असम से छत्तीसगढ़ आया
"मया के मोटरी "
वर्ष भर गाँव- घर, शहर -पहर समाज के बीच रहकर अपने दायित्यों का निर्वहन तो करते ही हैं इसी बीच कुछ दिन अवकाश लेकर इन चीजों सें दूर देश- दुनियाँ को जानने- समझने की चाह नें गैर अनजान गुमनाम सा क्षेत्र के लोगों की भाषा,कला संस्कृति,प्रकृति और प्रवृत्ति को करीब सें देखने का सौभाग्य मिलते है जो हम जैसों के लिए अमूल्य निधि हैं. उसी को अर्जित करने की चाह पिता श्री ने बाल्यकाल से लगाया फलस्वरूप पर्यटन में स्नातकोत्तर उपाधि अर्जित किया और इनके कारण तों अब पर्यटन के लत ही लग गये है. जब जब अवसर मिलता है सुदूर जगहों पर जन जीवन को जानने - समझने निकल पड़ते है.
हालाँकि अभी अनेक दायित्वों के कारण रमता जोगी बहता पानी जैसी स्थिति नही है और प्लान से जाना होते है.परन्तु 2023 में देश के पूर्वोत्तर राज्यों खासकर पश्चिम बंगाल और सिक्किम की यात्रा में एक वाक्या हुआ कि गन्गटोक से दार्जिलिंग जाने के रास्ते जाम हो गया हमें यात्रा रद्दकर वापस कोलकाता था. अब तो हमलोग बिना समय गवाए रमता जोगी बहता पानी जैसे निर्णय ले लिए कि अब सीधा असम गौहाटी जाना है और वहाँ से सीधा रायपुर . सुखद संयोग बना कि दो दिन के समय को असम में निवासरत अपने लोगो के बीच बिताया जाय. श्रीमती जी तो अभी यात्रा में मेरी छाया जैसी ही है भले घर में...तुरंत हामी भरी..इसी बहाने कामख्या देवी की दर्शन हो जायेगी. और हाथ जोड़ प्रणाम की मुद्रा में आ गई!
हमारे निर्देशक हज़ारों किमी दूर परवरिम गोआ में IIHH पढ़ने गये मिलिंद बेटे ने गूगल से सर्च करते आसान कर रहे थे. उन्होनें कलकत्ता से रायपुर का टिकट कैसिल करवाकर गौहाटी से रायपुर करवाकर हमलोगों की यात्रा को तनाव मुक्त सुखद कर दिया हालांकि कुछेक हजार अतिरिक्त भार आया पर असम के सुप्रसिद्ध और ऐतिहासिक कौरी पाथर और बसबेरा गाँव के निवासियों के स्नेहिल प्रेम और सितारा होटल से अधिक सुविधायुक्त ठहरने और भोजन की उत्तम व्यवस्था से जो सुखनुभूति हुआ वह वर्णनातीत हैं.
तो हमलोग वापस सिलीगुड़ी के बस स्टेण्ड में आकर गौहाटी जाने वाले स्लीपर बस के टिकट ले लिये यह काम भी टैक्सी ड्राइवर नें फोन करके करवा दिए और उस बस के टिकट काउंटर के पास लाकर में हमारे बैग रखवाकर निश्चिन्त कर दिए.
रात्रि 8 बजे बस तब तक हमलोग खाना वगैरह खाकर आराम से स्लीपर कोच में सोते सोते अलसुबह 5 बजे बस स्टैंड गोहाटी पहुँच गये..
सुबह सुलभ में निवृत होकर चाय नास्ता लेकर 7 बजे चल पड़े गतंव्य की ओर मन में हजार सपने लेकर उछाहित 150 वर्षों से आव्रजित और हजारों कि मी दूर भाषा,लिपि, संस्कृति और प्रवृत्ति विरुद्ध जनों के बीच या निर्जन वन प्रांतर में कालापानी सदृश्य दुर्गम जगहों पर बसे परिजनों से मिलन भेट रोमांचित और पुलक प्रकट कर रहा था.
मेरे मोबाईल में जो नये सेट था में डॉ जितेन्द्र जांगड़े जी का नंबर था जिसकी बेटी असम निवासी मिलन बंजारे से ब्याही गई हैं का नंबर था और दूसरा मानवशास्त्री श्री युत अशोक तिवारी जी का जो कि इन प्रवासी जनों के मध्य अनेक वर्षों से काम करते आ रहें हैं. उन्होंने 2018 में असम निवासी मदन सतनामी जो असम प्रान्त का अध्यक्ष हैं के घर में बैठे मुझसे बात करवाए तब मैं शा महाविद्याल पलारी के बीए भाग तीन में जनपदीप भाषा साहित्य छत्तीसगढ़ी पाठ मुकुंद कौशल साहब के गज़ल "मुड़ उठाये करगा कस... पढ़ा रहा था.
