सतनाम पंथ में समग्र विकास का सूत्र
सतनाम पंथ की मुख्य सिद्धांत मनखे मनखे एक वर्तमान समय में अत्यंत प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हों चूके हैं.क्योंकि सारा विश्व धर्म सम्प्रदाय के नाम पर बटते ही नहीं बल्कि तेजी से कटते जा रहें हैं.अनेक देशों और देश के राज्यों में भी धार्मिक और साम्प्रदायिक हिंसा अनवरत जारी हैं.तब सतनाम पंथ की बातें कितना मूल्यवान हैं यह समझा जा सकता हैं.इसे मात्र आंदोलन कह उनके असीम भाव व्यंजना को सीमित और संकीर्ण करने की नापाक कोशिश जाने -अनजाने में हो रहें हैं. गुरु और उनके अनुयायी को आंदोलनकारी और क्रांतिकारी कह उनकी सार्वभौमिक स्वीकार्य पर भी प्रश्न खड़े किए जाने लगे हैं. संभवतः इस कारण भी मुख्यधारा से प्रतिरोधी स्वर समझ लोग मूल्यांकन कर बैठते है. हलांकि उनके उच्चतम आदर्श अन्यान्न कारणों से विस्तारित नहीं हो सका परंतु सोसल मीडिया आने से सतनाम धर्म संस्कृति के ऊपर अनेक तरह के आलेख और गीत भजन देखें पढ़े सुने जा सकते हैं. सबकी अलग अलग मन्तव्य और धारणाएँ हैं. इन सबके चलते गुरु घासीदास और उनका सतनाम पंथ पर सम्यक् दृष्टिपात करने की आवश्यकता है.
बहरहाल गुरु घासीदास नि:संदेह एक आध्यात्मिक संत हैं. और उन्होनें समाज और धर्म कर्म में परिव्याप्त बुराइयों को दूर करने हेतु अनेक तरह के सुधार और रचनात्मक कार्य निष्पादित किए.
सतनाम आंदोलन नहीं बल्कि सतनामियो का आंदोलन हैं जिसके प्रणेता गुरु घासीदास के सुपुत्र राजा गुरु बालक दास हैं. गुरु घासीदास ने आजीवन मनुष्य को बेहतर बनने उपदेश दिए और निरंतर अपने मतो सिद्धांतों के प्रचार -प्रसार और लोगों को जोड़ने हेतु दूर -दूर तक यात्राएँ की. खासकर अपनी जगन्नाथ पुरी यात्रा से वापसी के समय चंद्रसेनी देवी मंदिर चंद्रपुर में पशुबलि को देख हतप्रभ और विह्वल हुए -
देखें लहूटत चंदरसेनी म बलि छै दत्ता पाड़ा
मन बिचलित हलाकन जीव हिंसा गाड़ा गाड़ा
देख बबा के मन भिरंगे तीरथ मे शांति नई पाए
पुन्नी के पुनवास मे सतनाम सतनाम उचारे...( सतनाम संकीर्तन (
फिर वहीं से वे साधना हेतु सोनाखान जंगल चले गए
आत्म ज्ञान और सिद्धि उपरांत वे गिरऊंदपुरी में फागुन शुक्ल सप्तमी 1795 को युगान्तरकारी जातिविहीन कर्मकांड विहिन समता पर आधारित हजारों अनुयाइयों के समक्ष सतनाम पंथ का प्रवर्तन किये.
फिर धर्म कर्म में व्याप्त अंधविश्वास बलि प्रथा जैसे कर्मकांड को रोकने छत्तीसगढ़ के चारों शक्ति पीठो चंद्रपुर, दंतेवाड़ा,डोंगरगढ़ रतनपुर में यात्राएं की. इनके साथ चिरई पदर,कांकेर,पानाबरस, भवरदाह,दल्हा पहाड़ जैसे विशिष्ट 9 स्थलों पर की गई " सतनाम रावटी यात्रा "अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. रामत यात्रा के अनेक जगहों पर सामाजिक रुप से जातिभेद मिटाने और सतनाम पंथ में दीक्षित करने उनके इस महाभियान में अनेक संत महंत सम्मलित हुए. वर्तमान में इन जगहों को सतनाम शक्ति केंद्र के रुप में प्रतिष्ठित कर विविध आयोजन किये जा रहें हैं अत्यंत सुखद और अल्हादकारी हैं.
