Thursday, December 26, 2024

बात ख़तम और हज़म

#anilbhattcg 

बात खतम और हजम 

पुराने दौर की क्या कथा 
रहा सदा ज़ुल्म शोषण व्यथा 
भरा पड़ा दास्तां रनिवास अनगिनत कोठे हरम 
प्रस्तर पोर्न से अटा देवालयों के गर्भगृह का मरम 

होते रास, नियोग,साधनादि में पंचमकार 
स्वच्छंद यौनाचार  स्त्री ऊपर अत्याचार 

देवदासियों विधवाओं की दारुण दशा 
क्या और कैसे गिनाएं स्त्रियों की मनोव्यथा 

कहीं अग्नि परीक्षा कही हरण 
तो कहीं पर सरेआम चीर हरण 

उस पर भी तीक्ष्ण उलाहना नारी  नर्क द्वार 
वाह रे!अधम नर कैसा तेरा तिरस्कार 

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते आदर्श गढ़े गये 
रमन्ते तत्र देवता के वाग्जाल में फ़साये गये 
जख्म देकर गहरे यूँ मरहम लगाएं गए 
देकर वस्त्रआभूषण गुलाम बनाये गये 

पर इससे हुआ न कुछ भी भला 
अबला के ऊपर जुल्म सबला का 

पीटे गये ढ़ोल गँवार शूद्र पशु नारी 
नीम पर चढा करेला ताड़ना के अधिकारी 

यह दौर नया ही सही पर समान  हक हैं यही 
प्रेम न सही हवस सही मर  मिट जायें न कहीं 

भले जर ज़मीन के लिए हो युद्ध कहीं 
पर जोरू के लिए युद्ध हो न कभी 

स्त्री वस्तु, देवी नहीं स्त्री भोग्या नहीं
स्त्री केवल स्त्री कतई कुलटा वेश्या नहीं 

जीर्ण -शीर्ण पुरातन ढहें पुराने ख्यालात सुधरे 
जैसे पुरुष को ज़रूरत वैसे ही स्त्री की ज़रूरत

हो हक अधिकार दोनों का बराबर 
कोई क्या कहें थोड़े में बहुत समझ ले 

बस अब हमारी बात हुई यहीं पे खतम 
ना पचे तो हाजमोला खा करले  हज़म

डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514

बात खतम और हजम

#anilbhattcg 

बात खतम और हजम 

पुराने दौर की
 क्या कथा 
रहा सदा ज़ुल्म 
शोषण  व्यथा 

भरा पड़ा रनिवास 
अनगिनत कोठे हरम 
प्रस्तर पोर्न से अटा पड़ा 
देवालयों के गर्भ गृह का मरम 

होते कर्मकांड  पंचमकार 
रास नियोग साधनादि में 
स्वच्छंद यौनाचार  
स्त्री ऊपर अत्याचार 

देवदासियों की 
दारुण दशा 
क्या और कैसे गिनाएं 
स्त्रियों की मनोव्यथा 

कहीं अग्नि परीक्षा 
कही हरण 
तो कहीं पर 
सरेआम चीर हरण 

उस पर भी तीक्ष्ण उलाहना 
नारी  नर्क द्वार 
वाह रे!अधम नर 
कैसा तेरा तिरस्कार 

फ़िर भी आदर्श गढ़े गये 
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते 
रमन्ते तत्र देवता 
वाग्जाल में विमर्श रचे गये 

जख्म देकर गहरे 
मरहम लगाएं गए 
पर इससे हुआ न 
कुछ भी भला 
अबला के ऊपर 
जुल्म सबला का 

पीटे गये ढ़ोल 
गँवार शूद्र पशु नारी 
नीम पर चढ़े करेला 
सकल ताड़न के अधिकारी 

यह दौर नया ही सही 
पर समान  हक हैं यही 
प्रेम न सही हवस सही 
मर  मिट जायें न कहीं 

भले जर ज़मीन के लिए 
हो युद्ध कहीं 
पर जोरू के लिए 
युद्ध हो न कभी 

स्त्री वस्तु नहीं 
स्त्री भोग्या नहीं 
स्त्री केवल स्त्री 
कतई वो वेश्या नहीं 

जीर्ण शीर्ण पुरातन ढहें 
पुराने ख्यालात सुधरे 
जैसे पुरुष को ज़रूरत 
वैसे ही स्त्री की ज़रूरत