मदन सतनामी जी का भाव विभोर कर देने वाला अभिवादन ... सतनाम साहेब श्रवण किया और फिर अनुनय आग्रह कि दर्शन देहु गो...आज वह 5 साल बाद हो पा रहा हैं.
इस बीच हमलोग कई बार मिले तिवारी जी के पहल से छत्तीसगढ़ मूल के प्रवासी असमियों का प्रतिनिधि सम्मेलन संस्कृति विभाग के सभागार में हुआ जहाँ पर मेरा प्रबोधन और एक परम्परिक सतलोकी मंगल भजन जो कि आकाशवाणी रायपुर से मानसिंह टंडन के स्वर में चिकारा के साथ बजते आ रहें हैं - "अपन करम के भागी हो नरतन " को सुनाया और गला भर आया. उसी कार्यक्रम में मदन जी और संस्कृति विभाग के वित्त अधिकारी साहनी साहब के करमा प्रस्तुति भी समा बाँधा था.आगे चलकर साहनी साहब के साथ उच्च शिक्षा विभाग में साथ काम करने और उनके भांजा फ़िल्म स्टार संतोष सारथी के गुरतूर स्टूडियो से साथ में मेरे गीत -"चलो जुर मिल के अपन गाँव ल सरग बनाई " गाये. उस कार्यक्रम 30 प्रतिनिधि मंडल जिसमें महिलाए भी थी वो सबसे मेल भेंट हुआ और उनके यहाँ भी जाने की बातें हुईं. इस तरह मो न वाट्सअप और ग्रुप बने बनाये गए और छत्तीसगढ़ असम परस्पर जुड़ना आरम्भ हुआ.इन सबका श्रेय आद तिवारी जी के सतत प्रयास और संस्कृति विभाग के सौजन्य से हुआ.तिवारी जी से मेरा परिचय और मुलाक़ात 2015 से था ज़ब उनके सूचना और अनुग्रह में " आध्यात्मिक अनुष्ठान पंथी नृत्य " और सतनामी परंपरा में "रहस बेड़ा " पर सहपीडिया नई दिल्ली के लिये प्रलेखन और फिल्माकन किया. वहीं स्नेहिल संबंध मुझे पुनश्च आदेशित किया कि अनिल भाई तय असम गे हवस तब उहाँ के संस्मरण झटकुन 3-4 दिन में लिख के दे एक आयोजन मे ओमन ल पुस्तक छपवा के विमोचन करवाना हे..बड़े भैय्या के आदेश सर आँखों पर...
मैं रात के बस के खिड़की ल झाँक झाँक के सोनीतपुर देखत जावत हव कि असम के धरती के सुघरई कइसन हावय. तिस्ता नदी के तीरे तीरे ज़ब सिक्किम आयेन गायेन कहु उहि रकम के जंगल पहाड़ नदी नाला उच्च नीच सर्पिल सड़क तो नहीं...?
पर ऐसा कुछ नहीं बिलकुल सपाट मैदान बिना हिचकोले खाये बस चली जा रही हैं पर हसरते भरी मन में और आँखों में नींद नहीं... अचानक डीजल पेट्रोल का गंध बस में भर गये सोचा कहीं लीकेज तो नहीं...थोड़ी देर के लिये बस रुकी तो सांसे अटकी सी कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं...झटके से उठा क्या क्या हुआ...कंडेक्टर बोले कुछ नहीं किसी यात्री को लघुशंका के उतरना हुआ...बाहर बाहर पेट्रोलियम रिफाइनरी हैं उसी गंध भरा हुआ हैं...मैं भी मत चूको चौहान टाइप इस धरती को प्रणाम करनें उतरा..थोड़ी देर बाद बस चल पड़ी...
रास्ते में मिलन सतनामी जी नें दीपचंद जी का मो न दे दिए थे वे लोग सोनीतपुर बसबेरा जाने के मार्ग पर थैलामारा बस स्टेण्ड आकर प्रतीक्षा कर रहें थे.नें बस कंडक्टर से मेरे मोबाईल पर बात किया कि सर इन लोंगो को तेजपुर मोड़ पर उतार दीजये..हमलोग निश्चिन्त हुए और रायपुर से हजारों कि मी दूर वहाँ उतरे जँहा पूर्व परिचित शिक्षक दीपचंद सतनामी जी एवं उनके मित्र सड़क किनारे बस के दरवाजे के समक्ष ही फुलान गमक्षा लिये स्वागतार्थ खड़े हुए मिले.
