Sunday, January 19, 2020

सतनाम - संदेश संपादकीय ...



सम्पादकीय ...

   सतनाम धर्म -संस्कृति पर आधारित एंव समग्र विकास के लिए संकल्पित "सतनाम -संदेश"  मासिक पत्रिका का यह शानदार अनवरत ६ वां वर्ष हैं। 

    पत्रिका सामाज के क्रिया -कलापों और सतनाम धर्म- संस्कृति के साथ गुरुघासीदास चरित से संदर्भित अनेक ज्ञात/ अज्ञात प्रसंग जो संपूर्ण छत्तीसगढ़ और उनके बाहर जनमानस में जनश्रुतियों के रुप में विस्तारित हैं का हमारे अनेक  रचनाकारों का संयुक्त प्रयोजन हैं कि वह सब तथ्यात्मक रुप से  लिपिबद्ध हो।

     आज हम पीछे मुड़कर देखते हैं तब महज ६ वर्ष कोई बड़ा वक्त नहीं होते जब इस तरह के कार्य वह भी गुरुघासीदास के कालखंड १७५६ - १८५० तक का पुरी एक सदी का विश्लेषण कर सकें। पर एक ईमानदार प्रयास हो रहा है कि इनके माध्यम से राज्य भर में फैले रचनाकारों के द्वारा क्षेत्रिय स्तर की अपने आसपास के जनमानस में गुरु घासीदास बाबा एंव अन्य धर्मगुरुओं की जीवन चरित्र उनके द्वारा चलाए गये सतनाम जागरण अभियान का वास्तविक स्वरुप प्रस्तुत करे ताकि वह  हमारे पाठकों एंव आने वाली पीढ़ी के लिए उपयोगी हो और वे सभी हमारे अपने वर्तमान समय के संधर्ष द्वंद्व व किए जा रहे प्रयासों से अवगत हो सके।

         बहरहाल सतनामी समाज वर्तमान  समय में सर्वाधिक चेतना सम्पन्न समाज के रुप में जाने लगे हैं।  चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो अपने हक- अधिकार और अस्मिता के रक्षार्थ त्वरित संगठित और संधर्ष पर उतर आन्दोलित हो जाने के लिए जाने जाते है। इन तथ्य से शासन - प्रशासन  भी भंलिभांति अवगत है।

    तकरीबन ४० लाख आबादी वाले यह समुदाय कृषक समुदाय हैं। और ग्राम्य निवासी हैं,भले कुछ नौकरी व्यवसाय  आदि से जुडे  लोग विगत ३०-४० वर्षों से शहरों में बसे हुए हैं। पर वे गांव और कृषि  से अब तक जुड़े हुए हैं। कहने का अर्थ यह है कि समाज न पूर्ण रुपेण शहरी हैं न ठेठ ग्रामीण बल्कि कस्बाई और माध्यम वर्गी समाज हैं। जिसमे दोनो तरह के रहन -सहन परिलक्षित होते हैं। ऐसे में हमारे युवा वर्गों के लिए यह संक्रमण काल हैं कि कैसे इन दो तरह के शहरी व ग्रामीण जीवन में तादात्म्य स्थापित कर चले ।उनके मह्त्वपूर्ण छण और मह्ती जिम्मेदारियां हैं। जिसे वह न चाहकर भी ढ़ोने विवश है। 

     कुछ हुनर मंद व दक्ष लोग तो जीवन की विकट समस्याओं के हल तलाश कर निजात पा सकते हैं। पर जिनके पास कोई हुनर इल्म न हो ऊपर से आधे अधुरे शिक्षा  हो वह भ्रमित हो जाते हैं। तथा अनेक तरह के दीवास्वप्न  में उलझ जाते हैं।

