Sunday, July 27, 2025

कविता की सोता फूटती हैं

#anilbhatpahari 

।।कविता की सोता फूटती हैं ।।

कहने से समझ आए 
ऐसी बात ही नहीं 
जो समझ नहीं आए 
उसे कहना ही नहीं 
इस तरह कही -अनकही में
बातें निकल ही जाती हैं
वे कहां आती कहां जाती हैं
यह तो पता नहीं 
पर मन में तो वही बसती हैं 
जो दिल से निकलती
या दिल में  रहती हैं
जैसे मच्छी जल में रहती हैं
पंछी गगन विचरती हैं
फूल पें तितली मंडराती हैं
शरद में शीत झरती हैं
बसंत में मीत के कंठ से 
प्रेम गीत गुंजती  हैं
और बारिस में
नदियों पर नाव चलती हैं 
चकित अनिल के जेहन से  
अनायस कविता की सोता फूटती हैं   

     डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

Friday, July 25, 2025

सूरज चंदा नाम जैतखाम

#anilbhattcg 

जोड़ा जैतखाम में से एक  अब तक नहीं ऐसा क्यो ? 

 जय सतनाम 

सतनाम धर्म संस्कृति के प्रवर्तक गुरु घासीदास जी के सामाज सुधार व नव जागरण से प्रेरित हो ब्रिटिश शासन उनके  मंझले पुत्र गुरु बालकदास  जी को  1820 में राजा घोषित कर सोने की मूठ वाली तलवार भेंट किये और भंडारपुरी में में  भव्यतम  मोती महल ,गुरुद्वारा बाड़ा संतद्वारा बनवाकर सतनाम पंथ का सर्वत्र प्रचार -प्रसार करने लगे। महल के ठीक सामने चांद +सुरुज नाम का जोड़ा जैतखाम गड़ाए और धर्म ध्वज पालो चढ़ाकर प्रतिवर्ष भंडारपुरी में दशहरा के दूसरे दिन गुरु दर्शन मेला विजया एकादशी को  "भंडार दशहरा "के नाम से   गुरु दर्शन मेला की शुरुआत 1830 में किये गये । 
     इस पावन अवसर पर मार्गदर्शक  गुरुघासीदास सेत सुमन घोड़ा , प्रबंधक राजा गुरुबालकदास ,पुत्र गुरु साहेबदास  हाथी दुलरवा और संचालकअनुज गुरु आगरदास साहेब  सांवल घोड़ा मे में सवार निकलते। आसपास के अनेक एंव  दल आखाड़ा दलों  का भव्य प्रदर्शन के साथ बाजे- गाजे से शोभायात्रा निकलतेऔर उपस्थित हजारों लोगो को गुरुओ द्वारा धार्मिक उपदेशनाएं थे। यह प्रथा अब भी यथावत चला रहा हैं।
   मोती महल की उपदेशात्मक रुप शिल्पांकन विश्व में एकमात्र और अनुठा है। मंदिर के शिखर पर स्थित चारों कंगुरे पर  तीन बन्दरों एंव एक पर गरजते शेर का शिल्पांकन और सहस्त्र कमल दल के ऊपर स्वर्ण कलश , त्रिशरण का प्रतीक सात ज्योतिर्पुनज और  आकाश में अनिहर्श फहरते हुए  धर्म ध्वज पालो  सतनाम दर्शन की व्याख्या करते एक दृटाष्ट के रुप में चौखंडा महल रहा है । इसे हमलोग बचपन से देखते और उससे प्रेरणा लेते आ रहे हैं।
हालांकि आकाशीय बिजली से उक्त ऐतिहासिक ईमारत क्षतिग्रस्त हुआ और सुन्दरलाल पटवा सरकार के समय इसके जिर्णोद्धार हेतु पुरातत्च विभाग के अधीन किये गये। 
    आगे चलकर पुरी तरह नव निर्माण किया जाएगा ऐसा निर्णय से गुरुद्वारा को ध्वस्त कर नीचे का तलघर बनाया गया और ऊपर एक मंजिल काष्ट शिल्प से युक्त भारवट खंभे के अनुरुप पहला मंजिल बना कर युं ही छोड़ दिये गये हैं‌।  वर्तमान में  तो आधे -अधुरे निर्माण इन 35 वर्षो से जीर्ण -शीर्ण हो चूका हैं। पुरी एक पीढ़ी सतनाम दर्शन एंव दृष्टान्त से युक्त उस भव्य ईमारत के दर्शन से वंचित हैं।
बहरहाल महल जब बने तब बने ( सुनने मे आया है कि‌  छत्तीसगढ़ शासन इसके लिए सत्रह करोड़ राशि स्वीकृत भी कर दिये हैं।) कम से कम वहां स्थापित जोड़ा जैतखाम में सुरुजनाम का अकेला जैतखाम हैं। चांदनाम जैतखाम अबतक स्थापित नही हो सका हैं। प्रतिवर्ष भव्यतम दशहरा मेला लगता पर पालो एक जैतखाम में चढाये जाते है और दूसरा जैतखाम मे पालो‌ को चांदनाम जैतखाम के चबुतरे में खोच दिये जाते हैं। अन्यन्त पीड़ादायक हैं।