जैसे ही बस से उतरे स्वागत किया.कंडेक्टर एयर बैग निकाले और हमलोग वाहन में बैठकर महाकवि मनोहरदास नृसिंह जी के जन्म स्थान बसबेरा की ओर चल पड़े.बिलकुल मैदानी सड़क और आसपास का महौल मुझे कोसरंगी के बंगाली पारा जैसे लग रहें थे.पता नहीं क्यों अजनबी अनजाना पन लगा ही नहीं.महज 15 मिनट में हमलोग बसबेरा के भारती होटल पहुचे वहाँ भी हमारा स्वागत भौंन सतनामी,खैमराज दिगंतो भारती नें किया और स्वल्पाहार परोसे . पता चला कि होटल संचालक हमारा गोत्रज भाई हैं और विगत अनेक वर्षों से इस व्यवसाय में लगे हैं.वहां की प्रसिद्ध मिठाई लौंग लता और कलाकंद लिये पैसा नहीं ले रहा था पर जबरदस्ती दिया वे केवल 200 रूपये लिये और 300 वापस कर दिए. मिठाई उस घर के लिए ले गए जहाँ हमें ठहरना था.
होटल से महज एक कि मी दूर शानदार आधुनिकतम घर जहाँ अनेक पुष्प केला,पपीता आम और सुपाड़ी के पेड़ लगे हुए थे.खुला आँगन और मध्य में अलंकृत जैतखाम जो 18 दिसंबर को पालो चढ़े थे नाड़ियल और गेंन्दे के फूल से सजे मनमोहक लग रहें थे.सामने से प्रणाम किया और वहीं खड़े रहें तभी साध्वी सी माथे पर तिलक चंदन लगाए गृह स्वामिनी लोटा में जल लेकर आई और हमारे परक्षन की...हमलोग ऐसा अभ्यस्त नहीं थे पहली किसी नें ऐसा स्वागत की कि हमारी श्रीमती जी बेहद गहराई से प्रभावित हुईं और तत्क्षण कहीं - ऐसा मैं पहली बार देख रही हूँ.वो हर्षित और चकित रह गई.
हालांकि मैं जानता था और सरगुजा अंचल में ऐसा स्वागत सत्कार पा चुका था.उन्हें और सभी को कहाँ कि यह हमारी छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति हैं जिसे आपलोग सम्हाल कर रखे हैं. क्या हमारे आगमन के कारण ही ऐसा हैं कि कोई पहुना आते हैं उन सबका ऐसे ही सहज भाव से पाव पखांरते हैं.वो बोली जी इहाँ अभी चलतेच हवे नंदाय नइहे.आवव सुवागत हे...लम्बी यात्रा से हुईं थकावट यहाँ की मनभावन हरियाली स्वागत सत्कार और अपना पन के स्नेह से कपूर की मानिंद उड़ गए और मन में उत्साह उमंग भर आया...स्नान भोजनपरान्त दोपहर विश्राम कर दोपहर 3 बजे पहुनाई में पूरा पारा किंजरने निकले प्रायः 7 घर गए बातचीत चाहा पानी और पान सुपाड़ी से हमलोगों का अभिनव स्वागत सत्कार हुआ..
शाम 7 बजे 1875 के आसपास स्थापित सतनामघर में आरती पूजा और भजन कीर्तन हुआ.जहाँ गाँव भर से प्रमुख गण महिला बच्चे उपस्थित रहें.वहाँ पर हमदोनो का खोराई, झापी खुमरी टोपी और फुलान गमछा से स्वागत सत्कार हुआ..फिर सोसल मीडिया से युवा लोगो को पता था तो वे लोग मेरे सम्बोधन के समय आग्रह किए कि पंथी भजन गाइये.मैंने पंथी और मंगल भजन गाया मेरे साथ भजन मण्डली गाये और युवा उत्साही गण पंथी नर्तन किए...कार्यक्रम में केशव सतनामी,दीपक,खैमराज,सुनहर,ओमप्रकाश चंड्रा बिशाखा,प्रमिला,मोहर लीलावती, पार्वती,बेनु रत्नसेर,धन सतनामी,दीपांकर चौधरी,भोलाराम रौटियां.लखन रोहित बिशाल,अज़ला,सुमन,जैसे युवा महाविद्यालियन छात्र छात्राएं भी सम्मलित रही और प्रश्नोत्तर क्रम भी चला.