. सतनाम पंथ चलाए यह एक सरल सहज जीवन शैली है जो एक व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति और समाज के साथ कैसे समानता पूर्वक व्यवहार करें की नैतिक सीख है. सात्विक खान पान, सादगी पूर्ण रहन सहन, सत्य अहिंसा के प्रति निष्ठां व्यसन मुक्त जीवन शैली अपनाकर परिश्रम करते जीवन यापन से व्यक्ति स्वयं के आर्थिक और सामाजिक स्तर को भी ऊपर उठा सकते हैं और दूसरों को भी उक्त आदर्श जीवन शैली से सुधारा जा सकता है.
गुरु घासीदास की उक्त सीख और शिक्षा पर चलते लोगों का कल्याण होने लगे तो जनमानस श्रद्धा वश अपनी अर्जित उपलब्धियों को गुरुकृपा,आशीष या चमत्कार समझ लिए.और उन्हें अवतारी पुरुष मानकर पूजने लगे! इस तरह सतनाम पंथ की आध्यात्मिक और धार्मिक विरासत को, गुरु और गुरु की वाणी के प्रतिबद्ध साधक विषम परिस्थितियों और अभाव के बीच भी सुखी संतुष्ट जीवन शैली अपनाएं हुए शांति पूर्वक जीवन यापन करते आ रहें हैं.
गुरु घासीदास नें कभी राजनैतिक सत्ता, पद -प्रतिष्ठा के लिए ना ही कोई आंदोलन किए और ना ही वे इस तरह के चीजों के आंदोलनकारी या क्रांतिकारी थे. बल्कि वे बुद्ध कबीर की तरह तत्व वेत्ता दार्शनिक और पंथ प्रवर्तक है. वे लोगों के हृदय में राज़ करते है इस कारण सदैव प्रासंगिक. उनका किसी राज्य के प्रजा के ऊपर राज्य नहीं न ही धन संपदा वाली ऐश्वर्य . इस तथ्य को भली- भाँति लोगों को समझना चाहिये.
गुरु घासीदास तो बुद्ध के तरह ही आर्थिक संपदा अर्जित करने के बाद मोती महल गुरुद्वारा और कई गाँवों की मिल्कियत को देख -समझ कर उन सब का परित्याग कर एकान्त वासी हो अज्ञात स्थल पर चलें गये ( धारणा है कि वे तपोभूमि गीरौदपुरी के सुरम्य वन प्रान्तर और छाता पहाड़ में रहने लगे ) यह बातें उन्हें महान तपसी,त्यागी संत और गुरु जैसे विशेषण से युक्त महापुरुष बनाते है.
तो यह बातें स्वमेव सिद्ध हैं कि सतनाम अन्य धर्म मत पंथ से बिल्कुल अलग समानता पर आधारित प्रथम जाति विहीन समुदाय का पंथ या धर्म हैं. जिसमें मानव विकास के समग्र सूत्र सन्निहित हैं. मनखे मनखे एक जैसी उदात्त सिद्धांत वैश्विक विस्तार पर हैं. सतनाम के अनुयायी सतनामी हैं और यह ज़ात -पात वर्ण रंग नस्ल भेद से ऊपर मानवता के संपोषक हैं. इन्ही सतनामियो का आंदोलन समाज में अपनी अस्मिता और वजूद को कायम करने हेतु राजा गुरु बालक दास के नेतृत्व में हुआ. जो आज भी समय समय पर हक अधिकार के लिए या दमन शोषण के प्रतिरोध में यदा कदा स्थानीय स्तर पर होते हैं. इनके केन्द्र में गुरु घासीदास जी का सतनाम दर्शन और उनके उन्नत विचारधारा हैं. जों आने वाले समय में मानव समाज के लिए अत्यंत उपयोगी और अनिवार्य होंगी.
. डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514
प्राध्यापक,उच्च शिक्षा विभाग, छत्तीसगढ़
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