ज्ञात हो कि महल का बाह्य और आतंरिक संरचना की पुरी विडियोग्राफी  पुरातत्व  विभाग द्वारा किया गया । संबंधित अधिकारी सेवानिवृत हो गये है और वह कहां किसके पास संरक्षित है अज्ञात हैं। मै जानने का प्रयास किया पर नही पता चला और अब तक सार्वजनिक नही हो सका हैं। ऐसा भी हो सकता है कि रख रखाव या बदलते  टेक्नालांजी के कारण वह खराब हो चुका हो।
शुक्र है एक पुरानी फोटो एम्बेसेटर वाली सोसल मीडिया में है ।और दूसरी मेरे द्वारा 1993 में खिची फोटो हैं।
मंदिर का कलश कंगुरा , और गुरुगद्दी का चरण पादुका  डा  सोनी कृत सतनाम के अनुयाई किताब में संरक्षित हैं।
सोसल मीडिया में न ई पीढ़ी को अवगत कराने इन चित्रों को  सभी वायरल करते आ रहे हैं। अन्यथा वह भी दर्शन करने नही मिलता ।

पोष्ट का उद्देश्य कि एक अदद  चांदनाम जैतखाम‌ के  खाली चबुतरे में  जैतखाम स्थापित हो और धर्म ध्वज पालों चढे। ताकि लाखों- करोड़ो लोगों की आस्था यथावत बनी रहें।  इस ओर सभी का  ध्यान आकृष्ट होनी  चाहिये और सार्थक पहल होनी चाहिये ।आखिर ऐसा क्यो है और किस प्रयोजन के लिए हैं दूसरा चांदनाम जैतखाम स्थापित नही हो पा रहा हैं?  
    कृपया इसे शेयर कीजिए और संबंधितों तक पहुचाएं ताकि सार्थक पहल और हल हो सकें।
      जय सतनाम 
     - डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

