Saturday, August 31, 2019

छत्तीसगढ के पर्व और व्यंजन

छत्तीसगढ़  के पर्वानुसार प्रमुख व्यंजन -

तिहार - रोटी/ व्यंजन
हरेली - चीला
पोरा - सोंहारी
तीजा - कुसली /गुजिया
पितर - बरा
देवारी - अइरसा -खिचरी- रोठ
देवठन - फरा -चुकिया
जयंती - तस्मई-चीला
सकरात - तिली- फल्ली  लाड़ू
होरी - ठेठरी -खुर्मी
बर -बिहाव - कड़ी ,बुंदी लाड़ू
मरनी पंगत - मालपुआ / लाडू / बरा
नित्य खान पान - दार -भात - चीला ,अंगाकर, खपरा व बेलना रोटी    साग -भाजी( ४० प्रकार)  बासी( पखाले अउ बोरे ) मिर्चा पताल  अमली करौदा सहित बहुत कन   चटनी आम नीबू आचार ।  मांसाहारी (एच्छिक है)
सहायक व्यंजन -
भजिया आलूचाप आलू गुंडा ,गुलगुला ,बटिया ,दूधफरा   धुसका ,बोबरा  पोपची ,चौसेला ,पिड़ीया , खाजा , खोवा पेडा बालुसाय ,बतासा ,जलेबी सोल काड़ी, पापड़ बरी बिजौरी इत्यादि । मैदा की खस्ता कतरन कार्टुन 
और लुप्तप्राय: टोड़वा  छाता रोटी मंदरस में डुबाकर या उनके  संग ।
यह सब  छत्तीसगढी व्यंजन व मिष्ठान्न है।जिन्हे सुविधानुसार  व इच्छाजनित किसी भी पर्व में बनाए खाए खिलाए जाते है ।
      बेसिक सामाग्री अनाज चांवल गेहूं चना तिल उड़द मुग गुड शक्कर मंदरस दूध  लौग लायची नाडियल खोपरा ।
पेय पदार्थ - चाह , पेज ,पसिया  दूध, मही , गुडपानी शक्करपानी   बेल सरबत ताड़ी  सल्फी मंद, हडिया लांदा आदि।  
       इतनी विविधता के बावजूद यहां कोई भी रोटी व व्यंजन व्यवसायिक रुप से नही बनाए जाते न होटलों रेस्त्रां आदि में बिकते है।
    यहा होटल व रेस्त्रां की संस्कृति नही  रही है लोग गांव  शहरों में रिश्तेदारों के घर भोजन करते है ।
  हां नास्ते में जरुर चाय भजिया आलूगुंडा  बडा समोसा  मिक्चर आदि मिलते है और छोटे छोटे जलपान गृह है उसे ही होटल कहने की परंपरा है।
   संस्कृति विभाग के पहल से कही कही शासन द्वारा प्रचरार्थ इन व्यंजनो के स्टाल  रेस्त्रा गढ़ कलेवा जैसे दो चार सेंटर खलने लगे है।
    टीप -लाज मे रुके बर इहा के मन अबड़ लजाथे  जरुरत परे मं सोझे सहर के सड़क बगीचा बस अउ रेल स्टेशन म मच्छर बबदू के बावजूद ससन भर सो जथे ।
   छग में अनाज को  सड़ा- गलाकर कोई भी व्यंजन नही बनाए जाते न बनाने की संस्कृति है।

    डा. अनिल भतपहरी

Saturday, August 24, 2019

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Sunday, August 18, 2019

खुमान -संगीत

खुमान संगीत

       रविन्द्र संगीत की तरह खुमान संगीत एक अलग अहसास हैं संगीत प्रेमियों के लिए । बाल्यावस्था में ही पिता श्री (सुप्रसिद्ध रंगकर्मी व सतनाम संकीर्तन कार सुकालदास भतपहरी "गुरुजी"  ) के सानिध्य में गीत- संगीत अभिनय आदि सीखने और प्रदर्शन करने  का अवसर मिला ।

