Wednesday, January 24, 2024

गुरु अम्मरदास

।।गुरु अम्मरदास समाधि मेला चटुवा पुरी धाम ।।

 गुरुघासीदास के ज्येष्ठ पुत्र है।वे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे तथा ध्यान योग समाधि में निष्णान्त थे।
    गुरुघासीदास की  अमृतवाणी उपदेश और सतनाम- दर्शन को जनमानस में पंथी गीत व मंगल भजन के रुप मे लयात्मक रुप देकर जनमानस के कंठाहार बनाए। इस तरह से देखें तो गुरु उपदेश को काव्यात्मक स्वरुप देने का अप्रतिम कार्य किये ।फलस्वरुप हजारों पंथी गीत छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य के अनुपम धरोहर हैं।
   जनश्रुति है कि वे सतनाम पंथ के प्रचार हेतु शिवनाथ नदी के उसपार अपने ससुराल प्रतापपुर  परिक्षेत्र  सफेद रंग के  हंसालीली  सफेद घोड़ा से जा रहे थे।सिमगा से आगे चटुआ धाट के समीप इमली पेड़ के झुरमुट के समीप  वे साधनारत हो गये।उनके दर्शनार्थ आसपास से जनसमूह उमड़ने लगे।
      वे अनुआयियों  को साढ़े तीन दिन की "शव समाधि" लेने की इच्छा व्यक्त किए और समाधिस्थ हो गये।  चारों ओर से  बेकाबू भीड़ दर्शनार्थ उमड़ पड़े कि तीसरे दिन कुछ नायाब चीजें लेकर गुरु आयेन्गे।  सतनामियों की एकजुटता और संगठन से घबराकर कुछ सड़यंत्री व द्वेषी जन लोगों में भ्रम फैलाने लगे कि लाश में प्राण नही है और इसमें जीव आ नही सकते ।इसके क्रियाकर्म कर दो । जनमानस भजन- कीर्तन करते रहे । एक दिन बीता, दो दिन बीत गये  शव मे चेतना आई नही ।सतनाम द्वेषी लोग लोग भ्रम फैलाते रहे अंतत: तीसरे दिन शव को दफना दिए गये। पर कुछ भक्त वही बैठे शोकमग्न थे।
 साढ़े तीन दिन बाद शाम को  प्राण ज्योति स्वरुप आई शव की चारो ओर परिक्रमा की और शव में सुरंग सा हो गये जलधारा फूट पड़ी । प्रत्यक्ष दर्शी रोते बिलखते वापस आ गये ।यह घटना १८४० को पौष पुर्णिमा को हुआ। गुरुघासीदास भी अपने तेजस्वी पुत्र के वियोग से विह्वल  व अनमना होकर रह गये । 
    अंतत: एकान्तवास के लिए प्रयाण कर गये। 
    कलान्तर मे हरिनभठ्ठा के मालगुजार आधारदास सोनवानी जी ने उक्त समाधि स्थल मे १९०२ के आसपास भव्य मंदिर बनवाए ।और शिल्पकार समकालीन समय मे अन्यत्र हिन्दू मंदिरों के अनुशरण करते शिव ब्रम्हा के साथ कुछ विवादस्पद शिल्प बनाए .... जो वर्तमान मे  अप्रसांगिक है।‌ उन्हे हटाने की निरन्तर मांग हो रही है।परन्तु प्रबंधक लोग विरासत और प्राचीन कलाकृति के नाम पर अनिर्णय की स्थिति में है।
         बहरहाल यहां प्रतिवर्ष पौष पूर्णिमा को त्रिदीवसीय विशालकाय मेला लगता हैं। यह स्थल रतनपुर राज के अन्तर्गत आते हैं।  उनके साथ रायपुर राज में बाराडेरा धाम में भी विराट मेला लगता हैं।
     चटवा  धाम से कुछही  दूर ग्राम  किरित पुर मे  जैतखाम के शिखर पर सत्यपुरुष व सत्यावती का शिल्पांकन किए गये है।जो और भी सतनाम संस्कृति में अग्राह्य है। इसमें  यथोचित सुधार  होना चाहिये ।

             ।‌सतनाम ।।

         - डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

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