Thursday, July 24, 2025

सतनाम पंथ न कि आंदोलन

सतनाम पंथ ( धर्म) के अनुयायियों का आंदोलन 

  हमारे बुद्धिजीवियों लेखकों विचारकों के साथ साथ सामाजिक पदाधिकारियों राजनेताओं गुरुओं साधु संतों महंतो द्वारा जाने अनजाने बात चित या संबोधन लेखन आदि में सतनाम पंथ धर्म को सतनाम आंदोलन या Satnam Movement कहे जाते हैं या साधारणतः झोंक या लहज़े में निकल आते हैं इसके कारण थोड़ी असमंजस की स्थिति निर्मित हो जाती हैं। फिर सतनाम पंथ में जातिप्रथा उच्च नीच जैसा भेदभाव जन्य परिस्थिति भी नहीं हैं। और यह एक तरह से सामाजिक क्रांति( social  revolution )के द्वारा प्रतिष्ठित हैं। आंदोलन शब्द संघर्षरत लोगों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हैं फलस्वरुप सतनाम को आंदोलन समझ लिए जाते हैं। जब हक अधिकार  लिए संघर्ष करते जनसमूह जय सतनाम का उदघोष करते नारा लगाते हैं तो एक बारगी बोलचाल में सतनाम आंदोलन कह बैठते और इस तरह सतनाम का व्यापक समावेशी अर्थ संकुचित और संकीर्ण हो जाते हैं।  
   वर्तमान समय में सतनाम आंदोलन शीर्षक लिए हुए कुछेक पुस्तकों के प्रकाशन और उनके प्रतिष्ठित लेखकों के कारण भी। बड़ी तेजी से अपने और गैर भी सतनाम को आंदोलन समझ रहे हैं हमारे लोगों की दृष्टि में व्यापक अर्थ तो हैं जैसा कि उनके मनो मस्तिष्क में बैठा है परन्तु जो गैर हैं वह उसे। स्वतंत्रता आंदोलन, राम जन्म भूमि आंदोलन, चिपको आंदोलन, किसान आंदोलन, मजदूर आंदोलन, रेल रोको आंदोलन जैसे अर्थों में लेने और समझने लगे हैं। इसलिए विनम्र आव्हान और निवेदन हैं महान युगांतरकारी समानता पर आधारित जाति वर्ण विहीन सतनाम  धर्म ( पंथ)को सतनाम आंदोलन नाम से संबोधित करने लिखने समझने की भूल न करें।

गुरु घासीदास ने तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था को देखते हुए  पुरी यात्रा की वहां संगत से प्रेरित वापसी में चंद्रसेनी की बलि प्रथा देख उद्वेलित हुए। गिरौदपुरी घर न आकर सीधे तप साधना हेतु सोनाखान जंगल चले गए। 
और जब  लौटे तो कुछ सिद्धिया/ सिद्धांत लेकर समाज के समक्ष रखें। उसी क्षण  सतनाम पंथ का प्रवर्तन हो गया। उन्होंने कुछेक नियम नीति बनाए और सतत प्रचार प्रसार करते  उपदेश वाणी दृष्टांत कहते जन जागरण किया। यह भी मानव समुदाय के लिए नवीन जीवन पद्धति यानि आध्यात्मिक मार्ग हैं। जैसे बुद्ध का बौद्ध धम्म, कबीर का कबीर पंथ,रैदास का रैदासी पंथ नानक का सिख खालसा पंथ।  ठीक गुरु घासीदास का सतनाम पंथ हैं न कि आंदोलन।
हा बौद्धों, जैनों ,हिंदुओं, ईसाइयों, कबीर पंथियों का आंदोलन हुआ,थमा, दबा और   फिर होगा। ठीक सतनामियो का आंदोलन हुआ थमा या दबा। फिर हुआ,हो रहा हैं । पर पंथ मत मजहब धम्म आदि सदैव रहेगा। वह आंदोलन नहीं हैं। यह दर्शन,पूजा पद्धति और जीवन निर्वाह का तरीका हैं। या कहे धर्म हैं यह कैसे आंदोलन होगा?
   विगत 25 वर्षों से यह कहते आ रहे हैं कि सतनाम पंथ या धर्म हैं। इनके माध्यम से जनजागरण हुआ और हक अधिकार के लिए समय समय पर अनुयायियों ने आंदोलन किए। यह आंदोलन सतनाम नहीं बल्कि सतनामियों का आंदोलन हैं।
इस महीन और सूक्ष्मतम परंतु आधार भूत अन्तर को समझना चाहिए।
एक 80_90 वर्ष का बुजुर्ग के लिए, अपाहिज  बीमार और कातर दुःखी लोगों के लिए सतनाम सुमरन आध्यात्मिक शांति सुख  और आत्मबल के लिए कामना करना हैं।  न कि हक _अधिकार के लिए आंदोलन। 
   इन सभी बातों को गहराई से समझना चाहिए।
सतनामियों का आंदोलन सतनामियों की क्रांति, सतनामियों का संघर्ष हैं। न कि सतनाम आंदोलन क्रांति या संघर्ष।
इस अन्तर को समझिए और लोगों को समझाये।
अन्यथा अच्छा खासा पंथ/धर्म sect & Relegin को आम लोग केवल आंदोलन या क्रांति movement & revalation मान लेंगे।