हो हक अधिकार 
दोनों का बराबर 
कोई कितना क्या कहें 
थोड़े में बहुत सा समझ ले 

बस अब हमारी 
बात हुई खतम 
ना पचे तो हज्मोला खा 
कर ले इसे हज़म

डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514

Monday, December 16, 2024

सतनाम पंथ में समग्र विकास का सूत्र


सतनाम पंथ में समग्र विकास का सूत्र 

    
सतनाम पंथ की मुख्य सिद्धांत मनखे मनखे एक वर्तमान समय में अत्यंत प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हों चूके हैं.क्योंकि सारा विश्व धर्म सम्प्रदाय के नाम पर बटते ही नहीं बल्कि तेजी से कटते जा रहें हैं.अनेक देशों और देश के राज्यों  में भी धार्मिक और साम्प्रदायिक हिंसा अनवरत जारी हैं.तब सतनाम पंथ की बातें कितना मूल्यवान हैं यह समझा जा सकता हैं.इसे मात्र  आंदोलन कह उनके असीम भाव व्यंजना को सीमित और संकीर्ण करने की नापाक कोशिश जाने -अनजाने में हो रहें हैं. गुरु और उनके अनुयायी को  आंदोलनकारी और क्रांतिकारी कह उनकी सार्वभौमिक स्वीकार्य पर भी प्रश्न खड़े किए जाने लगे हैं. संभवतः इस कारण भी मुख्यधारा से प्रतिरोधी स्वर समझ लोग मूल्यांकन कर बैठते है. हलांकि उनके उच्चतम आदर्श अन्यान्न कारणों से विस्तारित नहीं हो सका परंतु  सोसल मीडिया आने से सतनाम धर्म संस्कृति के ऊपर अनेक तरह के आलेख और गीत भजन देखें पढ़े सुने जा सकते हैं. सबकी अलग अलग मन्तव्य और धारणाएँ हैं. इन सबके चलते गुरु घासीदास और उनका सतनाम पंथ पर सम्यक् दृष्टिपात करने की आवश्यकता है.

   बहरहाल  गुरु घासीदास नि:संदेह एक आध्यात्मिक संत हैं. और उन्होनें समाज और धर्म कर्म में परिव्याप्त बुराइयों को दूर करने हेतु अनेक तरह के सुधार और रचनात्मक कार्य निष्पादित किए.
    सतनाम आंदोलन नहीं बल्कि सतनामियो का आंदोलन हैं जिसके प्रणेता गुरु घासीदास के सुपुत्र राजा गुरु बालक दास हैं. गुरु घासीदास ने आजीवन मनुष्य को बेहतर बनने  उपदेश दिए और निरंतर अपने मतो सिद्धांतों के प्रचार -प्रसार और लोगों को जोड़ने हेतु दूर -दूर तक यात्राएँ की. खासकर  अपनी जगन्नाथ पुरी यात्रा  से वापसी के समय चंद्रसेनी देवी मंदिर चंद्रपुर  में  पशुबलि को देख हतप्रभ और विह्वल हुए -

देखें लहूटत चंदरसेनी म बलि छै दत्ता पाड़ा 
मन बिचलित हलाकन जीव हिंसा गाड़ा गाड़ा 
देख बबा के मन भिरंगे तीरथ मे शांति नई पाए 
पुन्नी के पुनवास मे सतनाम सतनाम उचारे...( सतनाम संकीर्तन (

 फिर वहीं से वे साधना हेतु सोनाखान जंगल चले गए 
आत्म ज्ञान और सिद्धि उपरांत वे गिरऊंदपुरी में फागुन शुक्ल सप्तमी 1795 को युगान्तरकारी जातिविहीन कर्मकांड विहिन समता पर आधारित  हजारों अनुयाइयों के समक्ष सतनाम पंथ का प्रवर्तन किये.