रात्रि भोजन समीप नाम घर समीप महाकवि मनोहर दास नृसिंह परिवार के प्रतिष्ठित शिक्षक तुलेश्वर सतनामी के घर हुआ. जहाँ राजधानी रायपुर,बेलासपुर के विकास और गिरोदपुरी, सिरपुर राजिम शिवरीनारायण तीर्थं की बातें बस्तर की चर्चाएं होती रही...इस बीच लोरीक चंदा, नाचा, भरथरी जस जवारा भोजली की भी बातें चली लोग कौतुक वश पूछ रहें थे और मैं आधे -अधूरे ही सही इनसाईकलोपीडिया टाइप युवाओं बुजुगों के उत्तर देते छतीसगढ़ की महानतम संस्कृति का आस्वादन कर भी रहा था...
रात्रि विश्राम दीपचंद भैया के घर हुआ जहाँ पर सतनाम साधिका नर्मदा भाभी से आध्यात्मिक चर्चाएं हुईं.वे गुरु घासीदास आसन परिवार से जुड़ी हुईं अपने घर गुरुगद्दी स्थापित की हैं और नित्य सुबह शाम आरती ध्यान करती हैं.समय समय पर सत्संग प्रवचन भी.वे वहाँ समाजिक रुप से चर्चित और प्रतिष्ठित हैं उनकी बेटी डॉ पनीता एवं पुत्र विप्लव सतनामी भारतीय नौसेना में कार्यरत हैं.मायका वाले बलौदाबाजार के आसपास के गाँव हैं तो एक तरह से और भी आत्मीय बड़ी दीदी जैसी लगी क्योंकि मैं भी बालौदिया हूँ जबकि ससुराल पक्ष रायगढ़िया हैं.
. सुबह चीला और मिर्च पाताल चटनी की नास्ता से मन तृप्त सा हुआ पान सुपाड़ी खाकर जैसे ही निकले की एडवोकेट लिखेश्वर सतनामी जी अपनी मारुती डिजायर लेकर हाजिर हों गये.काजीरंगा नेशनल पार्क से लगा सतनामी बाहुल्य गाँव कौरी पाथर जाने के लिये जँहा मिनीमता स्मृति भवन बन रहें हैं.. रास्ते में हरी- भरी वादियों से गुजरते जा रहें थे और मेरे मोबाईल से ब्लूटुथ से मेरे ही छत्तीसगढ़ी गीत भजन सुनते हुए बीच बीच में सतनाम संस्कृति और असम में सामाजिक/ धार्मिक गतिविधियों पर बातचीत करते रोमांचक यात्रा ...यहाँ करीब 13 लाख से ऊपर छत्तीसगढ़ मूल के लोग निवासरत हैं.रामेश्वर तेली सांसद और राज्य मंत्री हैं अनेक जिला जनपद और निगम मंडल के सदस्य हैं.बगनियाँ लोग के नाम से चिन्हित और जाने वाले प्रवासी छत्तीसगढियों में सामाजिक सौहार्द हैं और परस्पर रोटी- बेटी भी हैं. ये लोग छत्तीसगढ़ी के कारण आत्मीय भाव से जुड़े हुए है परन्तु तेजी से युवाओं में छत्तीसगढ़ी विलुप्ति की ओर हैं यह दुःखद हैं इसके लिये छत्तीसगढ़ सहित असम प्रान्त में भी काम करने की अत्यंत आवश्यकता हैं अन्यथा पुरी संस्कृति समाप्ति की ओर चली जाएगी क्योंकि भाषा ही संस्कृति की संवाहिका हैं. मैंने कहाँ कि छत्तीसगढ़ के शहरों में सिंधी गुजरती मारवाड़ी पंजाबी व्यापारी हैं और विगत100-150 वर्षों से बसें हुए पर वे लोग अपनी भाषा संस्कृति खान- पान,रहन -सहन को यथावत रखे हुए हैं. हमलोगों को भी चाहिए कि उन लोगों का अनुशरण कर अपनी भाषा -संस्कृति को सहेज रखें...पर हमारे ही पढ़े -लिखे लोग उदासीन ही नहीं विरोधी नज़र आते हैं यह विडंबना हैं.