जय सतनाम

Tuesday, July 15, 2025

चंदन के सुगंध

चंदन के सुगंध बगरइया चंदन गुरुजी के गीत कविता के महमइ

जइसन नाव तइसन गुन के धनी गाँव गवई  में गुजर बसर करत लोक जीवन के सुघरई अउ महमइ सकेलत गोकुल प्रसाद बंजारे "चंदन "  गुरुजी हर बड़ गुणवंता शिक्षक आय। तेकरे सेती उन ल हमर देश के राष्ट्रपति जी से सम्मान मिले हवय । ये तरा से उन मन समाज अउ के राज के रतन आय।  उनकर रचना हर  संदेश परक श्लोगन सरीख हवे _

लाज सरम ल छोड़ अपन ।
मन के कुंठा ल तोड़ अपन ।।

कहत जनचेतना के संचार करथय। सरल सहज संत सुभाव  वाले गुरुजी हर लोक चितेर कवि अउ गीतकार घलो आय। ओमन साहित्यिक सांस्कृतिक आयोजन में सरलग आवत जावत रहिथे।ते पाय के बदलत जमाना अउ फैशन के हिहाव उकर शब्द चित्र ल थोरकिन देखव- 

निकले हवय जींस पैंट पहिन 
चप्पल अउ पनही
हमर खेती खार काम म
ओ कइसन बनही 

कहत  ओमन प्रकृति अउ प्रवृति के ऊपर  पोठलगहा सवाल उचाथे.

प्रकृति के बात आइस तब उकर 
सुघराई गाँव खेत_ खार  हर जगा बगरे हे कवि देख मोकाय बानी लिखथे- 

लाली गुलाली परसा फुलगे
दुल्हिन संग म करसा खुलगे
अउ आघु 
आमा मउरे कहर महर महके 
कोन हर  कति डहर लहके 


कहत मनसे, जीव जन्तु  के ऊपर परत प्रभाव ल लिखथे.

 ओमन अपन अन्तः करण म उमड़त भाव ल आखर म भर के गीत कविता के पाग म बांध के लोगन के आगु मयारुक  ढंग से सस्वर सुने म बड़ मीठ बिहतरा लाडू  खाय कस मन अघा जथे.अइसन सुग्घर  उनकर छत्तीसगढ़ी  रचना संसार हवे-

राजभाषा बनगे बोली छत्तीसगढ़ी  जी 
इही  म होही  सरकारी लिखा पढ़ी जी 
हमर पुरखा मन के सपना होगे सकार ग
गाँव गली खोर बगरही  मया पीरित  दुलार ग 
चलव बिना डरे झिझके दरबार चढ़ी जी  

    उनकर करु -कसा भाव तको मंदरस कस मीठ हवे. काबर कि गुरु बाबा कहें हे -"मंदरस के सुवाद ल जान डरे त सब ल जान डरे " 
गुरु बाबा के परम् भक्त चंदन जी हर गुरु भाव अउ असीस उत्तराधिकारी हवय तेन पाय के उकर काव्य म सबोझन बर मंगलकामना करत उदगरित होय हवे -

कभु लबारी झन मार बेटा न चुगरी न चारी.
सुख-दुःख म तय हासत रहिबे 
जइसे सुरुज चंदा उजियारी.

