें- डॉ॰ अनिल भतपहरी 
         
     कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई

Thursday, August 26, 2021

अपासी‌

आपके वास्ते छकड़ी हमरी 
             ।।अपासी ।।
भरे भादों ह असो कइसे कुंवार कस लागत हे 
यहाँ तरा लहर-तहर घाद कुहकुही जनावत हे 
रोपा-बियासी अटके परे हे खेत मन रनावत हे 
नइये उछाह जिनगी मं तिहार-बार सिरावत हे 
पल्लो चक छोड़ अकाल अगास म मंडरावत हे 
अपासी के होय बने बेवस्था अनिल हर काहत हे  

         बिंदास कहें - डॉ॰ अनिल भतपहरी

Wednesday, August 25, 2021

पद्म‌ सम्मान सतनामियों ‌को‌ क्यों नहीं ‌?

पद्म पुरस्कार  सतनामी प्रतिभाओ को  क्यो  नही? 

              विश्वविख्यात  पंथी नर्तक देवदास बंजारे 65 देशों में प्रदर्शन कर वैश्विक रिकार्ड बनाए और देश व प्रदेश की कीर्ति को फैलाए पर राष्ट्रीय सम्मान से वंचित रखे गये । इसी तरह विलक्षण भरथरी गायिका अपनी विशिष्ट गायन शैली व प्रतिभा के चलते १८ देशों मे प्रस्तुतियाँ  देकर छत्तीसगढी संस्कृति की सुरभि को सर्वत्र विस्तारित की ।बावजूद वह गुमनामी और उपेक्षित जीवन जी।साथ ही उनके अंदर यह मलाल रही कि साधन हीन हो अपनी स्वप्न पूर्ण नही कर पाई। उन्हे कोई अपेक्षित सम्मान नही मिली और युं ही चल बसी । ऐसे ही समाज के अनेक  विलक्षण  प्रतिभाए  जो प्रदेश व देश के रत्न थे। अपना सारा जीवन साहित्य कला और किसी अन्य विधा पर जिससे सहज उन्हे पद्म पुरस्कार मिल सकते थे जानबूझ कर वंचित रखे गये। ऐसे लोगो की सूची लम्बी है।पर चंद नाम जिसे सभी भली भांति जानते समझते है ।आज प्रसंगवश हमे न चाहते हुए लिखना पड रहा है कि यदि तथाकथित  संस्कृति प्रेमी इन कला धर्मी लोगो के नाम न जाने पहचाने तो लानत है उन्हे कि विराट ४० लाख समुदाय के प्रति उनकी दृष्टिकोण क्या है? सोच और समझ क्या है? 
     छत्तीसगढी संस्कृति साहित्य के  ध्वज वाहकों मे 
महाकवि मनोहरदास नृसिंह , छत्तीसगढी रचनाकार गंगाराम शिवारे ,  कवि व कलाकार पं साखाराम बधेल , पंथी नर्तक देवादास बंजारे , सतनाम संकीर्तन कार व रंगकर्मी सुकालदास भतपहरी , रचनाकार सुखरुप्रसाद बंजारे , नाट्यमंच के अद्वितीय कलाकार  महंत - दीवान, दानी- दरुवन ,चम्पा-बरसन,  महाकवि पं सुकुल धृतलहरे ,नकेशरलाल टंडन ,नम्मूराम मनहर , प्रथम महिला पंथी नर्तकी व गायिका तोरनबाई लक्ष्मी बाई जुगाबाई अब सुरुजबाई खांडे जैसी कलावन्त साधक साधिकाए ..सतनामी समाज ही नही छत्तीसगढी संस्कृति के जगमगाते नक्षत्र रहे।पर उनकी आभा को काले चश्मे पहने लोग कभी देख ही नही पाए ।
 प्रसिद्धी पर मुफलिसी और जानबूझकर अवहेलना के शिकार ये लोग बिना किसी चाह यहा तक  यश व सम्मान को भी ताक रख केवल सतनाम का गुणगान करते स्वात: सुखाय सदृश्य आजीवन साधते रहे।और यु ही बिना किसी शिकायत आदि से अपना काम‌ करके प्रयाण कर गये। 
     कही यही हश्र हमारे इन साधको कलावन्तों - मानदास टंडन ९५ वर्ष चिकारा व खडेसाज व  सतलोकी भजन के सिद्धहस्त कलाकार ,लतमारदास चंदैनी , तुलाराम टंडन गोपीचंद गाथा गायक , पं कपिल घृतलहरे  हुडका इकतारा चौका पंडित ,  पंथी पंडवानी गायिका ऊषा बारले ,पंथी पुरानिक चेलक ,  समेशास्त्री देवी, शांति चेलक सहित गोरेलाल बर्मन दिलीप लहरिया  द्वारिका बर्मन रामविलास खुन्टे दिलीप बंजारे यशवन्त सतनामी सरीखे प्रतिभावान ५० से 90 वर्ष पूर्ण कर चुके विगत ३० वर्षो से जनमानस को अपनी कला से सम्मोहित  मनोरंजित और गुरु उपदेश व भारतीय कला संस्कृति को  प्रचारित प्रसारित करते आ रहे है ये साधक कलावन्त और   वरिष्ठ महाकवि रचना कार साधु  बुलनदास डा शंकरलाल टोडर इंजी टी आर खुन्टे डा आई आर सोनवानी  सर्वोतम स्वरुप मंगत रविन्द्र हरप्रसाद निडर डा जे आर महिलांग डा दादूलाल जोशी , भाऊराम धृतलहरे डा जे  सोनी   जैसे लोग भी  अन्चिनहार सा उपेक्षा  और अवहेलना की सडयंत्र से कही गुमनाम न हो जाय .. ...... शासन -प्रशासन को सतनामियो के प्रति अनाग्रह दुराग्रह त्यागकर इस समाज के विभूतियों का भी यदा-कदा यथोचित सम्मान देकर पद्म सम्मान के लिए नामांकित करते संतुस्ति करना चाहिए, प्रदान कराने उचित प्रयास होनी चाहिए।

