Friday, July 28, 2023

छत्तीसगढ़ी शब्द

**यहू ला जानव**

भूखण्ड/खेती भुइयाँ ले जुड़े शब्द

*मेड़*- खेत के चारो मुड़ा के पार।

*डोली/खेत*- मेड़युक्त भूखण्ड जिहाँ धान, गहूँ, चना या पानी ले पकइया फसल  बोय जाथे।

*भर्री*- बिना मेड़ के भूखण्ड जेमा पानी नइ माड़े, ज्यादातर येमा कम पानी मा पकइया नगदी फसल बोय जाथे।

*चक*- प्लाट, एक ले अधिक एकड़ के एके जघा स्थित खेत।

*खार*- बड़ अकन खेत या भर्री। खार के नामकरण भूखण्ड के स्थिति, दिशा, दशा,बनावट, गांव ,बाँध, पेड़ पात के अधिकता ला आधार बनावत होथे। जइसे- खाल्हे खार, रकसहूँ खार, दर्रा खार, बम्हरी खार, बन्धिया खार, खैरझिटी खार, चुहरी खार आदि कतको हे।

*गाँसा*- अइसन जघा जेमा बरसा के पानी गिरत साँठ माड़ जाथे। खेत के खँचका भाग।

*पखार*- अइसन डोली जिहाँ बरसा के पानी नइ माड़े, बल्कि सबे बोहा जथे। खेत के डिपरा भाग।

*मुही*- डोली के मेड़ मा बने छोटे भुलका, जेती ले पानी आथे जाथे। येला स्वेच्छा ले बनाये जाथे।

*भोक*- खेत के मेड मा बने अइसन भुलका जिंहा के खेत के पानी बोहा जथे। ये खुदे बन जाथे,एखर ले किसान मन ला नुकसान हो जथे।

*भरका*- बरसात के पानी पाके खेत या भर्री मा बने छोटे छोटे भुलका। 

*दर्रा*- भुइयाँ मा बने लामी लामा दरार। दर्रा गर्मी मा दिखथे, बरसा घरी मुँदा जथे।

*बिला*- केकरा अउ कतको जीव जानवर के द्वारा बनाये भुलका(छेद)। मेड पार मा कतको बिला दिख जथे।

*हदिक-हादक*- उबड़ खाबड़।

*उतारू*- उतार जघा/ ढलान।

*चघउ*- चढ़ाव।

*बिच्छल*- पानी गिरे ले माटी मा चिकनाई आ जथे, अउ अइसन जघा मनखे के पांव साबुत नइ माड़े।

*गाड़ा रावन*- गाड़ा के दूनो चक्का ले बने रस्ता।

*पैडगरी*- मनखे मनके अवई जवई ले बने डहर।

*धरसा*- खेत खार जाए बर बने रस्ता/डहर/बाट

*हरिया*- जोतत बेरा किसान, खेत के एक निश्चित भाग ला नांगर बइला ले जोतत जथे।

*पाँत*- खेत के बन काँदी ला निंदे बर धरे एक निश्चित भाग।

*टोकान*- खेत के कोन्हा।

*खँड़*- किनारा/भाग।

*खोधरा*- गढ्ढा

*ढिलवा*- डिपरा

*टेड़गी डोली*- चार ले जादा टोकान वाले डोली। अइसने डोली मा किसान मन बोवई या खेती काम के मुहतुर घलो करथे।

*लमती डोली*- लामा लामी डोली। 

*टेपरी डोली*- छोटे आकार के डोली।

*बाहरा डोली*- अइसन डोली जे कम संसाधन मा घलो जादा पैदावर देथे। पानी सहज आके भर जाथे। आकार प्रकार हिसाब ले, बड़े बाहरा, छोटे बाहरा, टेड़गी बाहरा बाहरा के कई प्रकार हे। बाहरा बहार शब्द ले बने हे, जिहाँ पैदावार घलो जादा होथे।

*गर्दी रेंगाना*- खेत के बीचों बीच, पानी निकाले बर  रापा कुदारी मा बनाये छोट नाली।

*खँधाला*- सीढ़ी, पेड़ के डाला।

*बनखरहा*- वो डोली या भर्री जिहाँ जादाच बन काँदी उपजथे।

*मउहारी*- मउहा के बन।

*कउहा रवार*- कउहा पेड़ के जंगल।

*अमरइया*- आमा बगीचा।

*जमराई*- राय जाम या चिरई जाम के बगीचा।

*डिही*-  पहली जमाना मा बसे बस्ती जे वर्तमान में उजाड़ होके बन बगीचा मा घिर गे हवै।

*चुहरी*- ये शब्द चाहली(पानी मा माते भुइँया) ले बने हे। अइसन जघा जेमा ज्यादातर पानी भरे रहिथे। 

*बतर/पाग*- बाँवत(धान बोय) बर उपयुक्त समय

*जरखेदी*-  चुकता, जमें।

*रेगहा*- एक विशेष दिन तिथि बाँधत खेत ला फसल बोय बर लेना।

*अधिया*- खातू,कचरा,धान,पान अउ जम्मो लागत ला आधा आधा लगाके खेती करना।

*कट्टू*-  लागत वागत काट पिट के एक निश्चित राशि या धान पान मा खेत बोना।

*भाँठा*- मटासी माटीयुक्त ठाहिल भुइयाँ, जिहाँ पानी नइ माढ़ें। ये रेतीला भी हो सकत हे।