शिक्षा अउ साक्षरता संबंधी कतकोन रचना हवे फेर बंजारे चंदन गुरुजी के भाव सबले अलगेच हवे - 
मोर कहु हो जातिस बहिनी आखर संग मितानी.
मुड़ ऊचा के महूँ रेंगतेंव गुनतेंव आनी बानी 

शिक्षा पाए ले कइसे समझ आथे अउ उनकर परभाव कतेक होथे एकर सुग्घर वर्णन हवे.
उनकर गीत कविता हर शिल्प विधान के दृष्टि ले भले कमती हो सकत हे काबर कि उन आखर- मतरा के गुना -भाग मे उलझें नइहे भलुक उकर जाला -बंधना ल हवा कस झकोरत अउ भाव जगत ल नदिया कस धार फिजोवत  ममहावत बोहथे - 

सुख म हो खर्चा त बने दिन पहाथे
नंदिया म ख़ुशी के ग जिनगी ह नहाथे 
सब आजेच उड़ाहु तब काली कइसे आही.
आफत अउ बिपत ले भला कोन बचाही.
जइसे सरल-सुगम फेर प्रभावी डाड़ हर सुरता राखे के लाइक हे.
गाँव खेती बारी तीज त्यौहार धरम  करम मेला मड़ई  शिक्षा, साक्षरता, स्वास्थ्य ग्रामीण प्रशासन जइसे विषय के ऊपर उकर लेखन अउ शब्द चयन मन बड़ सेहरौनिक हवे. सच मे ओकर रचना संसार मे जाय ले,  कवि संग साघरों करें ले चंदन के पावन महमही जनाथे.ते पाय के उनमन मोरे महसूस करें भाव ल लेके अपन कविता गीत संग्रह के नाव चंदन के सुगंध नाव धरे बर झटकुन सहमत होगिन.
   ऐ रचना बर चंदन गुरुजी ल बधाई देवत आस करत हवन कि येला छत्तीसगढ़ी संसार मे एक मन आगर सुवागत करें जाही.अउ पाठक शिक्षक शोधार्थी मन बर उपयोगी होही.

जय जोहार, जय छत्तीसगढ़

प्रो. डॉ.अनिल कुमार भतपहरी ( 9617777514)
प्राध्यापक हिंदी 
उच्च शिक्षा विभाग, छत्तीसगढ़ शासन

