कबीर पंथ हिन्दू धर्म के ईश्वर के निर्गुण स्वरुप का उपासक लोगों के समूह थे और समाज मे व्याप्त यथास्थिति वाद के समर्थक व संवाहक भी उनके शिष्य धर्मदास जी कबीर की प्रखरता को साफ्ट हिन्दूत्व रुप दिए क्योकि वे आरंभ से वैष्णव थे वही छत्तीसगढ मे कबीर पंथ का प्रवर्तन ४२ वंश की आशिर्वाद लेकर किए फलस्वरुप कबीर के मूल स्वर यहां अनुगंजित नही हुई।बल्कि अनेक शाखाओं प्रशाखाओं में विभक्त वर्णाश्रम व जातिय व्यवस्था में आबद्ध रहे और कर्मकांड आदि संलिप्त भी ।
जबकि गुरुघासीदास ने ईश्वर के कथित सगुण - निर्गुण से परे बुद्ध की तरह नजरांदाज करके मानवीय व्यवहार व लोकाचार और कृत्रिम जात- पात से विमुक्त कराकर परस्पर सद्भाव व समानता से युक्त सतनाम पंथ प्रवर्तन किया फलस्वरुप अनेक प्रग्यावान और (अ)धर्म -कर्मकांड आदि से उत्पीडित लोग तिलांजलि देकर जातिविहिन वर्गविहिन सतनाम पंथ अंगीकृत कर लिए।
उनकी इस कदम से आह्त सुविधाभोगियों ने अपनी अस्मिता बचाने गुरुघासीदास व सतनामियों के प्रति अनेक तरह के नकरात्मक भ्रम फैलाए ताकि उनके आकर्षण से तेजी से हो रहे पंथ प्रवर्तन थम जाय ।इस अनुक्रम उनके पुत्र राजा गुरुबालक दास की हत्या और सतनामियों को ग्रामों से बेदखल और संपत्ति हडपने जैसे कुचक्र भी चला । १८५०-१९५० करीब १०० वर्षो तक निरंतर उत्पीड़न का दौर जारी रहा। कमोबेश अब भी इन समुदाय के प्रति नकरात्मक रुप से शेष अनुजाति वर्ग से अलग व्यवहार हिन्दुओं और उनके देखा देखी आदिवासी व अन्य प्रांतिक व धर्मी लोगों मे है।
छत्तीसगढ के ग्रामों मे हिन्दू बनाम सतनामी की अवस्था ठीक वैसे ही है जैसे अखिल भारतीय स्वरुप मे हिन्दू बनाम मुस्लिम यह स्पष्ट विभाजन आज भी देखे जा सकते है।
Wednesday, July 24, 2019
छ ग मे कबीर - सतनाम पंथ
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