Wednesday, November 2, 2022

याद ए बचपन

#anilbhatpahari 

       राजकपूर निर्देशित और ऋषि / डिंपल अभिनीत  फिल्म बाबी का क्रेज ऐसा था कि नवयुवकों  और किशोरों  के जुबान पर ..." मै शायर तो नही मगर ए हसीं जब से देखा तुझको मुझको शायरी आ गई ...गुंजने लगा था । 
    मेरे लिए यह सौभाग्य रहा कि  किशोर वय में पिता श्री के स्नेह के चलते  टेलर से बाबी कट बकरम वाले कालर का आर्डर से चटक कलर हाफ शर्ट और सफेद रंग का बेलबाटम वाली फूल  पैंट  बनवाए थे ।हालांकि फैशन शहर से गांव आने मे टाईम लगता है  पर हम जैसे अर्ध शहरी/ ग्रामीण  लोग ही तो इनके संवाहक है । गांवों के बाजार मे डिंपल पाउडर  और बादल छाप स्नो भी लड़कियों मे खूब बिकते। कभी -कभी हम लोग भी खरीद कर लगाते ।  अनेक बाल मित्रों मे एक जो हम लोगों से शरीर में  बड़ा पर बुद्धि में छोटा या कहे कमजोर या मंद टाईप का  था। वे मजाकिए भी बहुत थे और उनके हर चीज को कहने ढंग थोड़ा अलग टाईप का था । 
     एक दिन डिपंल पाऊडर लगाए लड़कियों के झुंड गुजरते देख कहे - "बड़ ममहात हे कहर म नाक तको फूट जाही"  ... उनकी यह बातें उस समय हमें भी समझ नही आया और इस बात पर खूब चर्चाएं हुई।  ... कुछ सयाने लोगों तक बात गई कि कहर से नाक कैसे फूटेंगे ? उन में  से  दो चार मनचलों का जवाब  यहां अवर्णनीय हैं। पर यह समझ में आया कि इत्र या खुश्बु सम्मोहन  या रिझाने के वास्ते लगाए जाते हैं। और रात मे तो भूत -प्रेत जिन्न तक लगाने वाले के पास  आ जाते हैं। तो जिन्दा हाड़ मांस के आदमी का क्या बिसात । 
          सच मे , उस दिन के बाद  डिंपल का सुंगध   जब जब सुंधने मिलता तो डिंपल कपाड़िया गुजर रही है ऐसा लगता और कभी -कभी   मन मे धबराहट/ बैचैनी होने लगते कि कही हम लोग कही खीचां  तो नही  जाएगें ...भूत -प्रेत ,जिन्न की तरह ।
      
      फैशन की उस दौर 1981 मे सातवीं पढते बाबी कट शर्ट पहिनने  और सफेद बेमबाटम फूल पैंट भी यदा - कदा  और शेर -ओ- शायरी करने शौक चर्राने लगा था ! शायद तभी से अक्षर जोड़ने की कलाए विकसित होने लगे ।
हां बेलबाटम में स्टील का रिंग लगाकर  ट्रींग ट्रींग घंटी बजाकर दोनो हाथ छोड़कर  सायकल चलाने का अपना एक अलग ही मजा था। 
    हालांकि कभी- कभार गिर पड़ते थे  और बेलबाटम चैन पर फंस कर गंदे भी हो जाते  पर  रानी पाल लगाकर चमका लेते थे और लोहे की इस्त्री  मे कोयला डाल आयरन करना सीख भी गये थे । यह सब तिकड़म उस मज़ा के सामने ए सब कुछ नहीं हैं।
    
    वह भी क्या दौर था यार ... बेफ्रिक और बिंदास अहा ! जिन्दगी ।

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