Friday, July 25, 2025

सूरज चंदा नाम जैतखाम

#anilbhattcg 

जोड़ा जैतखाम में से एक  अब तक नहीं ऐसा क्यो ? 

 जय सतनाम 

सतनाम धर्म संस्कृति के प्रवर्तक गुरु घासीदास जी के सामाज सुधार व नव जागरण से प्रेरित हो ब्रिटिश शासन उनके  मंझले पुत्र गुरु बालकदास  जी को  1820 में राजा घोषित कर सोने की मूठ वाली तलवार भेंट किये और भंडारपुरी में में  भव्यतम  मोती महल ,गुरुद्वारा बाड़ा संतद्वारा बनवाकर सतनाम पंथ का सर्वत्र प्रचार -प्रसार करने लगे। महल के ठीक सामने चांद +सुरुज नाम का जोड़ा जैतखाम गड़ाए और धर्म ध्वज पालो चढ़ाकर प्रतिवर्ष भंडारपुरी में दशहरा के दूसरे दिन गुरु दर्शन मेला विजया एकादशी को  "भंडार दशहरा "के नाम से   गुरु दर्शन मेला की शुरुआत 1830 में किये गये । 
     इस पावन अवसर पर मार्गदर्शक  गुरुघासीदास सेत सुमन घोड़ा , प्रबंधक राजा गुरुबालकदास ,पुत्र गुरु साहेबदास  हाथी दुलरवा और संचालकअनुज गुरु आगरदास साहेब  सांवल घोड़ा मे में सवार निकलते। आसपास के अनेक एंव  दल आखाड़ा दलों  का भव्य प्रदर्शन के साथ बाजे- गाजे से शोभायात्रा निकलतेऔर उपस्थित हजारों लोगो को गुरुओ द्वारा धार्मिक उपदेशनाएं थे। यह प्रथा अब भी यथावत चला रहा हैं।
   मोती महल की उपदेशात्मक रुप शिल्पांकन विश्व में एकमात्र और अनुठा है। मंदिर के शिखर पर स्थित चारों कंगुरे पर  तीन बन्दरों एंव एक पर गरजते शेर का शिल्पांकन और सहस्त्र कमल दल के ऊपर स्वर्ण कलश , त्रिशरण का प्रतीक सात ज्योतिर्पुनज और  आकाश में अनिहर्श फहरते हुए  धर्म ध्वज पालो  सतनाम दर्शन की व्याख्या करते एक दृटाष्ट के रुप में चौखंडा महल रहा है । इसे हमलोग बचपन से देखते और उससे प्रेरणा लेते आ रहे हैं।
हालांकि आकाशीय बिजली से उक्त ऐतिहासिक ईमारत क्षतिग्रस्त हुआ और सुन्दरलाल पटवा सरकार के समय इसके जिर्णोद्धार हेतु पुरातत्च विभाग के अधीन किये गये। 
    आगे चलकर पुरी तरह नव निर्माण किया जाएगा ऐसा निर्णय से गुरुद्वारा को ध्वस्त कर नीचे का तलघर बनाया गया और ऊपर एक मंजिल काष्ट शिल्प से युक्त भारवट खंभे के अनुरुप पहला मंजिल बना कर युं ही छोड़ दिये गये हैं‌।  वर्तमान में  तो आधे -अधुरे निर्माण इन 35 वर्षो से जीर्ण -शीर्ण हो चूका हैं। पुरी एक पीढ़ी सतनाम दर्शन एंव दृष्टान्त से युक्त उस भव्य ईमारत के दर्शन से वंचित हैं।
बहरहाल महल जब बने तब बने ( सुनने मे आया है कि‌  छत्तीसगढ़ शासन इसके लिए सत्रह करोड़ राशि स्वीकृत भी कर दिये हैं।) कम से कम वहां स्थापित जोड़ा जैतखाम में सुरुजनाम का अकेला जैतखाम हैं। चांदनाम जैतखाम अबतक स्थापित नही हो सका हैं। प्रतिवर्ष भव्यतम दशहरा मेला लगता पर पालो एक जैतखाम में चढाये जाते है और दूसरा जैतखाम मे पालो‌ को चांदनाम जैतखाम के चबुतरे में खोच दिये जाते हैं। अन्यन्त पीड़ादायक हैं।

ज्ञात हो कि महल का बाह्य और आतंरिक संरचना की पुरी विडियोग्राफी  पुरातत्व  विभाग द्वारा किया गया । संबंधित अधिकारी सेवानिवृत हो गये है और वह कहां किसके पास संरक्षित है अज्ञात हैं। मै जानने का प्रयास किया पर नही पता चला और अब तक सार्वजनिक नही हो सका हैं। ऐसा भी हो सकता है कि रख रखाव या बदलते  टेक्नालांजी के कारण वह खराब हो चुका हो।
शुक्र है एक पुरानी फोटो एम्बेसेटर वाली सोसल मीडिया में है ।और दूसरी मेरे द्वारा 1993 में खिची फोटो हैं।
मंदिर का कलश कंगुरा , और गुरुगद्दी का चरण पादुका  डा  सोनी कृत सतनाम के अनुयाई किताब में संरक्षित हैं।
सोसल मीडिया में न ई पीढ़ी को अवगत कराने इन चित्रों को  सभी वायरल करते आ रहे हैं। अन्यथा वह भी दर्शन करने नही मिलता ।

पोष्ट का उद्देश्य कि एक अदद  चांदनाम जैतखाम‌ के  खाली चबुतरे में  जैतखाम स्थापित हो और धर्म ध्वज पालों चढे। ताकि लाखों- करोड़ो लोगों की आस्था यथावत बनी रहें।  इस ओर सभी का  ध्यान आकृष्ट होनी  चाहिये और सार्थक पहल होनी चाहिये ।आखिर ऐसा क्यो है और किस प्रयोजन के लिए हैं दूसरा चांदनाम जैतखाम स्थापित नही हो पा रहा हैं?  
    कृपया इसे शेयर कीजिए और संबंधितों तक पहुचाएं ताकि सार्थक पहल और हल हो सकें।
      जय सतनाम 
     - डा. अनिल भतपहरी / 9617777514

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