   खासकर ग्राम व कस्बाई जगहों पर नेटवर्किंग मार्किट और अनेक तरह के चिटफंड कंपनियां सक्रिय है,जो प्रलोभन के जाल फैलाए हुए हैं। उसी तरह समाज सेवा के नाम पर अनेक राजनैतिक पार्टियां अपनी गतिविधियों द्वारा नवयुवकों को जोड़कर उनकी शक्ति  प्रतिभाओं और क्षमताओं का पार्टी हित में उपयोग करते नजर आते हैं। ऐसे में उन्हें  अपने विवेक और बड़े बुजुर्गों के सलाह मशविरों पर विशेष ध्यान देने होन्गे।

   वर्तमान समय में कोई युवा मन की भटकाव को सही राह दिखाए ऐसा कोई संस्थान और व्यक्ति नजर नहीं आते।यह दौर नायक विहिन और सभी नायक होने की अजीबोगरीब प्रतिद्वंद्विता की ओर अग्रसर हैं।

       राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर क्या परिस्थितियाँ निर्मित है, एंव उनके अनकूल क्या हम अपनी युवा वर्गों को और अपने संतति को  तैयार कर पा रहे हैं? इन प्रश्न के उत्तर समाज के प्रबुद्ध जनों के साथ सभी अभिभावकों के लिए तलाशने का वक्त हैं। तो क्या ऐसी सोच और उन उत्तरों को  समाज  व अभिभावक ईमानदारी से तलाश रहे हैं? कि स्वत: जीजीविषा के चक्रव्यूह में फंसे हुए हैं? इन‌ प्रश्नों के सार्थक उत्तर तलाशने होन्गे।

         सतनामी समाज अपेक्षाकृत अन्य समाज से अधिक सचेतक होने के कारण वर्तमान व्यवस्था से आक्रांत नजर आते हैं। क्योंकि जो विचारक हैं ,वही उद्वेलित रहते  और संधर्ष करते हैं। यह उद्वेलन और संधर्ष आजकल का नहीं अपितु आरंभ से रहा है। अनेक जगहों पर हम सफल और कई जगहों पर असफल भी हुए हैं। इसलिए यह समाज गहरी चोट खाए समाज लगता हैं। क्योंकि जो संधर्ष करते हैं,वही पददलन की दंश भी सर्वाधिक झेलते है झलते  आ‌ भी रहे हैं। 

    वर्तमान समय में आरक्षण के नाम पर समाज दिग्भ्रमित नजर आ रहे हैं। प्रदेश में अनु. जाति के  जनसंख्या  12.8% के अनुसार 13% देने की धोषणा शासन द्वारा की गई है। जबकि  मं प्र के समय आरक्षण 16%  था। और उनमें से 4%  धटने के बाद 12% मिल रहे हैं।   अनु जाति वर्ग के प्रमुख   जाति होने के कारण सतनामी समसज पूर्ववत मिले ऐसी धारणा पर हैं और हाई कोर्ट में यह मामला विचाराधीन है।  वर्तमान सरकार  अपनी घोषणा पत्र में पूर्ववत करने की आश्वासन के साथ सत्तारूढ़ हुई । ऐसे में ३% कम होने  और ओबीसी का 14% से 27%   होने सामान्य वर्ग को बिना अधिकारिक जनसंख्या के 10% देने से  समाज में आक्रोश व  समंजस की स्थिति निर्मित हैं। समाज का एक वर्ग 1%  की बढ़ोत्तरी से स्वागत- सत्कार व अभिनंदन की तैयारियों में लगे है तो एक पक्ष विरोध में हैं। जबकि न्यायालय का फैसला आना शेष है।  समाज के हितार्थ सकरात्मक फैसले व निर्णय होने की उम्मीद हैं। 

  

 आजादी के 90 वर्ष बाद भी  हमारे अनेक ग्रामीण व सरकारी  कर्मचारियों को आज भी सुदूर ग्रामीण जगहों पर किराए की मकान नहीं मिलते और वे मुख्यालय से दूर कस्बों में रहकर नौकरी, मान -प्रतिष्ठा दोनो बचाने के दोहरी संधर्ष से जी रहे हैं। इसी तरह जहां अल्प संख्यक हैं, वहां भी सामाजिक दंश से प्रत्यक्ष न सही अप्रत्यक्ष रुप से  उत्पीड़ित हैं। उन्हें आज भी सार्वजनिक कार्यक्रम और मंचों से तथा आमंत्रण -निमंत्रण से परे रखे जा रहे हैं। सार्वजनिक उत्सवों से कटे हुए विवश- बेबस हैं। इस तरह से देखे  तो नई पीढ़ी  संधर्ष व स्थिति- परिस्थितियों से प्रभावित  हैं। जो बेहद आक्रामक और  उद्वेलित हैं। उन्हें मंच मौका देने हमें भी सार्वजनिक उत्सव आदि के आयोजन करने होन्गे ।

