Thursday, November 23, 2023

हिमालय

#anilbhatpahari 

हिमालय 

संसार का वैभव  त्याग कर लोग हिमालय की ओर प्रस्थान करते रहे  हैं। कहते है कि वहां देव निवास करते है इसलिए तो हिमालय परिक्षेत्र को देवभूमि की संज्ञा दी गई हैं। 
  कुछ संकट आया , वय ढला  और सर के बाल सफेद हुये  नहीं कि लोग कैलाश त्रिशुल नंदादेवी के शिखर दर्शन के लिए उद्दत हो जाते हैं।तो कुछेक अमरनाथ , बद्रीनाथ गंगोत्री, हरिद्वार की ओर प्रस्थान करते है कि गोया वहां जाने मात्र से मुक्ति मिलेगी या  दर्शन मात्र से मोक्ष या निर्वाण मिल जाएगा ! मानसरोवर को बुद्ध की मानिंद हड़पकर या हस्तगत  चाइना  "बुद्धम शरंणम गच्छामि" का उद्धोष कर रहा है या  उनके आंऊ माऊ चाऊ हम जैसों के भेजे मे समाते नहीं क्या?भले धर्मशाला खोलकर हम मैनपाट तक शरणागतों को आश्रय देकर धर्मप्रिय महादेश के "धर्मात्मा "बने हुये हैं।
 तो भैये कह रहे थे कि वहां तो अनेक साधु ,तपस्वी , संत मठ ,मंदिर ,आश्रम  दिखते भी हैं। जहां मोक्ष निर्वाण का कारोबर चलता हैं जहां  परमानंद -आत्मानंद की अकथ कथा का प्रवाह भी शिलाखंडों व हिमखंडों को‌ चकनाचूर कर आगे प्रयाण करते कल कल निनाद करते  रहे हैं।
   पर सच तो यह है कि  हिमालय की ओर आजकल  युवाओं का ज्यादा आकर्षण बढ रहा  हैं। वहां बड़ी तेजी होटल, रिसार्ट, होम स्टे ,रेस्त्रां ,पब और विविध मौज मस्ती एंव  पर्यटन व मनोरंजन उद्योग  के केन्द्र स्थापित होने लगे हैं। पैराग्लाडिंग, ट्रेकिंग  ,रीवर राफ्टिंग, जीप लेने जैसे साहसिक कारनामें यदि जीवन संघर्ष में काम आये तो किसी  हठयोगी की तप साधना के प्रतिफल से कमतर नही समझना चाहिये। हमें योगी नही सस्टनेबल भोगी चाहिये तो वसुंधरा के वैभव को चक्रवर्ती सम्राट की तरह भोग सके। पारिवारिक कलह या आर्थिक संकट से भयभीत होकर झोला उठाकर कही भाग न जाये बल्कि शुतुरमुर्ग ही सही गर्दन रेत में घुसा कर डटे रहे या कछुए की मांनिंद भीतरी घर में या बीबी के पल्लु तलें ही बैठ कर मुकाबला करे ...
     हिमालय व देवभूमि  दर्शन  वैराग्य भाव को जागृत करते थे अब राग ,रति ,रंग हिमालय ही जगा रहे हैं। राग -वैराग्य का अनुठा समन्वय वहां द्रष्टव्य हैं। हमलोग हिमालयन व्यु पांइट को अब इंडिया का स्वीट्जरलैंड कह महाआनंद में निमग्न हो जाते हैं। सच कहे तो आसपास बार व बार बलाएं हो, तो इंद्रलोक को पछाड़ दे और गर फिरदौंस ... जमी अस्त कहके उस जहांगिर को चुनौति दे कि केवल कश्मीर ही नही रोहतांग से लेकर नाथुला तक जगह -जगह पर ज़न्नत ईज़ाद कर लिए गये हैं। अब बहत्तर ही क्यों पचहत्तर हुरें सुबह ए शाम मौज़ूद हैं।
  जहां  संन्यास  की दीक्षा ली जाती थी अब उसी भूमि व पावन स्थल में सुहागरात मनाकर गृहस्थ की शुभारंभ करने  लगे हैं।  यही बदलाव है भाया-" अब नइ सहिबो बदल के रहिबो ।"  पांडव लोग महाभारत युद्ध जीत कर विजय के प्रमाद मदमस्त स्वर्गरोहण करने या कहे   मरने हिमालय  गये अब भी कथित विजेताओं द्वारा यह किये  जाते है पर अब जीवन की शुरुआत करने जा रहे हैं।उनका तो स्वागत सत्कार होना चाहिये न कि .... 

     बहरहाल  आइये हिमालय  दर्शन कीजिए और प्रकृति की प्रेम में निमग्न हो परमानंद में खो जाए ...और स्वामी अनिलानंद की भजन में डूब जाय -

कोई काहु में मगन कोई काहु में मगन 
मिटे सारे भ्रम हो प्रसन्न अन्तर्मन 
कोई गाये भजन कोई करे रमन ...

बाकी अंतरा कभी बाद में ...

"अगर बर्दास्त कर सको  तो"  हमारे नये आकार ले रहे कथेतर संग्रह से

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