      गर्मी व दशहरा - दीवाली  छुट्टी में  गृहग्राम जुनवानी आते तो घर  के  आंगन में खाट पर बैठे पिता श्री बाँसुरी से "का धुन बाजव मय धुनही बसुरिया"  वाली गीत का  धून छेड़ते तो मैं पास रखे हारमोनियम से संगत करते चिटिक अंजोरी निरमल छंइहा ... बजाने कहता और फिर खुमान साव की अनेक धुन युं ही बिना लय तोड़े गीत बजते जाते ... आसपास के कथा कहानी  कहने वाले शोर गूल  करते रेशटीप और अंधियारी - अंजोरी खेलते  बाल टोलियां और निंदारस में डूबे रोचक वृतांत में उललझने वाले सब मोका जाते और हम दोनो बाप बेटे की जुगलबंदी सुनने सकला जाते ... फिर भजन गीत गाने फरमाइश भी होने लगते ...
      आकाशवाणी रायपुर  में बुधवार को दोपहर  सुर श्रृंगार सुनने स्कूल बंक मारते ... और गणित रसायन वाले सर से डांट सुनते पर जब जब  चौरा म गोंदा रसिया, मोर संग चलव रे काबर समाए  रे मोर बइरी नयना मं, पान ठेला वाला या मंगनी म मांगे मया न इ मिलय   जैसे  गीत सुनते  मन अल्हादित हो जाया करते और डाट फटकार होम वर्क की दंश से मुक्त भी हो जाते ।
उनके गीत सैकड़ों- हजारों  बार विगत ४० वर्षों से  सुनते व गुनगुनाते आ  रहे पर मन नही अघाते .. .पता नही क्या चीज इनमें भरा हुआ हैं ?  फिल्मी गीत इनके समछ हल्के लगते ।
कारी  ( एक बार टेकारी आरंग में वही रामचंद देशमुख जी  को  देखे )व चंदैनी गोंदा   (अनेक बार अनेक जगहों पर  झुलझुल कर सिगरेट पीते बिधुन हारमोनियम पर उंगुली थिरकाते खुमान साव जी का दर्शन और दुआ सलाम मंच पर जाकर कर आने का भाग्य हमें कई बार मिल चूका है।
...रामचंद खुमान लछ्मन के तिकड़ी ने वह किया कि छत्तीसगढ़ी की बिगड़ी ही बन गई ।ये तीन ही काफी है कही भी कभी भी इनके भरोसा  खोभिया के या अड़िया के खड़े होने के लिए हम जैसों के लिए ...
    अनेक  गीतों में अपनी  बेहतरीन संगीत संयोजन से जनमानस को मुग्ध व आनंदित करते छत्तीसगढ़ी संगीत को  शिखर तक ले जाने वाले महान संगीतकार खुमान साव जी  को ...विनम्र श्रद्धांजलि ! सत सत नमन।
     ।।वे गये नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के फि़जा में बिखर गये ।।  
      -डा अनिल भतपहरी

Tuesday, August 13, 2019

तिरंगा लहरन लागय हो

शा. हाई स्कूल कोसरंगी( खरोरा )कक्षा 10 में अध्ययन के दरम्यान स्वतंत्रा दिवस की तैयारी करते यह गीत हमसे 1984 में लिखे  ....यह गीत प्रत्येक स्वतंत्रता पर्व में स्मृत होते हैं और अक्सर गाते गुनगुनाते यह दिन व्यतीत होते हैं- तिरंगा लहरन लागय हों

चारो डहर म आज तिरंगा लहरन लागय हो
फहरन लागय लागय हो
देख मन झूमरन लागय
तिरंगा लहरन लागय हो...
लहू के नदिया बोहाय.हे संगी ये देश के माटी म।
कतको वीर जवान शहीद जेन हासत चढ़गेफांसी म।
आज उकरे सुरता हिरदे म बीयापन लगाय हो.....
2केशरिया बल त्याग देवैय्या सादा ह सच्चाई ये।
हरियर रंग खेती बारी के
सदा राहय हरियाली ये।
चक्र घूम घूम एकता के संदेश बाटन लागय हो....
3बड़ भाग्मानी हमन सन्गी आज मिलिस आज़ादी ह।
भागिस हे अंग्रेजिया दुश्मन
बाचेन बरबादी ल।।
आज खुश हो झूम अनिल गीत गावन लागय हो.....
    डॉ अनिल भतपहरी
रचना 12 अगस्त 1984कोसरंगी खरोरा।

Friday, August 9, 2019

विराट कवि सम्मेलन

तपोभूमि गिरौद पुरी सतधाम मेला परिसर मे  प्रगतिशील छग सतनामी समाज द्वारा दि ४-३१७ को आयोजित   "विराट कवि सम्मेलन "मे  तकरीबन  ८५ कवि /कलाकार रात्रि ८ बजे से प्रात:७  बजे तक अनवरत  ११ घण्टे  बेहतरीन प्रस्तुतिया देते रहे..ऐसा लग रहा था कि न श्रोताओं के मन भर रहे है  न  प्रस्तोताओ के।लगन दोनो ओर लगी रही ..सप्तमी के पावन  प्रात: बेला मे गुरु घासीदास का आव्हान करते -
तोला नेवता हे आबे गुरु बाबा  घासीदास गिरौदपुरी म मेला हे ..के सामूहिक मंगल गान से पुरे  देश भर से एकत्र  सभी प्रस्तोता- श्रोता एंव आयोजक बधाई देते मंगल कामना करने लगे।  उत्साह उमंग और विस्तारित होने लगे ....हर्ष ध्वनि होने लगे एक- दो बुजुर्ग सन्त कलाकार मगन थिरकने लगे
अनेक  लोग अभिभूत थे कि ऐसा विलछण अवसर  अपने जीवन काल मे पहली  बार गिरौदपुरी मे  देख सुन रहे है‌ कह प्रफुल्लित अभिव्यक्ति दिये जा रहे थे।
काव्य पाठ का शुरुआत  कु मीना जान्गडे से और समापन श्रीमती  सतरुपा नवरंग से हुई।८१ कवि  ४ कवियत्रियो एव ५-७ संगतकारो  से मंच शोभायमान रहा ।इनमे कोई गुरु चरित   सतनाम धर्म संस्कृति व समाज सापेछ कविता  गीत  तो कोई सस्वर मंगल पंथी  भजन प्रस्तुत कर पुरे रात भर विशाल श्रोता समूह को बान्धे रहा। लोक मंगल कारी सतनाम साहित्य को छग और राष्ट्रीय स्तर के भाषाई पाठ्यक्रम मे रखने संबंधी बाते भी उठी।
     सभी प्रतिभागियों को उप   अतिथियों  एंव आयोजको द्वारा त्वरित  प्रशस्ति पत्र प्रदान किये किये जा रहे थे.
राजस्थान हरियाणा फर्रुखाबाद हरिद्वार दिल्ली  भोपाल असम नागपुर जैसे देश के  सुदुर जगहों  अनुयाई व श्रद्धालू गण मंच को शोभायमान किये।
  उन सब के प्रति सादर धन्यवाद
    जय जय सतनाम
डा अनिल भतपहरी
सचिव
सतनाम साहित्य प्रकोष्ठ
प्रगतिशील छग सतनामी समाजों

