Sunday, December 8, 2024

दीरखा

#anilbhatpahari 

।।दीरखा ,पठेरा और भुलकी ।।
       
    छत्तीसगढ़ सहित देश भर के ग्रामों  के अधिकांश घरों की दीवारों पर  दीरखा,पठेरा  और भुलकी पाए जाते हैं। इसे  बनाने की विशिष्ट परंपराएँ हैं क्योकिं इनके माध्यम से मानव सहजतापूर्वक  अपनी जीवन यात्रा निर्बाध रुप से करते हुए ,इस मुकाम तक पहुँचा हैं। 
आज भी ग्राम्य अंचलों के घरों पर यह सब देखने मिलता हैं। हमारे लिए यह सब बेहद महत्वपूर्ण हैं। 
      दीरखा का आशय दीया रखने का जगह जो त्रिभुजाकार  मंदिर आकार के होते हैं। इसमें  दीपक,चिमनी ढिबरी आदि जलाकर रखते हैं। ज्यामितीय आकृति होने से हवा के झोंके दीया को बुझा नहीं पाते और अर्निहिश जलते हुए अँधेरे में निरंतर प्रकाश देते रहते हैं।
पठेरा चौकोन आलमारी नुमा बनाए जाते हैं। लकड़ी का पल्ला या पत्थर लगाकर दो या तीन खंडों में विभाजित रहते हैं। इन खंडों में रोज इस्तेमाल  की जाने वाली वस्तुएँ  यथा  दवाइयां , आइना कंघी , कागज पत्र ,  छतरी,  लाइटर ,थैले इत्यादि  रखते  हैं। 
    
   इसी तरह रसोई घर या घर के आँगन के दीवार पर एक छोटी सी  खिड़की जिसे "भुलकी " कहे जाते हैं बनाएं जाते हैं। इनका प्रयोग महिलाएं प्रायः एक- दूसरे से आग या साग मांगने के लिए प्रयोग करती हैं।  दो घरों में  परस्पर सहयोग करते आत्मीयता को बनाए रखने का अप्रतिम उदाहरण यह भुलकी हैं। जहाँ सुख - दु:ख की बातें महिलाएँ करती हैं। घर परिवार के सदस्यों  में जो तनाव और अनबोलना पन होते हैं। यही भुलकी उसे दूर करने का काम भी करती है। पर आजकल यह सब विलुप्तप्राय:  हो गये हैं। 

 बहरहाल एक ददरिया गीत में इनकी महत्ता का उल्लेख दर्शनीय हैं -

कांदी ल लुए संग म लुवागे  फुलकी 
आगी ल अमरबे तय घर के भुलकी ( स्त्रोत- डॉ. पीसीलाल यादव )

     प्राचीन  स्थापत्य के अवशेषों में भी दीरखा, पठेरा और भुलकी देखे जा सकते हैं।
 नदी किनारे के ग्रामों के घरों पर यह दीरखा पठेरा बाढ़ से बचने और घरों में भरे पानी निकासी का भी एक प्रमुख साधन होते हैं।हमारे गाँव जुनवानी  ( प्राचीन बौद्ध नगरी सिरपुर के समीप महानदी तट  ) के घर जो पत्थर से निर्मित 200 -250 वर्ष पुरानी हैं,में ऐसा दीरखा बना हुआ हैं। 
    दीरखा मतलब दीया रखने का जगह ।
     गाँव में 3-4 सौ वर्ष पुराने पत्थर के घर हैं उसमें भी इस तरह के दीरखा हैं। 

चित्र- नालंदा बिहार प्राचीन बौद्ध स्मारक में प्राप्त पुरावशेष का दीरखा / ताखा 
      - डॉ. अनिल भतपहरी/ 9617777514

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