फिर धर्म कर्म में  व्याप्त अंधविश्वास बलि प्रथा जैसे कर्मकांड को  रोकने छत्तीसगढ़ के चारों  शक्ति पीठो चंद्रपुर, दंतेवाड़ा,डोंगरगढ़ रतनपुर  में यात्राएं की. इनके साथ  चिरई पदर,कांकेर,पानाबरस, भवरदाह,दल्हा पहाड़ जैसे विशिष्ट 9 स्थलों पर की गई " सतनाम रावटी यात्रा "अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. रामत यात्रा के अनेक जगहों पर सामाजिक रुप से जातिभेद मिटाने और सतनाम पंथ में दीक्षित करने उनके इस महाभियान में अनेक संत महंत सम्मलित हुए. वर्तमान में इन जगहों को सतनाम शक्ति केंद्र के रुप में प्रतिष्ठित कर विविध आयोजन किये जा रहें हैं अत्यंत सुखद और अल्हादकारी हैं.
.    सतनाम पंथ चलाए यह एक सरल सहज जीवन शैली है जो एक व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति और समाज के साथ  कैसे समानता पूर्वक व्यवहार करें की नैतिक सीख है. सात्विक खान पान, सादगी पूर्ण रहन सहन, सत्य अहिंसा के प्रति निष्ठां व्यसन मुक्त जीवन शैली अपनाकर परिश्रम करते जीवन यापन से  व्यक्ति स्वयं के आर्थिक और सामाजिक स्तर को भी  ऊपर उठा सकते हैं और दूसरों को भी उक्त आदर्श जीवन शैली से सुधारा जा सकता है.

गुरु घासीदास की  उक्त सीख और शिक्षा पर चलते लोगों का कल्याण होने लगे तो जनमानस श्रद्धा वश  अपनी अर्जित उपलब्धियों को गुरुकृपा,आशीष या चमत्कार समझ लिए.और उन्हें अवतारी पुरुष मानकर पूजने लगे! इस तरह सतनाम पंथ की आध्यात्मिक और धार्मिक विरासत को, गुरु और गुरु की वाणी के प्रतिबद्ध साधक  विषम  परिस्थितियों और अभाव के बीच भी सुखी संतुष्ट जीवन शैली अपनाएं हुए शांति पूर्वक जीवन यापन करते आ रहें हैं.
गुरु घासीदास नें कभी राजनैतिक सत्ता, पद -प्रतिष्ठा के लिए ना ही कोई आंदोलन किए और ना ही वे इस तरह के  चीजों के आंदोलनकारी या  क्रांतिकारी थे. बल्कि  वे बुद्ध कबीर की तरह तत्व वेत्ता दार्शनिक और पंथ  प्रवर्तक है. वे लोगों के हृदय में राज़ करते है इस कारण सदैव प्रासंगिक.  उनका किसी राज्य के प्रजा के ऊपर राज्य नहीं न ही धन संपदा वाली ऐश्वर्य  . इस तथ्य को भली- भाँति लोगों को समझना चाहिये.
    गुरु घासीदास तो बुद्ध के तरह ही आर्थिक संपदा अर्जित करने के बाद मोती महल गुरुद्वारा और कई गाँवों की मिल्कियत को देख -समझ कर उन सब का परित्याग कर एकान्त वासी हो अज्ञात स्थल पर चलें गये ( धारणा है कि वे तपोभूमि गीरौदपुरी के सुरम्य वन प्रान्तर और छाता पहाड़ में रहने लगे ) यह बातें उन्हें महान तपसी,त्यागी संत और गुरु जैसे विशेषण से युक्त महापुरुष  बनाते  है.
      तो यह बातें स्वमेव सिद्ध हैं कि सतनाम अन्य धर्म मत पंथ से बिल्कुल अलग  समानता पर आधारित प्रथम जाति विहीन समुदाय का पंथ या धर्म हैं. जिसमें मानव विकास के समग्र सूत्र सन्निहित हैं. मनखे मनखे एक जैसी उदात्त  सिद्धांत वैश्विक  विस्तार पर हैं. सतनाम के   अनुयायी सतनामी  हैं और यह ज़ात -पात वर्ण रंग नस्ल भेद से ऊपर मानवता के संपोषक हैं. इन्ही सतनामियो का आंदोलन समाज में अपनी अस्मिता और वजूद को कायम करने हेतु राजा गुरु बालक दास के नेतृत्व में  हुआ. जो आज भी समय समय पर हक अधिकार के लिए या दमन शोषण के प्रतिरोध में यदा कदा स्थानीय स्तर पर होते हैं. इनके केन्द्र में गुरु घासीदास जी का सतनाम दर्शन और उनके उन्नत विचारधारा हैं. जों आने वाले समय में मानव समाज के लिए  अत्यंत उपयोगी और अनिवार्य होंगी.

