Monday, September 11, 2023

संधिकाल के चश्मदीद गवाहों का यह दौर

#anilbhatpahari 

   " संधिकाल के चश्मदीद गवाहों का यह दौर "

          50 + के लोगों को आधुनिक और पारंपरिक जीवन शैली के संक्रमण काल के आखिरी पीढ़ी के लोग कहे जा सकते हैं। ये लोग  एक पैसे( कुछेक टिकली भोंगटी वाले किस्मत जानी बचे हुए हैं ) के  साथ रहे हैं। ढेकी -जाता के चावल- आटे खाकर बड़े हुए और दौरी-बेलन में धान मींजे हैं। नाव मे बैठ नदी और गले तक हाथ मे बस्ता उठाए नाले पार कर स्कूल गये हैं। यहाँ तक पेड़ के नीचे क ख ग सीखते शास्त्रों में वर्णित गुरुकुल का दृश्य  तक यदा -कदा देखे गये हैं। 
         बैलगाड़ी, साईकल, रेडियो से लेकर बस ,ट्रेन, कार और किस्मत वालें  जहाज तक चढ़ रहे हैं। चिठ्ठी से लेकर ईमेल, एस एम एस , वाट्साप तक प्रयोग कर रहे हैं। सब्जी/ सामान  बेचते फेरीवाले के हांका  से लेकर सुपर स्टार्स का  सामान बेचने वाली( ब्रांड एम्बेसडरों) विज्ञापन और बाजारवाद से कुछ- कुछ  परीचित हो रहे हैं। खड़खड़िया, ताश काट पत्ती से लेकर लाटरी  शेयर मार्केट जैसे जुएं में भाग्य अजमा भी रहे हैं।
        सप्ताह में बुधवार को रेडियो में बिनाका गीत माला और सुर-श्रंगार के मनमोहक गीतों के लिए प्रतिक्षारत लोगों  को एसियाड 1982 में एंटीना टी वी और  में इसी टी वी की आरती उतार कर  रामानंद सागर के रामायण देखते लोग हैं। साथ ही बीच -बीच में बिना रिमोट के पुरा  विज्ञापन देखकर जबरिया जरुरत पैदा कर पाकेट ही नहीं  कोठी के धान बिकवा कर शौक पूरा करने की भूख पैदा कर दिए को पुरा करते परिजन  को देखे हैं । 
    चंद अग्रज  भैयों को शौक के लिए भूखा पेट रह कर सिनेमा देखने लड़ कट  जाय  लेकिन फस्ट शो देखने और फिल्म का कहानी सुनाते दोस्तों में क्रेज जमाते ऐसे लोगों में गिनती वालों में रहे हैं। गड़वा बाजा से लेकर बैञड बाजा मे नागिन डांस करते  बारात और जुलुस के   मंजर से  भी  रुबरु  हुए हैं। भले नई पीढ़ी को यह  कथा- कहानी लगे पर उनके असल नायक हमी लोग हैं। जो रात. रात भर नाच पेख‌न देखते परी को टार्च से बुलाकर फरमाइशी गीत सुन सीटी बजाते  मौज मस्ती के शिखर स्पर्श किए हुए लोग रहे हैं। 
      धान- चावल बेच कर  तवा  केसेट क्रय करने वाले   और खेत बेचकर टी वी ,  मोटर साइकिल, खरीदने का उपक्रम  हुआ उनका और  ग्रामीण अंचल में   शराब- बीड़ी - सिगरेट  और चाय -पानी में ही धनहा बेचते लोगों का यह दौर  चल ही  रहा है। 
        औद्योगिकरण/ नगरीकरण के चलते  फैक्ट्री या कालोनी  (नया रायपुर भी )बसाहट ग्रामीण  इलाके में "फोकट ल पाय मरत ल खाय" जैसे कहावत को साकार करते हुए  शराब और स्पीड बाइकर्स कार चलाते असमय काल कवलित लोगो की बस्ती जिसे हमारी कहानी "विडोस एरिया" बनते देखने का हम जैसे चश्मदीद  गवाहों का दौर भी कह सकते हैं। जिसे तेजी से बदलते दुनिया में यह अंचल उसी तेजी से संघरते  हुए देखा जा सकता हैं ...
                   - डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

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