गुरु अम्मरदास गुफा दलदली गिरौदपुरी
गुरुघासीदास के प्रथम पुत्र गुरु अम्मरदास जी का बिछोह किशोरावस्था मे ही गया था। जब वे सफरा माता जी के संग जलाऊ लकड़ी लेने गिरौदपुरी से लगा जंगल ( वर्तमान शेर पंजा मंदिर ) गये थे।
माता जी के आंखो के सामने ही एक शेर उठाकर ले गये। इस मर्मांतक दृश्य को देख माता जी भाव -विह्वल हो पछाड़ खाती, छाती पिटती रुदन करती रही ।ग्रामीण जन खोजते रहे पर कही कोई सूत्र मिला नहीं ... !
कलान्तर में युवावस्था में दाढ़ी- मुंछ बढाये नवयुवक साधु पुरुष अपने गाँव गिरौदपुरी आये। ग्रामीणों से पता चला कि उनके माता - पिता गाँव छोड़कर चातर राज चले गये हैं। वे उन्हे तलाशते हुए तेलासीपुरी आये ।जहां छिन्दहा तालाब पार में गुरु दम्पति सपरिवार रहकर जनमानस को उदेशनाएं व उपचार करते जीवन- निर्वहन कर रहे थे।
इस तरह अम्मरदास जी योग साधना में दक्ष होकर आना और अपने पिता गुरुघासीदास के सद्कार्य में लगकर सतनाम पंथ के प्रचार में लग गये। अपने बडे पुत्र के साथ मिलकर गुरुघासीदास ने तेलासी में ही निवास बनाया और आपार ख्याति से भव्यतम बाड़ा को अर्जित कर सतनाम पंथ के आश्रम और प्रबंधन हेतु अम्मरदास को प्रभार सौपां।
गुरु अम्मरदास जी ने प्रतापपुर की अंगार मती से विवाह के बावजुद ब्रम्हचर्य का पालन करते हुए सतनाम प्रचार करते हुए चटुआ घाट में समाधि लेकर प्रयाण किया। अंगार मती भी साध्वी की तरह भंडारपुरी में रहकर सतनाम साधना करते जीवन व्यतीत की।
कहते हैं अम्मरदास जी को शेर सुंदरवन ले गये और वहाँ किसी सहजयोगी से योग विद्या सीखकर जनमानस में सतनाम का अलख जगाते रहें। इस दरम्यान वे जिस गुफा मे साधना सिद्धी किये वह अम्मरगुफा के नाम से विख्यात हैं। यहां आकर श्रद्धालु एंव दर्शनार्थियों को सुकून और शांति की अनुभूति होते हैं। सघन वन,दुर्गम पर्वतीय रास्ते से होते कष्टमय यात्रा कर यहाँ पहुँचना होता हैं।
साधना गुफा स्थल का समुचित विकास व सुगम मार्ग बन जाने से लाखों तीर्थ यात्रियों को लाभ मिलेंगे।
।।जय सतनाम जय गुरु अम्मरदास बाबा ।।
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