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सतनाम आंदोलन नहीं बल्कि जन जागरण वाली दर्शन एवं पंथ हैं.
सतनाम पंथ को आजकल आंदोलन कह उनके असीम भाव व्यंजना को सीमित और संकीर्ण करने की नापाक कोशिश जाने -अनजाने हो रहें हैं. गुरु घासीदास को आंदोलनकारी और क्रांतिकारी कह उनकी सार्वभौमिक स्वीकार्य पर भी प्रश्न खड़े किए जाने लगे हैं. आजकल सोसल मीडिया में सतनाम धर्म संस्कृति के ऊपर अनेक तरह के आलेख और गीत भजन देखें पढ़े सुने जा सकते हैं. सबकी अलग अलग मन्तव्य और धारणाएँ हैं. इन सबके चलते गुरु घासीदास और उनका सतनाम पंथ पर सम्यक् दृष्टिपात करने की आवश्यकता है.
बहरहाल गुरु घासीदास नि:संदेह एक आध्यात्मिक संत हैं. और उन्होनें समाज और धर्म कर्म में परिव्याप्त बुराइयों को दूर करने हेतु अनेक तरह के सुधार और रचनात्मक कार्य निष्पादित किए.
सतनाम आंदोलन नहीं बल्कि सतनामियो का आंदोलन हैं जिसके प्रणेता गुरु घासीदास के सुपुत्र राजा गुरु बालक दास हैं. गुरु घासीदास ने आजीवन मनुष्य को बेहतर बनने उपदेश दिए और निरंतर अपने मतो सिद्धांतों के प्रचार प्रसार और लोगों को जोड़ने हेतु दूर दूर तक यात्राएँ की.
वे सतनाम पंथ चलाए यह एक सरल सहज जीवन शैली है जो एक व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति और समाज के साथ कैसे समानता पूर्वक व्यवहार करें की नैतिक सीख है. ऐसा कर भी अपने जीवन स्तर और आर्थिक स्तर को भी सुधारा जा सकता है.
गुरु घासीदास राजनैतिक सत्ता पद प्रतिष्ठा के लिए ना ही कोई आंदोलन किए और ना ही वे इस तरह के आंदोलनकारी या क्रांतिकारी थे. बल्कि वे बुद्ध कबीर की तरह तत्व वेत्ता दार्शनिक और पंथ प्रवर्तक है. वे लोगों के हृदय में राज़ करते है इस कारण सदैव प्रासंगिक. उनका किसी राज्य के प्रजा के ऊपर राज्य नहीं न ही धन संपदा वाली ऐश्वर्य . इस तथ्य को भली भाँति लोगों को समझना चाहिये.
गुरु घासीदास तो बुद्ध के तरह ही आर्थिक संपदा अर्जित करने के बाद मोती महल गुरुद्वारा और कई गाँवों की मिल्कियत को देख समझ कर उन सब का परित्याग कर एकान्त वासी हो अज्ञात स्थल पर चलें गये ( धारणा है कि वे तपोभूमि गीरौद् पुरी के सुरम्य वन प्रान्तर और छाता पहड में रहने लगे ) यह बातें उन्हें महान तपसी त्यागी संत और गुरु जैसे विशेषण से युक्त महापुरुष बनाते है.
तो यह बातें स्वमेव सिद्ध हैं कि सतनाम अन्य धर्म मत पंथ से बिल्कुल अलग समानता पर आधारित प्रथम जाति विहीन समुदाय का पंथ या धर्म हैं. इनके अनुयायी सतनामी हैं और इन्ही सतनामियो का आंदोलन समाज में अपनी अस्मिता और वजूद को कायम करने हेतु राजा गुरु बालक दास के नेतृत्व में हुआ. जो आज भी समय समय पर हक अधिकार के लिए या दमन शोषण के प्रतिरोध में यदा कदा स्थानीय स्तर पर होते हैं. इनके केन्द्र में गुरु घासीदास जी का सतनाम दर्शन और उनके उन्नत विचारधारा हैं. जों आने वाले समय में मानव समाज के लिए अत्यंत उपयोगी और अनिवार्य होंगी.
. डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514
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