जऔ बगमबहखम
चुम्मुक ल सम्हरे बिसकैना सरीख राजनीति ह मोहत हे।
आनी-बानी के सवंगा साज महुरा मनखे मति मं घोरत हे।।
जेन देखबे तेन ह पद-पावर पाय बर कात्को उदिम करत हे।
समाज सेवा के ओड़हर करत गली -खोर मं किंजरत हे।।
साम दाम दंड भेद के मलगी हर सुक्खा पुरा मं तउरत हे।
नदियां नाहके ते झन नाहके आसवासन के हांका परत हे।।
बिंदास कहे डा. अनिल भतपहरी
चित्र - काव्यपाठ करते प्रांतिय छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन दुधाधारी सत्संग भवन रायपुर ।
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