 डाॅ अनिल भतपहरी ।

Saturday, August 21, 2021

प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान

प्राचीन ज्ञान और  अर्वाचीन विज्ञान 

वर्तमान समय में आधे -अधुरे ढंग से  विज्ञान के नाम पर प्राचीन कला पूर्ण ज्ञान का तिरस्कार या अवहेलना तक किए जाते हैं यह उचित नहीं । हालांकि इन पर कुछ लोग अंध विश्वास आदि फैलाकर जीविकोपार्जन व लूटपाट तक करते रहें हैं। केवल इनके चलते इन तत्वों को खारिज नहीं किए जा सकते। अमुमन हर देश, काल, परिस्थितियों में अनुभव और विरासत की ज्ञान लोगों को प्रेरित करते आ रहे हैं।  मनुष्य उनसे न केवल विकास किए अपितु मानवीय गुणों के साथ  सुख- शांति और परस्पर सौहार्द्र तक संस्थापित किए गये। भले चंद शातिर लोगों की  महत्वाकांक्षी आदि के चलते अमानवीय और बर्बर रुप में देखने मिलते हैं,पर वह हमेशा  हो ऐसा भी नहीं रहा।
     बहरहाल कुछ ऐसी चीजें है जो अनदेखे अमूर्त रुप में भी घटते हैं। हर चीज पदार्थ हो यह जरुरी नहीं भावनाएँ भी होते हैं वह किसी यंत्र आदि के माप से परे  होते हैं हालांकि उनपर भी कहीं न कहीं ज्ञान +विज्ञान  समाहित रहते हैं पर लोग अनजाने में उन सुक्ष्मतम चीजों का अवलोकन नहीं कर पाते या समझना नहीं चाहते ।
फलस्वरुप अनेक अच्छी मान्यताओं का भी प्रबल विरोध करने लग जाते हैं। 
            ज्ञान के अनेक सोपान और विधाएँ है साथ ही व्यक्ति का दृढ़ निर्णय असीम संभावनाएँ के द्वार और दृष्टि खोलते हैं, और उन्हे सफल करते हैं। साधारण लोगों के लिए आश्चर्य तक हो जाते हैं। फलस्वरुप उन्हे महिमामंडन कर देते हैं,फिर उनके पर्दाफाश के लिए अधकचरे विज्ञानवादी आ जाते हैं। जो तर्क कम कुतर्क द्वारा उनकी अवहेलना करते हैं।
यही द्वंद चलते रहता हैं।

बहुत कुछ तो स्व अनुभव पर होते हैं।  एक ऊंचाई के बाद जीवन में ठहराव आते हैं। फिर वहाँ से पुनश्च अपने जड़ की ओर लौटने होते हैं जैसे बरगद की लाह ऊपर से नीचे आकर जड़ बन जाते हैं और फिर वह अधिक पुष्ट व मजबूत हो जाते हैं।
     सदियों की अनुभव भी कोई चीज होती हैं सब कुछ विज्ञान ही तय करे ऐसा भी नहीं है। हमें प्राचीन ज्ञान और. अर्वाचीन विज्ञान के साथ -साथ आगे चलना होगा ताकि मानव प्रजाति  का सर्वांगीण विकास  यात्रा निर्बाध चलता रहें।
          
             ।‌।सतनाम।।
 -डाॅ अनिल भतपहरी/ 9617777514

अजूबा

अजूबा

संभला नही 
बस टूटते
बिखरते गया
इश़्क की 
दरियां में
डूबते-उतरते गया 
हुआ ऐसे 
कैसे कि 
भीतर से 
निखरते गया ...
  -डा.अनिल भतपहरी

Monday, August 2, 2021

युगल गीत - मोर मन ल कलेचुप मोहत हस क इसे

मोर मन ल कलेचुप मोहत हस कइसे 
तोर रुप के जादू चलत हे कइसे 

कर के सोला सिंगार आए मोर आधु मं 
गिरा के बिजुरी ओधिआए मोर पाछु मं 
का हवय तोर मन म नइ जानव का जइसे ...जन्म

बड़ आए ज्ञानी   तय मोर का लागमानी अस 
मय धधकत आगी तय निच्चट  जुड़ पानी अस

तोर मोर भेंट के कछु आस 
नइये ...