 

    हमारे समक्ष एक बहुत अच्छा विकल्प हैं। ग्रामों में जब फसलें खेतों में हैं। और ऊपज का यह अंतिम क्वार का  माह जिसे टुटवारो का माह कहते हैं। उदासी और वीरानी छाई रहती हैं। तब गुरुराजा बालकदास के राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में १८३०-३२ से ही भंडारपुरी में गुरुदर्शन मेला होते आ रहे हैं जो कि सतनामी समाज का प्रथम भव्यतम सार्वजनिक आयोजन रहा है। जिसमें  विराट शोभायात्रा, जुलूस, आखाडा आदि सतनाम सेना के अगुआई में हाथी -घोड़े से सवार गुरु गोसाईं  निकलते हैं। गुरु की अमृतवाणी पर आधारित सामयिक  उपदेशना सुनाते  हैं। जिसे देखने- सुनने  दूर -दूर से प्रदेश के कोने -कोने  सेषअनुयाई व श्रद्धालु गण  एकत्र होते हैं। उसी शोभायात्रा में पंथी नृत्य अखाडा  और जगह -जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम साधु- अखाड़ा, भजन कीर्तन होते थे।इसकी तैयारी हप्तो महीनो चलते और लोग विकट समय को युं ही व्यतीत कर लेते थे ।

         उसी महान परंपरा जो गुरु बालक दास की हत्या और भीषण  अकाल के चलते तेलासी बाड़ा का गिरवी में लूंकड़ परिवार मारवाड़ी के हाथों डूब गये  (जिसे बहुत बाद में १०३ सत्याग्रहियों के जेल यात्रा के बाद  १९ ९०  में मुक्त कराए गये)  कारण तेलासी भंडार परिक्षेत्र में ऐसा उत्साह जनित कार्यक्रम स्थगित हो गये।

   उसे १९८५ में चिखली जुनवानी से गुरुगद्दी पूजा महोत्सव का नाम देकर पुनश्च प्रारंभ किए गये। जो दस दिवसीय महा आयोजन हैं। आज यह आयोजन अनेक ग्रामों में विस्तारित हो चूके है। जहां सत्संग प्रवचन पंथी मंगल प्रेरक नाट्य मंचन और मनोरंजनात्मक कार्यक्रम का मंच उपलब्ध होते हैं। जहां प्रबुद्ध जन सामाजिक विचार- विमर्श तथा अनेक तरह के विकास के आयाम तलाशते हैं।

        इस वर्ष राजधानी रायपुर के  महात्मा गांधी नगर अमलीडीह मे सप्तदिवसीय  आयोजन २ अक्टूबर से ८ अक्टूबर तक हो रहे हैं। 

    यह एक तरह के सांस्कृतिक नव जागरण होन्गे जहां परस्पर सभी पुरुष महिलाएं युवा बच्चे मिलकर अपनी प्रतिभाओं का प्रदर्शन और सामूहिक एकता का प्रदर्शन करेन्गे।

    यह आयोजन सर्वत्र हो और इससे सांस्कृतिक नव जागरण आए ऐसी सद्कामनाओं के साथ 

   इस  अंक को  गुरुदर्शन दशहरा मेला पर्व भंडारपुरी - तेलासीपुरी के नाम समर्पित करते हैं। 

       -डा. अनिल कुमार भतपहरी

                  सचिव 

         सतनाम साहित्य प्रकोष्ठ 

प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज 




No comments:

Post a Comment