Saturday, August 31, 2024

छूद्र जीवन विश्वासी हैं?

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 माना कि आभासी हैं।
पर क्या रिश्तों नातों से भरा 
यह  छूद्र जीवन विश्वासी हैं ?

कोई मन का मीत मिले
ज्ञानी गुरु सच्चा साथी मिले 
भटकते रहें ताउम्र अकेले 
पर कोई न हमराही मिले 

आना जग में अकेला और 
जाना जग से अकेला हैं 
सच कहें तो यह जग जीवन
 चार दिनों का ही मेला हैं 

तब क्यों न मगन बिताओ 
वक्त आभासी दुनियाँ में 
हर तरफ मृगमरीचिका हैं 
सम्हल कर रहना दुनियां में 

दोखा हम खाते नहीं बल्कि देते हैं 
समझने के लिए कितने ही गेटे हैं 
फिर भी आज तक मनुष्य नहीं चेते है 
बेफिक्र मौज कर रहा पर सच कब्र में लेटे हैं

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