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।।मांघी पुन्नी मेला महात्म्य ।।
जलाशयों व नदियों के किनारे ही सभ्यताएँ पनपी क्योंकि जल ही जीवन हैं।हमारे यहाँ नदियाँ दैवी स्वरुपा पूज्यनीया हैं फलस्वरुप इनकी तट पर अपने अपने आराध्यों की मंदिर मठ आश्रम आदि बने ।
इन स्थलों पर अनेक तरह की सामाजिक / धार्मिक गतिविधियां व कर्मकांड आदि होने लगे । राज तंत्र में जो राजा जिनका उपासक रहा वह लोक धर्म हो गया। धीरे- धीरे उन सबमें वर्चस्व के लिए संघर्ष और समन्वय भी हुआ।
छत्तीसगढ़ की प्रमुख नदी महानदी है जहाँ दो स्थलों पर संगम हैं। राजिम व शिवरीनारायण यह दोनो प्रयागराज ( इलाहाबाद ) जैसे ही महत्ता रखते हैं । मध्य में दक्षिण कोशल की राजधानी सिरपुर रहा है। यहाँ की ख्याति वैश्विक हैं।अनेक शोधार्थियों के लिए सिरपुर जीवंत दस्तावेज़ हैं। इन तीनों जगहों पर मांघी पुन्नी से महाशिवरात्रि तक १५ दिनों तक मेला सदियों से भरते आ रहे हैं। यहाँ से वाणिज्य व्यापार आदि प्राचीन काल से ही चला आ रहा हैं। तीनो नगरी जलमार्ग का प्रमुख केन्द्र थे । सिरपुर के निकट मालपुरी बड़ा बंदरगाह हैं जो हमारे गांव जुनवानी से लगा हुआ है। कृषि कार्य निपटने के बाद कृषक वर्ग इन पंद्रह दिनो की मेले में जरुरत की चीजे खरीदने परस्पर रिश्तेदारी आदि करने भी इकत्रित होते हैं। इस तरह मेला की संस्कृति पनपा। बाद में स्नान पूजा भेंट दान दक्षिणा आदि की प्रथा जुड़ते गये ।
राजिम नाम वहाँ की तेल व्यवसायी भद्र महिला राजिम तेलीन के कारण हुआ ऐसा जनश्रुति /किंवदंती हैं।
राजिम को राजीव समझ कमल क्षेत्र कहने की परंपरा आजकल आरम्भ हो गये हैं। चांपाझर का चपेश्वर महादेव मंदिर स्थल आजकल चंपारण्य के नाम से महाप्रभु वल्लभाचार्य के जन्म स्थली के रुप में चर्चित हैं। जो कि सुदूर गुजरात का प्रमुख राधा कृष्ण सम्प्रदाय के संत हैं। वहाँ गुजराती समाज द्वारा भव्यतम निर्माण दर्शनीय हैं। दर असल राजिम को राजीव का अपभ्रंश मानते हैं।
राजीव लोचन कहकर विष्णु या राम मंदिर होने की बातें वैष्णव सम्प्रदाय की हैं। और भोसले शासक वैष्णव पंथी होने के कारण वहाँ मंदिर बनवाए गये जबकि राजिम लोचन नाम का आशय श्रमण महिला राजिम और श्रमणों के अराध्य लोचन यानि बुद्ध का नाम हैं।
बुद्ध की प्राचीन मूर्तियाँ सर्वत्र मिलते हैं। संभवतः जिस मूर्ति में राजिम अपना तेल पात्र रखती वह बुद्ध का ही प्रस्तर प्रतिमा रहा है। इस तरह राजिम लोचन नाम जनमानस में प्रसिद्ध हुआ। राजीव लोचन भगवान राम या विष्णु को भी कहे जाते हैं। यहां संगम के समीप कुलेश्वर महादेव भी स्थापित हैं। राजिम कुंभ कल्प के नाम से विराट मेला लगते है ।
मांघी पूर्णिमा को उत्तर भारत के महान संत रैदास जी का जन्म हुआ। उनकी जयंती भी देश भर में उनके करोड़ो अनुयाई मनाते हैं। वे मानवतावादी प्रज्ञावान संत थे और सबके कल्याण की कामना करते अनेक ज्ञानवर्धक पदों की रचनाएँ की जो कि गुरुग्रंथ साहिब में संकलित हैं । गुरुनानक जैसा ही उनका सम्मान सिख एंव हिन्दू धर्म में हैं।
बहरहाल मनोरम तीर्थ सबके होते है फलस्वरूप सभी मत -मतान्तरों की स्थापनाएं होते गये।शैव पंथ यहाँ प्राचीनतम हैं और शिव मंदिर अधिकांश गांवों की तालाब नदी किनारे स्थापित हैं। शैव है वहाँ शाक्त उपसना भी होन्गे। अत एव जन जीवन में देव - देवी मानने की प्रथाएँ विकसित हुई । उनकी अनेक मूर्तियाँ बनने व स्थापित होने लगी । हालांकि बहुत बाद में इन मूर्तियों या साकार स्वरुप के स्थान पर निराकार या प्रतीक पूजा का भी विधान प्रचलन में आया।
इस तरह हिन्दुओं की तीनो पंथ और बौद्ध धम्म आधुनिक में कबीर व सतनाम पंथ (जो कि अधिकतर प्राचीन बौद्ध मतावलंबी थे जिन्हे उपेक्षित रखा गया उन्हे संतो गुरुओ ने पुनश्च संगठित किए )का मठ मंदिर गुरुद्वारा व जैतखाम आदि छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख जगहों पर हैं। क्योंकि यहाँ हिन्दू सतनामी कबीर पंथी परस्पर सद्भाव व सौहार्दपूर्ण स्थिति में गांव गांव मेंं संग साथ निवास करते आ रहे हैं। उनमें संघर्ष, द्वंद व समन्वय भाव भी यदा-कदा द्रष्ट्व्य है ,क्योंकि भिन्न भिन्न मत पद्धति व विचार धारा में टकराहट संभाव्य हैं। परन्तु हमारे संतो ,गुरुओं और बुजुर्गों की सीख के चलते एंव इन मेले उत्सव आदि के कारण हमारी साझा व समन्वयवादी संस्कृति विश्व विख्यात हैं। छत्तीसगढ़ का यह सौख्य व सौहार्द भाव अभिनंदनीय हैं।
- डॉ. अनिल भतपहरी /9617777514
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