Tuesday, May 14, 2024

मुक्ति

#anilbhattcg 

आटे में नमक की तरह चुटकी भर दर्शन 

   "मुक्ति" 

मुक्ति मरन ही हैं या कहे मरन ही मुक्ति हैं ।
लख चौरासी योनि  भटकाव और जीवन चक्र से मुक्ति यह व्यक्ति को जीते जी सद्गुणी बनाने की सुंदर अलंकृत उक्ति हैं। ताकि रहस्य समझकर इसी जीवन में सद्गुणी होकर चले लोक कल्याण करे। पर कर्मकांडी लोग बेचारे समझ रहे जीव को परलोक स्वर्ग और मोक्ष की ओर दान दक्षिणा के लोभ में ले जाते हैं।
   देखा जाय तो अनेक संताप,व्याधि आदि से युक्त जीव का तड़फते मरना कष्टमय दु:ख हैं ,जबकि हसते -खेलते मरना सुख हैं। जनमानस में सुखमय मृत्यु की कामनाएं करते वृद्धजनों को बोलते सुने भी जा सकते हैं।
मृत्यु से बढ़कर कोई शांति और आनंद नहीं! ऐसी लोक में विश्वास और धारणा भी देखने -सुनने मिलते हैं।
  सच कहें जीवन एक संघर्ष हैं और व्यक्ति सदैव असंतुष्ट। पल भर की खुशियां फिर ज्ञात -अज्ञात दुख: से आक्रांत!इसलिए कुछ पल के लिए संसार संघर्ष से ध्यान हटाने और शांति तलाशने की क्रिया करते व कराए जाते हैं। जो क्रिया करते हैं वह साधक शिष्य और जो यह कराए वह गुरु। 
  परंतु आजकल यह  व्यवसाय  के बड़ी तेजी से फल फूल भी रहे हैं। मरता न क्या करता सभी सुख और शांति की तलाश में भटकते मिलते हैं। ऐसे में निराला की निरालेपन भी आकर्षित करते हैं _

   वासना की मुक्ति मुक्ता त्याग में त्यागी 
    अब निराकार समझ से परे लगे तो लोग भक्ति की ओर प्रवृत हो अवतारों की कृपा पाने और उनके चरणों में जगह पाने आतुर चरणामृत और देवलोक गामी होने लगे हैं। बकायदा वैतरणी पार होने गोदान में लगे भारत को प्रेमचंद जैसे ही  लोग समझ समझा सकते हैं। पर कोई समझे तब न? 
  जबकि अध्ययन मनन चिंतन और दर्शन से मृत्यु के भय से जो मुक्त हो वही स्थितप्रज्ञ की अवस्था को पाते और कबीर की तरह उन्मनी हो गा उठते हैं _

    जाऊ रे निर्गुण निर्भय...
जस की तस धर दीनी चादरिया गाकर शांत होते लोगों को बिहारी झकझोरते हैं _
  तंत्री नाद, कबित्त रस, सरस राग, रति-रंग। 
     अनबूड़े बूड़े, तरे जे बूड़े सब अंग॥ 

  पाप और पुण्य की तलाश में चित्रलेखा सृजित करते महायोगी को भोगी और भोगी की योगी बनने की यात्रा कितना अल्हादकारी हैं। सत्य प्रेम करुणा को ही ईश्वर कहने वालों ने मानुष को  सत्यनिष्ठ प्रेमी व कारुणिक बनाने नैतिक सीख दी पर क्या वे हुए?
   दुनियां कितनी तंगदिल हो गए हैं प्रेमगली अति साकरी भी तभी तो गा उठे -

निरदईया निरमोहना मन के हिरदे में मया जगाबोन
मया बताबोन  मया सिखोबोन गीत मया के गाबोन 

पर इससे किसे मुक्ति मिलते हैं और कौन मुक्त हुए? यह हम  जैसे अबूझो के लिए प्रश्नातित हैं...यात्रा जारी हैं कुदरत की करिश्मा को समझने ...मंजिल का मिलना या दीदार होना यात्रा का थमना भी एक तरह से मुक्ति ही हैं !
स्वकल्याण की सोच साकार हुवे नहीं तब लोक कल्याण की कामनाएं व्यर्थ ही हैं और यही सर्वत्र चल रहे हैं। 
तो प्यारे  आज इतना ही।
मिलते हैं कभी कभार तब तक के लिए...व्यस्त ,मस्त और स्वस्थ रहे.... जय जय।

No comments:

Post a Comment