Saturday, July 13, 2019

शाकाहार बनाम मांसाहार

शाकाहार बनाम मांसाहार

मांसाहार और धर्म यह दोनो अलग मुद्दा हैं।
इन्हे मिलाकर गड़बड़ झाला नहीं करना चाहिए।
शाकाहारी भी अधर्मी व पापी होते रहे हैंऔर मांसाहारी भी धर्मी व पुण्यात्मा होते रहे हैं। इस तरह देखे तो सद्गुणी व व्यवहारिक  होने के लिए शाकाहार- मांसाहार कोई कारक नही है। सच तो यह है कि धर्म सद्गुण को धारण करना होता हैं,शाकाहार -मांसाहार को नहीं। वैसे देखा जाय तो सभी प्राणियों में मानव प्रकृति से सर्वाहारी है उनके दो आतें है संवभवत: इसलिए भी वे अन्य प्राणियों में विशिष्ट है और सर्वोत्तम भी
    बहरहाल गुरुओं और संतो ने मांसाहार इसलिए मना किया कि इन्हे  कुछ शातिर धूर्तों  ने धर्म -कर्म में  में ‌ इसे जोड़ पवित्र/ अपवित्र  छूत- अछूत में श्रेणीबद्ध कर दिए थे। अतः उन्हें उन्ही की भाषा -शैली और प्रवृत्तियों में जवाब दिए गये और जनमानस में आत्मसंबल लाए गये।
    समकालीन समय और अब भी  प्राय: सभी धर्मों में हिंसा है बध यग्य  बलि कुर्बानी  और फिर प्रसाद स्वरुप मांसाहार रहा । बल्कि इन धर्म के अनुयाई में परस्पर ईर्ष्या द्वेष भाव होने से  हिंसक भिंडत होते रहते है सबसे अधिक रक्तपात व वैचारिक खाई व वैमनष्यता  तो इन धर्म वालों  ने फैलाए थे।
उन विकृतियों से मानव  को बचाने नीरिह पशुओं पछी को बचाने भी संतो गुरुओ ने द्वारा  शाकाहार का उपदेश रहा हैं।
      इसके मतलब यह नहीं कि मांसाहारी अधर्मी दुष्टात्मा  है और शाकाहारी धर्मी  व पुण्यात्मा हैं‌।यह सब  शिगुफे  है इनसे बचना चाहिए।
निर्धन ग्रामीण स्कूली बच्चों  में  कुपोषण  आदि से बचने  भोजन को रुचि अनुरुप  मल्टी विटामिन से युक्त ऐच्छिक करना चाहिए अनिवार्य नहीं ।
     डा. अनिल भतपहरी

No comments:

Post a Comment