।। डां. अंबेडकर कृत हमारा संविधान ही पवित्र ग्रंथ हैं।।
धर्म ,पंथ ,मत ,वाद और उनसे अभिप्रेरित राजनीति से केवल हम किसी पर विचार लाद सकते है उन्हे बंधन में ला सकते है यहां तक उनके भौतिक सुविधाओ को बढा सकते हैं। परिक्षेत्र, राज्य व देश का विकास भी कर सकते हैं। पर मानव को सुख और स्वतंत्रता नही दे सकते।
सुख और स्वतंत्रता के लिए समानता पर आधारित साहित्य परिपक्व ज्ञान -विज्ञान सम्मत विचार उन्नत दर्शन व कलाए चाहिए ।साथ ही उनके प्रभावी क्रिन्यावयन भी। पश्चात्य जगत इन्हे अर्जित कर रहे है और भारतीय प्राचीन सांमती बर्बर व्यवस्था को ढोने इसलिए बाध्य किए जा रहे है कि वे हमारे विरासत है। संस्कृति और पुरातन प्रेम के कारण इस तरह के विचार अग्राह्य हो जाते है। आज भी हम जात- पात, मंदिर- मस्जिद ,पूजा -पाठ अराधना व इबादत आदि से उबर नही सके हैं। बल्कि यह धारणा बना रखे हैं कि इसी में सुख और कल्याण हैं। मानव बरगद की लाह की तरह कुछ आधुनिक होते तो है पर एक ऊचाई पर पहुंच वापस जमीदोंज हो जाते हैं। बस बरगद को सजीव रखे है बिना किसी उपयोग के वह न इमारती लकड़ी है न औषधि न जलाऊ भी ।क्योकि हमने उसे पवित्र. मानकर केवल पुजनीय बना रखे हैं ।
मानव स्वतंत्रता और उनकी मान -सम्मान सहित कल्याण की कामना संविधान में निहित हैं।
दर असल हमारा संविधान वृहत्तर भाव को अपने में समाहित किए धर्मनिरपेक्ष है और मानव के हितार्थ ही सृजित हैं। अब तो यह बातें सुप्रिम कोर्ट के न्यायाधीश तक कह रहे है कि संविधान सबसे पवित्र ग्रंथ हैं।
No comments:
Post a Comment