तेरी तरह कोई तो बसी हैं मन में
पर क्युं कुछ खाली हैं जीवन में
आग लगी और पानी भी बरसा
कुछ असर नहीं जलन-भींगन में
ये मस्तानी शाम और रुहानी रातें
थकान मिटती नहीं कोई सीज़न में
अब तो तड़फ की लत ही लगी हैं
बिन इनके मज़ा क्या है जीवन में
- डा अनिल भतपहरी
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