Friday, July 12, 2019

सच का आत्मार्पण

"सच का आत्मार्पण"

जितने तथ्य है
वह आपके है
जितने कथ्य है
वह हमारे है
कहें हम देख कर
रखे तुम सुन कर
फर्क तो है
देखने-भोगने मे
सुनने-सुनाने में
गढ़ने- गढा़ने में
तथ्यों के निर्धारण मे
उनके संरछण में
सावधानी क्यो
सच पर रंगानी क्यो
कुछ तो रहा प्रयोजन
उनसे विष्णन जन मन
यह उत्कट प्रशस्ति 
कहके प्राचीन
पर कैसी मन:स्थिति
जो है अर्वाचीन   
तथ्य सच होते है
ऐसा है नही
पर सच तथ्य होते है
यह है सही
आवरण बद्ध सच का
होन्गे आनावरण
मिथक और भ्रम
का  उचित निवारण
तथ्यों का पुनश्च
करने होन्गे लोकार्पण
तभी होन्गे जन-मन में
सच का आत्मार्पण...
- डा. अनिल भतपहरी

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