. असम और पूर्वोत्तर की लाइफ लाईन ब्रम्हपुत्र नदी का दर्शन हुआ.पुल पार करते हुए मैंने रुकने और फोटो खींचने का आग्रह किया. प्रतिबंध के बाद भी सुबह ट्रेफिक कम होने से एक मिनट दो -तीन पोज के लिये किनारे कार रोके...सदानीरा ब्रम्हपुत्र का दर्शन से मन हृदय पुलकित और रोमांचित हुआ.
. सतनाम धर्म के गुरुमाता और छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद मिनीमता जी के जन्म स्थान जहाँ पर भव्यतम स्मारक हैं जो कि काजीरंगा नेशनल पार्क से लगा खोखन जूरी के पास ही मनोरम ग्राम "चिकनी पाथर "के बारे में चर्चा करते हुए पहुंचा .हमलोगों की आगमन स्वागत की सूचना और वीडियो फोटोग्राफ असम ग्रुप में डाले जा चूके थे फस्वरूप हमलोग को राजकीय अतिथि और गुरुगोसाई जैसा अकल्पनीय सम्मान मिला...हमारी श्रीमती जी तो बहुत ही गौरवान्वित और आल्हादित हुईं जा रहीं थी क्योंकि यह सब वो पहिली बार देख और महसूस कर रही थी.मुझे तो दो चार बार का अनुभव भी था. बहरहाल हमलोग 12 बजे पहुँचे ब्रिटिश जमाने का स्कूल परिसर से लगा कोलियाबार के चिकनी पथार गाँव में छत्तीसगढ़ की सांसद छाया वर्मा जी द्वारा प्रदत्त 20 लाख राशि और सामाजिक सहयोग से अत्यंत सुंदर मिनी सतनाम भवन निर्मित हैं उसी के प्रांगण में हमारी कार रुकी...महिलाए बच्चे बड़े बुजुर्ग आरती थाली नाड़ीयल और फूल मलाए लिये स्वागत में खड़े थे...हमलोगों को परघाकर और पाँव पखार कर सभागार में ले गये जहाँ माता जी की छायाचित्र लगे हुए थे.हालांकि भवन पूर्ण हों चुका था पर उद्घाटन नहीं हुआ था...एक तरह से स्वागतार्थ पहला कार्यकम उस भवन में हुआ जो हमारे लिये सौभाग्य ही है.
. वहां स्वागत सत्कार उपरांत एक कार्यक्रम सा ही हुआ.सुदूर छत्तीसगढ़ की कथा कहिनी जैसे मधुर यादें और यहाँ की जीवन संघर्ष के बारे में बातें की गई मिनीमाता और आगमदास गोसाई की संस्मरण भी सुनाये गये.मैंने सचिव छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग की हैसियत से आग्रह किया कि अपनी संस्मरण को छत्तीसगढ़ी हिंदी में या कोई रचनाकार लेखक कवि हों तो उनकी रचनाओं का पाण्डुलिपि जो छत्तीसगढ़ और असम केंद्रित हो को आयोग भेजिएगा निःशुल्क प्रकाशित कराएँगे और राज्य की जिलों में भेजेंगे लेखक साहित्यकार का सम्मान भी करेंगे...इसका प्रचार -प्रसार भी करें.ऐसा आव्हान भी किया.कार्यक्रम में दाऊराम,नामदास,बिमल सतनामी ,संजय ठाकुर, अमरदास पनिका,भोलाराम रौटिया, दुर्गा दहरिया,प्रियंका,गुणवान्ति,जुगत,इंदल मानदास,कृष्णा कुर्रे सहित अनेक महिलाए बच्चे उपस्थित रहें.
सेवनिवृति की ओर अग्रसर शिक्षक दादूराम सतनामी की वयोंवृद्ध माता जी नें मिनीमाता की संस्मरण सुनाई बहुत गोरी चिट्टी और रानी जैसी थी.वो यहाँ आती थी हमलोग बचपन में देखी हैं मैं भी वैसी थी तो मुझे प्यार दुलार भी की...बुजुर्ग माता जी सचमुच में गौरवर्णी और मधुर भाषिणी थी. वो बताई कि सामने जो पेड़ दिखाई दे रहा हैं वहां गुरु अगमदास जी का हाथी बंधया था.जिसपे वो लोग चढ़ कर आते थे.यहाँ बहुत जंगल और रास्ता नहीं था पैडगरी था.मोर ददा बड़का महंत रहिस.वो आग्रह कर अपने घर ले गई खुलाआँगन ढेकी,जाता जैतखाम और छत्तीसगढ़ के किसी महंत गौटिया के घर जैसा ही लगा... मैं तो ढेकी कूटा और अनीता जाता दर कर देखी.उनकी बहुये और बाल गोपाल हमलोगों की हर्ष से स्वागत स्नेह पूर्वक भोजन कराई...पान सुपाड़ी जो प्रायः हर घर उगाई -खाई जाती हैं यहाँ की संस्कृति बन गई हैं,खिला कर विदाई की.
