Monday, December 12, 2022

करे श्रेष्ठ सृजन

#anilbhatpahari 

एक मंचीय तुकबंदी कविता 

   ।। करे श्रेष्ठ नव सृजन ।।

अतीत उज्ज्वल रहा तो वर्तमान क्यो अंघेरा हैं

आत्म मुग्धता के चलते कोहरा बड़ा  घनेरा है

चंद लोगों के ऐश्वर्य  गान से कब तक  मोहित रहे 

गिरेबान झांक देखे सब मन विष्णन तन लोहित रहे 

घरा पर उन्ही का स्वर्ग जो इस धरा को नर्क किए 

अपने स्वार्थ के चलते सुन्दर देश का बेड़ा गर्क किए 

महादेश में गर्व से अधिक शर्म करने का भी दास्ता हैं

इसलिए तो यहाँ सबकी अलग अलग मंजिल रास्ता हैं

महल मंदिर  के सिवा जन मन का अवशेष क्या है?

राजा रानियो के सनक से सिवा और विशेष क्या है?

आजादी के बाद   आई  समृद्धि यह संविधान  से है 

फिर भी संशय उन्हें जो मोहित पुरा छद्म यशगान से है

 कुछ गिरोह फिराक में लगे हैं बदलने संविधान को 

दिए जा रहे हैं बढ़ावा  कल्पित मिथकीय यश गान को 

कितनी कुरीतियों अमानवीय बर्बरपन का दंश रहा 

जिनकी लाठी उनकी भैस कबीलाई संस्कृति का अंश रहा 

चंद उंगुली में गिने उनसे कुछ होने वाला नहीं ‌है

अधनंगे भूखे जन जीवन सहज एक निवाला नहीं हैं 

संप्रभूता को भोगते जो कैद कर रखा हैं  उजास  को 

प्रवक्ता बना फिरता हैं जो उपलब्धि माने निज विकास को

आत्ममुग्धता से बाहर निकल कर आओं करे  कुछ चिंतन मनन 

स्वर्ग मोक्ष सतलोक परलोक से उबर कर प्यारे करे  श्रेष्ठ नव  सृजन 

         - डाॅ. अनिल भतपहरी / 9617777514

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