*परिया*- अइसन जघा  जेमा खेती बाड़ी के काम नइ होय।

*चरागन*- गाय गरुवा मन के चारा चरे के जघा।

*दइहान/ गौठान/खइरखा*- अइसन जघा जिहाँ बरदी(गाय गरवा के समूह) बिहना ठहरथे।

*भोड़ू/भिम्भोरा*- जमीन मा बने दीमक के घर,जिहाँ साँप, बिच्छी, गोइहा, खुसरे दिखथे।

*तरिया*- गाँव घर के उपयोग बर भरे पानी। तरिया के बनाबट,स्थिति, दशा दिशा अउ रुखराई के हिसाब ले नाम देखे सुने बर मिलथे।

*ढोंड़गी*- नरवा/नाला के छोटे रूप।

*पैठू*- पैठू तरिया ले जुड़े रहिथे, बरसा के पानी एखरो माध्यम ले तरिया मा आथें अउ जब भर जाथे ता निकलथे घलो।

*बन्धिया/बाँध*- खेत खार के सिचाई बर भरे पानी। बाँध मा *नहर नाली(सिंचाई बर बने नाला)* जुड़े रथे।

*उलट*- बाँध भरे के बाद जादा पानी निकले के जघा, 

*डबरा*- भुइयाँ मा बने गड्ढा, जिहाँ बरसा घरी पानी भराये रहिथे।

*घुरवा*- खातू कचरा फेके बर बने जघा।

*कुँवा*- जमीन के गहराई मा जलस्रोत।

*बावली*- जमीन के गहराई मा भरे पानी जिहाँ सीढ़ी रिथे।

*मसानघाट*- अइसन जघा जिहाँ मनखे मन ला ,मरे के बाद दफनाये, जलाए जाथे।

*खदान*- धातु,पथरा, छुहीमाटी निकाले बर भुइयाँ मा बने गड्ढा।

*कछार*- नदिया तीर के भुइयाँ।

*डुबान/ बुड़ान*- बांध या नरवा भरे के बाद, बांध ले लगे वो जघा जिहाँ पानी भर जाथे।

*माड़ा*- जंगली जानवर मन के रहे के जघा।

*साँधा*- खोल

*अपासी*- सिंचित भुइयाँ

*लगानी*- अइसन जमीन जेखर लगान पटाये(भरना)बर लगथे

*खरखरहा*- ना गिल्ला ना सुक्खा, भर्री अइसने पाग मा बने जोताथे।

*किरचहा*- कठोर,कड़ा, टांठ।

*चिक्कन*- चिकना

*चिखला*- कीचड़

*लेटा*- लसलसा कीचड़ के गाड़ा चक्का या पाँव मा चपक जथे।

*निँदा*- निदाई करे के बाद निकले बन/खरपतवार

*मेड़ो/सिवान/सियार*- कोनो गाँव, शहर,या देश राज के आखरी छोर।

*सियार*- मेड़ो मा गड़े पथना, या कोनो चिन्हा।

*खंती*- खेत खार के एक निश्चित भाग ल कोड़ना, ज्यादातर खंती कोड़ के खेत ला बरोबर करे जाथे।

*गोदी*-  जमीन के एक निश्चित भाग ल कोड़े बर चिन्हित जघा। एक फुट गहरा अउ दस फुट समान लंबाई चौड़ाई के नापी भुइयाँ- एक गोदी।

*डंगनी*- गोदी नापे के पैमाना।

*ठिहा/आँट*- गोदी कोड़त बेरा गहराई के नाप बर छोड़े टापू। एखरे ले अंदाजा लगथे कि वो जघा कतका ऊँच रिहिस।

*ढेला*- भुइयाँ ला कोड़े/खने मा निकले छोट छोट साबुत खण्ड।

*गूँड़ा*- माटी के बुरादा।

*कन्हार डोली*- काला माटी वाले खेत।

*मटासी*- पिंवरा माटी वाले खेत।

*मुरमुहा*- मुरूम युक्त भुइयाँ।

*कनाछी*- रेती।

*कुधरिल*- रेत युक्त धूल।

*फुतकी/धुर्रा*- माटीयुक्त धूल।

*कुंड़/सेला*- नांगर जोतत बेरा बने चिन्हा।

*गोंटा*- जमीन मा पड़े पिवरा रंग के गोल गोल पथरा।

*कँसियारा*- काँसी युक्त खेत।

*राता खार*- दुरिहा के भाँटा जमीन।

*फुटहन/कटही बन*- काँटेदार पेड़ पौधा ले युक्त भुइयाँ।

*नर्सरी*- फलदार,फूलदार,छायादार  अउ औषधीय वृक्ष के पौधा तैयार करे के जघा।

*कुलापा/पुलावा*- छोटे नहर नाली, छोटा नाला,

*रपटा*- कामचलाऊ नाली।

*कूना*- चना, गहूँ के कूढ़ी।

*मांदा*- क्यारी/ओरी

*बुकनी*- चिकना।

*दुवार*- घर के आघू के खाली जघा, अंगना।

*बारी/बखरी*- घर के नजदीक साग भाजी लगाय के जघा।

*कोठार/बियारा*- धानपान या अन्य फसल ला जिहाँ रखे, मिन्जे जाथे।

*रकबा/एकड़/हैक्टेयर/जरी*- जमीन नाप के पैमाना

*डोंगरी*

*पहाड़*

*मैदान*

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

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