. बहुत सी ऐतिहासिक बातें जंगल साफ कर गाँव बसाने और खेत बनानें की दास्तां सुनते गये इधर परिश्रमी और साहसी लोग धनाढ्य भी होते गये अनेक बड़े हैसियतदार भी हों चूके हैं.कुछ लोगों की बड़े बड़े चाय बगान भी हैं...
हमारी कार दौलगांव की ओर तेजी से बढ़ती जा रही थी क्योंकि वहाँ मिनीमाता स्मारक का दर्शन करना था.बार -बार लोंगो का आग्रह रहा कि कुछ दिन रुकिए आराम से जाइएगा.मदन सतनामी शंकर साहू जी का भी आग्रह था पर छुट्टी नही था.कैसे वक़्त पल में बीतते गया पता ही नहीं चला...शाम 6 बजे तक गौहाटी पहुंच कर निलांचल पर्वत में स्थापित सुप्रसिद्ध कामाख्या दर्शन भी करना था क्योंकि प्रातः ही रायपुर के लिये प्लेन था.
. रास्ते में एक संपन्न सतनामी कृषक ट्रेक्टर से धान मिसाई कर रहा था सड़क से लगा ब्यारा का राचर था.कार रुकी... साहेब सतनाम हुआ.हवेली नुमा घर देख अच्छा लगा उससे पता चला चाबीदार वहीं स्मारक में प्रतीक्षा कर रहा हैं...कार चालक मित्र बताये यंहा भी सतनामी बाहुल्य पढ़ा लिखा सम्पन्न लोग हैं और बरार कार माता जी की स्मारक बनवाये हैं..वहाँ पंहुचा और भव्य सुंदर अस्मिस वस्तुशिल्प के अनुरुप स्मारक बने हैं सामने जैतखाम भी जहाँ कुछ दिन पूर्व ही भव्यतम रुप से गुरु घासीदास जयंती पर रंग रोगन और पालो चढ़ाये गये हैं.दर्शन कर कृत्य कृत्य हुआ. कलांतर में यह स्थल सतनाम धर्म के पुर्वोत्तर भारत में स्थापित यह प्रमुख तीर्थ के रुप में जाने जायेंगे...इस मंगलकामनाओ के साथ हमलोग थैलामारा बस स्टेण्ड की ओर चल पड़े थोड़ी देर बाद बस स्टेण्ड पहुँचे सामने से आधी भरी खाली बस आई... आराम से सीट मिल गये! दोनों जोड़कर अभिवादन में खड़े हाथ हिलाते और आइयेगा के आग्रह भाव और फुलान गमछा गोल टोपी खुरई,सुपाड़ी,चाय की ताजी पत्ती सहित अगाध प्रेम भाव से पगी हुईं "मया के मोटरी " बांधे हर्षित हृदय,पुलकित मन में यह विचार करते बस में बैठे गंतव्य की ओर बढ चले...
ज़ब सोसल मीडिया और पर्यटन प्रेम के चलते 2000 कि मी सुदूर छत्तीसगढ़ी जनता से जोड़ने क्यों दोनों राज्य की महत्वपूर्ण कड़ी मिनीमाता जी के नाम से दुर्ग या रायपुर से डिब्रुगढ़ या गोहाटी तक सीधा रेल सेवा आरम्भ हों. ताकि सुगमतापूर्वक परिजन आ जा सकें सगे -संबंधी जुड़ सकें. सांस्कृतिक धार्मिक व्यापारिक संबंध भी बेहतर हों सकें इनके लिये केंद्र और दोनों राज्य के प्रतिनिधि गण मिलकर सार्थक पहल कर सकतें हैं.
. इस तरह अविस्मरणीय रोमांचक, ज्ञानवर्धक, सुखद और प्रेमल यात्रा सम्पन्न हुआ.
जय छत्तीसगढ़ जय असम जय भारत
. डॉ. अनिल कुमार भतपहरी / 9617777514
सत श्री ऊँजियार सदन
सेंट जोसेफ टाउन अमलीडीह रायपुर छत्तीसगढ़
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