गुरुदर्शन दंशहरा मेला भंडारपुरी

"गुरुदर्शन मेला भंडारपुरी "
   सुप्रसिद्ध गुरुदर्शन मेला भंडारपुरी क्वार शुक्ल एकादशी को भरता है जहां लाखों श्रद्धालू देश भर से एकत्र होते है।
   गुरुघासीदास द्वारा प्रवर्तित सतनाम पंथ का व्यापक प्रचार - प्रसार छत्तीसगढ म.प्र.उडीसा मे  हुआ।लाखों अनुयाई और उनसे  संपर्क कर व्यवस्थित स्वरुप देने रामत का सूत्रपात हुआ।
   इन्ही रामत की पड़ाव तेलासी - भंडारपुरी में सैकड़ो एकड़ की भूदान प्राप्त हुआ। फलस्वरुप वहां संत समागम एंव धार्मिक कार्य के निष्पादन हेतु स्मारक आदि बनाने की परिकल्पना साकार होने लगी।संयोगवश अंग्रेज सरकार सतनामियों की लाखों संख्या और उनकी सादगी पूर्ण रहन - सहन तथा कठोर परिश्रम से पड़ती जमीन को उपजाऊ बनाकर कृषि कार्य में रत लोगों के मार्गदर्शक गुरुघासीदास के  प्रभाव को महत्व देने उनके युवा प्रतापी  पुत्र बालकदास को जो सामाजिक संगठन के छेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे थे। उन्हे सोने की मूठ वाली तलवार हाथी और सैनिक रखने की अनुमति देते ८ गांव समर्पित कर राजा धोषित किए। राज्याभिषेक का स्वर्णिम पल ही कलान्तर में "गुरुदर्शन मेला "के रुप में परीणित हुआ।
छत्तीसगढ़ में सतनाम- धर्म संस्कृति की यह सर्वप्रथम महाआयोजन है। इनका शुभारंभ १८२० - २१ मे हुआ।
       सतनाम धर्म -संस्कृति में राम- रावण युद्ध व रावण जलाने वाली दशहरा की प्रथा नही है।बावजूद गुरुदर्शन समागम को दशहरा कहे जाने लगे क्योकि यह   दशहरा के ठीक दूसरे दिन मनाये जाने उत्सव थे फलस्वरुप जनमानस इसे "भंडार दसहरा मेला" कह कर संबोधित करने लगे।इस दिन राजा गुरुबालकदास   भाई आगरदास पुत्र साहेब दास राजसी स्वरुप में हाथी घोड़े ऊंट आदि मे चढकर शोभायात्रा जुलुश निकालते और आखाड़ा प्रदर्शन  , पंथी नृत्य करते अनुयाई हर्षोल्लास पूवर्क राज्याभिषेक का जश्न मनाते ।
     कलान्तर में भंडारपुरी में किला (गढी) के साथ- साथ गुरुघासीदास के निर्देशन में सतनाम साधना व ध्यान सत्संग आदि के लिए भव्य चौखंडा मोती महल गुरुद्वारा का निर्माण  १८३० में हुआ। उनके समछ सूरज- चांद नाम के विशाल जैतखाम स्थापित किए गये । तथा इसी क्वार शुक्ल एकादशी तिथि को ही  आयताकार सत्यध्वज "पालो " चढा़ने और जयकारा लगाते असत्य पर सत्य की जीत का जश्न मनाने महोत्सव का सूत्रपात  हुआ ।इस दिन लाखो अनुयाई को गुरु एंव गुरु पुत्र धर्मोपदेश देते हैं। अनेक तरह के सत्संग प्

Sunday, August 4, 2019

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