Wednesday, July 9, 2025

बलि प्रथा

सम्राट अशोक के बौद्ध अपनाते ही भारत वर्ष सहित उनके आधिपत्य क्षेत्रों के प्रजाओ का धर्म भी बौद्ध धर्म हो गया।  फलस्वरुप उन सभी जगहों पर बौद्ध स्थापत्य के अवशेष विद्यमान है।
   सम्राट अशोक के नाती वृहदत्त की हत्या कर पुष्प मित्र शुंग ने बौद्ध शासन का तख्ता पलट कर  मनुस्मृति लागू किया और उन्हीं के अनुरुप असमानता युक्त वर्ण व्यवस्था जाति प्रथा कठोरता से लागू हुआ। अनेक पुराण शास्त्र रचे गए।  शंकराचार्य आए और मठ मंदिर बने इस तरह  भारत अस्तित्वमान हुआ। भेदभाव जन्य और देशी रियासतों की परस्पर प्रतिद्वंदिता ने विदेशी आक्रांताओं खासकर मुगल पठान आकर सत्तासीन हुए फिर अंग्रेजों की बारी आई। इस हजारों साल की दसता भुगतने विवश हुए। इसके प्रमुख कारण अमानवीय वर्ण/ जाति व्यवस्था ही है। विदेशी शासको के दरबार में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य प्रभावशाली पदों पर रहे और इस कुप्रथा को यथावत कायम रखें।  जबकि प्राचीन बौद्धों को चौथे वर्ण शूद्र घोषित कर उनके साथ अमानवीय व्यवहार किए गए। इन पर मुस्लिम शासकों और मुगलो ने हस्तक्षेप नहीं किया लेकिन आधुनिक शिक्षा और वेतन भोगी अंग्रेज अधिकारियों ने अनेक आदिम बर्बर प्रथाओ को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसलिए भी अंग्रेजों की हस्तक्षेप से बचने कुछेक राजघराने उच्च वर्गीय लोगो ने विद्रोह किया। कालांतर में  आम जनमानस  शूद्रों के जुड़ने के बाद हिन्दू धर्म का कांसेप्ट लाया गया । हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग कांग्रेस की अगुवाई से वह स्वतंत्रता आंदोलन में बदल गया। अंततः आजादी मिली पर धर्म के कारण दो देश बने परन्तु मानव समुदाय में भेदभाव आज पर्यंत खत्म नहीं हुआ बल्कि वोट बैंक के रुप में लामबंद हो गए।
  बौद्ध धर्म के अनुयाई चौथे वर्ण के शूद्र घोषित कर दिए और उनकी 6हजार जाति उपजाति बनाकर जाति भास्कर रचकर तीन वर्ण के लोग देश की संप्रभुता पर एकाधिकार कर लिए। यह रोचक दास्तान है और उसे जानने समझने के लिए हर जाति वंश लोक में चलने वाली प्रथाएं हैं।
लोक पर्व हैं। आपने जो बलि प्रथा का जिक्र किया वह सामाजिकता और उस समय की सामूहिकता को व्यक्त करते हैं न कि गैर बराबरी बर्बर व्यवस्था को ।
यह महात्मा बुद्ध की मानवता और समानता पर आधारित धम्म का ही प्रभाव है न कि वेद शास्त्र पुराण आधारित वर्ण जाति व्यवस्था। इनका जमींदोज हो जाना ही बेहतर हैं। तभी राष्ट्र समृद्ध और अक्षुण्ण बना रहेगा।

 वैदिक सभ्यता की यज्ञ बलि प्रथा से युक्त थे गोमेघ यज्ञ, अश्व मेघ यज्ञ नरमेघ यज्ञ इत्यादि थे।
इसलिए "वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति" कहकर बलि प्रथा को महिमा मंडित किए गए। राजा से लेकर पुरोहित तक बलि के मांस खाते और मदिरा पान कर उन्मत्त रहते थे। इसलिए भी यज्ञों का प्रतिरोध होने लगा था।
सभी समाज में बलि प्रथा रहा हैं। संतो गुरुओं के कारण बलि प्रथा बंद हुई।

Thursday, July 3, 2025

सेक्युलर यानि धर्म पंथ संप्रदाय निरपेक्ष

#anilbhattcg 

समसामयिक 

सेक्युलर यानि धर्म/ पंथ/संप्रदाय निरपेक्ष 

शासन और प्रशासन किसी भी धर्म,पंथ, संप्रदाय को बढ़ावा नहीं देगा और न ही उनके आधार पर चलेगा । बल्कि संविधान सम्मत चलेगा। संविधान देश के नागरिकों के लिए उपयोगी या अनुपयोगी हैं  के ऊपर संसद में परिचर्चा के उपरांत बहुमत के आधार पर लोक कल्याणार्थ संशोधनीय होगा।
   मनुष्य और समाज का मौलिक अधिकार है कि वह अपनी पसंद या विरासत से धर्म पंथ संप्रदाय चयन कर सकता हैं। परन्तु शासन /प्रशासन का नहीं। यह सामान्य सा अर्थ हैं। 
  धर्म निरपेक्ष या सेक्युलर का यह अर्थ कदापि नहीं कि वह धर्म पंथ संप्रदाय आदि का विरोधी होगा बल्कि वह उनसे निर्लिप्त/ तटस्थ होगा और किसी एक को बढ़ावा नहीं देगा और न किसी दूसरे का प्रतिरोध करेगा। विशाल जनसंख्या,बहु धर्मी/विविधता पूर्ण जीवन शैली वाली इस उपमहाद्वीय महादेश में  निरपेक्ष का आशय तटस्थ भाव हैं। शासन_ प्रशासन धार्मिक मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा। व्यक्ति और समुदाय स्वतंत्र हैं उन्हें धार्मिक आज़ादी मिली हुई हैं। 
    पार्टियां शासन _प्रशासन नहीं हैं ,उनकी अपनी धर्म /पंथ /संप्रदाय हो सकते हैं । परन्तु यदि वह सत्तारूढ़ हुई तो कतई सत्ता किसी धर्म पंथ संप्रदाय को बढ़ावा नहीं देगा। बल्कि संविधान के अनुरुप ही अपनी कार्ययोजना बनाकर जनता के कल्याणार्थ काम करेगी। 
     जय संविधान _जय भारत