.   डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514
 प्राध्यापक,उच्च शिक्षा विभाग, छत्तीसगढ़

Sunday, December 15, 2024

सतनाम पंथ का दर्शन

#anilbhattcg 

सतनाम आंदोलन नहीं बल्कि जन जागरण वाली दर्शन एवं पंथ हैं.

    सतनाम पंथ को आजकल आंदोलन कह उनके असीम भाव व्यंजना को सीमित और संकीर्ण करने की नापाक कोशिश जाने -अनजाने हो रहें हैं. गुरु घासीदास को आंदोलनकारी और क्रांतिकारी कह उनकी सार्वभौमिक स्वीकार्य पर भी प्रश्न खड़े किए जाने लगे हैं. आजकल सोसल मीडिया में सतनाम धर्म संस्कृति के ऊपर अनेक तरह के आलेख और गीत भजन देखें पढ़े सुने जा सकते हैं. सबकी अलग अलग मन्तव्य और धारणाएँ हैं. इन सबके चलते गुरु घासीदास और उनका सतनाम पंथ पर सम्यक् दृष्टिपात करने की आवश्यकता है.

   बहरहाल  गुरु घासीदास नि:संदेह एक आध्यात्मिक संत हैं. और उन्होनें समाज और धर्म कर्म में परिव्याप्त बुराइयों को दूर करने हेतु अनेक तरह के सुधार और रचनात्मक कार्य निष्पादित किए.
    सतनाम आंदोलन नहीं बल्कि सतनामियो का आंदोलन हैं जिसके प्रणेता गुरु घासीदास के सुपुत्र राजा गुरु बालक दास हैं. गुरु घासीदास ने आजीवन मनुष्य को बेहतर बनने  उपदेश दिए और निरंतर अपने मतो सिद्धांतों के प्रचार प्रसार और लोगों को जोड़ने हेतु दूर दूर तक यात्राएँ की.
वे सतनाम पंथ चलाए यह एक सरल सहज जीवन शैली है जो एक व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति और समाज के साथ कैसे समानता पूर्वक व्यवहार करें की नैतिक सीख है. ऐसा कर भी अपने जीवन स्तर और आर्थिक स्तर को भी  सुधारा जा सकता है.
गुरु घासीदास  राजनैतिक सत्ता पद प्रतिष्ठा के लिए ना ही कोई आंदोलन किए और ना ही वे इस तरह के  आंदोलनकारी या  क्रांतिकारी थे. बल्कि  वे बुद्ध कबीर की तरह तत्व वेत्ता दार्शनिक और पंथ  प्रवर्तक है. वे लोगों के हृदय में राज़ करते है इस कारण सदैव प्रासंगिक.  उनका किसी राज्य के प्रजा के ऊपर राज्य नहीं न ही धन संपदा वाली ऐश्वर्य  . इस तथ्य को भली भाँति लोगों को समझना चाहिये.
    गुरु घासीदास तो बुद्ध के तरह ही आर्थिक संपदा अर्जित करने के बाद मोती महल गुरुद्वारा और कई गाँवों की मिल्कियत को देख समझ कर उन सब का परित्याग कर एकान्त वासी हो अज्ञात स्थल पर चलें गये ( धारणा है कि वे तपोभूमि गीरौद् पुरी के सुरम्य वन प्रान्तर और छाता पहड में रहने लगे ) यह बातें उन्हें महान तपसी त्यागी संत और गुरु जैसे विशेषण से युक्त महापुरुष  बनाते  है.
      तो यह बातें स्वमेव सिद्ध हैं कि सतनाम अन्य धर्म मत पंथ से बिल्कुल अलग  समानता पर आधारित प्रथम जाति विहीन समुदाय का पंथ या धर्म हैं. इनके अनुयायी सतनामी  हैं और इन्ही सतनामियो का आंदोलन समाज में अपनी अस्मिता और वजूद को कायम करने हेतु  राजा गुरु बालक दास के नेतृत्व में हुआ. जो आज भी समय समय पर हक अधिकार के लिए या दमन शोषण के प्रतिरोध में यदा कदा स्थानीय स्तर पर होते हैं. इनके केन्द्र में गुरु घासीदास जी का सतनाम दर्शन और उनके उन्नत विचारधारा हैं. जों आने वाले समय में मानव समाज के लिए  अत्यंत उपयोगी और अनिवार्य होंगी.

