"दृष्टान्त "
भूख व असुविधाओं से धीरे
वंचित व निर्धन समाज
कभी कुछ पाने की आस में
स्वत: एकत्र होने लगते हैं
पर शातिर लोग डालकर
प्रलोभन की रोटी
उन्ही में से कुछ को
पद-प्रतिष्ठा देकर
रखते सलामत अपनी चोटी
दिखाकर हसीन सपना
करते पुरा अरमान अपना
ठीक उस कौव्वें की तरह
जो स्वानों की भीड़ में
गिराकर अपनी चोंच से रोटी
तीतर -बीतर कर उन्हें
रखते सलामत चोटी
परस्पर लड़ते / झपटते
होकर लहुलुहान
पड़े हैं बेबस -विवश
लुटे -ठगे स्वान
अब तो सुन लो गुन लो
यह दृष्टान्त
-डा.अनिल भतपहरी ९६१७७७७५१४
जुनवानी , अमलीडीह रायपुर
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