Monday, June 23, 2025

जात पात

कुछ समय से नहीं बल्कि जब से मनुष्य को वर्ण जाति  गोत्र आदि में बाटी गई और उन्हें शास्त्र सम्मत घोषित किए गए तब से कहते आ रहें हैं।  सर्वाधिक पढ़े सुने जाने वाले मानस में स्पष्ट लिखा है _

जे वर्णाधम तेली कुम्हारा,स्वपच किरात कोल कलवारा ।
ये जातियां चारों वर्ण से भी अधम हैं यानि अंतिम वर्ण शूद्र से भी नीचे। फिर भी यही समुदाय इसे भजन बनाकर नाच गा रहे हैं उन्हें न अर्थ की समझ न भाव की। ऊपर से अपनी गाढ़ी कमाई दान दक्षिणा चढ़ावे में लूटा रहे हैं 

इस तरह के अनेक उदाहरण ऋचा श्लोक दोहा चौपाई के रुप में कई ग्रंथों में उपलब्ध हैं।फिर भी इन्हीं उत्पीड़ित जातियों को वह अत्यंत प्रिय हैं।  यही तबका सर आंखों में बिठाए हुए हैं।
         हिंदू धर्म में जन्मना जातपात और उनमें अमानवीय उच्च नीच भेदभाव के जनक उनके कथित शास्त्र और धर्मग्रंथ हैं। उसे ही आदर्श बनाकर ढोते आ रहें है। 
यदि देश में समानता और समरसता चाहिए तो इन में लिखी गई आपत्तिजन्य अग्राह्य चीजों को विलोपित करें या प्रतिबंधित। जब संविधान संशोधित हो सकते हैं तब तत्कालीन परिस्थिति को देखते लिखी गई पुस्तकें क्यों नहीं?आखिर किसी भी मानव समुदाय को कोई दूसरा मानव समुदाय केवल उनकी जाति के आधार पर सार्वजनिक रुप से भेदभाव करें और इसके केन्द्र में ऐसे पुस्तक जो धर्मग्रंथ के रुप में जाने समझे जाते हो।  उनका परित्याग आवश्यक हैं। इनके लिए जनांदोलन और व्यापक मांग बहुसंख्यक शूद्र वर्ण के लोगों को करना चाहिए जिसमें 6000से अधिक जातियां हैं और उन्हें गाहे बगाहे उनकी हैसियत बताएं जाते हैं। आखिर चंद लोगों में ऐसा करने का दुस्साहस आते कहा से हैं? आप जैसे विचारक कथाकारों को तो गंभीरतापूर्वक सोचना चाहिए। बल्कि काल्पनिक और मिथकीय चीजों में समय नष्ट करने के बजाय अपनी वॉक कला और प्रभाव को सामाजिक क्रांति में लगानी चाहिए।
मानव मानव एक समान जात पात का मिटे निशान मिशन में काम करना चाहिए। भेदभाव को बढ़ावा देने वाली शक्ति और तत्वों से संघर्ष करना चाहिए।