.   डॉ अनिल भतपहरी / 9617777514
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Sunday, December 8, 2024

दीरखा

#anilbhatpahari 

।।दीरखा ,पठेरा और भुलकी ।।
       
    छत्तीसगढ़ सहित देश भर के ग्रामों  के अधिकांश घरों की दीवारों पर  दीरखा,पठेरा  और भुलकी पाए जाते हैं। इसे  बनाने की विशिष्ट परंपराएँ हैं क्योकिं इनके माध्यम से मानव सहजतापूर्वक  अपनी जीवन यात्रा निर्बाध रुप से करते हुए ,इस मुकाम तक पहुँचा हैं। 
आज भी ग्राम्य अंचलों के घरों पर यह सब देखने मिलता हैं। हमारे लिए यह सब बेहद महत्वपूर्ण हैं। 
      दीरखा का आशय दीया रखने का जगह जो त्रिभुजाकार  मंदिर आकार के होते हैं। इसमें  दीपक,चिमनी ढिबरी आदि जलाकर रखते हैं। ज्यामितीय आकृति होने से हवा के झोंके दीया को बुझा नहीं पाते और अर्निहिश जलते हुए अँधेरे में निरंतर प्रकाश देते रहते हैं।
पठेरा चौकोन आलमारी नुमा बनाए जाते हैं। लकड़ी का पल्ला या पत्थर लगाकर दो या तीन खंडों में विभाजित रहते हैं। इन खंडों में रोज इस्तेमाल  की जाने वाली वस्तुएँ  यथा  दवाइयां , आइना कंघी , कागज पत्र ,  छतरी,  लाइटर ,थैले इत्यादि  रखते  हैं। 
    
   इसी तरह रसोई घर या घर के आँगन के दीवार पर एक छोटी सी  खिड़की जिसे "भुलकी " कहे जाते हैं बनाएं जाते हैं। इनका प्रयोग महिलाएं प्रायः एक- दूसरे से आग या साग मांगने के लिए प्रयोग करती हैं।  दो घरों में  परस्पर सहयोग करते आत्मीयता को बनाए रखने का अप्रतिम उदाहरण यह भुलकी हैं। जहाँ सुख - दु:ख की बातें महिलाएँ करती हैं। घर परिवार के सदस्यों  में जो तनाव और अनबोलना पन होते हैं। यही भुलकी उसे दूर करने का काम भी करती है। पर आजकल यह सब विलुप्तप्राय:  हो गये हैं। 

 बहरहाल एक ददरिया गीत में इनकी महत्ता का उल्लेख दर्शनीय हैं -

कांदी ल लुए संग म लुवागे  फुलकी 
आगी ल अमरबे तय घर के भुलकी ( स्त्रोत- डॉ. पीसीलाल यादव )

     प्राचीन  स्थापत्य के अवशेषों में भी दीरखा, पठेरा और भुलकी देखे जा सकते हैं।
 नदी किनारे के ग्रामों के घरों पर यह दीरखा पठेरा बाढ़ से बचने और घरों में भरे पानी निकासी का भी एक प्रमुख साधन होते हैं।हमारे गाँव जुनवानी  ( प्राचीन बौद्ध नगरी सिरपुर के समीप महानदी तट  ) के घर जो पत्थर से निर्मित 200 -250 वर्ष पुरानी हैं,में ऐसा दीरखा बना हुआ हैं। 
    दीरखा मतलब दीया रखने का जगह ।
     गाँव में 3-4 सौ वर्ष पुराने पत्थर के घर हैं उसमें भी इस तरह के दीरखा हैं। 

चित्र- नालंदा बिहार प्राचीन बौद्ध स्मारक में प्राप्त पुरावशेष का दीरखा / ताखा 
      - डॉ. अनिल भतपहरी/ 9617777514